महात्मा गांधी को उन के सत्याग्रह, सत्य और अहिंसा के लिए याद किया जाता है. आज के दौर में इन चीजों का महत्त्व बचा है, यह देखना बाकी है. पूरे देश के नेता महात्मा गांधी के विचारों का गुणगान कर रहे हैं. ऐसे दक्षिणपंथी लोग जो गांधी से अधिक उन के हत्यारे नाथूराम गोड्से के विचारों को सही मानते हैं, वे भी गांधी का महिमामंडन कर रहे हैं. एक तरह से 30 जनवरी को महात्मा गांधी की पुण्यतिथि केवल सरकारी रस्मअदायगी जैसा आयोजन बन कर रह गया है. किसी भी महापुरूष की जब चर्चा हो तो सब से पहले उस के विचारों का पालन हो.

आज की राजनीति में सरकार के खिलाफ धरनाप्रदर्शन करना कठिन ही नहीं नाममुकिन सा हो गया है. राजनीति में धर्म हावी हो गया है. विरोधियों को डरानेधमकाने के लिए सत्ता द्वारा ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स जैसी एजेंसियों का दुरूपयोग किया जा रहा है. ऐसेऐसे कानून बन रहे जो जनता पर शिकंजा कसने में प्रयोग किए जा रहे हैं. लेकिन उन का विरोध तो छोड़िए, आलोचना तक संभव नहीं है. राजनीति में भ्रष्टाचार इस कदर होगा, कभी गांधी ने सोचा भी न होगा.

महात्मा गांधी की जन्मतिथि 2 अक्टूबर को भी ऐसी ही रस्मअदायगी होती है. गांधी के चरखे के साथ फोटो खिंचवाने से गांधी के विचारों को नहीं समझा जा सकता. गांधी को समझने के लिए कस्तूरबा को भी साथ रखना होता है और राजनीतिक वैभव को त्यागना पड़ता है. देश के लिए महात्मा गांधी से कहीं अधिक काम पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने किया, साथ ही कांग्रेस में भी गांधीवाद को जगह दी. नेहरूवाद राजनीति का विमर्ष नहीं बन सका. गांधी को राजनीति का विमर्ष तो बनाया गया लेकिन उस राह पर चलना कठिन था.

महात्मा गांधी कई बार अपनी ही बातों का खडंन करते नजर आते हैं. एक तरफ वे राजनीति में धर्म के खिलाफ थे, दूसरी तरफ खुद ही रामराज्य की बात करते थे. रामराज्य और धर्म की राजनीति को अलग कर के कैसे देखा जा सकता है. असल में राजनीति में बहुत सारी बातों को यह कह कर स्वीकार कर लिया गया कि यह गांधीवाद है. देश को गांधीवाद की जगह पर संविधानवाद चाहिए था, पर देश के नेताओं ने गांधीवाद को ले कर आगे बढ़ना पंसद किया. अपनी पंसद पर मोहर लगाने के लिए हर साल 2 बार गांधी को याद कर हम यह मान लेते हैं कि गांधी के बताए रास्ते पर चल रहे हैं.

धर्म और राजनीति पर चर्चा करने के क्रम में धर्म को समझना आवश्यक है. धर्म को पूजापाठ मान लिया गया. धर्म की जगह पर कर्म की चर्चा होनी चाहिए थी. हमें जो जिम्मेदारी दी गई है, हम उस का सही तरह से पालन करें, यही हमारा धर्म है. गांधी का धर्म यही था कि हर व्यक्ति अपने काम को सही तरह से करे, जिस से देश व समाज का भला हो. जैसे पानी का धर्म है प्यास बुझाना, चावल का धर्म है भूख मिटाना, ठीक उसी तरह देश में रहने वालों का धर्म है देश और समाज की प्रगति के लिए काम करना. नेता, अफसर और कोर्ट अपने धर्म का सही से पालन करें जिस से संविधान ने जो सोचा, वह हो सके.

राजा का कोई धर्म नहीं होना चाहिए. देश के प्रधानमंत्री, प्रदेश के मुख्यमंत्रियों का कोई धर्म नहीं होना चाहिए, उन का धर्म सभी नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करना होता है. इस के लिए सत्ता या विपक्ष नहीं होना चाहिए. चुनावप्रचार में प्रधानमंत्री या मुख्यमंत्री के तौर पर उन को किसी पार्टी का प्रचार नहीं करना चाहिए. इसलिए ही तो चुनाव आचार संहिता लागू होती है. आज क्या इस का पालन होता है? चुनाव खर्च की एक सीमा चुनाव आयोग तय करता है, क्या उस सीमा में चुनाव लड़ा जाता है? सत्ता पर आसीन लोगों से संविधान ने जो उम्मीद की थी, क्या उस का पालन हो रहा है?

ऐसे सवालों के जवाब न में ही मिलेंगे. इस के बाद भी हम नेताओं का गुणगान करते हैं. हम साल में 2 बार गांधी को याद कर के यह दावा करते हैं कि गांधी के पदचिन्हों पर चल रहे हैं. गांधी के रास्ते पर चलने की जगह संविधान के रास्ते पर चलना जरूरी है. तभी संविधान के हिसाब से देश को चलाया जा सकता है. आजादी के बाद जैसेजैसे नेताओं में सत्ता की भूख बढ़ी, संविधान को हाशिए पर रखा जाने लगा. संविधान की शपथ खाने वाले नेता संविधान के खिलाफ काम करने लगे.

कानून और संविधान को तोडने के रास्ते बनाए जाने लगे. जो जितनी अच्छी तरह से संविधान को तोड़ ले और अपने काम को सही ठहरा ले, उसे उतना ही बड़ा जानकार ‘चाणक्य’ मान लिया जाता है. गांधी ने देश के गरीब और वंचित लोगो के अधिकार और कानून की बात की थी. आज गांधी की पुण्यतिथि मना रहे नेता खुद अमीर हो रहे हैं. सत्ता के लिए कपड़ों की तरह दलबदल करना न तो गांधी का रास्ता था और न ही लोहिया, जयप्रकाश नारायण का. मजेदार बात यह है कि नेता आज इन महापुरूषों का नाम ले कर अपने स्वार्थ को पूरा कर रहे हैं.

गांधी और उन के जैसे तमाम महापुरुषों ने देश के कमजोर और वंचित समाज को न्याय और अधिकार देने की बात कही. जो दक्षिणपंथी लोग इन के विचारों से सहमत नहीं थे, आज दक्षिणाबैंक के लिए उन की मूर्तियों की पूजा कर रहे हैं. कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न दे कर उन के विचारों को कुचलने का काम किया गया. इसी तरह से साल में 2 बार महात्मा गांधी का महिमामंडन कर यह बताया जाता है कि हम उन के बताए रास्ते पर चल रहे हैं. असल में हम न केवल देश के लोगों को बल्कि उन महापुरुषों को भी धोखा दे रहे हैं.

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