कोलगेट यानी कोयला घोटाले में केंद्रीय जांच ब्यूरो की भूमिका को स्पष्ट करने के लिए कानूनमंत्री रह चुके अश्विनी कुमार और जांच ब्यूरो के प्रमुख रणजीत सिन्हा को धन्यवाद देना चाहिए. रणजीत सिन्हा ने साफ कह दिया कि चूंकि केंद्रीय जांच ब्यूरो केंद्र सरकार का ही विभाग है इसलिए मंत्रियों व बाबुओं को केंद्रीय जांच ब्यूरो को निर्देश देने और उस की रिपोर्टों को देखने का पूरा हक है.
भूतपूर्व कानून मंत्री ने साफ कर दिया था कि इस देश में राजा मालिक है और राजा हर दोष से ऊपर है. वह गलती कर नहीं सकता और अगर गलती करे तो पकड़ा नहीं जा सकता. कोई अगर इस गलतफहमी में था कि यहां संविधान के अनुसार कानून का राज है तो वह गलतफहमी दूर कर ले.
सर्वोच्च न्यायालय जो भी फैसला कर ले, वह भी पत्थर पर लिखे इस सत्य को बदल नहीं सकता कि केंद्रीय जांच ब्यूरो स्वतंत्र रूप से काम कर सकता है और स्वयं निर्णय ले सकता है. सर्वोच्च न्यायालय का काम कानून बनाना नहीं है, बने कानूनों की व्याख्या करना है और अगर जांच ब्यूरो पर सरकार का शिकंजा कानून ने दिया है तो सर्वोच्च न्यायालय केंद्रीय जांच ब्यूरो के द्वारा लिए फैसलों या की गई जांचों को गैरकानूनी ठहरा सकता है पर उसे सही जांच करने का आदेश नहीं दे सकता.
केंद्रीय जांच ब्यूरो का उपयोग भरपूर तरीके से शासकों द्वारा किया जा रहा है. जब भी केंद्र सरकार पर कोई गहरी आंच आती है, जांच ब्यूरो को सक्रिय कर दिया जाता है. कोई भी सक्षम नागरिक या नेता, जो केंद्र सरकार को चुनौती देने का साहस रखता है, कुछ न कुछ तो ऐसा कर बैठता है जो कानूनी रूप से अपराध न हो फिर भी गलत हो सकता है. अपनी अपार शक्ति, पैसे, पुलिस अधिकारों के कारण केंद्रीय जांच ब्यूरो कुछ न कुछ चुनौती देने वाले के खिलाफ ऐसा निकाल लेगा कि वह मुंह बंद करने को मजबूर हो जाए.
कितने ही नेता, कितने ही उद्योगपति और ऐक्टिविस्ट अगर चुप हो जाते हैं तो केंद्रीय जांच ब्यूरो के डर के कारण और कोयला खानों को मनमरजी से अलौट करने के मामले में तैयार की गई ब्यूरो की रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय में पेश करने से पहले मंत्री को दिखाना कोई नई या पहली बात नहीं है. यह सिर्फ एक सच को स्वीकारना है.
देश में राजनीति में आने के लिए जो आपाधापी होती है उस का कारण ही यह है कि यहां चाहे जो नेता, मंत्री या अफसर बन जाए, वह यह जानता है कि न थानेदार और न ही सीबीआई उस का कुछ बिगाड़ सकती है. आप अपने वोट, स्वतंत्र प्रैस, अदालतों के अधिकारों का चाहे जितना गाल बजा लें, सच यह है कि नेतागीरी में पैसा भी है, सुरक्षा भी है.