15 फरवरी , 2024 को सुप्रीम कोर्ट में चीफ जस्टिस औफ इंडिया डी वाई चंद्रचूड़ की अगुआई में 5 जजों की बैंच ने इलैक्टोरल बौंड स्कीम को असंवैधानिक करार दे कर उसे रद्द कर दिया था. कोर्ट ने सवाल उठाया था कि राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाले चंदे को जनता से छिपाने की आवश्यकता क्यों है? इन पैसों की जानकारी पब्लिक डोमेन में क्यों नहीं होनी चाहिए, यह जनता की वैचारिक स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार है. इसी के साथ कोर्ट ने स्टेट बैंक औफ इंडिया (एसबीआई), जो कि इलैक्टोरल बौंड बेचने वाला देश का अकेला अधिकृत बैंक है, को निर्देश दिया था कि वह

12 अप्रैल, 2019 से ले कर अब तक खरीदे गए समस्त इलैक्टोरल बौंड्स की जानकारी चुनाव आयोग को 6 मार्च, 2024 तक उपलब्ध कराए ताकि चुनाव आयोग उसे अपनी वैबसाइट पर अपलोड कर के सार्वजनिक कर सके.

मोदी सरकार के दबाव में एसबीआई इलैक्टोरल बौंड्स की जानकारी शेयर करने में हीलाहवाली करता रहा. 11 मार्च को जब कोर्ट की फटकार पड़ी तो देश के जानेमाने वकील हरीश साल्वे को कोर्ट में खड़ा कर के तमाम बहाने बनाते हुए एसबीआई ने जून तक का समय मांगा. इतना लंबा समय इसलिए ताकि तब तक लोकसभा चुनाव निबट जाएं और प्रधानमंत्री मोदी, जो देश की जनता से यह कहते आए हैं कि ‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’, की पोलपट्टी चुनाव से पहले न खुलने पाए.

एसबीआई की हरकत से सुप्रीम कोर्ट इतना नाराज हुआ कि उस ने जबरदस्त फटकार लगाते हुए 24 घंटे के अंदर समस्त जानकारी कोर्ट के पटल पर रखने के आदेश के साथ एसबीआई के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई की बात भी कह दी. कोर्ट के कड़े रुख से सब की सिट्टीपिट्टी गुम हो गई और दूसरे दिन इलैक्टोरल बौंड्स की जानकारी कोर्ट में आ गई.

उस जानकारी से इतना खुलासा हुआ कि अब तक जितने इलैक्टोरल बौंड्स खरीदे गए हैं उन में से 57 फीसदी हिस्सा भारतीय जनता पार्टी को गया है और माना जा रहा है कि मार्च 2018 से अप्रैल 2019 तक जारी हुए इलैक्टोरल बौंड में से 95 फीसदी धन भाजपा की झोली में गया है.

अब तक की जानकारी के अनुसार भाजपा को इलैक्टोरल बौंड्स से कुल 6,986.5 करोड़ रुपए यानी करीब 7 हजार करोड़ रुपए चंदा मिला.

अन्य पार्टियों को इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए जो चंदा प्राप्त हुआ है, वह भाजपा के मुकाबले बहुत कम है और ये तमाम पार्टियां चूंकि सत्ता में नहीं हैं तो उन से किसी तरह का फायदा उठाने वाली बात भी नहीं है. विपक्षी पार्टियों को उन्हीं लोगों द्वारा इलैक्टोरल बौंड्स के रूप में चंदा दिया गया है, जो चाहते हैं कि देश में लोकतंत्र जीवित रहे, विपक्ष मजबूत रहे ताकि वह सत्ता में बैठे लोगों से सवालजवाब कर सके. उस से जनता के पैसे का हिसाब ले सके या वे लोग जो भाजपा के झूठतंत्र से परेशान हो चुके हैं और चाहते हैं कि उसे सत्ता से बेदखल किया जाए. दरअसल सही चंदा तो इन्हीं पार्टियों को लोगों ने दिया है. भाजपा को इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए जो ‘दान’ दिया गया है वह एक तरह से दानरूपी घूस है क्योंकि बौंड्स देने वालों ने भाजपा की सरकार से ‘दान’ से कहीं ज्यादा का फायदा उठा लिया है.

ऐसा नहीं है कि व्यापारियों और कंपनियों ने सिर्फ भाजपा के लिए इलैक्टोरल बौंड्स खरीदे. निर्वाचन आयोग (ईसी) के आंकड़ों में यह बात सामने आई है कि कांग्रेस ने इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए कुल 1,334.35 करोड़ रुपए भुनाए, जबकि बीजद ने 944.5 करोड़ रुपए, वाईएसआर कांग्रेस ने 442.8 करोड़ रुपए, तेदेपा ने 181.35 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बौंड्स भुनाए. समाजवादी पार्टी (सपा) को इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए 14.05 करोड़ रुपए, अकाली दल को 7.26 करोड़ रुपए, अन्नाद्रमुक को 6.05 करोड़ रुपए, नैशनल कौन्फ्रैंस को 50 लाख रुपए मिले.

‘न खाऊंगा न खाने दूंगा’ वाली पार्टी यानी भारतीय जनता पार्टी को इलैक्टोरल बौंड के जरिए करीब 7 हजार करोड़ रुपए देश की उन तमाम कंपनियों, उद्योगपतियों, अमीरजादों से मिला है जिन्होंने इस के एवज में सरकार से खूब फायदे उठाए हैं और प्रोजैक्ट हासिल किए हैं या उन के पीछे छोड़ी गईं सरकार की ईडी-सीबीआई से पीछा छुड़ा लिया.

ज्यादातर इलैक्टोरल बौंड्स उन व्यापारियों-उद्योगपतियों ने खरीद कर भाजपा को भेंट किए हैं जिन पर प्रवर्तन निदेशालय (ईडी), आयकर विभाग या सीबीआई की रेड पड़ी या जिन को रेड का भय दिखाया गया अथवा जिन्हें चंदे के चढ़ावे के बदले देशविदेश में बड़ेबड़े प्रोजैक्ट दिए गए. जिस तरह व्यापारियों और उद्योगपतियों ने भाजपा को चंदा दे कर धंधा हासिल किया वह मनीलौन्ड्रिंग का मामला ही है.

गौरतलब है कि इलैक्टोरल बौंड्स खरीदने वाले शीर्ष 5 दानदाताओं में से 3 को ईडी, सीबीआई या आयकर विभाग की कार्रवाई का सामना करना पड़ा था. इस के अलावा कई ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने ईडी के छापों के बाद या सरकार से कोई बड़ा प्रोजैक्ट मिलने से पहले या बाद में करोड़ों रुपए मूल्य के इलैक्टोरल बौंड्स खरीद कर भाजपा को पैसे पहुंचाए.

चंदा या उगाही

शीर्ष दानदाता कंपनी फ्यूचर गेमिंग एंड होटल्स के मालिक सैंटियागो मार्टिन के खिलाफ वर्ष 2016 से ईडी की कार्रवाई जारी है और इस कंपनी ने वर्ष 2019 से 2024 के बीच अलगअलग मौकों पर 1,386 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बौंड्स खरीदे. उल्लेखनीय है कि फ्यूचर गेमिंग एंड होटल्स पर 2 अप्रैल, 2022 को ईडी का छापा पड़ा और 5 दिनों बाद उस ने 100 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बौंड्स खरीद कर भाजपा को पैसे पहुंचाए. जैसेजैसे ईडी ने कार्रवाई का डर दिखाया, बौंड्स के जरिए भाजपा को रिश्वत पहुंचाई जाती रही. इसी तरह कई मृत कंपनियों से भी पैसा वसूला गया.

1,000 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बौंड्स खरीदने वाली दूसरी बड़ी दानदाता कंपनी है- मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड, जिस पर अक्तूबर 2019 में आयकर विभाग ने रेड डाली थी. इस के बाद ईडी ने भी कंपनी पर शिकंजा कसा और जांच शुरू कर दी. अप्रैल 2020 में कंपनी ने 50 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बौंड्स खरीदे और भाजपा के खाते में जमा किए. यह सिलसिला 2024 तक चलता रहा. पैसा पहुंचाया जाता रहा और आयकर व ईडी की जांच रोकी रखी गई. अप्रैल 2023 में मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड कंपनी ने 140 करोड़ रुपए के बौंड्स भाजपा के लिए खरीदे. भाजपा की ?ाली लबालब भरने के एवज में इनाम के तौर पर इस बार मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड को मई 2023 में महाराष्ट्र में ठाणे-बोरीवली ट्विन टनल का बड़ा प्रोजैक्ट मिला. इस के साथ ही कंपनी के खिलाफ आयकर विभाग और ईडी की जांचें डब्बाबंद हो गईं. इस के साथ ही कुछ शहरों में सीएनजी और पाइपलाइन के जरिए रसोई गैस की खुदरा बिक्री का लाइसैंस भी इस ने प्राप्त किया. गौरतलब है कि मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रा कंपनी की स्थापना 1989 में पामी रेड्डी पिचि रेड्डी ने की थी.

ब्लैक मनी पर कैसी सेंध

कुल 376 करोड़ रुपए का चंदा भाजपा को देने वाली 5वीं सब से बड़ी दानदाता कंपनी वेदांता के खिलाफ जून 2018 में ईडी ने जांच शुरू की थी. ईडी ने दावा किया था उस के पास वेदांता के खिलाफ नियमों का उल्लंघन कर चीनी नागरिक को वीजा दिलाने के पुख्ता सबूत हैं. इस के बाद से ही वेदांता ने इलैक्टोरल बौंड्स खरीद कर भाजपा की ?ाली भरनी शुरू कर दी.

इलैक्टोरल बौंड स्कीम, जो कि भाजपा के शासनकाल में यह कह कर लाई गई थी कि इस से कालाधन समाप्त होगा, स्वतंत्र भारत का सब से बड़ा घोटाला साबित हुई है. इसीलिए सुप्रीम कोर्ट इस मामले में इतनी सख्ती भी बरत रहा है. विपक्षी पार्टी कांग्रेस के महासचिव जयराम रमेश का कहना है कि इलैक्टोरल बौंड्स के आंकड़े सार्वजनिक होने के बाद भाजपा की हफ्ता वसूली, रिश्वतखोरी और बड़ी एवं मुखौटा कंपनियों के जरिए धनउगाही की भ्रष्ट तरकीब उजागर हो गई है. यह भाजपा का सब से बड़ा घोटाला है.

कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने दावा किया कि भाजपा को इलैक्टोरल बौंड्स के माध्यम से करोड़ों रुपए पहुंचाने वाली कंपनी वेदांता को 3 मार्च, 2021 को राधिकापुर पश्चिम में निजी कोयला खदान मिली. अप्रैल 2021 में वेदांता ने 25 करोड़ रुपए का चुनावी चंदा भाजपा को दिया. वेदांता के अलावा कई मुखौटा कंपनियों ने भी भाजपा को करोड़ों का दान दिया है.

इसी तरह जिंदल स्टील एंड पावर ने 7 अक्तूबर 2022 को बौंड्स के माध्यम से भाजपा को 25 करोड़ रुपए पंहुचाए. इस के 3 दिनों बाद 10 अक्तूबर, 2022 को कंपनी कोयला खदान हासिल करने में कामयाब हो गई. जयराम रमेश कहते हैं कि दिसंबर 2023 में आयकर विभाग ने शिरडी सांई इलैक्ट्रिकल्स पर छापा मारा था. इस के बाद कंपनी ने भाजपा को इलैक्टोरल बौंड के जरिए 40 करोड़ रुपए का चंदा दिया और उस के खिलाफ आयकर विभाग की जांच तुरंत बंद हो गई.

123 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बौंड्स की खरीदार 15वीं बड़ी दानदाता कंपनी जिंदल स्टील एंड पावर के खिलाफ 2019 में कोयला खदान घोटाला और बाद में 2022 में विदेशी मुद्रा नियमों के उल्लंघन को ले कर ईडी ने कार्रवाई की थी. फिर कंपनी ने अपने को ईडी के चंगुल से बचाने के लिए भाजपा के लिए इलैक्टोरल बौंड्स खरीदे. ईडी की कार्रवाई रुक गई. कंपनी से वसूली होती रही. जिंदल समूह ने अपनी स्टील कंपनी की छवि को सुधारने के लिए 2 पेज के रंगीन विज्ञापन 18 मार्च को कई अखबारों में छपवाए हैं.

टीडीपी के सांसद सी एम रमेश की कंपनी रितिक प्रोजैक्ट्स प्राइवेट लिमिटेड के खिलाफ अक्तूबर 2018 में आयकर विभाग ने कार्रवाई की थी. इस के कुछ महीने बाद ही सांसद सी एम रमेश न सिर्फ भाजपा में शामिल हो गए बल्कि पार्टी के लिए उन्होंने 45 करोड़ रुपए मूल्य के इलैक्टोरल बौंड्स भी खरीदे.

दिल्ली शराब घोटाले को ले कर चर्चा में आए पी शरत रेड्डी ने अपने को ईडी की जांच से बचाने के लिए कुल 49 करोड़ के इलैक्टोरल बौंड्स खरीद कर लपलपाते मुंह में भरे.

4 बड़ी वित्तीय कंपनियां बजाज फाइनैंस, पीरामल इंटरप्राइजेज व मुथूट फाइनैंस और एडेलवीस ग्रुप ने अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 के बीच 87 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बौंड्स खरीदे. खनन-स्टील कंपनियों ने भी 850 करोड़ रुपए के इलैक्टोरल बौंड्स खरीदे. आदित्य बिरला समूह की एक खनन कंपनी ईएमआईएल मध्य प्रदेश के छिंदवाड़ा में एक खनन परियोजना के लिए पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी के लिए परेशान थी. 2019 से 2022 के बीच कंपनी ने 224 करोड़ रुपए के बौंड्स खरीद कर भाजपा को भेंट किए और मंजूरी प्राप्त कर ली.

केंद्रीय एजेंसियों ईडी, सीबीआई और आयकर विभाग की कार्रवाई के बाद इलैक्टोरल बौंड्स खरीदने वालों की फेहरिस्त में 105 करोड़ रुपए मूल्य के इलैक्टोरल बौंड्स के साथ चेन्नई ग्रीन वुड्स, 84 करोड़ रुपए के बौंड्स के साथ आईआरबी इंफ्रा, 60 करोड़ के साथ हेटेरो ग्रुप, 52 करोड़ के साथ अरविंदो फार्मा, 54 करोड़ के साथ रामको सीमेंट, 16 करोड़ के साथ माइक्रो लैब्स, 15 करोड़ के साथ एल्केम, 14 करोड़ के साथ जेएस ग्रुप, 11 करोड़ के साथ त्रिवेणी अर्थ मूवर्स, 10 करोड़ के इलैक्टोरल बौंड्स खरीद के साथ यूएसवी प्राइवेट लिमिटेड जैसी सैकड़ों कंपनियां हैं, जिन्होंने अपने को जांच एजेंसियों के चंगुल से बचाने के लिए भाजपा को मोटा पैसा दिया. मोटेतौर पर अब तक कुल 41 ऐसी कंपनियां मिली हैं जिन के बीच केंद्रीय कानून प्रवर्तन एजेंसियों की कार्रवाई और इलैक्टोरल बौंड्स खरीद का सीधा संबंध है.

आपदा में अवसर

कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भी केंद्र सरकार को घेरा है. उन्होंने दावा किया कि इस माध्यम से बटोरे गए धन का इस्तेमाल गैरभाजपाई राज्य सरकारों को तोड़नेगिराने के लिए किया गया. राहुल ने आरोप लगाया कि अब यह निकल कर सामने आया है कि मोदी सरकार की इलैक्टोरल बौंड स्कीम भारत के बड़े कौर्पोरेट्स से धनउगाही का एक तरीका था. एक ऐसा तरीका जिस में कंपनियों को पहले धमकी दी जाए, फिर उन्हें भाजपा को चंदा देने के लिए मजबूर किया जाए.

स्वदेशी वैक्सीन के नाम पर कोविशील्ड के सीईओ अदार पूनावाला को ठेका दिया गया और कोविड के लिए कारगर, सस्ती और अच्छी वैक्सीन भारत में नहीं आने दी. अदार पूनावाला ने भी भाजपा को करीब 500 करोड़ रुपए मूल्य के इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए रिश्वत दी थी.

सही मानो में चंदा तो उन पार्टियों को मिला है जो सत्ता में नहीं हैं. मोदी सरकार यह वसूली न करती तो प्राइवेट कंपनियां उस धन से अपने कर्मचारियों के वेतन में वृद्धि करतीं, बोनस देतीं और ज्यादा से ज्यादा लोगों को नौकरी देने का काम करतीं. इस से देश में बेरोजगारी कम होती, युवाओं को काम मिलता. मगर भाजपा ने इन कंपनियों से इतनी ज्यादा वसूली की कि युवाओं को नौकरी देना तो दूर, कंपनियों ने बड़ी संख्या में कर्मचारियों की छंटाई कर डाली. दोष कोरोना को दे दिया कि उस की वजह से कंपनियां घाटे में हैं, जबकि, भाजपा की वसूली नीति के कारण कंपनियां घाटे में चली गईं.

भ्रष्टाचार का वैध मामला

गौरतलब है कि इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए उन कंपनियों ने भी चंदा दिया है जिन का न तो मुनाफा है न कारोबार. चुनाव आयोग और आरबीआई ने पहले आशंका जाहिर की थी कि बड़ी कंपनियां अपने बड़े बहीखातों में से पैसे नहीं देती हैं, बल्कि अपनी छोटीछोटी शैल कंपनियों के माध्यम से पैसे देती हैं और यह पैसा असल में किस का है, इस का पता आसानी से नहीं चलता. यही नहीं, यह पैसा सफेद है या कालाधन है, यह भी पता नहीं लगाया जा सकता.

ऐसे कई व्यक्ति हैं जो बड़ी कंपनियों से जुड़े हैं लेकिन वे निजी तौर पर करोड़ों रुपए फंड दे रहे हैं. ऐसी कंपनियां भी हैं जो चंदा तो दे रही हैं मगर उन का कोई मकसद स्पष्ट नहीं है और न तो उन के पास इतना पैसा है, लेकिन वे कहीं और से पैसा ला कर राजनीतिक दलों को गोपनीय तरीके से फंड दे जाती हैं.

फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ऐसी ही कंपनी है, जिसे लौटरी किंग के नाम से ख्यात सैंटियागो मार्टिन चलाता है. इस कंपनी का कोई भी मुनाफा नहीं है. इस का एक जर्जर सा दफ्तर है, उस ने हजार करोड़ रुपए से ज्यादा का चंदा भाजपा को दिया है. दूसरी है जानीमानी कंपनी रिलायंस, जिस ने खुद सीधे चंदा नहीं दिया, बल्कि एक छोटी निजी मालिकान वाली कंपनी के मारफत राजनीतिक दलों को कई सौ करोड़ रुपए चंदा दिया. उस कंपनी का आमतौर पर नाम तक पता नहीं चलेगा और न ही उस का कोई मुनाफा है.

चुनावी बौंड : पार्टी फंड पाने की शुद्ध घी वाली रूपरेखा

इलैक्टोरल बौंड स्कीम वर्ष 2017 के यूनियन बजट में लागू की गईर् थी और इसके लिए कोई अलग से विधेयक नहीं लाया गया था. बजट पर हुई बहस के दौरान ही इस पर थोड़ी सी चर्चा हुई थी. इस स्कीम के अनुसार दान देने वाले व्यक्ति को अपना नाम केवल बौंड खरीदते समय स्टेट बैंक औफ इंडिया की कुछ निर्धारित शाखाओं में मिले थे.

इलैक्टोरल बौंड 1 हजार, 10 हजार, 1 लाख, 10 लाख और 1 करोड़ रुपए के थे. मतलब यह है कि जब 2017 में यह लाया गया था तभी सरकार को मालूम था कि वोटर नहीं, बल्कि बड़े लोग राजनीतिक दलों को चंदा देने के लिए ये बौंड खरीदेंगे. सुप्रीम कोर्ट ने अपने जजमैंट में यह रहस्योद्घाटन किया कि 94 फीसदी बौंड 1 करोड़ रुपए वाले खरीदे गए थे. यह तथ्य सरकार को पहले से मालूम था.

यही नहीं, मंदिरों के माध्यम से 1 करोड़ रुपए के दान न के बराबर लेने वाली पार्टी को भरोसा था कि 1 करोड़ रुपए वाले बौंड बिकेंगे. वह पार्टी जिस ने 2016 में 500 और 1,000 रुपए के नोट और 2023 में 2,000 रुपए के नोट बंद कराए क्योंकि उन से कालाधन जमा होता था, चंदा लेने के लिए 10 लाख और 1 करोड़ के बौंड इश्यू किए.

इतना ही नहीं, बौंड खरीदने की तारीखें भी तय की गईं. चंदा लेने वाले मंदिर हों, पुजारी हों या एनजीओ हों ये सभी आमतौर पर चौबीसों घंटे अपने हाथ पसारे रखते हैं. वहीं, मंदिरों के आगे भीख मांगने वालों के हाथ भी हमेशा फैले रहते हैं कि वहां दानी न जाने कब आ जाए.

पर इलैक्टोरल बौंड्स जनवरी, अप्रैल, जुलाई, अक्तूबर के हर माह में सिर्फ 10 दिन यानी पूरे साल में सिर्फ 40 दिनों में खरीदे जा सकते थे. कौन सी सरकार और पार्टी चंदा लेने के लिए इस तरह के कठिन नियम बनाएगी जबकि उसी सरकार को चलाने वाली पार्टी के सैकड़ों मंदिरों में एक नहीं, 10-20 जगह दानपेटियां रखी रहती हैं और उन में आज भी सिक्के चढ़ाए जाते हैं, नोटों की तो बात छोड़ दें. जो पार्टी मंदिरों, मूर्तियों के चंदों से सत्ता में आई उसे 2017 में ही भरोसा आखिर क्यों था कि इन बौंडों को उन की तय तारीखों में खरीद ही लिया जाएगा?

2 जनवरी, 2018 को जारी स्कीम, जिसे वसूली फरमान कहना ज्यादा सही होगा, के तहत चंदा देने वाले का पूरा हुलिया जमा करने से साफ था कि पार्टी मालूम रखना चाहती थी कि कौन सा बौंड किस ने खरीदा. यदि स्कीम गुप्तदान की होती तो स्कीम केवाईसी यानी अपने ग्राहक को जानो, उस का नाम, पता, आधार नंबर, पैन नंबर आदि कुछ न लेती. लेकिन जब पूरी जानकारी ली ही जा रही है तो वह बौंड पर क्यों नहीं लिखी जा रही थी. दरअसल, सत्ताधारी पार्टी को तो मालूम था कि भारतीय स्टेट बैंक से तो वह पूरी जानकारी निकलवा लेगी. पर अगर किसी ने किसी और पार्टी को चंदा दिया तो उस की खैर नहीं.

यह आश्चर्य और हर्ष की बात है कि इस के बावजूद कुल बौंडों में से 40 फीसदी से ज्यादा दूसरी पार्टियों को मिले लेकिन इन 40 फीसदी बौड्स का पैसा पाने वाली पार्टियों में से कुछ भाजपा की सहयोगी ही हैं. ये बौंड बहुत छोटी पार्टियों की ?ाली में न चले जाएं, इस के लिए यह नियम रखा गया कि जिन पार्टियों, चाहे रिप्रेजैंटेशन औफ द पीपल्स एक्ट 1951 की धारा 29 ए के अंतर्गत रजिस्टर्ड हों, को पिछले आम चुनावों में 1 फीसदी से ज्यादा वोट मिले हों, वे ही इन बौंड्स को भुनाने के लिए पात्र होंगी.

पार्टियां इन बौंडों को कुछ ही बैंकों से भुना सकती थीं और इसलिए पार्टियों को उन बैंकों में खाते खुलवाने पड़े जहां सत्ता में बैठी पार्टी के अफसर बैठे थे ताकि हर रोज किस पार्टी को कब पैसा मिला, पता चल जाए. बौंड खरीदने वाला तुरंत हाथ की हाथ पार्टी को बौंड्स दे दे, इसलिए बैंड की मियाद सिर्फ 15 दिन रखी गई.

बौंड स्कीम पूरी तरह जेम्स बौंड की फिल्मों की तरह रहस्यात्मक थी. हर कदम पर कोई बड़ी रुकावट, हर कदम पर तलाशी या जानकारी. यह चंदा वसूली थी ही नहीं, बल्कि यह हफ्ता वसूली थी, रंगदारी थी.

इस को लागू करने की वजह शायद यह रही होगी कि भाजपा के वसूली एजेंट पैसा अपनी जेब में रखने लगे होंगे, बौंड स्कीम गुप्तधन को गुप्तदान में बदलने के लिए नहीं, खुलेदान को भाजपा व बैंक अकाउंट में पहुंचाने का नायाब तरीका थी. इस से पार्टी के कोषाध्यक्ष को चिंता नहीं करनी पड़ती थी कि पैसा बीच में तो नहीं लिया गया. मंदिरों में चंदे की छीना?ापटी से सीख कर आई पार्टी को मालूम था कि चंदे में मिले पैसे को अपने ही लोग किस तरह अपनी जेबों में रख लेते हैं.

कार्नेगी एंडोमैंट फौर इंटरनैशनल पीस ने 2019 की एक रिपोर्ट में कहा था कि इलैक्टोरल बौंड्स ने चुनावी फंडिग को सरकारी परतों में छिपाने में बड़ी सफलता से काम किया. इन बौंडों के माध्यम में सत्ता वाली पार्टी के लिए मनमरजी तरीके से पैसा वसूलने का साधन मिल गया जिस में नोटों के बंडल ढोने की जरूरत नहीं है और न ही पार्टियों के खातों में रंगदारी देने वालों के नाम दर्ज कराने की जरूरत है. पार्टियों के खाते देखे जाएंगे तो बौंडों की मेहरबानी से वहां देने वाले का नाम गुप्त रहेगा. सत्ता में बैठी पार्टी ने यह चक्रव्यूह महाभारत से ही सीखा जिस में विरोधियों को छल, कपट, ?ाठ से मारने का पाठ जम कर पढ़ाया गया.

सफेद कपड़े से ज्यादा सफेद धुले माने जाने वाले तब के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा था कि इन बौड़ों से चुनावी फंडिंग में पारदर्शिता आएगी जबकि उन्होंने साफतौर पर इसे ऐसे डिजाइन किया था कि यह पारदर्शी या सिर्फ माइक्रोस्कोप या टैलीस्कोप के एक तरफ हो, सरकारी पार्टी की आंख की तरफ. दान देने वालों के नाम सरकारी पार्टी के पास मिनटों में पहुंच जाते जब वे बौंड खरीदते और किसे दिया गया, यह मिनटों में पता चल जाता क्योंकि ये दोनों ही प्रक्रियाएं चंद बैंकों में हो रही थीं. यह भी पहले दिन से मालूम था कि लोग मोटी रकम अपने निजी खातों से नहीं देंगे, इसलिए कंपनियों का इस्तेमाल होगा और वे कंपनियां नफे में हों या नुकसान में, इसलिए ये बंदिशें भी हटा दी गई थीं.

भारतीय जनता पार्टी ने भारतीय रिजर्व बैंक से चलतेचलाते उसी तरह की सहमति ली थी जैसे उस ने नोटबंदी के समय ली थी. यह स्कीम पूरी तरह पार्टी के बड़े लोगों ने तैयार की और नोटबंदी की तरह बिना चर्चा, बिना बहस के देश पर थोप दी.

उस के परिणाम, मानना होगा कि, वही निकले जिस की सत्ताधारी पार्टी को उम्मीद थी. ज्यादातर बौड्स तब खरीदे गए जब किसी पर रेड हुई या कोई बड़ा टैंडर जारी होना था. कुछ बौंड्स उन्होंने खरीदे जो वैसे ही रंगदारी का काम करते थे जिन में लौटरी किंग शामिल है. यह बिलकुल मंदिरों के चंदे की तरह है जिस में चंदा लेने वाले के गुणअवगुण कभी नहीं देखे जाते. साहूकार, डकैत, हत्यारा, रिश्वतखोर सफेद कपड़ों में चंदा दे सकता है और पापों से मुक्ति पा सकता है या लक्ष्मी के घर में उतरने की आशा कर सकता है.

सरकार-भगवान के आगे बौंडों का चंदा सब से कामयाब तरीका साबित हुआ है.

‘बीफ’ एक्सपोर्ट करने वाली कंपनियों ने इलैक्टोरल बौंड्स से दे डाले करोड़ों रुपए

इलैक्टोरल बौंड्स वाली लिस्ट में बीफ एक्सपोर्ट कंपनियों के नाम भी शामिल हैं. इन कंपनियों पर टैक्स चोरी के आरोप हैं. लिस्ट में 2 कंपनियां ऐसी हैं जो ‘बीफ’ एक्सपोर्ट करती हैं. दोनों कंपनियों अल्लाना संस प्राइवेट लिमिटेड और फ्रीगोरीफिको अलाना प्राइवेट लिमिटेड ने मिल कर इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए करोड़ों रुपए भाजपा को दान दिए हैं. दोनों कंपनियां एक ही ग्रुप अल्लाना ग्रुप औफ कंपनीज का हिस्सा हैं. अल्लाना संस प्राइवेट लिमिटेड ने 9 जुलाई, 2019 को बौंड्स के तौर पर 2 करोड़ रुपए डोनेट किए थे. फिर 9 अक्तूबर को कंपनी ने एक करोड़ रुपए और डोनेट किए. वहीं फ्रीगोरीफिको अल्लाना प्राइवेट लिमिटेड ने 9 जुलाई, 2019, 22 जनवरी, 2020 को 2-2 करोड़ रुपए डोनेट किए. ग्रुप की एक और कंपनी अल्लाना कोल्ड स्टोरेज ने 9 जुलाई, 2019 को 1 करोड़ रुपए दिए थे. इन कंपनियों को अलगअलग डायरैक्टर हेड करते हैं.

गौरतलब है कि अप्रैल 2019 में कंपनी पर इनकम टैक्स की रेड पड़ी थी. इनकम टैक्स अधिकारियों ने बताया था कि यह कंपनी भारत में भैंस के गोश्त को एक्सपोर्ट करने वाली सब से बड़ी कंपनी है. रेड के दौरान कंपनी पर करीब 2 हजार करोड़ रुपए की टैक्स चोरी के आरोप लगे थे. जांच कहां तक पहुंची, अब किसी को नहीं पता.

खाओ पर दो भी

इलैक्टोरल बौंड्स का खुलासा होते ही उन बड़ी कंपनियों के गले सूखने लगे हैं जिन्होंने जबरन वसूली में इन बौंड्स के जरिए काफी बड़ी रकमें दी थीं यह सम?ा कर कि बात या तो मालिकों को पता रहेगी या फिर पार्टियों के दोचार लोगों को; आम शेयरहोल्डरों, पार्टियों के वर्करों और आम जनता को पता ही नहीं चलेगा कि किस ने कितने पैसे इन बौंडों के मारफत किस को दिए.

इसलिए 18 मार्च को सुप्रीम कोर्ट में मालिकों के 2 बड़े संगठनों ने वकील खड़ा किया कि स्टेट बैंक औफ इंडिया को वे नंबर जारी करने से रोका जाए जिन से पक्का पता चल जाएगा कि किस ने कौन से दिन कौन से बौंड से किस को पैसा दिया. यह संतोष की बात है कि सुप्रीम कोर्ट ने मालिकों के प्रति भक्तिप्रदर्शन करते हुए वकील मुकुल रोहतगी की नहीं सुनी और सरकार के वकील तुषार मेहता व स्टेट बैंक औफ इंडिया के वकील हरीश साल्वे को भी मालिकों के वकील से अलग होना पड़ा.

बड़े उद्योगों के मालिक नहीं चाहते कि जो राज उन्होंने जनता से ही नहीं बल्कि अपने शेयरहोल्डरों से भी छिपा रखा है, वह उजागर हो. क्रोनी कैपिटलिज्म, वह शब्द जिस का हिंदी मतलब धूर्त पूंजीवाद जैसा कुछ होगा, चाहता है कि सरकार ऐसी हो जो खाए, भरपूर खाए और उन्हें भरपूर खाने दे भी. इस के लिए उन्हें मोदी सरकार जैसी सरकार चाहिए.

आज जो बड़े उद्योग पनप रहे हैं उन में से आधे से ज्यादा जनता के टैक्स के पैसे से फलफूल रहे हैं. टैक कंपनियों, जैसे नारायण मूर्ति की इन्फोसिस, विप्रो, टाटा की टीसीएस केंद्र सरकार से कंप्यूटर प्रोग्राम बनाने के लिए मनमाने पैसे लेती हैं. इन के नाम चाहे बौंडों में नहीं हैं पर ये चाहती हैं कि इस तरह की परदानशीन सरकार ही सत्ता में रहे. बिड़ला, बजाज, जिंदल जैसों की कंपनियों को बड़ेबड़े ठेके मिलते हैं. टैलीकौम कंपनियों को मोनोपौली के लाइसैंस ही नहीं मिलते, अरबों रुपए के बकाए कर्ज माफ भी कर दिए जाते हैं. इन में से कुछ की बातें बजट में आ जाती हैं क्योंकि भारत की मूढ़ जनता मुफ्त में पोल की खोल चाहती है तो उसे मदारी के बंदर का नाच ही देखने को मिलता है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस नाच में जमा भीड़ की जेबकतरी की करतूतों की पोल की एक परत खोल दी है तो धूर्त पूंजीवादी बेचैन हो गए हैं. उन्होंने वकील खड़ा किया कि यह उन की कानूनी बेईमानी के अधिकार का हनन है. सुप्रीम कोर्ट ने इस बार, बहुत अरसे के बाद, सरकारी पक्ष और उस के हमदर्दों के पक्ष को नहीं सुना. अदालत ने बार एसोसिएशन के प्रैसिडैंट आदर्श अग्रवाल की भी नहीं सुनी जिस ने पत्र लिख कर 15 फरवरी के फैसले पर फिर से विचार करने की मांग की थी.

इलैक्टोरल बौंड्स के चलते कंपनियां भी कठघरे में हैं और सरकार की तरह वे भी बेचैन हैं. वैसे तो जनता को कोई खास फर्क नहीं पड़ता क्योंकि हमारी जनता हमारे पौराणिक ग्रंथों की बदौलत हर तरह की बेईमानी को स्वाभाविक मानती है. हमारे हर देवता ने छलकपट किया. हर ऋषिमुनि ने या तो खुद अनैतिक काम किए या अनैतिक काम होते देख आंखें मूंद लीं. अनैतिकता, बेईमानी, व्यक्तिपूजा, छल, कपट आज की देन नहीं, पौराणिक और वास्तविक इतिहास के विभीषणों और मीर जाफरों से भरा है.

चंदे का सब से बड़ा गैंबलर सैंटियागो मार्टिन

तमिलनाडु में बेहद गरीबी में पैदा हुआ सैंटियागो मार्टिन कभी मजदूरी करने के लिए म्यांमार गया था. वहां से वह भारत लौटा तब भी वह एक मजदूर ही था. मगर 1988 में वह भारत में लौटरी के कारोबार से जुड़ गया. उस का लौटरी कारोबार केरल, कर्नाटक, पंजाब, महाराष्ट्र तक बढ़ गया. 1991 में उस ने फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस कंपनी बनाई और रातोंरात अमीर बनने का सपना लोगों को बेचने लगा. यह सपना बेच कर वह लौटरी किंग बन गया. इस में सत्ता की नजदीकियों का बड़ा हाथ रहा. ‘तू मेरी खुजा मैं तेरी खुजाता हूं’ की तर्ज पर आगे बढ़ने वाले सैंटियागो मार्टिन के तमिलनाडु की सत्ताधारी पार्टी द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) के साथ करीबी रिश्ते बन गए. वर्ष 2011 में सैंटियागो मार्टिन ने मुख्यमंत्री एम करुणानिधि की लिखी फिल्म के निर्माण पर 20 करोड़ रुपए खर्च कर डाले. आज सैंटियागो मार्टिन का कोयम्बटूर में एक होमियोपैथी मैडिकल कालेज और अस्पताल है. एस एस म्यूजिक के नाम से उस का एक टीवी चैनल है. 2021-22 में सैंटियागो मार्टिन ने 20 हजार करोड़ रुपए का कारोबार किया. लेकिन आश्चर्यजनक रूप से उस का जो औफिस सामने आया है वह बेहद छोटा, जंग लगे चैनल वाला जर्जर अवस्था में दिखाई देता है.

सैंटियागो मार्टिन पर कई केस चले. पहली बार 2008 में सैंटियागो मार्टिन का नाम एक घोटाले में आया था. मगर उस ने पैसे खिला कर उसे रफादफा करवा दिया. मार्टिन पर सिक्किम सरकार के साथ 4,500 करोड़ रुपए की ठगी का आरोप भी लगा. लेकिन दिलचस्प रूप से मार्टिन ने इन आरोपों के तुरंत बाद केरल में कम्युनिस्ट पार्टी औफ इंडिया (सीपीआई) के मुखपत्र ‘देशाभिमानी’ को 2 करोड़ रुपए का दान दिया और उस के खिलाफ मामला ठंडा पड़ गया. अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर एसबीआई से मिले इलैक्टोरल बौंड्स डाटा को जैसे ही चुनाव आयोग ने सार्वजनिक किया, सैंटियागो मार्टिन का नाम एक बार फिर सुर्खियों में आ गया.

गौरतलब है कि इसी सैंटियागो मार्टिन के खिलाफ ईडी 2019 से मनीलौन्ड्रिंग के मामले की जांच कर रही थी. मगर यह जांच कछुआ चाल से चल रही थी क्योंकि इलैक्टोरल बौंड्स के जरिए सैंटियागो मार्टिन अब तक राजनीतिक दलों को कुल 12,155 करोड़ रुपए का चुनावी चंदा पहुंचा चुका है. इस में से 11 फीसदी से ज्यादा यानी 1,386 करोड़ रुपए मार्टिन की कंपनी फ्यूचर गेमिंग एंड होटल सर्विसेस प्राइवेट लिमिटेड ने भाजपा को दिए हैं.

एक तरफ जांच दूसरी तरफ चंदा

सब से ज्यादा बौंड्स खरीदने वालों में कई ऐसी कंपनियां शामिल हैं जिन के खिलाफ ईडी और इनकम टैक्स विभाग की कार्रवाई जारी है या हो चुकी है. दिलचस्प है कि ये कार्रवाइयां बौंड्स खरीदे जाने के समय के आसपास ही हुई हैं. फ्यूचर गेमिंग, वेदांता लिमिटेड और मेघा इंजीनियरिंग जैसी कंपनियां सब से ज्यादा बौंड खरीदने वालों में शामिल हैं. लेकिन इन कंपनियों की ओर से ये खरीदारी ईडी और इनकम टैक्स डिपार्टमैंट की कार्रवाइयों के आसपास की गई है.

‘इंडियन एक्सप्रैस’ अपनी एक खास रिपोर्ट में लिखता है कि सिर्फ यही कंपनियां नहीं, करीब 10 कंपनियों की बौंड खरीदारी में भी यही पैटर्न दिखता है. आरपीजीएस की हल्दिया एनर्जी, डीएलएफ, फार्मा कंपनी हेटेरो ड्रग्स, वेलस्पन ग्रुप, डिवीस लैबोरेटरीज और बायोकौन की किरण मजूमदार शा ने काफी बौंड्स खरीदे हैं. लेकिन ये सारे बौंड्स केंद्रीय एजेंसियों की जांच के साए में खरीदे गए हैं. मसलन, इलैक्टोरल बौंड्स की चौथी सब से बड़ी खरीदार हल्दिया एनर्जी पर सीबीआई ने 2020 में भ्रष्टाचार का मुकदमा दर्ज किया था.

आरपीएसजी ग्रुप की कंपनी हल्दिया एनर्जी ने 2019 से ले कर 2024 के बीच 377 करोड़ रुपए के बौंड्स खरीदे. मार्च 2020 में सीबीआई ने हल्दिया एनर्जी और अदानी, वेदांता, जिंदल स्टील, बीआईएलटी समेत 24 कंपनियों के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया. इन कंपनियों पर महानदी कोलफील्ड लिमिटेड को 100 करोड़ रुपए का नुकसान पहुंचाने का आरोप है. डीएलएफ, बायोकोन समेत कई कंपनियों पर छापे मारे गए.

अखबार लिखता है कि डीएलएफ शीर्ष बौंड्स खरीदारों में शामिल है. उस ने 130 करोड़ रुपए के बौंड्स खरीदे हैं. सीबीआई ने डीएलएफ ग्रुप की कंपनी न्यू गुड़गांव होम्स ग्रुप डैवलपर्स के खिलाफ केस दर्ज किया था. यह केस 1 नवंबर को 2017 में सुप्रीम के निर्देश के बाद दर्ज किया गया था. 25 जनवरी, 2019 को सीबीआई ने कंपनी के गुरुग्राम के दफ्तर और कई ठिकानों पर छापेमारी की थी. सीबीआई की यह कार्रवाई कंपनी की जमीन आवंटन में कथित अनियमितता की जांच के सिलसिले में हुई थी.

इन कार्रवाइयों के बाद डीएलएफ ने 9 अक्तूबर, 2019 से इलैक्टोरल बौंड्स खरीदने शुरू किए. कंपनी ने कुल 130 करोड़ रुपए के बौंड्स खरीदे. एक बार फिर 25 नवंबर, 2023 को ईडी ने कंपनी के गुरुग्राम में मौजूद दफ्तरों पर छापेमारी की. ईडी की यह कार्रवाई रियल एस्टेट फर्म सुपरटैक और इस के प्रमोटरों के खिलाफ मनीलौन्ड्रिंग की जांच के सिलसिले में की गई थी. फार्मा कंपनी हेटेरो ड्रग्स भी सब से ज्यादा बौंड्स खरीदने वाली कंपनियों में शामिल है. इस के खिलाफ भी जांचें चल रही हैं.

असल में मोदी सरकार की इलैक्टोरल बौंड स्कीम कानून का जामा पहना कर भ्रष्टाचार को वैध बनाने का मामला है, जो सुप्रीम कोर्ट की निगाह में आ चुका है. अब आगे और क्याक्या खुलासे होंगे और आगामी लोकसभा चुनाव पर इन खुलासों का कितना असर पड़ेगा, यह देखना खासा दिलचस्प होगा. सुप्रीम कोर्ट ने तो घंटी बजा दी है.

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