खालिस्तान का सवाल सिर्फ लोगों का मुंह बंद करने, कुछ को गिरफ्तार करने, कुछ को समाप्त करने या मीडिया पर चुप्पी थोपने से बंद न होगा. यह अफसोस है कि हिंदू समाज की कुरीतियों से बचने के लिए बना एक सैक्ट आज अलग धर्म बन गया और उस के अनुयायी दुनियाभर में हिंदू-सिख खाई को चौड़ा करने में लगे हैं.

हिंदू धर्म ने बहुत से अलग धर्मों या संप्रदायों को पैदा होने का मौका दिया और उन में से बहुत से फिर उस सनातन धर्म में मिल गए हैं जिन के आराध्य विष्णु के अवतार हैं और जो वेदों व पुराणों को अपने धर्म का स्रोत मानते हैं. बौद्ध व जैन धर्म अलग हैं पर वे उस तरह अलग पहचान वाले नहीं हैं जिस तरह सिख हो गए हैं.

औपरेशन ब्लूस्टार के कारण 2 सिखों द्वारा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या किए जाने के बावजूद कांग्रेस ने किसी तरह मानमनौवल कर सिखों को अलगाववादी रवैया छोड़ने को राजी कर लिया था. प्रधानमंत्री राजीव गांधी व संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के बीच हुए राजीव-लोंगोंवाल समझते के बाद सिख विवाद समाप्त सा हो गया था. अब भारतीय जनता पार्टी के सत्ता में आने के बाद भारत में तो यह उभर नहीं रहा पर दुनियाभर में फैले सिख उसे इस्तेमाल कर रहे हैं. दुनियाभर में फैले कट्टरवादी हिंदू आजकल मंदिरों का जम कर निर्माण कर रहे हैं तो इस के जवाब में सिखों का रुख भी विदेशों में कड़ा होता जा रहा है.

एक ही जमीन से गए लोग, एक ही समाज के लोग, एक ही भाषा के लोग बाहर जा कर अलगअलग हो जाएं, यह हमारी बहुत बड़ी विफलता है. यह हमारे देश की सरकार और हमारे समाज की कमजोरी व गलती है कि गुरुपतवंत सिंह पन्नू जिस की अमेरिका में की गई हत्या की साजिश में एक हिंदू आरोपी निखिल गुप्ता पर मुकदमा शुरू हो गया है. यही नहीं, कनाडा सरकार व उस के प्रधानमंत्री भी कनाडा में ही एक दूसरे सिख नेता हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए भारतीय सरकारी गुप्तचरों को दोषी मान रहे हैं.

यह सोच कि जैसे भारत में पत्रकारों, विचारकों, विपक्षी दलों, स्वतंत्र जनता को धमका कर या सामाजिक बहिष्कार का रास्ता अपना कर चुप कराया जा सकता है, वैसे ही पश्चिमी देशों के लोकतंत्रों में भारतीय सरकार विरोधी आवाजों को बंद करने से समस्या का हल हो जाएगा, गलत है.

भारत सरकार जो उपाय अपना रही है वे पुलिसिया हैं. राजनीतिज्ञ दूर की सोचते हैं. पुलिस वाला यह नहीं सोचता कि पौकेटमार पैदा क्यों हुआ, वह उसे मारपीट कर या जेल में बंद कर सजा देता है. राजनीति सम?ाती है कि पौकेटमार पैदा ही क्यों हुआ? भारत सरकार अपने ढोलों की आवाजों से इतनी बहरी हो गई है कि उसे सम?ा नहीं आ रहा कि देश के या विदेश के सिख आज भारत से नाराज क्यों हैं?

सिख बंटवारे के समय हिंदुओं की तरह पाकिस्तान के इलाकों से भाग कर आए. कितनों ने ही जानें दीं. आज वे भारत में ऊंचे पदों पर भी हैं. फिर भी, एक वर्ग नाखुश हो, तो यह मौजूदा भगवा सरकार की गंभीर पराजय है जो राममंदिर के निर्माण और उद्घाटन के समय आने वालों द्वारा उड़ाई गई धूल में छिप नहीं सकती. इस के लिए दोषी हर वह भारतीय भी है जो धर्म के नाम पर अपने को अलग सम?ाता है.

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