पेड़, खंबे, कच्चे मकान धराशायी करता चिंघाड़ता तूफान कहीं बाहर नहीं, उस के भीतर चल रहा था. वही तूफान उस की नींद उड़ा कर ले गया था. तूफान लाने वाले को वह पहचानती है. हां, हां, उसी की वजह से है.

विधवा मिसेज मंजू मेहता बिस्तर से उठ बैठी, नए खरीदे हुए मोबाइल पर टाइम देखा. रात के बारह बज कर दस मिनट थे. कितनी करवटें बदलती रहेगी वह? इसलिए नाइटलैंप जला कर सुराही से बड़ा वाला गिलास पानी से भर लिया. पर उसे प्यास नहीं थी. पलपल मानसिक तनाव बढ़ता जा रहा था.

आज शाम को आए जलबोर्ड के इंस्पैक्टर का धमकीभरा चेहरा, चिनगारी फेंकती लाललाल आंखें, सिर पर सफेद छोटेछोटे बाल जो कभी कंघी के संपर्क में न आए हों. अभी भी भूतप्रेत बन कर वह चेहरा उसे डरा रहा था. ‘पचास हजार…समझ लो पचास हजार रुपए जुर्माना और तुम्हारे प्लंबर का लाइसैंस हमेशा के लिए रद्द…बहुत बड़ा और बेहद न्यारा घपला किया है आप लोगों ने. जेल भी हो सकती है.’

उसे अपने दोनों बाजू और बांहें ज्यादा ही कसते और खिंचते हुए महसूस हुए. बीपी मापने का यंत्र बेटे और बहू के बैडरूम में था. 3 महीने पहले ही बेटे के 4 स्टेंट डाले गए थे, उसे नींद से जगाना स्थिति और बिगाड़ सकता था. निराशाभरी नजर से उस ने हार चढ़ी, फ्रेम में लगी पति की फोटो को देखा, जो हृदय गति रुक जाने से महीनाभर पहले ही सहारे वाला हाथ छोड़ कर जा चुके थे.

उस ने कुरसी को सीलिंग फैन से नीचे से दूर कर लिया. एक बार सीलिंग फैन, उस की मामीजी के ऊपर गिर पड़ा था. इन बातों से उसे बहुत डर लगता है.

कुछ दिनों पहले, शाम की बात है. पति नरेश मेहता की अंतिम अरदास के बाद घर लौट कर रिश्तेदारों ने ही उस का ध्यान घर की दीवारों के साथसाथ रिसते हुए पानी की ओर खींचा था. चंडीगढ़ में रहने वाले बड़े भाईसाहब ने इसे छोटी सी समस्या समझ कर अगले दिन प्लंबर को दिखाने की सलाह दी थी. फिर वे चंडीगढ़ लौट गए थे.

पानी, बिजली, बैंक, इनकम टैक्स, मकान, जायदाद और कालोनी की सोसायटी के कुछ काम भी नरेश मेहता ही देखते आए थे. पत्नी मंजू मेहता का दायरा घर के चूल्हेचौके, साफसफाई तक ही सिमट कर रह गया था. इसीलिए जलबोर्ड के इंस्पैक्टर की धमकी उसे पहाड़ सी भारीभरकम लग रही थी.

मायके में 4 भाईबहनों में सब से छोटी, सब की लाड़ली होने से मंजू को जिम्मेदारी निभाने के अवसर नहीं मिले थे. एक दिन वहीं सामने के घर में किसी महिला ने आग लगा कर आत्महत्या कर ली थी. ऊंची उठती आग की लपटों में उस का गली में छटपटाते हुए दम तोडऩा कोई नहीं भूल पाया था. भयभीत मंजू अंधेरा होने पर भाई का हाथ पकड़ कर ही बाहर कदम रखती थी. उस में आत्मविश्वास आता अगर वह कालेज जाती. पर स्कूली शिक्षा ही उस के लिए पर्याप्त समझी गई.

5 वर्षों पहले अपनी ही बेटी की शादी के गहने, कपड़े और फर्नीचर वगैरह अपनी बड़ी भाभी के बिना साथ जाए वह खरीद नहीं पाई थी.

प्राइवेट नौकरी में अतिव्यस्त होने के कारण बेटे पर भी घर का उत्तरदायित्व न के बराबर रहा था. अब स्टेंट पड़े होने के कारण उस पर मानसिक दवाब डालना खतरे को आमंत्रित करना था.

संदेश मिला तो सुबहसुबह ही प्लंबर आ पहुंचा. वह अनुभवी कारीगर था. बड़े शहर की इस कालोनी में अधिकतर काम उस ने ही किए थे. उस ने परामर्श दिया, ‘‘कालोनी बने 45 साल हो चुके हैं. बहुत से पानी के पाइप जंग की वजह से लीक करने लगे हैं. मेरी तो यह सलाह है कि आसपास के पड़ोसी भी पाइप चेंज करवा लें. बारबार खुदाई से बच जाएंगे. अलगअलग काम होने से खर्च भी कई गुना बढ़ जाता है.’’

बात सही लगी. पड़ोसी भी अपनेअपने पाइप बदलवाने को तैयार हो गए. 30,000 रुपए के खर्चे पर सब के नए पाइप डाले गए. पर परिणाम आशा के विपरीत रहने से सब के चेहरे लटक गए. पानी के रिसाव में कोई कमी नहीं नजर आई. ‘‘ठीक है, लीकेज की दिशा में खुदाई कर के  देखते हैं,’’ प्लंबर का सुझाव था. पड़ोसी अनिर्णय की स्थिति में थे, फिर भी प्लंबर के अनुभव पर उन्हें भरोसा था.

लीकेज की तलाश में सीमेंट, रोड़ी, पत्थर, टाइल्स तोड़े जाने जरूरी थे. पड़ोसी परिवार 10-15 की संख्या में दायरे में खड़े, नजरें गड़ाए रिसाव तक पहुंचने को आतुर थे. खुदाई के बाद पानी का रिसाव अब और तेजी से बढ़ गया. जलबोर्ड की पाइपलाइन में ही कुछ हिस्सा टूटा हुआ दिखाई पड़ा. पानी फौआरे की तेजी से सब ओर फैलने लगा, दूर सडक़ तक जलभराव हो गया.

‘‘पाइप कहां से फटा पड़ा है, आप सारे लोग खुद देख रहे हो. इस की तो जलबोर्ड वाले ही मरम्मत कर पाएंगे, यह मेरे अधिकार क्षेत्र से बाहर है,’’ प्लंबर ने हाथ खड़े कर दिए.

कालोनी की एसोसिएशन के प्रधान को बुलाया गया. पानी के भारी रिसाव को देख कर उस के माथे पर भी बल पड़ गए. कीचड़ अलग से परेशानी का कारण बना हुआ था. प्रभावित मकानमालिकों की ओर से प्रार्थनापत्र खिलवाया गया. पाइप का टूटा हिस्सा मंजू मेहता के घर के ठीक सामने होने से उन पर जिम्मेदारी ज्यादा मानी गई.

शिकायत के 2 दिनों बाद तक जलबोर्ड से किसी ने खबर नहीं ली. इलाके का इंस्पैक्टर छुट्टी पर था. 2 दिन फटे पाइप से तेजी से बहता पानी पड़ोस की दूर गलियों में पहुंच गया. ऐसे दृश्य सीधेसाधे, भोलेभाले नागरिकों के मन पर कुछ ज्यादा ही बोझ डालते हैं. सभी प्रभावित लोग गरदन निकाल अपनीअपनी खिड़कियों से बारबार झांक कर मरम्मत का बेचैनी से इंतजार कर रहे थे.

इंस्पैक्टर को कुछकुछ पूर्व सूचना मिल चुकी थी. सुबह 11 बजे वह तमतमाए चेहरे और क्रोध में घटनास्थल पर पहुंचा. वहां खड़े पड़ोसियों को उस ने ऐसे देखा जैसे शेर बकरी का शिकार करने जा रहा हो.

अब वह मंजू मेहता के तिमंजिले मकान के सामने आ कर खड़ा हो गया. ‘‘किस का मकान है? बुलाओ बाहर उसे,’’ इंस्पैक्टर धमकीभरे स्वर में और लगभग चीखते हुए बोला.

मंजू मेहता सहमीसहमी, डरीडरी सी सामने खड़ी थी. वह स्पष्टीकरण देना चाहती थी कि कैसे घर के साथसाथ रिसते जल को बंद करवाने के लिए उन्होंने पाइप चेंज करवाए. पर लीकेज तो मुख्य पाइपलाइन में ही थी.

इंस्पैक्टर को कुछ नहीं सुनना था. ‘‘मालूम है कितना बड़ा जुर्म कर दिया है आप ने. कुदाल मार कर आप ने तो जल सप्लाई की मुख्य पाइपलाइन ही काट डाली. मुझे नहीं मालूम महकमा क्याक्या कार्रवाई करने वाला है आप के विरुद्ध.’’

‘‘यह पाइप हम ने नहीं तोड़ा है, इंस्पैक्टर साहब. यह तो पहले ही टूटा हुआ था. इसी वजह से ही हमारे मकानों की दीवारें गीली हो रही थीं. देखो, हम ने इसी कारण नए पाइप भी डलवाए हैं.’’

एकसाथ कई आवाजों का शोर सुनाई पड़ा.

‘‘मुख्य पाइपलाइन तक खुदाई करने का आज्ञापत्र दिखाओ. बोलो, किस अफसर की आज्ञा लाए थे,’’ इंस्पैक्टर ने कानून बताया, ‘‘मालूम है इसी शहर में कितने मकान गिर चुके हैं जिन की नींवों में पानी भर गया था. कहां है तुम्हारा प्लंबर? पहले तो उसी का लाइसैंस रद्द करवाना पड़ेगा.’’ इंस्पैक्टर आसपास खड़े सभी चेहरों को बारीबारी से घूरते हुए उन की प्रतिक्रिया पढ़ रहा था.

प्लंबर के माथे पर पसीना आ गया. हाथ जोड क़र, घबराया हुआ बोला, ‘‘मैं ने तो इन सब लोगों से पहले ही सलाह की थी. बताते क्यों नहीं इन्हें?’’

इंस्पैक्टर के साथ आए एक मजदूर ने मुख्य पाइप से कुछ मिट्टी हटाई. इंस्पैक्टर ने हैरानी से आगे बढ़ कर ऐसे देखा जैसे उस ने बहुत बड़ी धोखेबाजी पकड़ ली हो. ‘‘गैरकानूनी कनैक्शन भी डाला हुआ है आप ने तो. अब तो बात बहुत ऊपर तक जाने वाली है.’’ ऐसा कहते ही उस ने निगम पार्षद से मोबाइल पर ही शिकायत कर दी.

पड़ोसी हक्केबक्के हो मंजू मेहता की ओर प्रश्नवाचक निगाहों से देखने लगे. इस स्थिति में अपनों पर भी भरोसा नहीं हो सकता, मेहता परिवार तो सिर्फ पड़ोसी था. मंजू ने टांगों में कंपन महसूस किया. वह दीवार के सहारे खड़ी हो गई. उस की आंखों में आंसू थे. मंजू को अकेला छोड़ धीरेधीरे सारे पड़ोसी खिसकने शुरू हो गए.

फिर इंस्पैक्टर मंजू मेहता के मकान की तीसरी मंजिल पर पहुंचा जहां एक किराएदार रहता था. ‘‘आप ने इस फ्लोर पर पानी की मोटर कहां लगाई हुई है, चैक करवाइए.’’

‘‘यहां कोई मोटर नहीं है. तसल्ली कर लो, भाई,’’ किराएदार की पत्नी ने पूरे विश्वास से कहा.

नीचे आ कर इंस्पैक्टर ने कहा, ‘‘कालोनी की नागरिक संस्था के चुने हुए सचिव को बुला कर लाओ. आगे का काम उन की उपस्थिति में ही होगा.’’

ऐसा बोल कर इंस्पैक्टर लौट गया.

पड़ोसी झांकतेझांकते घरों से बाहर निकले, फिर इकट्ठे हो बातें करने लगे. एक विधवा जो अपने छोटे बच्चों के साथ रहती थी, बताने लगी किस तरह एक मीटर रीडर ने खराब मीटर बदलने के लिए उस से 3,000 रुपए ऐंठ लिए और मीटर भी नहीं बदला, ट्रांसफर हो कर वह कहीं और चला गया. पानी के दफ्तर जा कर मुझे समझ आया कि मीटर बदलने का सही तरीका क्या है.

भाटिया जी रिटायर हो चुके हैं. उन का मीटर रीडर हर बार झूठी रिपोर्ट लिखता था कि घर बंद मिला. असली रीडिंग का बिल नहीं आ रहा था. पत्र लिख कर पानी के दफ्तर में शिकायत भेजी गई. हैरानी की बात कि अफसर ने शिकायत का पत्र उसी मीटर रीडर को दे दिया जिस के विरुद्ध शिकायत थी. पत्र ले कर मीटर रीडर धमकी देने घर आ गया कि तुम्हारा वाटर कनैक्शन कमर्शियल करवा रहा हूं, क्योंकि तुम ने ट्यूशन पढ़ाने का बोर्ड लगा रखा है.

पड़ोसियों की बातें सुन कर मंजू का मनोबल और टूट गया. पता नहीं कैसे उस का दाहिना पैर कीचड़भरे मिट्टी के ढेर में फंस गया. छूटने के लिए जोर लगाया तो कीचड़ से सना पैर जरूर बाहर आ गया लेकिन चप्पल टूट कर गंद में ही फंसी रह गई. सफेद सलवार गीली मिट्टी से बुरी तरह सन गई. नजर का चश्मा उतार वह मलमल की सफेद चुन्नी से बहते हुए आंसू पोंछने लगी. आज वह दुनिया में सब से अकेली थी. कोई सहारा नहीं.

उसे यह भी याद नहीं कि आज उस ने बीपी की दवाई खाई भी है या नहीं. रात का खाना यों लगा मानो जेल में बैठी खा रही हो. एकएक कौर गले में अटक रहा था. ‘पचास हजार, जेल… पचास हजार….जेल’ हथौड़े की तरह ये शब्द बारबार उस के माथे के भीतर चोट कर रहे थे.

अगले दिन निगम पार्षद और कालोनी सचिव को आना था. दोपहर एक बजे इंस्पैक्टर समेत सभी लोग इकठ्ठा हो गए. जनता जानती है किस तरह नेताओं और ब्यूरोक्रेसी में मिलीभगत चलती है. सब आंखों में धूल झोंकेंगे. करेंगे वही जो उन के हित में हो. चतुरचालाक अफसर जैसे चाहें नेताओं की सोच बदल देते हैं. शायद जरूरत पड़े, इसलिए सब लोग थोड़ा सा अतिरिक्त धन भी साथ लाए थे.

निगम पार्षद ने इंस्पैक्टर से कहा, ‘‘तुम हमें गैरकानूनी कनैक्शन दिखाने वाले थे, दिखाओ जरा.’’

‘‘सर, यह देखो यह सप्लाई का होल है और इस के पहले एक छेद और है. इन लोगों के कारनामे देख कर हैरान हो जाएंगे आप,’’ इंस्पैक्टर ने हाथ के इशारे से होल की ओर संकेत किया.

‘‘जरा बताओ, दूसरे होल से कनैक्शन कहां जा रहा है? उसे तो टोंटी लगा कर बंद किया हुआ है न? जब पानी कहीं जा ही नहीं रहा तो गैरकानूनी क्या हुआ?’’ निगम पार्षद सिविल इंजीनियरिंग पास थे.

‘‘लेकिन सर, इन लोगों ने मुख्य पाइपलाइन को कुदालें मारमार कर तोड़ दिया है. अपनेआप पाइप कैसे टूट सकता है,’’ इंस्पैक्टर अब भी अपनी बात पर कायम था.

निगम पार्षद नौजवान था और उस ने बहुत किताबें पढ़ रखी थीं. हर समस्या पर वह अपनी अलग सोच रखता था. उस ने इंस्पैक्टर को सुनाते हुए अपनी बात रखी.

‘‘कालोनी को बने 45 साल हो चुके हैं. जिस पाइप की तुम बात कर रहे हो उस के ऊपर से रोज कितनी कारें और दूसरे भारी वाहन गुजरते हैं. क्या यह हो सकता है कि यह पाइप भी दबाव के कारण कमजोर हो कर टूट गया हो या जोड़ खुल गया हो? रिसाव तो 15 दिनों से हो रहा है, तुम्हारा मीटर रीडर एक सप्ताह पहले यहां रीडिंग लेने आया था. तब उस ने दीवारों के साथ होते रिसाव की कोई रिपोर्ट दी थी? जलबोर्ड के लिए तो जल की एकएक बूंद कीमती है. सही कि गलत? इन लोगों की अज्ञानवश हुई गलती को धोखाधड़ी क्यों कहते हो?’’

‘‘लेकिन सर,’’ इंस्पैक्टर समझ गया कि वह इन निगम पार्षद को बुद्धू नहीं बना सकता.

‘‘देखो इंस्पैक्टर, यह पाइप का टुकड़ा मेरे खड़ेखड़े तुरंत बदलो.’’

इंस्पैक्टर अब मजदूरों के साथ मिल फुरती दिखाने लगा. वह अब निगम पार्षद से अपनी कार्यकुशलता के लिए शाबाशी की उम्मीद कर रहा था.

सब पड़ोसियों को अपने बहुत करीब बुला कर निगम पार्षद ने समझाया, ‘‘आप लोग अपनी समस्या के बारे में चर्चा अपने चुने हुए प्रतिनिधियों से नहीं करेंगे तो किस से करेंगे? ऐसे समय हमें याद कर लिया करो, भाई.’’

“हां, सीमेंट, रोड़ी वगैरह का कुछ खर्चा तो आप से ले सकते हैं न?” पड़ोसी यह सुन कर राहत की सांस लेने लगे, सब के चेहरे पर हलकी सी मुसकराहट नजर आई. धन्यवाद में सब के हाथ अपनेआप ही जुड़ गए.

कालोनी सचिव ने निगम पार्षद को मंजू मेहता से भी मिलवाया और कहा, ‘‘ये हमारे नरेश मेहता जी की पत्नी हैं. वही मेहता जी जो कालोनी हित में दिनरात मेहनत करते थे.’’

मंजू भी अब दुनियादारी समझने का प्रयास करेगी. इंसान इतना अकेला कभी होता नहीं, जितना संकट में महसूस करता है.

कालोनी के लोग भी आज पूरी तरह समझ गए कि सही प्रतिनिधि चुनना हमारे जीवन के लिए कितना आवश्यक है.

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