इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिवक्ताओं के वकालत करने पर चिंता जताते कहा है कि ऐसे लोग समाज, विशेषकर कानून बिरादरी, को नुकसान पहुंचा सकते हैं. राज्य सरकार इस बात को सुनिश्चित करें कि लाइसैंस जारी करने से पहले उन का पुलिस सत्यापन किया जाए. हाईकोर्ट ने राज्य सरकार और उत्तर प्रदेश राज्य विधिक परिषद को तत्काल प्रभाव से निर्देश जारी कर लाइसैंस के सभी लंबित और नए आवेदनों के संबंध में पुलिस थानों से सत्यापन सुनिश्चित करने को कहा है.
अदालत ने कहा, ‘इस तरह की जांचपड़ताल प्रक्रिया से सुनिश्चित होगा कि आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्ति को लाइसैंस प्राप्त करने के मामले में विधिज्ञ परिषद को गुमराह करने से रोका जा सके क्योंकि ऐसा व्यक्ति जानकारी छिपा सकता है.’
यह फैसला न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और विनोद दिवाकर की खंडपीठ ने पवन कुमार दूबे की याचिका को निस्तारित करते हुए आदेश पारित किया. याचिकाकर्ता ने एक व्यक्ति के 14 आपराधिक लंबित मामलों की सूचना छिपाने की शिकायत की थी. 14 में से 4 मामलों में संबंधित व्यक्ति को दोषी करार दिया जा चुका है.
सूचना छिपा कर व्यक्ति ने वकालत करने का लाइसैंस प्राप्त कर लिया. अदालत ने 21 दिसंबर को दिए आदेश में कहा, ‘हैरत में डालने वाली बात है कि जिस व्यक्ति के खिलाफ 14 आपराधिक मामले हैं, 4 में दोषी करार दिया जा चुका है, उस ने वकालत का लाइसैंस प्राप्त किया. ऐसे व्यक्ति समाज, विशेष रूप से कानून बिरादरी को, नुकसान पहुंचा सकते हैं. अधिवक्ता अधिनियम ऐसे व्यक्तियों को वकालत के पेशे में आने से रोकता है.’
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