5 जनवरी की सुबह जिस वक़्त पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के जन्मदिन के अवसर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ था, एक खबर ने रंग में भंग डाल दिया. सूचना आई कि प्रवर्तन निदेशालय और केंद्रीय रिजर्व पुलिस की टीम पर हमला हो गया.

ईडी ने कोलकाता तथा उस से सटे जिले उत्तर 24 परगना में कुल 12 जगहों पर सुबह से तलाशी अभियान चला रखा था. ईडी अधिकारी जब उत्तर 24 परगना के संदेशखाली में तृणमूल नेता व ब्लौक अध्यक्ष शाहजहां शेख के घर पर छापेमारी करने पहुंचे तो वहां कोई 200 लोगों की भीड़ ने उन पर हमला बोल दिया. उन की गाड़ियों में तोड़फोड़ की गई. साथ आए रिजर्व पुलिस के जवानों और मीडियाकर्मियों को भी नहीं बख्शा गया. उन के सिर फोड़ दिए, फोन छीन लिए. इस अप्रत्याशित हमले में कई ईडी अधिकारी जख्मी हो गए. शेख के समर्थकों ने इधरउधर डर से छिपे अधिकारियों को ढूंढढूंढ कर पिटाई की. परिणामस्वरूप, ईडी अधिकारियों को वहां से भागना पड़ा. जख्मी अधिकारियों को स्थानीय कैनिंग अस्पताल में भरती कराया गया है. ईडी की टीम वहां राशन घोटाला मामले में तृणमूल नेता व ब्लौक अध्यक्ष शाहजहां शेख के घर पर छापेमारी करने पहुंची थी.

इस से पहले ईडी के अधिकारियों ने जिले के बनगांव में तृणमूल नेता शंकर आढ्य के घर पर भी छापेमारी की थी. दोनों टीएमसी नेता राशन घोटाले में गिरफ्तार मंत्री ज्योतिप्रिय मल्लिक के करीबी बताए जा रहे हैं. जैसेजैसे लोकसभा चुनाव के दिन करीब आ रहे हैं, विपक्षी पार्टियों के नेताओं पर ईडी की छापेमारी में तेजी दिखने लगी है. वहीं जांच एजेंसी के अधिकारियों से दोदो हाथ करने के मूड में कई विपक्षी नेताओं ने अपने समर्थकों को सचेत कर दिया है. वे चाकचौबंद हो कर उन के आवासों में ही डंटे हुए हैं. इस से ईडी अधिकारियों में थोड़ा भय जरूर है मगर सत्ता के आदेश का पालन भी उन्हें करना है, फिर चाहे सिर फूटे या टांग टूटे.

घपलेघोटाले इस देश के लिए कोई नई बात तो है नहीं. सरकार चाहे कांग्रेस की हो या बीजेपी की या किसी और दल की, भ्रष्टाचार, धनउगाही और घपलेघोटाले नेताओं के जीवन का अभिन्न अंग हैं. पक्षविपक्ष के तमाम नेताओं की अलमारियांतिजोरियां सोने के बिस्कुट और नोटों की गड्डियों से भरी हुई हैं. हमाम में सब नंगे हैं. सत्ता पर काबिज दल अपने नेताओं की तिजोरियां ईडी, सीबीआई या आईटी अधिकारियों से नहीं खुलवाता, विपक्षी नेताओं की ही खुलवाता है और शोर मचाता है. कभी अपनों की खुलवा ले तो शायद विपक्षी नेताओं से भी ज़्यादा धन निकले. हालांकि जनता को अब ऐसे समाचार चौंकाते नहीं हैं. जनता सब समझती है कि कौन कितने पानी में तैर रहा है.

5 जनवरी को ईडी ने अवैध खनन से जुड़े मनी लौन्ड्रिंग मामले में हरियाणा के कांग्रेस विधायक सुरेंद्र पंवार और पूर्व इनेलो विधायक दिलबाग सिंह के घरों पर भी तलाशी अभियान चलाया. दिलबाग सिंह के ठिकानों से बड़ी मात्रा में अवैध चीजें बरामद हुईं. बड़ी मात्रा में अवैध फौरेन मेड आर्म्स, 300 कार्टन में अवैध सामान, 100 से ज्यादा शराब की बोतलें, 5 करोड़ रुपए कैश और करीब 4 से 5 किलो बुलियन बरामद किया गया. इस के अलावा बड़ी मात्रा में संपत्ति के दस्तावेज भी दिलबाग सिंह के ठिकाने से मिले.

3 जनवरी की सुबह राजस्थान में प्रवर्तन निदेशालय और आयकर विभाग ने ताबड़तोड़ छापेमारी की. दोनों एजेंसियों ने एक पूर्व मुख्यमंत्री, 2 आईएएस और कुछ कारोबारी समूहों के ठिकानों पर छापे मारे. राज्य में 31 ठिकानों पर एकसाथ डाले गए ये छापे एक खनन घोटाले के संबंध में थे.

उदयपुर शहर में एक कारोबारी से जुड़े 27 ठिकानों पर छापेमारी कि गई. उस में बड़े पैमाने पर टैक्स चोरी और मनी लौन्ड्रिंग का खुलासा हुआ.

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले ही आयकर ने राजस्थान के पाली और जोधपुर में दनादन छापे मारे थे. उस छापामारी में राजस्थान में सोने का अब तक का सब से बड़ा खजाना मिला था. इतनी बड़ी मात्रा में सोना देख कर आयकर विभाग के अधिकारियों के होश उड़ गए. मारवाड़ के 3 व्यापारिक समूहों पर हुई छापेमारी की कार्रवाई में कुल 400 करोड़ रुपए से ज्यादा के कारोबार के दस्तावेज जब्त किए गए.

शराब घोटाले में दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया की गिरफ्तारी चर्चा में रही. सीबीआई ने दिल्ली सरकार की साल 2021 की शराब नीति में अनियमितताओं के सिलसिले में उन को गिरफ्तार किया, जो अब तक जेल में हैं. उन के बाद आप पार्टी के 2 अन्य बड़े नेताओं को जेल भेज दिया गया और अब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पर शिकंजा कसा जा रहा है. इन गिरफ्तारियों को आम आदमी पार्टी सहित कई विपक्षी दलों ने राजनीति से प्रेरित बताया.

पार्टियों का कहना है कि केंद्र सरकार ईडी और सीबीआई जैसी एजेंसियों को हथियार बना कर उन राज्यों के मंत्रियों और नेताओं को टारगेट कर रही है जहां विपक्षी पार्टियां सरकार चला रही हैं.

इसी तरह छत्तीसगढ़ में ईडी काफी सक्रिय रही. एक के बाद एक छत्तीसगढ़ में कांग्रेस सरकार के मंत्रियों और कई नौकरशाहों को 2020 में हुए कोयले से जुड़े एक घोटाले के मामले में अक्टूबर 2022 से कुछकुछ दिनों के अंतराल पर पूछताछ के लिए समन किया जाता रहा और कई गिरफ्तारियां हुईं.

पहले की सरकारें भी ईडी और सीबीआई को हथियार के तौर पर खूब इस्तेमाल करती रहीं मगर बीते 9 सालों में इन एजेंसियों का पुरज़ोर इस्तेमाल हुआ. विपक्षियों को चुनचुन कर जेल भेजा गया लेकिन जो बीजेपी में शामिल हो गया उस के मामले डब्बाबंद हो गए.

महाराष्ट्र में नवाब मलिक और नारायण राणे का मामला देखें. बीते साल 23 फरवरी, 2022 को एनसीपी नेता नवाब मलिक को प्रवर्तन निदेशालय ने घंटों चली पूछताछ के बाद गिरफ्तार किया. नवाब मलिक पर आरोप था कि उन्होंने बाजार से काफी कम कीमत में दाऊद इब्राहिम की बहन हसीना पारकर के करीबी सलीम पटेल से संपत्ति खरीदी. यह 22 साल पुराना मामला है जिस पर ईडी ने प्रिवैंशन औफ मनी लौन्ड्रिंग एक्ट यानी पीएमएलए के तहत कार्रवाई की.

इस से पहले जनवरी 2021 में नवाब मलिक के दामाद समीर ख़ान को नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने ड्रग से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया था. इस के बाद अक्टूबर 2021 में फिल्म अभिनेता शाहरुख खान के बेटे आर्यन खान को एनसीबी ने गिरफ्तार किया.

इस पूरे मामले में नवाब मलिक ने कई प्रैस कौन्फ्रैंस कर के एनसीबी और बीजेपी पर आरोप लगाए कि एनसीबी और बीजेपी ने साजिश के तहत आर्यन खान को किडनैप किया. उन्होंने इन केस को फर्जी बताया था. बीते साल अदालत ने आर्यन खान को सुबूतों के अभाव में सभी आरोपों से बरी कर दिया और समीर खान को भी जमानत दे दी, लेकिन नवाब मलिक इस वक्त जेल में हैं, खराब सेहत का हवाला दे कर वे जमानत लेने की कोशिश कर रहे हैं.

महाराष्ट्र की ही राजनीति में एक और नाम है नारायण राणे का. नारायण राणे शिवसेना और कांग्रेस दोनों ही पार्टियों में रहे. शिवसेना और बीजेपी गठबंधन की सरकार के दौरान 1999 में वो कुछ वक्त के लिए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रहे. साल 2016 में बीजेपी के पूर्व सांसद किरीट सोमैया ने नारायण राणे पर मनी लान्ड्रिंग का आरोप लगाया. सोमैया ने प्रवर्तन निदेशालय के तत्कालीन जौइंट डायरैक्टर सत्यव्रत कुमार को एक चिट्ठी लिख कर नारायण राणे और उन के परिवार के बिजनैस की जांच कराने की मांग की थी. नारायण राणे पर 300 करोड़ रुपए की मनी लान्ड्रिंग करने का आरोप है.

अक्टूबर 2017 में नारायण राणे कांग्रेस से अलग हो गए और उन्होंने ‘महाराष्ट्र स्वाभिमान पक्ष’ पार्टी बनाई और एनडीए के साथ गठबंधन का ऐलान कर दिया. इस के बाद नारायण राणे केंद्र सरकार में मंत्री बन गए.

सवाल यह कि क्या नारायण राणे के खिलाफ लगे गंभीर आरोपों की जांच हुई, केंद्रीय एजेंसियों ने क्या कोई कार्रवाई की? जवाब है- नहीं.

ईडी सिर्फ उन के खिलाफ जांच जारी करती है जो विपक्षी पार्टियों में हैं.

साल 2019 में केंद्र की बीजेपी सरकार ने एक नोटिफिकेशन जारी कर के प्रिवैंशन औफ मनी लौन्ड्रिंग एक्ट (पीएमएलए) में बदलाव ला कर ईडी को मनी लौन्ड्रिंग के मामले में स्पैशल पावर दे दी.

दिलचस्प बात यह है कि पीएमएलए में बदलाव को मनी बिल की तरह पेश किया गया. मनी बिल को राज्यसभा में पेश नहीं करना पड़ता, इसे सीधे राष्ट्रपति की सहमति ले कर लोकसभा में पेश किया जाता है और वह कानून बन जाता है.

गौर करने की बात है कि 2019 में राज्यसभा में बीजेपी के पास बहुमत नहीं था. विपक्ष ने बीजेपी पर आरोप लगाया था कि पीएमएलए में मनी बिल जैसी कोई भी बात नहीं है, फिर भी इसे मनी बिल के तहत लोकसभा से पारित कराने के पीछे केंद्र सरकार की मंशा इस को मनमाने ढंग से इस्तेमाल करने की थी.

पीएमएलए के इस बदलाव को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी गई लेकिन कोर्ट ने इस संशोधन को जायज ठहराया. केंद्र सरकार का तर्क था कि गंभीर वित्तीय गड़बड़ियों की जांच के लिए यह जरूरी है कि ईडी को अधिक शक्तियां दी जाएं.

पीएमएलए के सैक्शन 17 के सब-सैक्शन (1) में और सैक्शन 18 में बदलाव कर दिया गया व ईडी को यह शक्ति दी गई कि वह इस कानून के तहत लोगों के आवास पर छापेमारी, सर्च कर गिरफ़्तारी भी कर सकती है. इस से पहले किसी अन्य एजेंसी की ओर से दर्ज की गई एफआईआर और चार्जशीट में पीएमएलए की धाराएं लगने पर ही ईडी जांच करती थी, लेकिन अब ईडी खुद ही एफआईआर दर्ज कर के गिरफ्तारी कर सकती है.

असम का शारदा घोटाला और हिमंत बिस्वा शर्मा का नाम आएदिन अखबार की सुर्ख़ियों में रहा. कभी असम की कांग्रेस सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे हिंमत बिस्वा आज बीजेपी की सरकार में असम के मुख्यमंत्री हैं और बीजेपी के चुनावी अभियान के स्टार कैम्पेनर हैं.

असम की तरुण गोगोई सरकार में सब से पावरफुल मंत्री रहे हिमंत बिस्वा शर्मा और गोगोई के बीच रिश्ते 2011 के चुनाव के बाद बिगड़ते चले गए. जुलाई 2014 को हिमंत बिस्वा शर्मा ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया लेकिन तब तक उन का नाम शारदा चिट फंड घोटाले से जुड़ चुका था.

अगस्त 2014 में हिमंत बिस्वा शर्मा के गुवाहाटी स्थित आवास और उन के चैनल न्यूज लाइव के दफ्तर पर सीबीआई की छापेमारी हुई. इस चैनल की मालिक उन की पत्नी रिंकी भुयन शर्मा हैं. नवंबर 2014 को हिमंत बिस्वा शर्मा से सीबीआई के कोलकाता दफ्तर में घंटों तक पूछताछ की गई.

उस समय मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया कि हिमंत बिस्वा शर्मा ने शारदा ग्रुप के मालिक और इस मामले में मुख्य अभियुक्त सुदीप्तो सेन से 20 लाख रुपए हर महीने लिए ताकि समूह राज्य में अपना व्यापार ठीक से चला सके. जनवरी 2015 को गुवाहाटी हाईकोर्ट ने सारे चिटफंड के केस की जांच सीबीआई को सौंपने के आदेश दिए और अगस्त 2015 में हिमंत बिस्वा शर्मा बीजेपी में शामिल हो गए.

फरवरी 2019 में असम कांग्रेस के नेता प्रद्योत बर्दोलोई ने एक प्रैस कौन्फ्रैंस कर के यह आरोप लगाया कि हिमंत बिस्वा शर्मा के बीजेपी में शामिल होते ही असम में शारदा चिटफंड घोटाले की जांच रोक दी गई है.

इस मामले की जांच कहां तक पहुंची है, आज इस की कोई जानकारी नहीं है. लेकिन एक बात तय है कि बीजेपी में शामिल होने और राज्य का मुख्यमंत्री बनने के बाद उन्हें कभी सीबीआई ने पूछताछ के लिए नहीं बुलाया. हिमंत को बीजेपी ने पूर्वोत्तर में गठबंधन दल नौर्थ-ईस्ट डैवलपमैंट अलायंस यानी नेडा का प्रमुख भी बनाया और वे बीजेपी के पूर्वोत्तर में विस्तार के हीरो माने जाते हैं.

वहीं, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भतीजे का मामला देखें. असम के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल से बीते साल अगस्त में तृणमूल कांग्रेस के महासचिव और ममता बनर्जी के भतीजे अभिषेक बनर्जी को प्रवर्तन निदेशालय ने कोयले की चोरी से जुड़े मामले में पूछताछ के लिए बुलाया. यह तीसरी बार था जब अभिषेक बनर्जी को कोलकाता के ईडी दफ्तर में पूछताछ के लिए बुलाया गया.

कोयले के करोड़ों के ग़ैरकानूनी खनन के इस मामले की जांच सीबीआई और ईडी दोनों कर रही हैं. 19 मई, 2022 को सीबीआई ने इस मामले में चार्जशीट दायर की और 41 लोगों को अभियुक्त बनाया, हालांकि इस चार्जशीट में अभिषेक बनर्जी का नाम नहीं है.

यह मामला है नवंबर 2020 का, जब ईस्टर्न कोलफील्ड लिमिटेड की विजिलैंस विंग को पश्चिम बीरभूम के इलाके से ‘कोयले की बड़े पैमाने पर चोरी’ के साक्ष्य मिले और इस आधार पर उस ने एफआईआर दर्ज कराई. आरोप है कि यहां कोयले की खदान में तड़के ही गैरकानूनी रूप से खुदाई कर के बोरियों में भर कर कोयला ट्रक, साइकिल के जरिए लोड कर के चोरी किया जा रहा था.

मामले में राजनीतिक ट्विस्ट तब आया जब 2021 में अभिषेक बनर्जी और उन की पत्नी रुजिरा बनर्जी को ईडी ने पूछताछ के बुलाया. यह समन 2021 में हुए पश्चिम बंगाल के विधानसभा चुनाव से पहले किया गया था यानी पूछताछ की पृष्ठभूमि में विधानसभा चुनाव था.

ममता बनर्जी ने इस समन को ‘बीजेपी की डराने की नाकाम कोशिश’ बताया था और अब तक इस केस में जांच चल रही है.

शुभेंदु अधिकारी के मामले में क्या हुआ?

दिसंबर 2020 में तृणमूल कांग्रेस छोड़ कर बीजेपी में शामिल होने वाले शुभेंदु अधिकारी कभी ममता बनर्जी के करीबी और टीएमसी में पावरफुल नेता थे, लेकिन 2021 में होने वाले विधानसभा चुनाव से पहले अधिकारी ने बीजेपी जौइन कर ली और आज विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं.

बात है साल 2014 की. पत्रकार सैमुअल मैथ्यू ने एक स्टिंग औपरेशन किया. इस स्टिंग औपरेशन में टीएमसी के मुख्य नेता शुभेंदु अधिकारी, मुकुल राय और फिरहाद हकीम जैसे कई अन्य नेता कैमरे पर लाखों की रिश्वत लेने की बात स्वीकार करते हुए दिखे. इसे सारदा स्टिंग केस के नाम से जाना जाता है.

पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की पार्टी टीएमसी की जीत के तुरंत बाद मई 2021 में सीबीआई ने इस केस में 4 टीएमसी नेताओं को गिरफ्तार किया. जिस में ममता बनर्जी की कैबिनेट के मंत्री फिरहाद हकीम और पश्चिम बंगाल के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी भी थे.

इस मामले में ईडी ने सितंबर में एक चार्जशीट फाइल की और इस में फिरहाद हाकीम, सुब्रत मुखर्जी, टीएमसी विधायक मदन मित्रा और पूर्व टीएमसी नेता सोवन चटर्जी के नाम शामिल किए गए.

सोवन चटर्जी ने भी बंगाल के विधानसभा चुनावों से पहले टीएमसी छोड़ बीजेपी जौइन की थी लेकिन कुछ महीनों बाद ही अपनी मनपसंद सीट से टिकट न मिलने पर उन्होंने बीजेपी भी छोड़ दी.

इस चार्जशीट में न तो शुभेंदु अधिकारी का नाम था और न ही मुकुल राय का. ये दोनों ही नेता अब बीजेपी में हैं जबकि इस स्टिंग औपरेशन में शुभेंदु अधिकारी 5 लाख और मुकुल राय 15 लाख रुपए की रिश्वत लेने के लिए रजामंद हुए थे.

विपक्षी नेताओं पर कसता शिकंजा

बीते साल मार्च में लोकसभा में दिए गए जवाब में वित्त मंत्रालय ने बताया था कि साल 2004 से ले कर 2014 तक ईडी ने 112 जगहों पर छापेमारी की और 5,346 करोड़ की संपत्ति जब्त की गई. लेकिन साल 2014 से ले कर 2022 के 8 वर्षों के बीजेपी के शासनकाल में ईडी ने 3,010 रैड कीं और लगभग एक लाख करोड़ की संपत्ति अटैच की गई.

बीते साल ‘इंडियन एक्सप्रैस’ ने लिखा कि पिछले 8 सालों में राजनीतिक लोगों के खिलाफ ईडी के मामले चारगुना बढ़े हैं. साल 2014 से 2022 के बीच 121 बड़े राजनेताओं से जुड़े मामलों की जांच ईडी ने की. इन में से 115 नेता विपक्षी पार्टियों से हैं यानी 95 फीसदी मामले विपक्षी नेताओं के खिलाफ थे. अब इस की तुलना यूपीए के समय से करें तो 2004 से ले कर 2014 के 10 सालों में 26 नेताओं की जांच ईडी ने की. उन में से 14 नेता विपक्षी पार्टियों के थे.

ईडी की तरह सीबीआई के मुकदमों के आंकड़े देखें तो यूपीए के 10 सालों में 72 राजनेता सीबीआई के स्कैनर में आए और उन में से 43 नेता विपक्ष के थे यानी तकरीबन 60 प्रतिशत. जबकि साल 2014 से ले कर 2022 तक एनडीए की सरकार में 124 नेता सीबीआई के शिकंजे में आए और इन में से 118 नेता विपक्षी पार्टियों के थे यानी 95 फीसदी विपक्ष के नेता हैं. अब विपक्षी नेताओं के खिलाफ आंकड़ा बड़ी तेजी से बढ़ रहा है.

मोदी सरकार पर ईडी के राजनीतिक इस्तेमाल करने के आरोप लगते रहे हैं. कुछ जानकार महाराष्ट्र को इस विधि का टैस्टिंग ग्राउंड भी कहते हैं. वह घटना याद करें जब शिवसेना का एक गुट एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में बागी हो गया था. इन विधायकों को पहले गुजरात और फिर रातोंरात गुवाहाटी ले जाया गया. हाई वोल्टेज राजनीतिक ड्रामे के बाद एकनाथ शिंदे गुट की सरकार बनी और इस के लिए जुलाई में पहला फ्लोर टैस्ट हुआ तो उद्धव गुट के नेताओं ने विधानसभा में ‘ईडीईडी’ के नारे लगाए. शिंदे गुट पर उद्धव ने आरोप लगाया कि वह ईडी के डर और पैसों के लालच में शिवसेना के विधायकों को तोड़ रहा है और बीजेपी के साथ सरकार बना रहा है.

इस नारे का जवाब देवेंद्र फडणवीस ने दिया कि- “यह ईडी की सरकार है और इस ईडी का अर्थ है एकनाथ और देवेंद्र फडणवीस की सरकार.”

जब महाराष्ट्र में यह सियासी फेरबदल चल रहा था, उसी बीच बीजेपी के खिलाफ मुखर रहे शिवसेना नेता संजय राउत को ईडी ने 27 जुलाई, 2022 को समन किया. एक अगस्त, 2022 को राउत को मुंबई के गोरेगांव में पात्रा चौल रिडैवलपमैंट से जुड़े मनी लौन्ड्रिंग के एक केस में गिरफ्तार कर लिया गया.

पात्रा चौल के रिडैवलपमैंट का काम गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन प्राइवेट लिमिटेड कंपनी महाराष्ट्र हाउसिंग डैवलपमैट अथौरिटी के साथ मिल कर कर रही थी. ईडी का कहना है कि गुरु आशीष कंस्ट्रक्शन, हाउसिंग डैवलपमैंट इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (एचडीआईएल) की सहायक कंपनी है.

एचडीआईएल वह कंपनी है जिस की जांच पंजाब-महाराष्ट्र कोऔपरेटिव बैंक से जुड़े 4,300 करोड़ रुपए के फ्रौड केस में हो रही है. ईडी का कहना है कि एचडीआईएल ने करोड़ों रुपए प्रवीण राउत के खाते में ट्रांसफर किए. प्रवीण राउत संजय राउत के करीबी हैं.

नवंबर 2022 में जब संजय राउत को एक सैशन कोर्ट ने जमानत दी तो उस वक्त कोर्ट ने कहा था- “कोर्ट में जो सुबूत दिए गए और चर्चाएं हुईं उन में प्रवीण राउत पर तो भ्रष्टाचार के केस हैं, लेकिन संजय राउत को बेवजह गिरफ्तार किया गया.”

अब बात कुछ उन नेताओं की भी करते हैं जो उद्धव गुट छोड़ कर शिंदे गुट में आए और उन पर लगे ईडी-सीबीआई के केसों का क्या हुआ?

शिवसेना के नेता अर्जुन खोटकर 2016-2019 के बीच बीजेपी-शिवसेना गठबंधन की सरकार में मंत्री रहे. ईडी उन पर महाराष्ट्र कोऔपरेटिव बैंक घोटाले की जांच कर रही है. ईडी ने जून 2022 में अर्जुन खोटकर के आवास पर छापेमारी की थी और उन की 78 करोड़ रुपए की प्रौपर्टी जब्त कर ली थी.

जुलाई में उद्धव गुट छोड़ कर खोटकर शिंदे गुट में शामिल हो गए. जब वे शिंदे गुट में शामिल हो रहे थे उस वक्त उन्होंने कहा था कि ‘वे हालात के हाथों मजबूर हैं.’ शिंदे गुट में शामिल होने के बाद उन के खिलाफ किसी भी तरह की कार्रवाई की कोई ख़बर नहीं है.

लगभग ऐसा ही मामला शिवसेना की नेता भावना गवली का भी है. महाराष्ट्र में भावना गवली के डिग्री कालेज हैं और उन पर पैसों के हेरफेर का आरोप है. ईडी गवली के खिलाफ मनी लौन्ड्रिंग के एक केस की जांच कर रही थी. ईडी का आरोप है कि गवली ने एक एनजीओ को प्राइवेट लिमिटेड कंपनी में बदल दिया. उन पर करोड़ों की धोखाधड़ी करने का आरोप है.

गवली शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना में शामिल हुईं और इस के बाद से ईडी इस मनी लौन्ड्रिंग के केस में क्या कर रही है, इस की कोई जानकारी नहीं है.

शराब नीति पर पूछताछ के लिए ईडी आजकल दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को घेरने में जुटी है. हालांकि केजरीवाल 3 जनवरी को प्रवर्तन निदेशालय के समक्ष पेश नहीं हुए. इस मामले में उन्होंने ईडी को अपना जवाब भेजा है. धनशोधन निवारण अधिनियम यानी पीएमएलए कानून की धारा 19 प्रवर्तन निदेशालय को यह अधिकार देती है कि लगातार 3 बार समन के बाद भी अगर कोई आरोपित पूछताछ के लिए उपस्थित नहीं होता है, तो उसे गिरफ्तार किया जा सकता है, लेकिन अपराध में संलिप्तता के पुख्ता आधार होने चाहिए. अब देखना होगा कि ईडी केजरीवाल को कब गिरफ्तार करती है और कोर्ट के पटल पर उन के खिलाफ क्या पुख्ता सुबूत रखती है. बीजेपी के लिए यह गिरफ्तारी जरूरी है क्योंकि अगर लोकसभा चुनाव से पहले उन की गिरफ्तारी नहीं होती है तो यह कांटा बीजेपी को बहुत चुभने वाला है.

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