उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भीमराव अंबेडकर के `परिनिर्वाण` दिवसपर पूरा दिन उन के नाम कर दिया और उन की आड़ में परोक्ष रूप से कांग्रेस को कोसते कहा कि जो लोग आज भारतविरोधी गतिविधियों के माध्यम से समाज को विभाजित करते हैं, भारत को कमजोर करने का प्रयास कर रहे हैं, वे बाबासाहब भीमराव अंबेडकर का अपमान कर रहे हैं. हम सब को इस बारे में गांवगांव जा कर बताना होगा.

क्या थी योगी की मंशा और कैसे भगवा गैंग ने अंबेडकर के विचारों, सिद्धांतों और दर्शन का भी हिंदूकरण कर दिया है, इसे समझने के लिए पहले परिनिर्वाण शब्द को समझ लेना जरूरी है जिस का मतलब होता है पूर्ण मोक्ष यानी अब अंबेडकर दोबारा मानव योनि में जन्म नहीं लेंगे. वे ईश्वरीय सत्ता में विलीन हो कर उस का हिस्सा बन चुके हैं.

हिंदू धर्म छोड़ कर जिस बौद्ध धर्म को अंबेडकर ने अपनाया था वह मोक्ष और पुनर्जन्म का धुर विरोधी था क्योंकि इन्हीं का डर दिखा कर सनातनी अपनी दुकान चलाते रहे हैं और आबादी के बड़े तबके को गुमराह करते उसे गुलाम व पिछड़ा बनाए रखने की साजिश मठों और मंदिरों में रचते रहे हैं. सनातनियों ने दिया हो या बौद्धों ने, यह परिनिर्वाण शब्द ही अंबेडकर का सब से बड़ा अपमान है. जैसे कालांतर में बुद्ध को विष्णु का 9वां अवतार घोषित कर उन के विचारों को दबा दिया गया, वही अब भीमराव अंबेडकर के सिद्धांतों के साथ किया जा रहा है.

और इस के लिए नया कुछ नहीं करना है बल्कि बौद्धों वअंबेडकरवादियों को पूजापाठी बनाने के लिए उन की जयंतियां धूमधाम से मनाना है. उन की मौत के दिन को पूर्णमोक्ष दिवस कहना है. जगहजगह उन की मूर्तियां लगा कर नए तरीके से पाखंड और कर्मकांड थोपना है. इस शोर व कर्मकांडों के ढोलधमाके में बुद्ध की तरह अंबेडकर की नसीहतें भी हवा हो जानी हैं. ऐसा हो भी रहा है कि अंबेडकर में अगाध श्रद्धा रखने वाले भी उन के मंदिर व मूर्तियों के आगे दीया और अगरबत्ती जलाने लगे हैं, आरतियां और भजनकीर्तन आम हैं.

अंबेडकर की वैचारिक हत्या 

देश को विभाजित कौन कर रहा है जैसा कि डर भाजपा नेता योगी आदित्यनाथ और भगवा खेमा आएदिन दिखा कर वोट लूटा करता है. इस सवाल का जवाब शायद ही कोई ढूंढ़ पाए क्योंकि यह डर ही गांव के बाहर पीपल के पेड़ पर भूतप्रेत होने जैसा काल्पनिक है जिस से गांव के पंडितों की रोजीरोटी चलती है. वे इस प्रेत से बचने के लिए टोटके बताया करते हैं, तावीज देते हैं और झाड़फूंक भी करते हैं.

यही वैचारिक रूप से इन दिनों समाज और राजनीति में हो रहा है कि एक काल्पनिक प्रेत पैदा करो और फिर उस से बचाने के नाम पर वोटों की दक्षिणा बटोरो. कोई यह नहीं पूछेगा कि पंडितजी यह भूतप्रेत कुछ होता भी है या आप के दिमाग व आप के धर्मग्रंथों की खुराफाती उपज है.

यह डर फैलाना जरूरी है कि अंबेडकर जैसे गंभीर चिंतक और दूरदृष्टा की वैचारिक हत्या कर दो. यह हत्या धर्म के हथियार से होना ही संभव है, इसलिए की भी जा रही है. नहीं तो,अंबेडकर के सपनों का भारत गढ़ने का दावा करने वाले आदित्यनाथों को उन के इन कथनों वचिंतन पर बोलना चाहिए जो उन के कहे के करोड़वां हिस्सा भी नहीं.

  • “अगर हिंदू राष्ट्र बन जाता है तो बेशक इस देश के लिए एक भारी खतरा उत्पन्न हो जाएगा. हिंदू कुछ भी कहें पर हिंदुत्व स्वतंत्रता, बराबरी और भाईचारे के लिए एक खतरा है. इस आधार पर यह लोकतंत्र के लिए अनुपयुक्त है. हिंदू राज को हर कीमत पर रोका जाना चाहिए.” 1940 में दिए अंबेडकर के इस बयान की व्याख्या बहुत बाद तक होती रही कि कैसे हिंदू राष्ट्र या हिंदुत्व का विचार ही दलितों और महिलाओं के लिए घातक है. अब इस पर कोई नहीं बोलता इसलिए नहीं कि लोग कुछ बोल नहीं सकते बल्कि इसलिए कि मौजूदा माहौल में उन्हें खामोश रहने में ही भलाई नजर आ रही है जो लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों (बशर्ते किसी को कहीं दिखते हों तो) से मेल नहीं खाती.
  • एक और भाषण में अंबेडकर ने कहा था-“26 जनवरी,1950 को हम विरोधाभासों से भरे जीवन में प्रवेश करने जा रहे हैं. राजनीतिक जीवन में तो हमारे पास समानता होगी लेकिन सामाजिक व आर्थिक जीवन में असमानता होगी.”

25 नवंबर,1949 को अंबेडकर का यह कहा भी किस तरह सच हो रहा है, यह खुद उन के परिनिर्वाण दिवस,6 दिसंबर,2023, पर योगी आदित्यनाथ के भाषण से साफ हो जाता है कि क्या पहले कभी मुसहर, चेरो, वनटांगिया, थारू, कोल, अहरिया और सहरिया जाति के लोगों के बारे में कोई पूछता था.

80 करोड़ लोग आज भी अन्न के मुहताज हैं, यह बात खुद केंद्र सरकार मानती है जो उन्हें मुफ्त का राशन बांट रही है फिर कैसा ‘सब का साथ कैसा विकास’? यह गरीब को गरीब रखने की तकनीकी साजिश है जिस पर बहस की लंबी गुंजाइश है. पहले कांग्रेस भी यही करती रही और अब भाजपा भी कर रही है तो दोनों में फर्क क्या, सिवा इस के कि कांग्रेस घोषिततौर पर हिंदू राष्ट्र नहीं चाहती थी और भाजपा घोषिततौर पर चाहती है और इसीलिए दलितों को सहमत करने के लिए वह अंबेडकर को जबरिया मोक्ष दिलाने पर उतारू है, ताकि फिर कोई अंबेडकर पैदा न हो.

उन के विचारों के पीछे, लड़खड़ाते ही सही, चलने वालों को रोकने के लिए उन का रास्ता ही बदल दो. जो न माने उन्हें साम, दाम, दंड, भेद से खत्म कर दो. उसे एकलव्य, कर्ण या शम्बूक मानना अधर्म की नहीं बल्कि धर्म की बात है. मायावती, रामदास अठावले, चिराग पासवान जैसे दर्जनों छोटेबड़े दलित  नेता भाजपा के हाथों जीतेजी सियासी मोक्ष को प्राप्त हो चुके हैं.

लाख टके का सवाल यह कि सामाजिक और आर्थिक असमानता कैसे दूर होगी और यह राजनीति का विषय है या उस धर्म का जिस के ग्रंथों को जलाने का आग्रह भी कभी भीमराव अंबेडकर ने किया था.

इसलिए पिछड़ रही कांग्रेस 

अंबेडकर के `परिनिर्वाण` दिवस पर कोई बड़ा कांग्रेसी नेता कुछ नहीं बोला सिर्फ इसलिए नहीं कि वे हताश और सदमे में हैं बल्कि इसलिए भी कि उन्होंने पढ़नालिखना ही छोड़ दिया है. वे सामाजिक स्थितियों और अपेक्षाओं को समझ ही नहीं पा रहे हैं.

3 राज्यों के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने मुंह की इसलिए खाई कि मतदाता की नजर में वह वैचारिक रूप से निरर्थक हो चुकी है. यह सोचना बेमानी है कि मतदाता गहराई से नहीं सोचता, असल में उस के पास किताबी शब्द नहीं होते. रही बात लुभावनी योजनाओं की, तो वे लोगों की जरूरत बना दी गई हैं जिन के चलते लोग खुद से जुड़े असल मुद्दों से भटक रहे हैं.

कांग्रेस अंबेडकर जैसे दलित नेताओं को सही तरीके से पेश करने में मात खा रही है जबकि भाजपा गलत तरीके से पेश कर न केवल मौज कर रही है बल्कि देश को गुमराह भी कर रही है.

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