Sonia Gandhi in Rajya Sabha : नेहरू-गांधी परिवार से 1964 में इंदिरा गांधी पहली बार राज्यसभा पहुंचीं थीं. वे राज्यसभा पहुंचने वाली इस परिवार की दूसरी सदस्य हैं. 1964 में देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के निधन के बाद लाल बहादुर शास्त्री प्रधानमंत्री बने. लाल बहादुर शास्त्री कैबिनेट में इंदिरा गांधी को सूचना और प्रसारणमंत्री बनाया गया. 1964 से 67 तक वे राज्यसभा की सदस्य रहीं. 1966 में लाल बहादुर शास्त्री के निधन के बाद इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री बनीं. 1967 में हुए आम चुनाव में वे उत्तर प्रदेश की रायबरेली सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ीं और संसद में पहुंचीं.

रायबरेली लोकसभा सीट से 2004 से सोनिया गांधी लगातार सांसद चुनी जाती रही हैं. अब उन्होंने 14 फरवरी को राजस्थान से राज्यसभा के लिए नामांकन भरा है. वे राज्यसभा के जरिए संसद की सदस्य रहेंगी. इस के मुख्यरूप से 3 प्रमुख कारण माने जा रहे हैं- 77 साल की सोनिया गांधी के लिए 2024 का लोकसभा चुनाव रायबरेली सीट से जीतना कठिन था. सोनिया गांधी का स्वास्थ्य इतना अच्छा नहीं है कि वे चुनावी भागदौड़ कर सकें. सोनिया गांधी के रणनीतिकारों को यह लग रहा था कि भाजपा ने जिस तरह से राहुल गांधी को अमेठी में घेर कर चुनाव हराया वैसा ही वह सोनिया गांधी के साथ रायबरेली में कर सकती है.

उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का जनाधार लगातार घट रहा है. ऐसे में सोनिया गांधी का रायबरेली से लड़ना खतरनाक हो सकता था. चुनाव हारने के बाद उन को दिल्ली स्थित अपना आवास खाली करना पडता. ऐसे में वे कहां रहतीं, यह सवाल बड़ा था, राहुल गांधी की लोकसभा सदस्यता जाने के बाद उन को कुछ दिन कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे के आवास में रहना पडा. इस के बाद राहुल गांधी ने निजामुद्दीन ईस्ट में किराए का आवास लिया. गांधी परिवार के पास अपना कोई आवास नहीं है. 10 जनपथ का आवास सोनिया गांधी का सरकारी आवास है. सांसद न रहने पर इस को खाली करना पड़ता. राज्यसभा से सांसद बनने के बाद यह परेशानी नहीं आएगी.

क्यों खास है 10 जनपथ ?

सोनिया गांधी 5 बार की सांसद हैं. 10 जनपथ वाला आवास 15,181 वर्ग मीटर में फैला हुआ है. इस के ठीक पीछे 24 अकबर रोड पर कांग्रेस पार्टी का मुख्यालय है. इसलिए भी 10 जनपथ कांग्रेस के लिए अहम है. यहां से सोनिया और राजीव की यादें भी जुड़ी हैं. 10 जनपथ 1975 की इमरजैंसी के दौरान यूथ कांग्रेस का कार्यालय हुआ करता था जब अंबिका सोनी इस की अध्यक्ष थीं और संजय गांधी इस के संरक्षक थे. 1977 की कांग्रेस की हार के झटके बहुत बड़े थे. तब यूथ कांग्रेस के औफिस को बंद कर दिया गया. 10 जनपथ में 1977 से 89 के बीच कुछ समय के लिए प्रैस काउंसिल औफ इंडिया का दफ्तर हुआ करता था. लाल बहादुर शास्त्री भी यहां बतौर प्रधानमंत्री रहे हैं.

गांधी परिवार के पास नहीं है अपना घर

सोनिया गांधी के राज्यसभा से संसद में जाने की सब से बड़ी वजह उन के सरकारी आवास 10 जनपथ को माना जा रहा है. यहां पर वे लगभग 35 सालों से रह रही हैं. 1989 में राजीव गांधी को यह आवास बतौर नेता प्रतिपक्ष के रूप मे रहने के लिए मिला था. सोनिया तभी से यहां रह रही हैं. अभी हाल में राहुल गांधी और प्रियंका को लुटियंस दिल्ली से अपने सरकारी आवास खाली करने पड़े थे.

राहुल गांधी की संसद सदस्यता जाने के बाद उन्हें अपना 12 तुगलक रोड वाला आवास खाली करना पड़ा था. बाद में सदस्यता बहाल होने के बाद राहुल को यह बंगला वापस मिला था. लेकिन राहुल यहां नहीं आए. इसी तरह प्रियंका गांधी वाड्रा को भी सुरक्षा कारणों से आवंटित अपना बंगला 34 लोधी स्टेट खाली करना पड़ा था. यह बंगला 1997 में प्रियंका को सुरक्षा कारणों से दिया गया था. प्रियंका गांधी खान मार्केट के पास सुजान सिंह पार्क में रह रही हैं जहां उन्होंने एक घर किराए पर लिया है. उन का कार्यालय 10 जनपथ के एक पोर्टा केबिन में चल रहा है. उन के व्यवसायी पति रौबर्ट वाड्रा के पास गुरुग्राम में आलीशान आवास है.

54 सालों से नेहरू-गांधी परिवार के पास अपना निजी आवास नहीं है. इस परिवार का मकान इलाहाबाद स्थित आनंद भवन था. जवाहरलाल नेहरू जब यहां से दिल्ली गए तो 7 यार्क रोड पर रहने लगे. 1947 में स्वतंत्र भारत के प्रधानमंत्री का पद संभालने के बाद वे तीन मूर्ति भवन चले गए थे. इलाहाबाद अब प्रयागराज स्थित आनंद भवन को 1970 में इंदिरा ने राष्ट्र को दान कर दिया. तब से यहां से परिवार का जुड़ाव खत्म हो गया.

1977 में जब इंदिरा गांधी सत्ता से बाहर हुईं तो उन के पास रहने के लिए घर नहीं था. फिरोज गांधी ने अपनी मौत से एक साल पहले 1959 में महरौली में जमीन खरीदी थी. सालों बाद राजीव गांधी ने वहां एक फार्महाउस बनाया था. उन का महरौली फार्महाउस तब आधा ही बना था. तब इंदिरा गांधी के करीबी रहे मोहम्मद यूनुस ने इंदिरा और उन के परिवार को अपना निजी आवास 12 विलिंगडन क्रिसेंट देने की पेशकश की. मोहम्मद यूनुस स्वयं दक्षिण दिल्ली में एक बंगले में चले गए. 12 विलिंग्डन क्रिसेंट गांधी परिवार का घर बन गया. इंदिरा, राजीव, उन की पत्नी सोनिया, उन के बच्चे- राहुल और प्रियंका, संजय, मेनका और 5 कुत्ते सभी वहां चले गए. इतने बड़े परिवार के बाद वहां किसी भी राजनीतिक गतिविधि के लिए लगभग कोई गुंजाइश या जगह नहीं बची.

सोनिया युग का खत्म होता दौर

सोनिया गांधी ने कांग्रेस को पुनर्जीवित किया. वे कांग्रेस को वापस सत्ता में ले कर आईं. उन्होंने गठबंधन बनाया. वे 20 साल कांग्रेस प्रमुख रहीं. उन्होंने सालों पार्टी को एकजुट रखा. राज्यसभा में जाने का फैसला यह बताता है कि वे रिटायर नहीं हो रही हैं, ऐक्टिव पौलिटिक्स से खुद को दूर कर रही हैं. सोनिया गांधी पहली बार अमेठी से 1999 में सांसद बनीं. पहले अमेठी से उन के पति राजीव गांधी चुनाव लड़ते थे. साल 2004 में सोनिया ने रायबरेली से चुनाव लड़ा. इस के बाद अमेठी सीट से राहुल गांधी ने चुनाव लड़ा. 2019 में राहुल गांधी अमेठी से चुनाव हार गए थे.

राजनीति में आने के बाद सोनिया गांधी ने कई अहम फैसले लिए, जो दूसरे नेता नहीं ले पा रहे थे. इन में रोजगार गारंटी योजना, भोजन का अधिकार, शिक्षा का अधिकार, सूचना का अधिकार और लड़कियों को पिता की जायदाद में हक जैसे फैसले प्रमुख थे. उन के पार्टी अध्यक्ष रहते देश में पहली बार महिला राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल और लोकसभा की पहली दलित महिला अध्यक्ष मीरा कुमार बनाई गईं. महिलाओं के आरक्षण का बिल भी उन के कार्यकाल में पेश हुआ. उन्होंने 2 गठबंधन सरकार बनाने में कामयाबी पाई. यूपीए-1 और 2 के दौरान उन्हें बहुत ताकतवर माना जाता था. असली सत्ता उन्हीं के पास थी. सोनिया गांधी 25 साल अपनी पार्टी में शीर्ष पर रहने के बाद लोकसभा से हट रही हैं. यह पार्टी में पीढ़ी के बदलाव का भी संकेत है.

उतारचढ़ाव भरा रहा सोनिया का कार्यकाल

गैरभारतीय मूल की होने के बाद भी सोनिया गांधी ने जिस तरह से भारत देश और समाज को अपनाया वह बड़ा उदाहरण है. उन्होंने अपने जीवन में काफी उतारचढ़ाव देखे. इटली में एक सामान्य परिवार में पैदा हुईं सोनिया की 1968 में राजीव गांधी से शादी के बाद भारत आना पड़ा. वे प्रधानमंत्री परिवार की बहू बनीं. इस के बाद इमरजैंसी, इंदिरा गांधी की हार, सास इंदिरा गांधी और फिर पति राजीव गांधी को खोने की भारी विपदाओं का सामना करना पड़ा उन्हें.

1984 में जब प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या हो गई. राजीव गांधी को अचानक राजनीति में आना पड़ा. वे देश के प्रधानमंत्री बन गए. सोनिया तब सहम गई थीं. वे अपनी सास की दिनदाहड़े हत्या के बाद अपने पति को राजनीति में नहीं आने देना चाहती थीं. 1991 में सोनिया का डर सही हो गया और राजीव गांधी लोकसभा चुनावप्रचार के दौरान तमिलनाडु की एक रैली में आत्मघाती हमले के शिकार हो गए. राजीव के बाद राजनीति को ले कर ऊहापोह का दौर था. सोनिया ने कभी पति राजीव को जो सलाह दी थी, खुद के लिए वही मौका आया तो अड़ी रहीं. उन्होंने खुद को सत्ता से हमेशा दूर रखा.

सीताराम केसरी की अगुआई में कांग्रेस पार्टी कमजोर होने लगी तो सोनिया गांधी पर कमान संभालने का दबाव बढ़ने लगा. 6 साल बाद सोनिया को अपना फैसला वापस लेना पडा. 1997 में सोनिया ने कांग्रेस जौइन की. 1998 में उन्हें कांग्रेस की कमान भी सौंप दी गई. कांग्रेस अध्यक्ष के तौर पर उन के सामने सब से बड़ी चुनौती थी पार्टी को संगठित करना जो नेताओं के बीच आंतरिक कलह के कारण लगातार कमजोर पड़ रही थी. सोनिया ने कांग्रेस पद संभाला तो अगले ही वर्ष लोकसभा के चुनाव हो गए.

1999 के आम चुनाव में सोनिया ने उत्तर प्रदेश की अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी सीट से पहली बार चुनावी लड़ाई लड़ी. उन्हें दोनों जगहों पर सफलता मिली और 13वीं लोकसभा में वे पहली बार संसद पहुंच गईं. बेल्लारी में उन्होंने बीजेपी की धाकड़ नेता सुषमा स्वराज को हराया था. यह सीट छोड़ दी और अमेठी का प्रतिनिधित्व करती रहीं. 2004 के लोकसभा चुनावों मे 145 सीटें पा कर कांग्रेस सब से बड़ी पार्टी बन गई. सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बन सकती थीं. सत्ता से दूरी बनाए रखने के अपने फैसले पर वे टिकी रहीं. प्रधानमंत्री के रूप में डाक्टर मनमोहन सिंह का नाम आगे कर दिया.

2004 में गठबंधन की सरकार चलाने के लिए संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) बना. सोनिया उस की चेयरपर्सन चुनी गईं. नीतिगत मामलों में मनमोहन सरकार को निर्देशित करने के लिए राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) का गठन किया गया और इस की अध्यक्ष भी सोनिया गांधी बनीं. 2004 से 2014 तक के मनमोहन सिंह सरकार को सोनिया ने परदे के पीछे से चलाने का काम किया. सोनिया गांधी भले ही ऐक्टिव पौलिटिक्स से दूर हों पर उन्होंने अभी राजनीति से संन्यास नहीं लिया है.

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