इजराइल पर ईरान के अटैक करने के बाद दुनिया के सामने युद्ध का नया चैप्टर खुल गया लगता है. 13 अप्रैल की रात ईरानी सेना ने इजराइल के नवातिम एयरबेस को निशाना बना कर 200 से ज्यादा ड्रोन और दर्जनों मिसाइलों से ताबड़तोड़ अटैक किया. ईरान के ताबड़तोड़ हमले के बाद इजराइल के साथसाथ पूरी दुनिया में डर का माहौल है. इस हमले में इजराइल को हुए नुकसान की खबरें भी सामने आ रही हैं, हालांकि इजराइल नुकसान से इनकार कर रहा है. इजराइल अब एक्शन मोड में है और प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान के हमले का बदला लेने की कसम खा ली है. उन्होंने कहा है कि इजराइल जवाबी कार्रवाई करने और ईरान से कीमत वसूलने के लिए उचित समय और तरीका चुनेगा.

ईरान और इजराइल के बीच शुरुआत, दरअसल, 1 अप्रैल से हुई थी जब इजराइल ने सीरिया में स्थित ईरानी दूतावास पर हमला किया था, जिस में 2 कमांडर और 7 नागरिकों की मौत हो गई थी. इस हमले के बाद ईरान ने बदला लेने की चेतावनी दी थी. और 13 अप्रैल की रात ईरान ने इजराइल पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया. ईरान के हमले के बाद इजराइल उसे आतंकवादी देश कह रहा है जबकि वह खुद लंबे समय से निर्दोष फिलिस्तीनियों का लहू बहा रहा है.

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गौरतलब है कि एक समय ऐसा भी था जब ईरान और इजराइल अच्छे दोस्त थे. 1979 में राजशाही के अपदस्थ होने तक ईरान और इजराइल के बीच तेल और हथियारों के सौदों सहित राजनयिक और आर्थिक संबंध थे. इराक के साथ ईरान के युद्ध के दौरान ईरान और इजराइल के बीच तनाव बढ़ता गया. बाद में यह तनाव इतना बढ़ गया कि 2005 में ईरान के राष्ट्रपति ने यहां तक कह दिया कि इजराइल को मानचित्र से हटा देना चाहिए.

कैसे शुरू हुई दुश्मनी

साल 1948 में अपने निर्माण के बाद से इजराइल काफी उठापटक झेलता रहा. ज्यादातर देशों ने उसे मान्यता देने से इनकार कर दिया, खासकर मिडिल ईस्ट के मुसलिम देशों ने. मगर ईरान ने उसे मान्यता दी. उस दौर में पूरे वेस्ट एशिया में ईरान यहूदियों के लिए सब से बड़ा ठिकाना था. नयानया यहूदी देश इजराइल ईरान को हथियार और तकनीक देता और बदले में तेल लिया करता था. दोनों के बीच रिश्ते इतने अच्छे थे कि इजराइली खुफिया एजेंसी मोसाद ने ईरान के इंटैलीजैंस सावाक को खुफिया कामों की ट्रेनिंग तक दी. लेकिन दोनों के बीच दुश्मनी की नींव पड़ी ईरान की इसलामिक क्रांति की वजह से.

60 के दशक से ही ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्ला रूहुल्लाह खुमैनी ईरान को मुसलिम देश बनाने की वकालत करने लगे. तब इस देश पर राजा शाह रजा पहलवी का शासन था, जिस के अमेरिका और इजराइल से बढ़िया रिश्ते थे. मगर खुमैनी इन दोनों ही देशों को शैतानी देश कहते थे और मुसलिम राष्ट्र की बात करते थे.

धीरेधीरे हवा खुमैनी के पक्ष में होती गई. क्रांति हुई. लाखों लोग शाह के खिलाफ प्रोटैस्ट करने लगे. हालात इतने बिगड़े कि राजा को देश छोड़ कर भागना पड़ा और साल 1979 में ईरान इसलामिक देश घोषित हो गया. इस के बाद ही उस ने अमेरिका समेत सहयोगी देश यानी इजराइल से खुल कर नफरत दिखानी शुरू कर दी.

इसलामिक रिवोल्यूशन के तुरंत बाद दोनों देशों के बीच यात्राएं बंद हो गईं. एयर रूट पूरी तरह से रोक दिया गया. दोनों के बीच डिप्लोमेटिक रिश्ते भी खत्म हो गए और तेहरान स्थित इजराइली एंबेसी को फिलिस्तीन के दूतावास में बदल दिया गया. एक जो सब से बड़ी बात हुई वह यह कि दोनों ने ही एकदूसरे को मान्यता देने से इनकार कर दिया. ईरान ने इजराइल को पहले तो मान्यता दी थी लेकिन खुमैनी के आने के बाद यह बात फैलने लगी कि यहूदियों ने फिलिस्तीनियों का हक मारा है. दूसरी तरफ अपना वर्चस्व बढ़ाते इजराइल ने भी अमेरिका की देखादेखी इसलामिक रिपब्लिक को मानने से मना कर दिया.

20वीं सदी के मध्य के बाद से मध्यपूर्व दुनिया का सब से अस्थिर हिस्सा रहा है. इजराइल-फिलिस्तीन सहित अन्य समूहों के बीच संघर्ष दशकों पुराना है. इस का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा है. इजराइल ने 1948 और 1973 के बीच मिस्र, सीरिया और जौर्डन सहित अरब पड़ोसियों के साथ 4 बड़े युद्ध लड़े हैं. 1960 के दशक के मध्य में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन के निर्माण के बाद से इसे अन्य चुनौतियों का सामना करना पड़ा है. इस में लेबनान में हिजबुल्लाह, फिलिस्तीन क्षेत्रों में हमास और यमन में हूती भी शामिल हो गए हैं.

युद्ध का भारत पर असर

रूस-यूक्रेन और इजराइल-हमास के युद्ध के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था पहले ही काफी डांवाडोल है. अब ईरान और इजराइल के बीच यदि युद्ध हुआ तो यह सिर्फ मिडिल ईस्ट तक ही सीमित नहीं रहेगा बल्कि यह नया संघर्ष पूरे मध्यपूर्व को अस्थिर कर देगा, जिस का सीधा असर भारत पर पड़ेगा.

7 अक्टूबर को हुए हमले के बाद भी कुछ ऐसा ही हुआ था. इजराइल-हमास युद्ध शुरू होने के बाद लाल सागर में हूती विद्रोहियों ने जहाजों पर हमला किया था. लाल सागर से भारत अरबों का व्यापार करता है और यहां उत्पन्न अस्थिरता उस के ट्रेड के लिए खतरा है. इस के अलावा अगर मिडिल ईस्ट में संघर्ष चलता रहा तो इंडिया, मिडिल ईस्ट, यूरोप इकोनौमिक कौरिडोर के काम में रुकावट पैदा हो जाएगी.

भारत के मध्यपूर्व के देशों, विशेषकर यूएई और सऊदी, के साथ घनिष्ठ आर्थिक संबंध हैं. तेल जैसि जरूरी चीजों को भारत यहां से आयात करता है और इन देशों से अरबों डौलर के निवेश की उम्मीद कर रहा है. अगर इजराइल और ईरान युद्ध में उतरते हैं तो भारत की उम्मीदों पर संकट के बादल मंडराने लगेंगे. भारत पर इस का असर दिख भी रहा है. बीते दिनों ईरान ने इजराइल से जुड़े एक जहाज पर कब्जा कर लिया. इस जहाज में कुल 25 लोग सवार थे, जिन में 17 भारतीय क्रू मैंबर थे.

इजराइल पर ईरान के मिसाइल और ड्रोन हमले तथा इस के बाद मध्यपूर्व में पैदा हुए हालात पर भारत काफी चिंतित है. मिडिल ईस्ट में संघर्ष के कारण भारतीयों की जिंदगी दांव पर होगी. इस वक्त लाखों भारतीय यूएई और सऊदी अरब में रहते हैं. मिडिल ईस्ट में जंग का मतलब है इन सभी की जान पर खतरा. इजराइल और ईरान में लगभग 30,000 भारतीय रहते हैं. इन की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार की प्राथमिकता है. भारतीय दूतावास ने कहा है कि वह लोगों के संपर्क में है. इन देशों में रहने वाले भारतीयों की सुरक्षा के साथसाथ भारत के आर्थिक हित भी दांव पर हैं.

ईरान और इजराइल के बीच युद्ध हुआ तो ईरान के साथ भारत की बढ़ती आर्थिक भागीदारी, विशेषकर चाबहार बंदरगाह विकास जैसी परियोजनाएं खटाई में पड़ जाएंगी. चाबहार बंदरगाह पाकिस्तान में चीन द्वारा वित्तपोषित ग्वादर बंदरगाह के पास स्थित है. चाबहार बंदरगाह का विकास भारत और ईरान मिल कर कर रहे हैं. यह ईरान के दक्षिणी तट पर सीस्तान-बलूचिस्तान प्रांत में है.

भारत और ईरान दोनों के लिए यह बंदरगाह रणनीतिक महत्त्व रखता है. यह पाकिस्तान को बाईपास कर के भारत को अफगानिस्तान और मध्य एशिया के साथ व्यापार के लिए एक वैकल्पिक रास्ता देता है. यह बंदरगाह इस क्षेत्र में व्यापार मार्गों और कनैक्टिविटी को मजबूत करने के भारत के प्रयासों का हिस्सा है. ईरान-इजराइल के बीच सैन्य कार्रवाई इन प्रयासों को खतरे में डाल सकती है.

इस के अलावा इंटरनैशनल नौर्थ-साउथ ट्रांसपोर्ट कौरिडोर (आईएनएसटीसी) में भी बाधा पैदा हो जाएगी. गौरतलब है कि आईएनएसटीसी भारत, ईरान, अफगानिस्तान, आर्मेनिया, अजरबैजान, रूस, मध्य एशिया और यूरोप के बीच माल ढुलाई के लिए 7,200 किलोमीटर लंबी मल्टी-मोड परिवहन परियोजना है. भारत क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने, खासकर अफगानिस्तान से इस की कनैक्टिविटी, के लिए इस परियोजना पर जोर दे रहा है. इस क्षेत्र में संघर्ष बढ़ा तो इस के पूरे पश्चिम एशियाई क्षेत्र में फैलने की आशंका है. इस से यह क्षेत्र फिर से अस्थिर हो सकता है, जिस से भारत की ऊर्जा, सुरक्षा और व्यापार मार्ग प्रभावित हो सकता है. आसपास के देशों के भी लड़ाई में शामिल होने से खतरा बढ़ जाएगा. इस से भारत के लिए स्थिति और जटिल हो सकती है.

भारत ईरान और इजराइल दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है. भारत के ईरान के साथ संबंध मजबूत रहे हैं. दोनों देशों के बीच उच्च स्तरीय आदानप्रदान और सहयोग समझौते हुए हैं. ईरान के साथ भारत के आर्थिक संबंध व्यापार, निवेश और बुनियादी ढांचे के विकास सहित कई क्षेत्रों तक फैला हुआ है. ईरान के साथ भारत के व्यापार संबंधों में चावल और फार्मास्युटिकल से ले कर मशीनरी व आभूषण तक का आयातनिर्यात शामिल है.

भारतीय कंपनियां ईरान और इजराइल दोनों देशों में कारोबार कर रही हैं. कंपनियां विकास परियोजनाओं से ले कर व्यापार साझेदारी तक में शामिल हैं. रक्षा और प्रौद्योगिकी क्षेत्र में इजराइल के साथ भारत की साझेदारी बढ़ी है. ईरान-इजराइल के बीच तनाव बने रहने से इन कंपनियों को खतरों और अनिश्चितताओं का सामना करना पड़ सकता है.

खाड़ी के देशों में 90 लाख से अधिक भारतीयों की जान खतरे में

मध्यपूर्व के खाड़ी के देशों में 90 लाख से अधिक भारतीय रहते हैं. इन में ईरान में करीब 10 हजार, इजराइल में 18 हजार से अधिक लोग रहते हैं. खाड़ी सहयोग परिषद् के देशों- बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात में लगभग 90 लाख भारतीय रहते हैं. पूरी दुनिया में भारतीयों की आबादी 3 करोड़ से अधिक है. युद्ध के हालात बनने पर इतनी बड़ी संख्या में लोगों का भारत लौटना संभव नहीं है.

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