Best Hindi Story : रविवार का दिन था. अरुण बहुत दिनों से पुरानी यादें ताजा करने को उत्सुक था. उस ने प्रतिभा को अपने साथ चलने के लिए मना लिया.
प्रतिभा ने विरोध नहीं किया. वे सुबहसवेरे ही अलीगढ़ के लिए घर से निकल पड़े. तीनों बहुत खुश थे. दोपहर तक वे गतंव्य तक पहुंच गए.
सब से पहले अरुण उन्हें ले कर उस रैस्तरां पहुंचा जहां वह अपने दोस्तों के साथ अधिकांश वक्त बिताया करता था. वह बोला, “प्रियांक, यहां मैं दोस्तों के साथ रोज आया करता था.”
“आज आप हमारे साथ आए हैं. मैं और मम्मी भी आप के बेस्ट फ्रैंड हैं, पापा.”
उस की बात सुन कर अरुण ने प्रतिभा की तरफ देखा. उस ने नजरें झुका लीं. कौफी का मजा लेते हुए अरुण का अतीत उस की आंखों के सामने चलचित्र की तरह घूमने लगा. उसे याद आ रहा था कि 9वीं क्लास से वह अलीगढ़ शहर में पलाबढ़ा था. अरुण के पापा बेंगलुरु से ट्रांसफर हो कर यहां आए थे. एमएससी करने के बाद अरुण कंपीटिशन की तैयारी के लिए दिल्ली चला आया और कुछ महीने बाद नौकरी के सिलसिले में वह नागपुर चला गया था.
अरुण का परिवार खुले विचारों का नहीं था. उस के पापा का देहांत एक ऐक्सिडैंट में तब हो गया जब वह बीए में पढ़ता था. उस की मम्मी माया ने उस की अच्छी परवरिश की थी. नौकरी मिल जाने के बाद 27 साल की उम्र में वह अपनी बिरादरी की लड़की से ही अरुण की शादी कराना चाहती थी.
एक बार अरुण अपनी बूआ की लड़की शिप्रा की शादी में हाथरस गया था. वहीं पर उस की प्रतिभा से पहली बार मुलाकात हुई थी. वह शिप्रा की फ्रैंड थी. शादी के दिन सजीधजी गुलाबी लहंगे में वह बेहद खूबसूरत लग रही थी. अरुण का ध्यान शादी से ज्यादा उसी पर था. प्रतिभा भी इस बात को महसूस कर रही थी. रात को फेरों के समय अरुण उसी की बगल में जा कर बैठ गया था. युवाओं में चुहलबाज़ी चल रही थी. प्रतिभा भी इस बातचीत में शामिल थी और उस की हर बात का अपने तीखे अंदाज में जवाब दे रही थी.
‘आप को देख कर लगता है मैं भी आज इसी मंडप में आप के साथ सात फेरे ले लूं.’
‘रोका किस ने है? हिम्मत है तो ले कर देख लीजिए. सामने से आप की मम्मी आ रही है.’
मम्मी पर नजर पड़ते ही अरुण शांत हो कर बैठ गया. उस की इस हरकत पर प्रतिभा जोर से हंसी और बोली, ‘लगता है अपनी मम्मी से बहुत डरते हैं.’
‘डरते तो हम किसी से नहीं हैं, बस, उन का अदब जरूर करते हैं. इसीलिए इस समय शांत बैठे हैं. वरना…’
‘मुझे अपने घर ले जाने से पहले सोच लीजिए. मैं कोई आम लड़की नहीं हूं. बहुत सुखसुविधाओं में पलीबढ़ी, फैशनेबल लड़की हूं. घूमनेफिरने में यकीन रखती हूं. उठा पाएंगे मेरे इतने नखरे?’
‘हम भी किसी से कम नहीं हैं. जिस चीज पर दिल आ जाए उसे ले कर ही रहते हैं,’ दबी जबान में वह बोला.
‘अपनी बात को पूरा करने के लिए अपनी मम्मी से जरूर पूछ लीजिए.’
‘वे मेरी हर इच्छा का मान करती हैं. आज तक उन्होंने मेरी कोई बात नहीं टाली है.’
‘मुझे नहीं लगता उन्हें मुझ जैसी स्टाइलिश बहू चाहिए.’
‘देख लेना 6 महीने के अंदर मैं आप को अपनी दुलहन बना कर यहां से ले जाऊंगा.’
‘बाद में अपनी बात से मुकर तो नहीं जाएंगे?’
‘मर्द की जबान है, एक बार कह दिया, तो कह दिया,’ अरुण बिंदास बोला.
प्रतिभा के साथ उसे समय का पता ही नहीं चला. विदाई के समय सब भावुक हो गए थे. प्रतिभा की आंखों में भी आंसू थे और अरुण के भी.
शाम को अरुण को वापस आना था. रास्ते में उस ने बात छेड़ी, ‘मम्मी, आप को प्रतिभा कैसी लगी?’
‘उस के बारे में सोचना छोड़ दे. उस के साथ तेरा मेल नहीं हो सकता.’
‘यह आप कैसे कह सकती हैं?’
‘मुझे भी एक नजर में वह अच्छी लगी थी, मैं ने तेरी बूआ से पूछा. उन्होंने बताया कि तेरे और उस के स्वभाव में जमीनआसमान का अंतर है.
वह बहुत खुले विचारों की आधुनिक लड़की है. उस के मम्मीपापा उस की हर इच्छा पूरी करते हैं. हमारे बस का उस के नखरे उठाना नहीं है.’
‘मम्मी मायके और ससुराल में अंतर होता है. साथ रहेगी, तो घर की परिस्थिति भी समझने लगेगी.’
‘ लगता है तुम्हें वह बहुत पसंद आ गई है.’
‘हां मम्मी, मैं उसी से शादी करना चाहता हूं. अब इस बारे में कुछ मत कहिएगा. वह हमारी बिरादरी की है और मुझे पसंद भी है. वह हम दोनों की शर्तें पूरी कर रही है. आप को इस रिश्ते पर एतराज नहीं होना चाहिए.’
माया उस की कोई बात नहीं टालती थी. देखने में परिवार और प्रतिभा उन के मनमाफिक थी लेकिन उस के नखरे सहना उन के बस के बाहर था. अरुण अच्छाखासा कमाता था. पिताजी की 2 दुकानें भी थीं और उन का अपना खुद का घर था. कुछ खेतीबाड़ी की जमीन थी. उस से भी उन्हें आय हो जाती थी. घर में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं था. बेटे की इच्छा का मान करते हुए माया ने इस रिश्ते को मंजूरी दे दी. यह सुन कर अरुण मम्मी से लिपट पड़ा, बोला, ‘आप बहुत अच्छी हो. मेरी खातिर आप हर समझौता कर लेती हो.’
‘तेरे अलावा मेरा है ही कौन बेटा इस दुनिया में?’
बूआ के माध्यम से माया ने यह रिश्ता प्रतिभा के घर भिजवा दिया था. प्रतिभा को कोई एतराज नहीं था. जल्दी ही उन दोनों की सगाई हो गई और 2 महीने बाद शादी. माया ने अपने इकलौते बेटे की शादी धूमधाम से की थी. अरुण के सभी दोस्तों ने खूब डांस किया था. अपनी ओर से माया ने इस शादी में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. प्रतिभा का मायका भी संपन्न था. उन्होंने शादी में दिल खोल कर खर्च किया था. शादी के 6 महीने कब बीत गए, पता ही नहीं चला. उन का अधिकांश समय घूमनेफिरने में ही बीत गया था. बच्चों को खुश देख कर माया खुश थी. इस दौरान प्रतिभा प्रैग्नैंट हो गई. यह सुन कर माया बहुत खुश थी, बोली, ‘प्रतिभा बहुत घूमनाफिरना हो गया. अब तुम्हें अपना ही नहीं, अपने अंदर पलने वाली नन्ही जान का भी खयाल रखना है.’
‘मम्मी जी, ऐसा कुछ नहीं होता. मेरी फ्रैंड बच्चा पैदा होने तक भी घूमतीफिरती रहती है. आप बेकार चिंता कर रही हैं.’
‘अपनी ओर से हमें सावधानी बरतनी चाहिए, बेटा. सब का शरीर एकजैसा नहीं होता.’ माया बोली तो यह बात प्रतिभा को अखर गई. उसे लगा कि वे उस पर प्रतिबंध लगा रही हैं. आज तक कभी किसी ने उस के किसी काम पर रोकटोक नहीं की थी. उस ने अपनी बात अरुण तक पहुंचा दी.
‘प्रैग्नैंट होने का यह मतलब नहीं है कि मैं एक जगह पर बैठी रहूं. आप मम्मी जी को समझा दीजिएगा, मुझे अपनी और बच्चे दोनों की फिक्र है. उन्हें ज्यादा टैंशन लेने की जरूरत नहीं है.’
‘कैसी बात करती हो, प्रतिभा. वे अनुभवी हैं. अपने अनुभव से कुछ बता रही हैं तो तुम्हें उसे मानना चाहिए.’
‘फिर वही बात. मैं ने कहा था, मैं भी अपने स्वास्थ्य को ले कर सचेत हूं. मुझे ज्यादा समझाने की कोशिश न करें,’ प्रतिभा तुनक कर बोली.
इस हालत में माया को उस का इधरउधर घूमना और तंग कपड़े पहनना अखरता लेकिन प्रतिभा को इस की कोई परवा न थी. घर में इन्हीं बातों को ले कर तनातनी होने लगी थी. अरुण बोला, ‘मम्मी ने हम दोनों की इच्छा का मान रखा है. क्या कुछ महीने के लिए हम उन की बात नहीं मान सकते?’
‘अभी तो यह शुरुआत है. कल बच्चा हो जाएगा तो और भी कई प्रतिबंध लगा देंगी. मुझे ऐसी जिंदगी पसंद नहीं है. मैं जैसी हूं उस में कोई बदलाव नहीं चाहती और न ही किसी पर कोई प्रतिबंध लगाती हूं. अगर उन्हें मेरा यहां रहना पसंद नहीं, तो मैं मायके चली जाती हूं.’
‘तुम कहां रहना चाहती हो, यह तुम्हारा निर्णय है, प्रतिभा. वे घर की बुजुर्ग हैं और हमारे भले के लिए ही कुछ कहती हैं.’
‘इसी उम्र के मेरे मम्मीपापा भी हैं लेकिन वे मुझ पर कोई रोकटोक नहीं लगाते. उन्हें भी मेरे प्रैग्नैंट होने की खबर से बहुत खुशी हुई लेकिन उन्होंने अपनी मरजी मुझ पर नहीं थोपी. मुझे अपने जीवन में रोकटोक पसंद नहीं है.’
‘मैं मम्मी के खिलाफ कुछ नहीं सुन सकता.’
‘ठीक है, तुम रहो अपनी मम्मी के साथ. मैं अपनी मम्मीपापा के पास चली जाती हूं,’ प्रतिभा गुस्से से बोली और जाने की तैयारी करने लगी. माया ने उसे रोकने की बहुत कोशिश की लेकिन वह नहीं मानी.
प्रैग्नैंसी में वे उसे कोई तनाव नहीं देना चाहते थे. अरुण उसे वहां छोड़ कर आ गया. उस की हालत देखते हुए उस के मम्मीपापा ने उसे यहीं रहने की सलाह दी. अरुण को महसूस होने लगा था कि मम्मी ठीक कहती थी. बाहरी सुंदरता चार दिन की होती है लेकिन इंसान का स्वभाव कभी नहीं बदलता. इस की प्रत्यक्ष मिसाल प्रतिभा थी.
अरुण महीने में एकदो बार उस से मिलने चला जाता. मायके में रह कर वह खुश थी. वह जितने रुपयों की मांग करती, अरुण उसे भेज देता. निश्चित समय पर प्रतिभा ने प्रियांक को जन्म दिया था. सब खुश थे. माया पोते को देखने हाथरस चली आई थी. नामकरण की औपचारिकता के बाद अरुण बोला, ‘प्रतिभा, अब सबकुछ ठीक से निभ गया. तुम्हें अब अपने घर चलना चाहिए.’
अपने मम्मीपापा के कहने पर प्रतिभा तैयार हो गई. माया उसे अपने साथ घर ले आई थी. माया का समय अपने पोते के साथ बहुत अच्छा कट रहा था. वह उस का बहुत खयाल रखती.
प्रतिभा की जिंदगी फिर से पुराने ढर्रे पर लौट आई. उस से कुछ कहना बेकार था. माया ने अपने होंठ सिल लिए थे. जितना उस से बन पड़ता वह प्रियांक की खिदमत में लगी रहती. यह देख कर एक दिन अरुण नाराजगी जताते हुए बोला, ‘प्रतिभा, अब तुम भी मम्मी बन गई हो और दूसरे के दर्द को अच्छे से महसूस कर सकती हो. तुम्हें प्रियांक को समय देना चाहिए. दिनभर मम्मी उस की खिदमत में लगी रहती है.’
‘तुम्हें लगता है मैं अपने बच्चों के लिए कुछ नहीं करती. यह सब कहने के लिए मम्मी ने कहा तुम्हें.’
‘वे क्या कहेंगी? मुझे भी बहुतकुछ दिखाई देता है. अपनी जिम्मेदारियों को समझा करो.’
‘फिर वही बात. मैं ने तुम्हें पहले भी कहा था और अब भी कह रही हूं, मुझे अपनी जिंदगी में किसी का दखल पसंद नहीं है. तुम से परिवार नहीं संभाला जाता, तो तुम रहो यहीं. मैं वापस अपने मायके जा रही हूं.’
इस बार अरुण ने सोच लिया था कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो कल प्रतिभा उन के लिए बहुत बड़ा सिरदर्द बन सकती है. सो, उस ने उसे जाने से नहीं रोका. वह बोला, ‘तुम्हारी जो इच्छा हो वह करो, लेकिन तुम्हारी मनमरजी इस घर में नहीं चल सकती.’
प्रतिभा का मुंह गुस्से से लाल हो गया. दूसरे दिन ही वह प्रियांक को ले कर मायके चली गई. इस बार झगड़े की शुरुआत अरुण ने की थी. उस ने सोच लिया था, वह उसे सबक सिखा कर रहेगी.
अरुण उस से मिलने गया तो किसी ने भी उस से ठीक से बात नहीं की. वह समझ गया कि मम्मीपापा प्रतिभा को सही मानते हैं और उसे गलत.
वे बेटी को कभी कुछ न कहते. इंडिया में उन का सहारा वही थी. उन का बड़ा बेटा अमेरिका मे बस गया था और अब उन की सुध न लेता. वे किसी कीमत पर बेटी को नहीं खोना चाहते थे. उन का रवैया देख कर अरुण ने वहां जाना छोड़ दिया. माया को पोते की याद सालती रहती लेकिन वह मजबूर थी. एक ओर बेटा था, दूसरी तरफ पोता. दोनों के बीच में प्रतिभा थी जो किसी भी हालत में इस घर से तालमेल बिठाने को तैयार न थी. अरुण का रुख देख कर उस ने 4 महीने बाद कोर्ट से नोटिस भिजवा दिया था. यह देख कर अरुण को बहुत गुस्सा आया.
‘मम्मी, आप ने उन की हिम्मत देख ली. अब हमें कोर्ट में घसीट रहे हैं.’
‘मैं क्या कहूं, बेटा? सबकुछ जान कर रिश्ता जोड़ा था. अब बहुतकुछ भुगतना ही पड़ेगा. वह क्या चाहती है?’
‘उसे उस के और बेटे के लिए हर महीने खर्चे के लिए 50 हजार रुपए चाहिए. इतना हम कहां से देंगे?’
‘जैसे भी कर के घर की इज्जत बचा लो. बेटे का भविष्य देखना है, तो यह सब तुम्हें करना ही होगा,’ माया बोली.
अरुण ने उस की मांग स्वीकार कर ली और उसे हर महीने रुपए भेजने लगा. बेटे की खातिर अरुण कभीकभी वहां चला जाता. वह बिलकुल पापा जैसे ही दिखता था. लेकिन प्रतिभा का अहं अभी भी संतुष्ट न हुआ था. वह मांबेटे को अच्छा सबक सिखाना चाहती थी जो बारबार उस की जिंदगी में दखल दे कर उसे नर्क बनाना चाहते थे. कोर्ट से उन के लिए एक के बाद एक नोटिस आने लग गए थे.
एक बार अरुण वहां पहुंच कर बोला, ‘यह क्या है, प्रतिभा? तुम ने जो मांगा, मैं ने तुम्हें दिया. अब क्या रह गया है?’
‘तुम्हारा जो कुछ है वह प्रियांक का भी है. उसे भी बहुतकुछ चाहिए. तुम्हारे नाम पर 2 दुकानें हैं. एक दुकान मेरे नाम कर दीजिए. उस की सारी आमदनी मुझे मिलनी चाहिए.’
‘यह तुम्हारा आखिरी फैसला है.’
‘तुम अच्छे ढंग से जानते हो, महिलाओं के हक में कितने अधिकार हैं. मैं ने अगर उन का प्रयोग कर लिया तो तुम सब कहीं के न रहोगे.’
‘हम ने ऐसा कुछ नहीं किया है जो तुम्हें इन का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़े.’
‘कोर्ट सुबूत मांगता है और सारे सुबूत मेरे पास हैं.’
अरुण ने उस के मुंह लगना ठीक न समझा. उसने एक दुकान उस के नाम कर दी कि शायद अब इस बला से पीछा छूट जाएगा. प्रतिभा को इतने से भी संतोष न था. वह इस चुप्पी को उन की कमजोरी समझती जा रही थी और दिनप्रतिदिन उन पर हावी होने की कोशिश करने लगी थी. लड़ाईझगड़े में 5 साल गुजर गए थे. प्रियांक बड़ा हो रहा था. कभीकभी मम्मी से पापा के बारे में पूछता तो वह कोई न कोई बहाना बना देती. बेटे की खातिर अरुण उस से संपर्क बनाए हुए था. वह उसे ऐसी जिंदगी नहीं देना चाहता था जिस के लिए उसे जिंदगीभर पछताना पड़े.
साल बीत रहे थे और प्रतिभा की मांग बढ़ती जा रही थी. उस के मम्मीपापा सबकुछ जान कर भी मुंह सिले हुए थे. वे अपनी बेटी के स्वभाव से भलीभांति परिचित थे. कुछ कहने पर वह क्याकुछ कर लेगी, कहना मुश्किल था.
प्रियांक 5 साल का हो गया था और अब स्कूल जाने लगा था. कोर्ट की परमिशन से वह उस से मिलने चला जाता. वे दोनों साथसाथ खूब मस्ती करते. वह चाहता, पापा भी उस के साथ रहें लेकिन छोटा बच्चा इस बारे में कुछ कर नहीं सकता था. कुछ कहने पर प्रतिभा उसे चुप करा देती.
कुछ महीने पहले एक दिन स्कूल में गेट से बाहर आते हुए प्रियांक एक गाड़ी की चपेट में आ गया. उसे बहुत चोट लगी थी. उस की हालत देख कर प्रतिभा के हाथपैर फूल गए. उसे तुरंत हौस्पिटल में भरती कराया गया. उस का ब्लड ग्रुप ओ नैगेटिव और इस समय वह अस्पताल में उपलब्ध भी नहीं था. उस के दोनों पैर की हड्डियां टूट गई थीं और खून भी बहुत बह गया था.
डाक्टर बोले, ‘जल्दी कीजिए, बच्चे की हालत बहुत नाज़ुक है.’
प्रतिभा को समझ नहीं आ रहा था कि क्या करे? उस ने तुरंत अरुण को फोन किया. बेटे के ऐक्सिडैंट की खबर सुन कर वह तुरंत वहां पहुंच गया. डाक्टर ने उसे सारी बात बताई. वह बोला, ‘आप को जितना चाहिए, मेरा खून ले लीजिए. मेरा भी वही ब्लड ग्रुप है.’
प्रियांक की स्थिति अभी भी नाजुक बनी हुई थी. उसे होश आने में पूरे 12 घंटे लगे. लेकिन वह अभी खतरे से बाहर न था. अरुण रातभर हौस्पिटल में ही रहा. माया भी पोते से मिलने चली आई. उन का रोरो कर बुरा हाल था. एक हफ्ते बाद प्रियांक को हौस्पिटल से छुट्टी मिली. उस के पैरों पर प्लास्टर चढ़ा हुआ था. अरुण वहां से वापस जाना चाहता था. प्रियांक ने उसे रोक लिया.
‘पापा, प्लीज मत जाओ.’
इस हालत मे बेटे की भावनाओं की कद्र करते हुए वह रुक गया. मजबूरी में ही सही, उसे प्रतिभा के साथ उस के घर जाना पड़ा. इतने दिनों अरुण की भागदौड़ देख कर प्रतिभा समझ गई कि उसे बेटे से कितना प्यार है.
अरुण वहां रुकने में डर रहा था. अब जब उन के बीच इतनी दूरियां बढ़ गईं तब वह कोई रिस्क नहीं लेना चाहता था. वह सोच रहा था, भावनाओं में बह कर किसी क्षण वह कमजोर पड़ गया तो उस के इतने साल की मेहनत पर पानी फिर जाएगा. वह प्रतिभा के सामने अपने आत्मसम्मान को घटा कर कोई समझौता नहीं चाहता था.
वह हर समय प्रियांक के साथ साए की तरह रहता. उसे देख कर पहली बार प्रतिभा को परिवार की अहमियत समझ में आई कि बच्चे के लिए मम्मीपापा दोनों जरूरी हैं. प्रियांक की हालत अब काफी सुधर गई थी. यह देख कर अरुण बोला, ‘प्रियांक अब ठीक है. खतरे की कोई बात नहीं है. मुझे चलना चाहिए. तुम इस का खयाल रखना. वैसे भी, तुम ने हमारे बेटे को बहुत अच्छे से रखा है.’
‘क्या तुम कुछ दिन और नहीं रुक सकते?’ प्रतिभा बोली तो अरुण ने उसे ध्यान से देखा. इस समय उस के चेहरे पर अहं की कड़वाहट नहीं, एक पत्नी की मनुहार साफ दिखाई दे रही थी.
‘औफिस से छुट्टी लिए 2 हफ्ते हो गए हैं. मम्मी घर पर अकेली हैं. उन की भी तबीयत ठीक नहीं रहती. मुझे चलना चाहिए.’
‘प्रियांक पूछेगा तो क्या कहूंगी? वह तुम्हें छोड़ना नहीं चाहता.’
‘छोड़ना तो मैं भी अपनी पत्नी और बेटे को नहीं चाहता था. पर तुम ने परिस्थितियां ऐसी बनाईं कि मैं मजबूर हो गया.’
‘तुम चाहो तो हम अब भी साथ रह सकते हैं. इतना सबकुछ होने के बाद क्या तुम मुझे माफ कर दोगे?’
‘प्रतिभा, बेटे की खातिर मैं सबकुछ करने को तैयार हूं बशर्ते कि तुम मेरे परिवार को अपना लो. वहां मेरे और मम्मी के अलावा कोई नहीं है. वह घर कल भी तुम्हारा था और आज भी तुम्हारा है. फैसला तुम्हें करना है, तुम प्रियांक को कैसी जिंदगी देना चाहती हो,’ अरुण बोला और प्रियांक के उठने से पहले वहां से बाहर निकल गया.
वह उस का रोना नहीं देख सकता था. प्रतिभा बहुत देर तक सोचती रही. उस की बात अपनी जगह सही थी. केवल अपने अहंकार को संतुष्ट करने के लिए वह किस हद तक गिर गई थी. आज उसे इस बात का बड़ा पछतावा हो रहा था. उस ने वापस ससुराल जाने का मन बना लिया.
प्रियांक के पैर से प्लास्टर हटते ही वह बोली, ‘मम्मी, मैं अरुण के पास जाना चाहती हूं.’
वे बोलीं, ‘एक बार फिर से सोच ले, प्रतिभा. जो कदम उठाने जा रही हो उस के दुष्परिणाम भी भुगतने पड़ सकते हैं.’
‘मम्मी, प्लीज आज मुझे मत रोकिए. अगर आप ने मुझे पहले समझाया होता तो यह नौबत न आती.’
‘हम भी तुम्हारे स्वभाव से डरते थे, प्रतिभा. अगर तुम यहां से भी जाने का निश्चय कर लेती तो फिर कहां जाती? ऐसी हालत में कोई गलत कदम उठा लेती तो क्या होता. हम हर हाल में तुम्हें खुश देखना चाहते थे. इस के लिए हम से जो बन पड़ा, हम ने वही किया. तुम्हारी खातिर हम ने भी अपने होंठ सिल लिए थे,’ मम्मी बोलीं.
उन्हें खुशी थी आज प्रतिभा किसी के दबाव में नहीं, अपनी इच्छा से यह घर छोड़ कर वापस अपने पति के पास जा रही थी. प्रियांक को पापा की जरूरत थी, जिसे प्रतिभा कभी भी पूरा नहीं कर सकती थी.
अचानक उसे आया देख कर माया चौंक गई. अरुण को अपनी आंखों पर विश्वास ही नहीं हो रहा था. पापा को देखते ही प्रियांक अरुण से लिपट गया. उस की शारीरिक कमजोरी अब काफी हद तक ठीक हो गई थी’ थोड़ा चलने में दिक्कत हो रही थी. वह बोली, ‘मम्मीजी, अपने गरूर में मैं ने आप को कितना परेशान किया है, कह नहीं सकती. क्या मुझे इस घर में जगह मिल सकती है?’
‘प्रतिभा, यह घर तुम्हारा है. मुझे खुशी है कि आज तुम किसी के दबाव में नहीं, अपनी इच्छा से लौट कर आई हो. घर की अहमियत क्या होती है, लगता है इस का एहसास तुम्हें हो गया है,’ माया बोली. प्रतिभा उन के गले लग कर रोने लगी. माया ने किसी तरीके से उन्हें चुप करा कर कमरे मे भेज दिया. वहां प्रियांक पापा के साथ खेल रहा था. कमरे में उन के कई फोटो लगे हुए थे जिन्हें देख कर प्रतिभा भावुक हो गई. उस ने बोलने के लिए जैसे ही मुंह खोलना चाहा, अरुण ने उस के मुंह पर हाथ रख दिया.
‘अब कुछ मत कहो, प्रतिभा. एक बुरा समय था जो गुजर गया. हमें आने वाले कल का स्वागत करना चाहिए.’
‘सच में तुम्हारा दिल बहुत बड़ा है. मेरा ही मन संकुचित था जो अपने से ऊपर कुछ न सोच सकी.’ इतना कहकर वह अरुण के गले लग गई. सबकुछ भुला कर वे एक नई जिंदगी जीने के लिए आगे बढ़ गए थे.
आज अरुण उन्हें उन सब जगहों पर ले कर जा रहा था जहां से उस की पुरानी यादें जुड़ी हुई थीं. प्रियांक की खुशी देखते ही बनती थी. वह मम्मीपापा का साथ पा कर अपने को धन्य समझ रहा था.