देश में हर साल हजारों मरीज हार्ट, किडनी या लिवर की बीमारी से मर रहे हैं. कितने लोगों का पूरा जीवन अंधकारमय ही रहता है क्योंकि नेत्रदान के लिए लोग सामने नहीं आते हैं. दूसरी तरफ अपराध की काली दुनिया में किडनी से ले कर कोख तक नाजायज तरीके से बिक रही है. गरीबों की मजबूरी का फायदा उठाने वाले अपराधी गिरोह बड़ेबड़े अस्पतालों में डाक्टर्स और नर्सों की मिलीभगत से लाखों रुपयों के वारेन्यारे कर रहे हैं. गरीब आदमी से चंद हजार रुपयों में किडनी या लिवर खरीद कर जरूरतमंद मरीज को लाखों रुपयों में बेचे जा रहे हैं. यह धंधा छोटेबड़े तमाम अस्पतालों में चल रहा है.

इसी तरह बच्चे की चाह रखने वाले युगल जोड़ों को अस्पतालों से नवजात बच्चे या किराए की कोख भी बड़ी कीमत चुका कर आसानी से मिल जाती है. दिल्ली के अनेक अस्पतालों में यह धंधा खुलेआम चल रहा है. कई गरीब औरतें बच्चे पैदा ही इसलिए कर रही हैं ताकि उन्हें ऊंचे दामों में उन विवाहित जोड़ों को बेच सकें जिन के पास औलाद नहीं है. इन अपराधों के फलनेफूलने की जिम्मेदार सरकार है जिस ने सेरोगेसी पर प्रतिबंध लगा कर और अनाथाश्रमों से बच्चे गोद लेने की प्रक्रिया को कानून के तहत इतना मुश्किल कर दिया है कि बच्चे की चाह रखने वाले लोग गलत रास्ता अपना कर अपने जीवन में बच्चे की कमी को पूरा कर रहे हैं.

अगर इन चीजों को लीगल कर दिया जाए और एक रेट तय कर दिया जाए तो शायद गरीब आदमी अपराधी तत्वों और डाक्टरों के हाथों शोषण से बच जाए. लोगों के दिमाग में यह बात भी होती है कि अपना कोई करीबी बीमार पड़े और उस को किसी अंग की जरूरत हो तो हम दे दें, मगर किसी अनजान को दान क्यों दें? लेकिन इसी व्यक्ति से अगर कहा जाए कि उस की एक किडनी या लिवर के एक छोटे से अंश के लिए सरकार ने रेट तय किया है तो वह खुशीखुशी अपना अंग बेचने को तैयार हो जाएगा. इस से बीच के दलालों को भी खत्म किया जा सकता है.

धर्म की वजह से अंगदान नहीं

लोग अंगदान के लिए इसलिए भी आगे नहीं आते हैं क्योंकि धर्म ने उन्हें अनेक भ्रांतियों में जकड़ रखा है. पूर्वजन्म और अगले जन्म की भ्रांति में फंसा आदमी सोचता है कि इस जन्म में यदि उस ने अपना कोई अंग दान किया तो अगले जन्म में उस को उस अंग के अभाव का सामना करना पड़ेगा. मैं यदि अपनी मृत्यु के पश्चात अपने अंगदान का फौर्म भर दूं तो शायद अगले जन्म में मेरे शरीर के वे अंग रोगग्रस्त रहें. ऐसी अनेक भ्रांतियां समाज में फैली हुई हैं जिन को किसी धर्मगुरु ने दूर करने की कोशिश नहीं की बल्कि स्वर्ग, नरक, दूसरा जन्म, दूसरी योनि जैसी आधारहीन बातों में उलझा कर उसे अंगदान जैसे महान कार्य से रोक कर रखा है.

अंगदान कर के किसी लाचार व्यक्ति की जिंदगी में जीवन की नई उम्मीद जगाने से ज्यादा संतोषप्रद कार्य कोई दूसरा नहीं है. अंगदान करने की उदारता और संवेदना व्यक्ति की महानता को प्रदर्शित करती है. इंसान की संपत्ति का कोई मतलब नहीं अगर उसे बांटा और उपयोग में न लाया जाए, फिर चाहे वह शरीर के अंग ही क्यों न हों.

मानवीय दृष्टि से हर इंसान परिपूर्ण शरीर और स्वस्थ अंगों के साथ जीवन जीने का अधिकारी है. किसी कारणवश या बीमारी की वजह से यदि कोई अंग बेकार हो जाए तो कई बार व्यक्ति अवसादग्रस्त हो जाता है अथवा मर जाता है. ऐसे में अंगदान से उस व्यक्ति का जीवन बचाया जा सकता है. इस पुनीत कार्य से खुद का जीवन भी सार्थक नजर आता है.

डोनर के इंतजार में मरीजों की मौतें

सिर्फ भारत में ही नहीं दुनिया भर में लाखों लोग शरीर के अंग खराब होने के चलते अकाल मृत्यु को प्राप्त हो रहे हैं. दुनिया भर के अंगदाताओं की संख्या की तुलना में अंगों की मांग काफी ज्यादा है. इसलिए हर साल कई मरीज डोनर के इंतजार में मर जाते हैं.

आंकड़े बताते हैं कि भारत में 2 लाख किडनियों की औसत वार्षिक मांग के मुकाबले केवल 6 हजार किडनियां प्राप्त होती हैं. इसी तरह, दिलों की औसत वार्षिक मांग 50 हजार है जबकि अस्पतालों को इस का केवल 15 फीसदी ही मिल पाता है.

ब्रेन स्टेम डेथ की स्थिति में एक व्यक्ति 8 अंगों को दान कर सकता है. अंगदान में किडनी, लिवर, छोटी आंत,कोर्निया, बोन, त्वचा और हृदय वाल्व शामिल हैं. इस स्थिति में एक ब्रेन डेड व्यक्ति के शरीर से 8-9 लोगों को जीवनदान मिल सकता है.

आज लिवर की बीमारी से बहुत बड़ी संख्या में लोग पीड़ित हैं. एक स्वस्थ व्यक्ति के लिवर का छोटा सा अंश दो व्यक्तियों को प्रत्यारोपित किया जा सकता है. लिवर की भांति पैंक्रियाज का भी आंशिक दान किया जाता है. दान देने वाले व्यक्ति का लिवर या पेन्क्रियाज कुछ ही दिन में फिर परिपूर्ण हो जाता है और दान पाने वाले व्यक्ति में भी ये दोनों अंग स्वयं को विकसित कर लेते हैं. लेकिन अफसोस की बात है कि इस दान के लिए लोग आगे नहीं आते. वहीं अगर उस को कुछ आर्थिक फायदा दिखे तो वह अवश्य अपने लिवर का छोटा सा अंश बेच देगा.

अंगों की खरीदफरोख्त एक अपराध

प्रत्यारोपित होने वाले अंगों में दोनों गुर्दे (किडनी), यकृत (लिवर), हृदय, फेफड़े, आंत और पेन्क्रियाज शामिल हैं. जबकि ऊतकों के रूप में कोर्निया, त्वचा, हृदय वाल्व कार्टिलेज, हड्डियों और वेसेल्स का प्रत्यारोपण होता है. आंख, पाचक ग्रंथि, आंत, अस्थि ऊतक, हृदय छिद्र, नसें आदि अंगों का भी दान किया जा सकता है. पूरे देश में अभी तक ज्यादातर अंगदान अपने परिजनों के बीच में ही हो रहा है यानी कोई व्यक्ति सिर्फ अपने रिश्तेदारों को ही अंगदान करता है क्योंकि अंगों की खरीदफरोख्त को अपराध माना जाता है. हालांकि यह अपराध निर्बाध गति से हो रहा है.

अब मान लें कि कोई व्यक्ति अकेला है, उस के पास ऐसा कोई नहीं है जो उस की शारीरिक कमी को दूर करने में उस की मदद कर सके और उस के पास लाखों रुपया भी नहीं है कि वह अंगों की खरीदफरोख्त करने वाले लोगों से जरूरी अंग खरीद पाए, ऐसे में अगर इस कार्य को लीगल कर दिया जाए तो जरूरतमंद व्यक्ति एक निश्चित धनराशि में किसी अंग बैंक से जरूरी अंग खरीद सकता है और अपनी पूरी जिंदगी जी सकता है.

अगर अंगों की कमी को दान से ही पूरा करवाने की मंशा सरकार की है तो इस दिशा में अब जबरदस्त जागरूकता फैलाने और लोगों को अंधविश्वास से बाहर निकालने की आवश्यकता है क्योंकि स्थितियां बहुत गंभीर हैं. अभी तक तो अनेक डाक्टर्स ही इस के लिए चिंता व्यक्त
करते थे मगर पिछले दिनों देश की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भी अंगदान की आवश्यकता पर मार्मिक अपील की है. और्गन्स की अनुपलब्धता पर चिंता जताते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि अंगदान के लिए बड़े पैमाने पर जागरूकता अभियान शुरू करने की जरूरत है. लिवर हमारे शरीर का सुरक्षा गार्ड है. हमारे देश में लिवर से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याएं बहुत गंभीर हैं और इन से होने वाली बीमारियों की बहुत बड़ी संख्या चिंता का कारण हैं.

अंगों की कमी के कारण लिवर, किडनी के अनेक मरीज प्रत्यारोपण से वंचित रह जाते हैं और असमय ही उन का देहांत हो जाता है. इस समस्या का समाधान करना एक जागरूक समाज की जिम्मेदारी है. अंगदान जीवन के लिए अमूल्य उपहार है. अंगदान उन व्यक्तियों को किया जाता है जिन की बीमारी अंतिम अवस्था में होती हैं और सिर्फ अंगदान ही जीवन बचाने का एकमात्र रास्ता बचता है.

गौरतलब है कि देश के विभिन्न अस्पतालों में सालाना सिर्फ अपने मरीज के लिए उन के रिश्तेदारों द्वारा लगभग 4000 किडनियां और 500 लिवर डोनेट किए जाते हैं जबकि भारत में प्रतिवर्ष 5 लाख लोग किडनी और लिवर का इंतजार करते हुए पलपल मौत की तरफ बढ़ रहे हैं.

मौजूदा समय में सिर्फ उत्तर प्रदेश में करीब 40 हजार मरीजों को किडनी ट्रांसप्लांट की और 15 हजार मरीजों को लिवर ट्रांसप्लांट की जरूरत है. मगर पूरे प्रदेश में हर साल महज 400 किडनी ट्रांसप्लांट हो पा रहे हैं जबकि लिवर ट्रांसप्लांट सिर्फ 35 से 40 मरीजों में हो रहा है.

जागरूकता जरूरी

समस्या को दूर करने के लिए अब ब्रेन डेड मरीजों के अंगदान को बढ़ावा देने की कोशिश शुरू हुई है मगर चींटी की चाल से. लोग अपने मृत परिजनों के अंगों को भी आधारहीन धार्मिक कारणों से दान करने को तैयार नहीं हैं जबकि हर साल उत्तर प्रदेश में सड़क दुर्घटना में करीब 22000 लोगों की मौत होती है. इस में ज्यादातर ब्रेन डेड होते हैं. ब्रेन डेड के बाद मरीज तो जीवित नहीं बचता मगर उस के शरीर के कुछ अंग कुछ घंटों के लिए जीवित रहते हैं. इन में से यदि सिर्फ एक फीसदी मरीजों के घरवालो को ही अंगदान के लिए राजी कर लिया जाए तो हर साल 440 मरीजों को किडनी और 220 मरीजों का लिवर ट्रांसप्लांट हो सकता है.

पीजीआई के स्टेट और्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांट और्गेनाइजेशन के इंचार्ज डा. हर्षवर्धन कहते हैं कि 2015 से ले कर अब तक मात्र 32 ब्रेन डेड लोगों के घरवालों ने अंगदान किया है. इस तरह हर साल औसतन महज 4 डोनेशन हुए हैं जबकि ब्रेन डेड मरीज हर साल हजारों की संख्या में होते हैं. भ्रांतियों के कारण लोग अंगदान नहीं करते. वे सोचते हैं कि इस जन्म में शरीर का कोई अंग दे दिया तो अगले जन्म में शरीर में वह अंग नहीं होगा. कोई नहीं जानता कि कोई अगला जन्म होना भी है या नहीं. जबकि अंगदान की कमी से रोजाना देश में करीब 283 मौतें हो रही हैं.

अंगदान और प्रत्यारोपण मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम (टीएचओए) 1994 के अंतर्गत आता है जो फरवरी 1995 से लागू हुआ था. इस अधिनियम के अनुसार अंगदान सिर्फ उसी अस्पताल में किया जा सकता है जहां उसे ट्रांसप्लांट करने की भी सुविधा हो. यह अपने आप में काफी मुश्किल नियम था. इस नियम से दूरदराज के इलाकों के लोगों का अंगदान तो हो ही नहीं पाता था.

इस समस्या को देखते हुए सरकार ने 2011 में इस अधिनियम को संशोधित किया. अब नए नियम के मुताबिक अंगदान किसी भी आईसीयू में किया जा सकता है अर्थात उस अस्पताल में ट्रांसप्लांट न भी होता हो लेकिन आईसीयू है तो वहां भी अंगदान किया जा सकता है. मगर समस्या का समाधान तब तक नहीं हो सकता जब तक लोगों में इस को ले कर जागरूकता पैदा न हो. अंगदान करने वालों की संख्या बढ़ाने के लिए अंगदान की आवश्यकता को जनता के बीच संवेदनशील बनाने की जरूरत है. हालांकि टीवी इंटरनैट के माध्यम से कुछ चेतना फैलाई जा रही है मगर यह अपर्याप्त है. इस के लिए लंबा रास्ता तय करना होगा और इस दौरान लाखों मरीज अंगों के इंतजार में दम तोड़ देंगे. इस से बेहतर है अंगों की खरीदफरोख्त को सरकार लीगल कर दे.

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