बजट, टैक्स, सरकार और जनता ये आपस में उलझे हुए शब्द हैं. टैक्स के बारे में कहा जाता है कि अच्छा राजा वह होता है जो जनता से टैक्स ले लेकिन जनता को पता न चले. पहले बजट में ही महंगाई बढ़तीघटती थी. अब साल में कई बार चीजों के दाम बढ़ जाते हैं.

रेल बजट को आम बजट में जोड़ दिया गया है. रेल का टिकट बजट के बाद भी बढ़ता है. सरकार का काम होता है जनता से पैसे ले कर उस के लिए सुविधा और कल्याणकारी योजनाएं चलाए. अब कोई भी सेवा कल्याणकारी नहीं है, सब का बिजनैस मौडल बन गया है. नाममात्र की जो कल्याणकारी योजनाएं हैं उन का बुरा हाल है.

सेना छोड़ कर सभी का निजीकरण हो गया है. सेना में भी अग्निवीर जैसी योजनाएं आ गई हैं जो एक तरह से कौन्ट्रैक्ट सर्विस जैसी हो गई हैं. सेना के बजट में पिछले साल के मुकाबले 3.4 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है. डिफैंस खर्च के लिए 6.2 लाख करोड़ रुपए दिए गए हैं. अंतरिम बजट में सब से बड़ा हिस्सा डिफैंस का ही है. इसे कुल बजट का 8 फीसदी मिला है, जबकि अब देशों से लड़ाई कर के किसी देश पर कब्जा कोई नहीं कर सकता. ऐसे में सेना का बजट बढ़ाने का कोई लाभ नहीं दिखता.

बजट से साफ पता चलता है कि सरकार की कमाई टैक्स से हो रही है. वह इस को कहां खर्च कर रही, यह पता नहीं चल रहा है. 2024-25 में सरकार की कमाई 30.80 लाख करोड़ (उधारी छोड़ कर) और खर्च 47.66 लाख करोड़ रुपए रहने का अनुमान है.

अगले वित्त वर्ष में सरकार को टैक्स कलैक्शन से कुल 26.02 लाख करोड़ रुपए मिलने का अनुमान है. सरकार सड़क, अस्पताल और स्कूल में खर्च कर रही है. यहां से भी उस की कमाई अलग से हो रही है.

चमकदार चीजों से अलग से खर्च

आज जिस तरह की सड़कें बन रही हैं, उन पर चलने के लिए अलग से टोल टैक्स देना पड़ता है. यह टोल टैक्स हर सड़क पर अलगअलग होता है. यह करीब 2 रुपए प्रति किलोमीटर पड़ता है. आज चमकदार सड़कें वहीं है जहां टोल टैक्स अधिक है. ऐसे में टैक्स का पैसा खर्च कर के सड़कें बन भी रहीं हो तो भी जनता को राहत नहीं मिलती है. साइकिल और बाइक से चलने वाले तो इन सड़कों पर चल भी नहीं सकते. इस तरह की चमकदार सड़कें जनता के किस काम की?

बात सड़कों की ही नहीं है. स्कूल और अस्पतालों का भी यही हाल है. सरकारी स्कूल जहां पर फीस कम होती है वहां के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. ऐेसे में जनता के टैक्स के खर्च से सरकारी स्कूल चलाने का क्या लाभ जब जनता को अच्छी शिक्षा के लिए निजी स्कूलों पर ही निर्भर रहना पड़ता है. अब पुलिस, बिजली और सफाई के लिए भी केवल सरकार पर निर्भर नहीं रहा जा सकता. शहरों अपार्टमैंट और गेटेड कालोनी बनने लगी हैं. जहां सुरक्षा के लिए निजी गार्ड रखे जाने लगे हैं. इन को पैसा देना पड़ता है.

इसी तरह से सरकारी सफाई कर्मचारी से ही काम नहीं चलता. ऐेसे में निजी कर्मचारी भी रखे जाने लगे हैं. अधिकांश घरों में बिजली के लिए इन्वर्टर और सोलर पैनल लोग लगाने लगे हैं. सरकार को टैक्स देने के बाद भी लोगों को अपने लिए अलग से खर्च करना पड़ता है. सरकार टैक्स में कोई राहत नहीं दे रही है. 3 लाख रुपए तक की इनकम ही टैक्स फ्री रहेगी.

10 साल में इनकम टैक्स कलैक्शन 3 गुना बढ़ गया है. 7 लाख की आय वालों को कोई कर देय नहीं है. सरकार ने कहा, 2025-2026 तक घाटा को और कम करेंगे. राजकोषीय घाटा 5.1 फीसदी रहने का अनुमान है. 44.90 लाख करोड़ रुपए का खर्च है और 30 लाख करोड़ रुपए का रैवेन्यू आने का अनुमान है.

आवास क्यों बना रही सरकार

2014-23 के दौरान 596 अरब डौलर विदेशी प्रत्यक्ष निवेश आया. यह 2005-2014 के दौरान आए से दोगुना था. सरकार मिडिल क्लास के लिए आवास योजना लाएगी. अगले 5 वर्षों में 2 करोड़ घर बनाए जाएंगे. पीएम आवास के तहत 3 करोड़ घर बनाए गए हैं. इस से बेहतर होता कि सरकार मकान बनाने में लगने वाली सामाग्री सस्ती करे जिस से आदमी खुद से अपना घर बना सके. असल में सरकार यह दिखाने की कोशिश कर रही कि वह गरीबों के लिए काम करती है. इस तरह की कल्याणकारी योजनाएं चलाने की जगह ऐसे काम हों जिन का लाभ जनता को मिल सके.

देश में सब से ज्यादा मुकदमे राजस्व यानी खेती की जमीन से जुड़े हैं. ये विवाद बढ़ते हैं तो झगड़े और मुकदमेबाजी बढ़ती है. सरकार अगर इस तरह के काम करे कि ये झगड़े कम हो सकें तो जनता राहत महसूस करेगी.

हर घर जल योजना से पानी पहुंचाया जा रहा है. 78 लाख स्ट्रीट वैंडर को मदद दी गई है. 4 करोड़ किसानों को पीएम फसल बीमा योजना का लाभ दिया जाता है. पीएम किसान योजना से 11.8 करोड़ लोगों को आर्थिक मदद मिली है. आम लोगों के जीवन में बदलाव लाने का प्रयास किया जा रहा है. युवाओं को सशक्त बनाने पर भी काम किया है.

सरकार जिस तरह से जनहित की योजनाएं चलाती थी, अब वे कम हो गई हैं. जनहित की योजनाओं की बुरी हालत हो गई है. उन के बराबर निजी योजनाओं में पैसा खर्च करने के लिए लोग बेबस हैं.

सरकार से सवाल नहीं हो सकते

असल में सरकार का काम ‘आरडब्ल्यूए’ यानी रैजिडेंस वैलफेयर एसोसिएशन की तरह से होना चाहिए. जिस तरह से वह प्रति स्क्वायर फुट के हिसाब से मेंटिनैंस चार्ज ले कर सारी सुविधाएं देती है उसी तरह से सरकार को करना चाहिए.

जनता से जो टैक्स ले, उसे सही तरह से आंका जा सके. सरकार इनकम टैक्स लेती है. इस के बाद हर जगह पर अलग टैक्स भी लेती है. जनता को यह पता ही नहीं है कि सरकार किसकिस तरह से उस से पैसा ले रही, उस में से जनता के हित में क्या खर्च कर रही?

‘आरडब्ल्यूए’ से सवाल किए जा सकते हैं, सरकार से सवाल नहीं पूछे जा सकते. ऐसे में सरकार एक साहूकार की तरह से जनता से पैसे ले तो लेती है पर पैसे खर्च कैसे कर रही है, यह नहीं पूछ सकते. न ही सरकार इस को ले कर कुछ कहती है. जनता से जो पैसे वसूल होते हैं उस का बड़ा हिस्सा रिश्वतखोरी और सरकार के शाही खर्चों में खर्च हो रहा है. जनता के टैक्स के पैसे खा कर सरकार का पेट निकलता जा रहा है. जनता टैक्स देदे कर सूखती जा रही है.

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