कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट की हैसियत अमेरिका में वही है जो भारत में किसी भी हाईकोर्ट की होती है. इस नाते डोनाल्ड ट्रंप के पास सुप्रीम कोर्ट जाने का मौका अभी है और तय है वे जाएंगे भी क्योंकि एक बार फिर दुनिया के सब से ताकतवर देश का राष्ट्रपति बन जाने का सपना वे देख रहे हैं और इस के लिए जीतोड़ मेहनत भी कर रहे हैं. कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें अगले साल होने जा रहे राष्ट्रपति चुनाव के लिए अयोग्य घोषित कर दिया है.

मामला कैपिटल हिल हिंसा का है, जिस में अदालत ने ट्रंप समर्थकों की भूमिका को ले कर यह फैसला सुनाया है. गौरतलब है कि पिछले चुनाव में हार के बाद ट्रंप समर्थकों ने अमेरिकी संसद कैपिटल हिल को घेर लिया था और संसद में न केवल गोलीबारी की थी बल्कि तोड़फोड़ करते कई दफ्तरों पर कब्जा भी कर लिया था. इस हिंसा में 4 लोगों की मौत हुई थी.

अमेरिकी इतिहास में पहली बार किसी राष्ट्रपति को व्हाइट हाउस की दौड़ में शामिल होने से पहले ही अयोग्य घोषित किया गया है लेकिन ट्रंप जल्दी हार मान लेने वालों में से नहीं हैं. पिछले चुनाव के बाद बड़ी मुश्किल से उन्होंने सत्ता जो बाइडेन को सौंपी थी. तब एक बार तो दुनिया सकते में आ गई थी कि कहीं ऐसा न हो कि पूरे देश में ही इमरजैंसी लगानी पड़े और ट्रंप व उन के समर्थकों को काबू करने को मिलिट्री की सेवाएं लेनी पड़ें. अगर ऐसा होता तो इस का फर्क दुनियाभर पर पड़ता.

एक कट्टर चेहरा

आखिर क्यों डोनाल्ड ट्रंप कुरसी नहीं छोड़ना चाहते थे और क्यों अब फिर से उसे हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं? आमतौर पर अमेरिका में राष्ट्रपति दोबारा सत्ता हासिल करने को ज्यादा उत्सुक नहीं रहते हैं. लेकिन ट्रंप की बेताबी से लगता है कि अमेरिकी लोकतंत्र पर जो दागधब्बे उन के राष्ट्रपति रहते लगे थे उन्हें वे और स्याह कर देना चाहते हैं. 4 साल अमेरिका में कट्टरवाद जम कर फलाफूला. अश्वेतों और प्रवासियों का चैन से रहना दूभर हो गया था. इस से दक्षिणपंथी तो खुश थे पर चुनावी नतीजों ने ट्रंप को ख़ारिज कर दिया था.

खुद को फख्र से राष्ट्रवादी कहने बाले ट्रंप, दरअसल, एक कट्टर रिपब्लिकन नेता हैं जिस की नीतियांरीतियां लोकतंत्र को धता बताती हुई थीं. व्यक्तिगत रूप से भी वे एक खब्त, ऐयाश और सनकी व्यक्ति हैं. उन पर महाभियोग भी चला. यौनशोषण के अलावा भ्रष्टाचार के आरोप भी लगे. भड़काऊ भाषण देने में तो वे माहिर हैं ही. न केवल अमेरिका बल्कि पूरी दुनिया में यह वह दौर है जब राष्ट्रप्रमुख खुद की कट्टर इमेज छिपाने के बजाय उसे और उजागर कर रहे हैं जिस से धार्मिक, जातिगत, नस्लीय और दूसरे किस्म के छोटेबड़े भेदभाव बढ़ा कर राज किया जा सके. इसीलिए पूरी दुनिया से ये आवाजें आती रहती हैं कि लोकतंत्र खतरे में है.

ट्रंप पर अदालती फैसले के बाद जो बाइडेन ने भी उन्हें लोकतंत्र के लिए खतरा बता डाला. अमेरिकी लोकतंत्र को दुनिया का सब से पुराना और मजबूत लोकतंत्र कहा व माना जाता रहा है लेकिन हकीकत में ऐसा है नहीं. किसी भी दूसरे देश की तरह वहां के लोगों में भी आपसी मतभेद हैं. लेकिन ट्रंप ने इन्हें हवा दे कर जो किया वह उन की कमजोरी को ही उजागर करता है. आमतौर पर कट्टर शासक बहुत कमजोर होते हैं और देश की मुख्यधारा के लोगों का मसीहा खुद को दिखा कर धर्मगुरुओं की तरह या उन के इशारे पर देश हांकते हैं.

डैमोक्रेटिक बाइडेन भी हालांकि व्यक्तिगतरूप से कम विलासी या शौक़ीन नहीं हैं लेकिन उन की उदारवादी इमेज पर कोई शक नहीं करता जबकि ट्रंप के मामले में ऐसा नहीं है. कोलोराडो सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 2 दिनों पहले ही उन्होंने प्रवासियों पर निशाना साधते हुए कहा था कि वे न केवल दक्षिणी अमेरिका, बल्कि पूरी दुनिया में जहर फैला रहे हैं. वे अफ्रीका, एशिया और पूरी दुनिया से हमारे देश में आते हैं. वामपंथियों को भी ट्रंप ने कीड़ा बताया था.

बाइडेन ने मौका लपकते पलटवार में कहा था कि ट्रंप अगर राष्ट्रपति बने तो इस बार उन के लिए पहले से भी ज्यादा कड़े कानून ला सकते हैं. पिछली बार राष्ट्रपति बनने पर उन्होंने अवैध प्रवासियों को उन के बच्चों से अलग रखा था. इस बार मुमकिन है उन्हें पकड़ कर उन के देश ही भेज दिया जाए. मुमकिन यह भी है कि प्रवासियों की वैचारिक स्क्रीनिंग की जाने लगे.

प्रवासी होंगे बड़ा मुद्दा

अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट का फैसला क्या आएगा, यह वक्त बताएगा लेकिन प्रवासी अगले चुनाव में बड़ा मुद्दा होंगे, यह अभी से साफ़ होने लगा है. इस में कोई शक नहीं कि अमेरिका प्रवासियों की पहली पसंद है. दिक्कत अवैध प्रवास को ले कर है जिस से स्थानीय और अमेरिकी मूल के लोग चिढ़ने व डरने लगे हैं. प्रवासियों को ले कर अमेरिकी कानून उदार हैं. डैमोक्रेट्स इन का आमतौर पर स्वागत ही करते हैं. बाइडेन सरकार ने 3 साल में लगभग 5 लाख वेनेजुएलावासियों को हिफाजत दी है. हालांकि, इस पर कुछ मेयर्स ने बजट गड़बड़ाने की शिकायत की थी.

लाखों की तादाद में प्रवासी अमेरिका जायज और नाजायज तरीकों से जाते हैं. कोविड के बाद इन की तादाद और बढ़ रही है. एक तरफ ट्रंप जहां इन की आमद को खतरा बताते हुए स्थानीय लोगों को भड़काते हैं तो दूसरी तरफ बाइडेन इसे बहुत बड़ी मुसीबत की शक्ल में नहीं देखते. अमेरिका में दिक्कत यह हो चली है कि स्थानीय और बाहरी लोगों के वोट लगभग बराबर हो चले हैं जिस का फायदा अलगअलग तरीकों से रिपब्लिकन और डैमोक्रेटिक पार्टियों को मिलता रहा है.

अगले चुनाव में क्या होगा, इस पर दुनियाभर के सियासी पंडितों को संशय है. हालफ़िलहाल तो यही दिख रहा है कि पिछले चुनाव की तरह बाइडेन और ट्रंप फिर एक बार आमनेसामने होंगे हालांकि दोनों की उम्मीदवारी को अपनी ही पार्टियों के अंदर से चुनौती मिल रही है. दक्षिणपंथी ट्रंप अभी भी अधिकतर स्थानीय लोगों की पसंद हैं पर उन्हें तगड़ी चुनौती भारतीय मूल के विवेक रामास्वामी से मिल रही है. निक्की हैली भी रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से दौड़ में हैं.

ट्रंप को अयोग्य ठहराए जाने पर विवेक रामास्वामी ने भी इसे लोकतंत्र की हत्या बताया है और फैसला उन के हक में न आने पर चुनाव से दूर रहने की बात कही है. सो, संभव है कि फैसला ट्रंप के पक्ष में न आने पर विवेक को रिपब्लिकन्स की सहानुभूति और समर्थन दोनों मिलेंगे जिन का रुख अभी प्रवासियों को ले कर स्पष्ट नहीं है जबकि वे खुद एक तरह से बाहरी हैं. जिस तरह ऋषि सुनक को ब्रिटेन ने स्वीकार लिया है उस तरह अमेरिका विवेक रामास्वामी या निक्की हैली को स्वीकारेगा, इस में ट्रंप जैसों की मानसिकता को ले कर शक ही है.

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