समय से पहले जन्म लेने वाले बच्चों का शारीरिक अनुपात नौर्मल नहीं होता. वे बड़े सिर और छोटे शरीर के आकार वाले बच्चे होते हैं. उन के शरीर में वसा की कमी होती है और शरीर पर महीन बाल होते हैं. त्वचा चमकदार दिखाई दे सकती है.

यदि कोई महिला समय से पहले बच्चे को जन्म देती है तो डाक्टर उन के जन्म के तुरंत बाद उन्हें सीधे नवजात गहन चिकित्सा इकाई (एनआईसीयू) में स्थानांतरित कर देते हैं क्योंकि उन्हें जिंदा रखने के लिए मैडिकल सहायता की जरूरत पड़ती है. वहां शिशु के महत्वपूर्ण अंगों की लगातार जांच और निगरानी रखनी होती है. तापमान, श्वसन दर, हृदय गति आदि पर नजर रखना होता है.

समय से पहले जन्म लेने वाले यानी प्रीमैच्योर बेबी को कई तरह की शारीरिक समस्याओं का सामना करना पड़ता है.

एक भ्रूण को विकसित होने के लिए गर्भाशय में पूर्ण अवधि यानी 40 सप्ताह की आवश्यकता होती है. यदि वे जल्दी पैदा हो जाते हैं तो वे पूरी तरह से विकसित नहीं हो पाते हैं. इस से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं. प्रीमैच्योर शिशुओं को हृदय, मस्तिष्क, फेफड़े या यकृत संबंधी समस्याएं होती हैं.

फेफड़ों के अपरिपक्व होने की वजह से प्रीमैच्योर बेबी को सांस लेने में तकलीफ हो सकती है. इस से कई श्वसन संबंधी परेशानियां हो सकती हैं जिन के लिए तुरंत उपचार की आवश्यकता होती है. प्रीमैच्योर बेबी में सांस लेने में रुकावट आने को एपनिया कहा जाता है. अधिकांश बेबी अस्पताल से घर जाने तक एपनिया से पीड़ित हो जाते हैं. समय से पहले पैदा हुए कुछ शिशुओं में फेफड़ों का एक कम सामान्य विकार हो जाता है जिसे ब्रोन्कोपल्मोनरी डिसप्लेसिया कहा जाता है. उन्हें कुछ हफ्तों या महीनों तक औक्सीजन की आवश्यकता होती है.

इन शिशुओं में सामान्य हृदय संबंधी जटिलताएं भी होती हैं. समय से पहले जन्मे बेबी को होने वाली कुछ सामान्य हृदय समस्याएं पेटेंट डक्टस आर्टेरीओसस (पीडीए) और निम्न रक्तचाप हैं. ऐसे में उपचार के बिना हृदय उतनी अच्छी तरह रक्त पंप नहीं कर पाता जितना उसे करना चाहिए. निम्न रक्तचाप का इलाज नस के माध्यम से दिए जाने वाले तरल पदार्थ और दवाएं हैं.

समय से पहले जन्म लेने वाले बेबीज के मस्तिष्क में आंतरिक रक्तस्राव हो सकता है. रक्तस्राव आमतौर पर थोड़े समय के बाद बंद हो जाता है लेकिन इस से घातक जटिलताएं भी हो सकती हैं. ऐसे शिशुओं में वसा की कमी के कारण उन के शरीर में तेजी से गर्मी कम होती है. इस से शरीर का तापमान कम हो जाता है.

समय से पहले जन्म लेने वाले शिशुओं में खून की एक आम समस्या एनीमिया होती है. यह एक ऐसी स्थिति है जहां लाल रक्त कोशिका की संख्या कम होती है. यही नहीं समय से पहले जन्मे शिशुओं में प्रतिरक्षा प्रणाली का पूरी तरह से विकसित न होना आम बात है. इन शिशुओं में संक्रमण तेजी से रक्त प्रवाह में फैल सकता है और सेप्सिस नामक जानलेवा समस्या का कारण बन सकता है.

ऐसे शिशुओं की रेटिना में रक्त वाहिकाएं सूज सकती हैं. इस से अंधापन सहित विभिन्न दृष्टि समस्याएं हो सकती हैं. उन्हें सुनने की समस्याएं भी हो सकती हैं. लोन्ग टर्म में मस्तिष्क के विकास की कमी के कारण ऐसे बच्चों में स्कूली उम्र में परिपक्व बच्चों की तुलना में सीखने की क्षमता में कमी दिखती है.

प्रीमैच्योर बेबी अपने शरीर के तापमान को नियंत्रित नहीं कर सकते इसलिए उन्हें इनक्यूबेटर सपोर्ट दिया जाता है. ऐसे शिशुओं में दूध पिलाने की अक्षमता को संतुलित करने के लिए इंट्रावेनस (IV) ट्यूब का उपयोग कर आवश्यक पोषक तत्व शरीर में पहुंचाए जाते हैं. इस IV ट्यूब का उपयोग तब तक आवश्यक हो जाता है जब तक कि शिशु इतना मजबूत न हो जाए कि वह मां का दूध चूस सके.

शुभ मुहूर्त में चाहिए बेटा

इतना सब होने के जोखिम के बावजूद हमारे देश के कितने ही हिस्सों में गर्भवती महिलाओं ने रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के दिन यानी 22 जनवरी को प्रसव कराने का स्लौट बुक कराया था ताकि जिन बच्चों को दुनिया में आने का समय नहीं आया उन्हें भी सर्जरी द्वारा जबरन इसी दिन जन्म दिया जाए भले ही उन्हें स्वस्थ और जिंदा रखना ही कठिन क्यों न हो जाए. इस से बड़ी मूर्खता क्या होगी कि अंधविश्वास की वजह से अपने ही बच्चे की सेहत से खिलवाड़ किया जाए.

कितनी ही महिलाओं ने प्राण प्रतिष्ठा के दिन बच्चे को जन्म देने की मंशा से प्रसव कराने का स्लौट बुक करा रखा था. महिलाओं का प्रसव कराने के लिए कक्ष की साज सज्जा की गई थी. ऐसी सभी महिलाओं की डिलीवरी सर्जरी से हुई. महिलाएं सर्जरी के लिए सहर्ष तैयार थीं. सामान्य तौर पर लोग सर्जरी अवायड करते हैं क्योंकि सर्जरी के बाद मां की सेहत पर भी बुरा असर पड़ता है और कुछ जोखिम भी होते हैं. मगर यहां राम नाम के अंधविश्वास के आगे महिलाओं की जिंदगी भी दांव पर लगा दी गई. सिर्फ इस चाह में कि बच्चा उसी मुहूर्त में पैदा हो.

दरअसल धर्म ने हमारे सोचने समझने की क्षमता खत्म कर दी है. हम हकीकत से दूर कल्पना की दुनिया मंल उड़ते रहते हैं और फिर कभी भी ठोकर खा कर नीचे गिर जाते हैं. तब भी अपनी ही किस्मत को दोष दे देते हैं. अपने कर्मों का हिसाब नहीं रखते. तर्क के बजाए विश्वास के सहारे जीते हैं. समय आ गया है अब हमें सही गलत का भेद समझना होगा.

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