ब यह अपनी ससुराल के तलवे चाटेगा,’’ बड़े भाई ने कहा.

‘‘ससुराल के तलवे क्यों चाटूंगा, मैं भारतीय सेना का सैनिक हूं. मुझे देश के किसी भी कोने में सैप्रेट फैमिली क्वार्टर अथोराइज हैं. यह उन को मिलता है जिन की पोस्ंिटग बौर्डर पर होती है और वे गलती से घर वालों पर विश्वास कर के अपनी बीवी व बच्चों को घर में छोड़ने का जुल्म करते हैं. जैसे मैं ने राजी और बच्चे को यहां छोड़ने का जुल्म किया. फैमिली क्वार्टर का अलौटमैंट लैटर है मेरी जेब में. अभी मिलिट्री की गाड़ी आ रही है, हम यहां से चले जाएंगे.’’

‘‘घर का खर्चा कैसे चलेगा?’’ मां ने कहा था.

‘‘यह आप को पहले सोचना चाहिए था. सबकुछ आप ने अपनी बेटी और दामाद को दे दिया है. मैं आप का अकेला बेटा नहीं हूं. और बेटे भी हैं. आप ने क्या किया, यह आप जानती हैं. पिताजी ने आप को सबकुछ दिया था. 2 मकान एक गांव में, एक शहर में. शहर का मकान घरों के बीच में था. बैंकबैलेंस था. बुजुर्गों की जमीनें थीं.

‘‘आप के पास इतना कुछ था कि आप को किसी के आगे हाथ फैलाने की जरूरत नहीं थी. छोटा भी बड़े आराम से पढ़ जाता. आप न केवल खुद लुटीं बल्कि अपने सारे बेटों को भी कंगाल कर दिया. 10 हजार रुपए के बदले आप ने सब को गुलाम बना दिया, सब का बेड़ा गर्क कर दिया.’’

‘‘मैं ने तो वह किया जो सब ने कहा.’’

‘‘सब में कौनकौन आता है? यह बेटी, दामाद और बड़ा भाई. दामाद तो बाहर का आदमी था. आप नहीं जानती थीं, इन दोनों ने अपने जीवन में क्या किया था?

‘‘हमारे परिवार की बरबादी तब से शुरू हो गई थी जब मैं 7वीं में पढ़ता था. गली की लड़की के लिए सब से बड़े भाई ने 2 बार अफीम खाई और पागलखाने चला गया था. लड़की के घर वालों से पिटा भी था. पिताजी को पागलखाने में दाखिले के लिए चंडीगड़ जा कर सीएम औफिस से परमिशन लानी पड़ी थी. आप जानती थीं, फिर भी उसे पढ़ने को डाला और पैसा बरबाद किया था.

‘‘यह आप की बेटी संगीत सीखना चाहती थी. उस के विपरीत लेडी हैल्थ विजिटर के कोर्स में दाखिला लिया और पूरा नहीं किया था. पैसा बरबाद किया. यह जो बड़ा भाई सामने बैठा है, इस ने जीवन में क्या किया? जीवनभर अपने को, अपनी बीवी को और अपने बच्चों को धोखा देता रहा है. जितना नुकसान इस ने परिवार को पहुंचाया है और किसी ने नहीं पहुंचाया. आप इस की बातों के झंसे में आ गईं.

‘‘ये श्रीमानजी, पहले नेवी में गए थे. वहीं रहते तो चीफ पैटी अफसर बन कर रिटायर होते और अच्छी पैंशन मिलती. नेवी में दाढ़ीमूछ इकट्ठी रखने का आदेश है. ये अड़ गए कि हमारे कस्टम हैं कि मूंछ रखनी है, दाढ़ी नहीं रखनी है. इंटरनल होने वाले पेपर ठीक से नहीं दिए, उन्होंने निकाल दिया. काहे की दाढ़ी, काहे की मूंछ, काहे का कस्टम. सच बात यह थी, ट्रेनिंग की सख्ती नहीं सह पाए ये. परिवार ने फिर इन का साथ दिया.

‘‘इस धोखेबाज आदमी को पढ़ने के लिए डाला. पढ़ा फिर भी नहीं था. घर में झगड़ा किया, फिर फौज में चले गए. वहां बीमार हुए, मैडिकल बोर्ड से आउट हो कर घर आ गए.

‘‘मैट्रिक में फर्स्ट डिविजन थे. एक्स सर्विसमैन कोटे से इन को पंजाब सरकार में फूड सबइंस्पैक्टर की नौकरी मिली थी. वहीं रहते तो उस विभाग के सब से ऊंचे पद तक जाते. इस ने यह कह कर वह नौकरी छोड़ दी थी कि यह ईमानदारी का महकमा नहीं है. एक बेईमान और धोखेबाज आदमी ईमानदारी की बात कर रहा था.

‘‘आप को इस आदमी की वृत्ति की फिर भी समझ नहीं आई थी? किस मोह के झंसे में आ गई थीं? मां तो सब के बारे में सोचती है. हम सब इसलिए पढ़ नहीं पाए कि सारा पैसा इन तीनों पर खर्च हो गया था. रहीसही कसर बेटी और दामाद ने पूरी कर दी.

‘‘दामादजी कह रहे थे, उन के पास 10 हजार रुपए नहीं हैं. लोन लेना पड़ेगा. लोन तब मिलेगा जब जमीन उन के नाम होगी.

‘‘रजिस्ट्री नहीं करवानी थी न. कम से कम पैसा तो आप के पास रहता था. सब धोखेबाजी थी. कोई लोनवोन नहीं लेना था. केवल जमीन हथियानी थी. पैसा इन के पास था, वही दिया. पूछो इन से, सामने बैठे हैं.

‘‘भाईसाहब, आप को तो पता था. आप तो जानते थे, कानून क्या होता है? आप ने 6 साल अपनी बीवी से तलाक का मुकदमा लड़ा था. आप को नहीं पता था कि जमीन उस की होती है जिस के नाम से उस की रजिस्ट्री हुई हो.

‘‘समझते के अनुसार जो पैसा घर में दिया जाना चाहिए था, वह मुकदमे में बरबाद कर दिया. समझते के लिए कंपनी बनाई, ‘ यूनाइटेड स्टैंड, डीवाइटेड फौल.’ माई फुट. बलि का बकरा बना मैं, भलोल समझ कर लूटते रहे.’’

‘‘आप को अपना दिमाग इस्तेमाल करना चाहिए था?’’

‘‘सही कहा आप ने. आप ने अपना दिमाग इस्तेमाल किया था न, क्या हुआ? बच्चे कहां हैं और बीवी कहां है? अगर और भाइयों की तरह उस मकान का हिस्सा आप को बेच दिया होता तो आज वे सड़क पर होते. आप गांव के मकान को भी बेच कर डकार गए होते. काश, मैं ने अपना दिमाग इस्तेमाल किया होता.

‘‘पिताजी के मरने के बाद मैं ने अपना पैसा संभाल कर रखा होता और किसी तरह का सहयोग न करता या हम में से किसी एक ने भी अपना दिमाग इस्तेमाल किया होता तो शहर वाला मकान न बिकता. किसी एक ने भी पावर औफ अटौर्नी न दी होती तो कम से कम 3 भाई अपनाअपना पोर्शन बना कर वहां सैटल हो जाते. खुद ही अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी. फायदा, बेईमानों और धोखेबाजों को मिला.

‘‘हमारे घर में केवल 2 शादियां अच्छी हुई थीं. एक सब से बड़े भाई की. दूसरे, इस लुटेरी बहन की. शादी से पहले या शादी के बाद उस भाई ने घर में सहयोग नहीं किया. शादी करते ही वे घर से अलग हो गए थे. अच्छा किया था, वे आप सब की धोखेबाजियों में तो नहीं आए. बस, एक जगह धोखा खा गए थे, आप को पावर औफ अटौर्नी दे कर. दोनों शादियां भी पिताजी ने अपने हाथों से कर दीं. नहीं तो कोई और लुटेरा लूट कर ले जाता.

‘‘हम बाकियों की शादी मंदिरों में, गुरुद्वारों में करना चाहते थे. दहेज से नफरत थी, ऐसा नहीं था बल्कि कुछ पास में था ही नहीं. अच्छी शादी करने की हमारी औकात नहीं रह गई थी. बाकियों की शादी किस तरह हुई, आप जानती हैं. मैं ने 2 महीने की छुट्टियों के पैसे से शादी की थी. छोटे ने यहीं आपस में वरमाला पहन ली थी. सब के सब लड़की वाले गर्जी थे. कइयों की ज्यादा लड़कियां थीं, इसलिए झंसे में आए. कई पिताजी नाम के कारण फंसे.

‘‘मैं शन्नो को साथ ले कर गया. आप को पैसे दे कर गया था, पीछे से कोई दिक्कत न हो. यहां भी गलती की. वहां हम तेल की रोटियां खाते रहे. जब वह लौट कर आई तो पेट से थी. आप ने क्या कहा था, मां? ‘बड़ी आई थी, वह इसी तरह पेट से थी. लड़की हुई थी. यह भी लड़कियों के घर से आई है, लड़की जनेगी. वंश आगे बढ़ेगा भला.’ इस से आप के चेहरे पर थोड़ी सी भी खुशी नहीं थी. आप को लगातार 12 साल से आ रहे पैसों के बंद होने की चिंता थी.

‘‘शन्नो, इस बहन के पांव को छूने के लिए झकी तो इस ने आशीर्वाद देने के बजाय आगे से ठुड मारा. आप भी तो वहीं थी, मां. अगर मां जाई बहन ऐसी होती है तो ऐसी बहन को दूर से तौबा.

‘‘अपने जीवन में मुझे 1,000 रुपए की जरूरत पड़ी थी. इस बहन ने पैसे तो दिए, साथ में, 11 पेज का लैटर लिखा था. जिस में गालियों के अतिरिक्त और कुछ नहीं था. आप कहें तो वह लैटर फेसबुक पर डालूं.

‘‘ये श्रीमानजी, हमारे जीजा, पिताजी के मरने के बाद हम ने इन को पिताजी का दर्जा दिया था. मैं ने खुद कहते सुना था कि जमीन तो मैं ने अपने नाम करवा ली है, आंएगे साले मेरे पास ही. आप कहें तो मेरे मोबाइल में की गई वह रिकौर्डिंग है, सुनाऊं. लो, सुन लो, किसी तरह का भ्रम मन में नहीं रहना चाहिए. जीजू, कुछ शर्म आई. बेशर्मों को क्या शर्म आएगी?

‘‘मां, शन्नो के मेहनतकश बाप ने अपनी लाड़ली बेटी को जीवन में काम आने वाली हर चीज दी. हर बाप देता है. आप जानती हैं, मांबाप पंजाब में अपनी बेटी को फुलकारी क्यों देते हैं? आप ने भी तो दी थी. बेटी जीवनभर उसे संभाल कर रखती है, इसलिए देते हैं. अगर उस की बेटी की मौत हो जाए और वे समय पर पहुंच न पाएं तो मायके की ओर से चादर के रूप में डाली जाती है वह. वह फुलकारी गांव कैसे पहुंच गई? शन्नो कह रही थी कि उस का एक पर्पल कलर का सिल्क का नाइट सूट था, वह भी गायब है. 101 नाड़े दिए थे, रेशमी रंगदार नाड़े, अपनी लाड़ली को ताकि जीवनभर नाड़े मांगने की जरूरत न पड़े. वे भी नहीं हैं.’’

‘‘नाइट सूट और नाड़े मैं ले गई थी. शालू को नाइट सूट बहुत पसंद था,’’ बहन ने कहा.

‘‘वह भी चोरी कर के, बिना किसी को बताए. दहेज से नफरत करने वाले दहेज चोरी कर के ले गए. पसंद था तो अपने पैसे से खरीदतीं, पहले कम लूटा है?’’

‘‘मैं ने मां को बताया था.’’

‘‘मां का सामान था. आप के दहेज का सामान आप की सास या और कोई ले जाता तो आप उस को छोड़तीं? खा जातीं उसे. जिस का सामान था, उस से पूछना गवारा नहीं समझ? मां, आप ने शन्नो को बताना तो दूर, मुझे भी नहीं बताया था. कई बातें लिखती थीं कि काका, यह हो गया है, वह कर दिया है. यह इसलिए नहीं बताया कि चोरी किया जा रहा था. दहेज का सारा सामान टूटी पेटी में कैसे चला गया? उस की नई पेटी में गेहूं कैसे डाल दिया और सामान टूटी हुई पेटी में क्यों व कैसे? सब के सब बेईमान और धोखेबाज हो.’’

‘‘बाहर गेहूं खराब हो रहा था तेजिंदर.’’

‘‘खराब हो रहा था, खराब होने देते. नई पेटी लानी थी.’’

‘‘उस के लिए पैसे नहीं थे.’’

‘‘आप ने सबकुछ अपनी बेटी को दे दिया. हर जगह इस ने हिस्सेदारी ली है. मां का खयाल रखने की जिम्मेदारी इस की भी है. अब आप की बेटी आप को खाने से ले कर कपड़ेलत्ते तक, सब देगी. अगर ऐसी होती है मां, ऐसे होते हैं बहनभाई तो नहीं चाहिए ऐसे भाईबहन. इस भाई के पास पैसे नहीं थे, यह नई पेटी ले आता.

‘‘मेरे पास आज भी छोटे भाई का वह लैटर फाइल में पड़ा है जिस में उस ने लिखा था कि आप भाभी और बच्चे को बचा लो. भाई आप की तनख्वाह से घर का खर्चा चलाता है और अपनी तनख्वाह बचाता है. भाभी सूख कर कांटा हो गई है. बच्चे को दूध मिलता है तो भाभी को नहीं मिलता. दूध नहीं पिएगी तो बच्चे के लिए दूध कैसे आएगा. वह बीमार भी रहने लगी है.

‘‘आप की यह बेटी कहती थी, बूढ़े, पढ़ने वाले और बच्चे को दूध मिलना चाहिए, जवानों को दूध की क्या जरूरत है. मैं इसी टैंशन में बीमार हुआ और हैलिकौप्टर से अस्पताल में शिफ्ट किया गया था. अगर मुझे इस तरह शिफ्ट न किया जाता तो आज मैं जीवित न होता. छोटे का वह पत्र आज भी मेरे पास है. कहें तो फेसबुक में डालूं पर आप जैसे बेशर्म लोगों को क्या फर्क पड़ेगा, क्या फर्क पड़ता है.

‘‘मां, मैं आप से क्या कहूं. शर्म भी आती है. आप ने तो जीवन में कभी अंडरगारमैंट पहने नहीं. घर में बहुएं भी ऐसे ही घूमें? आप घर की बड़ी थीं. आप को इतनी समझ नहीं थी कि बहुओं की अपनी भी जरूरतें होती हैं. क्यों आप ने इस के लिए पैसे नहीं दिए थे? पैसे की कमी कैसे पड़ी थी? क्यों आप ने मेरी तनख्वाह की तरह भाई से पैसे नहीं मांगे. समझता तो यही था कि सभी अपनी तनख्वाहें आप को देंगे? कोई नहीं देता था तो आप ने मुझे क्यों नहीं लिखा? मुझ से गलती यह हुई कि मैं सारे पैसे आप को भेजता रहा कि आप शन्नो का खयाल रखेंगी पर मेरा यह वहम निकला.

‘‘मैं ने हर महीने शन्नो को 500 रुपए महीना देने की बात की थी. ये सब जो बैठे हुए हैं, इन सभी ने विरोध किया था कि घर की सभी बहुओं को 500 रुपए महीना मिलना चाहिए. क्या मेरी परिस्थितियों और इन की परिस्थितियों में फर्क नहीं था? ये सब अपनी बीवियों का खयाल रखने के लिए साथ में थे. मैं तो दूर था. शन्नो अपने मन की बात केवल पत्रों से लिखती थी, मोबाइल उस के पास नहीं था. जब तक पत्र मुझ तक पहुंचता तब तक पीछे बहुतकुछ घट जाता. अगर अमृतसर में शन्नो तक पैसे ही पहुंचाने थे तो मेरे पास कई साधन थे. मैं तो आप के हाथों से दिलाना चाहता था, आप का मान बढ़ता. लेकिन आप ने क्या किया? शन्नो और मेरे बच्चे का सत्यानाश ही कर दिया. आप सब बेईमान और धोखेबाज हो.

‘‘काश, मैं ने आप पर विश्वास न किया होता. फैमिली क्वार्टर लिया होता और यह नौकरी करती. अब ऐसा ही होगा. आप सब की वहां एंट्री बंद. मैं गेट पर और स्टेशन हैडक्वार्टर में लिख कर दे जाऊंगा कि इन लागों को कैंपस में एंटरी न दी जाए. ये किसी समय भी मेरी फैमिली को नुकसान पहुंचा सकते हैं.

‘‘शन्नो, तुम्हें मां ने सोने की 2 चूडि़यां दी थीं न. वे वापस दे दो. मैं तुम्हें नई चूडि़यां बनवा कर दूंगा. जब हम सारे रिश्तेनाते ही तोड़ कर जा रहे हैं या इन्होंने रिश्ते बनाने योग्य संबंध ही नहीं रखे हैं तो ये चूडि़यां कैसी?’’

‘‘जा, शन्नो जिस तरह से तुम ने मेरा पुत्र छुड़ाया है, तुम्हारा पुत्र भी छूटे,’’ मां ने कहा.

‘‘वाह मां, वाह, अपनी गलितयां मानने के बजाय मुझे और शन्नो को बद्दुआएं दे रही हो?’’

‘‘मैं तुम्हें कभी राखी, भैया दूज नहीं भेजूंगी. आज से सब बंद,’’ बहन ने अपनी चुभती आवाज में कहा.

‘‘आप भेजोगे तो तब जब मैं संबंध रखूंगा. देख लो मां, मैं यहां से कुछ नहीं ले जा रहा हूं. शन्नो भी केवल अपना सामान ले जा रही है जो उस के पिताजी ने दिया था,’’ मैं ने कहा.

गाड़ी आई, 2 जवान भी साथ में थे. सारा सामान लोड किया और चल दिए. शन्नो और मुन्ना मेरे साथ आगे बैठ गए. कुछ सामान बाहर खराब होते देख मैं ने पहले ही अपनी ससुराल में छोड़ दिया था. मैं ने ड्राइवर को बताया. ड्राइवर ने गाड़ी हौल बाजार की ओर मोड़ दी. वहां से सब लोड करने के बाद पापाजी हमारे साथ हो लिए. वे देखना चाहते थे कि अब उन की बेटी कहां रहेगी. वह जगह सुरक्षित होगी या नहीं.

किला गोविंदगढ़ के अंदर बड़े मैदान को चारों तरफ दीवार से घेर कर बहुत सुंदर मल्टी स्टोरी नए क्वार्टर बनाए गए थे. मुझे ए बलौक में क्वार्टर नंबर 29 अलौट किया गया था. गेट पर खड़े गार्ड को अपना अलौटमैंट लैटर दिखाया. उस ने मुझे गार्ड रूम में गार्ड कमांडर के पास भेज दिया. रजिस्टर में पर्टीकुलर्स नोट किए और पीछे लगे बड़े बोर्ड पर मेरे क्वार्टर नंबर के आगे मेरे नाम की पर्ची चिपका दी. गार्ड को गेट खोलने के लिए आदेश दिया. गार्ड रूम के सामने बड़ा मैदान था. मैदान खत्म होते ही ब्लौक शुरू हो जाते थे.

पहले ब्लौक में ही मुझे क्वार्टर अलौट हुआ था. मैं सुबह ही क्वार्टर का चार्ज ले कर अपना ताला लगा गया था. ताला खोला और दोनों जवानों ने सारा सामान उतार दिया. वे जाने लगे तो मैं ने उन की मेहनत के लिए रम की बोतल दी. वे खुश हो कर चले गए.

सामान उतरने के बीच पापाजी ने सारा क्वार्टर देख लिया. चेहरे से वे बहुत खुश दिखाई दे रहे थे.

‘‘क्वार्टर बहुत शानदार है. बस, यही है कि शन्नो यहां अकेली कैसे रहेगी?’’

‘‘पापाजी, यहां केवल औरतें और बच्चे रहते हैं. सुरक्षा का पूरा प्रबंध है. यहां अंदर आने के लिए केवल एक ही गेट है. जहां 24 घंटे राइफल ले कर गार्ड खड़े हैं. बिना पूछे कोई अंदर आ नहीं सकता. वही अंदर आते हैं जिन को क्वार्टर अलौट हैं या कोई ऐसा रिश्तेदार जो अकेली औरत के साथ रात को रुकेगा. उस के लिए भी स्टेशन हैडक्वार्टर फोटो वाला पहचानपत्र इशू करता है. वैसे, मीनू रात को यहां पर रुका करेगी, उस की मम्मी से बात हो गई थी. कल स्टेशन हैडक्वार्टर जा उस के लिए पहचानपत्र ले आऊंगा,’’ मैं ने कहा.

‘‘पापाजी, सारा दिन मैं फैक्टरी में रहूंगी और मुन्ना आप के पास. मीनू फैक्टरी जाने के लिए वहीं मम्मी के पास आ जाया करेगी जैसे पहले आती थी. वहीं से हम दोनों फैक्टरी चली जाया करेंगी और आते समय मुन्ना को ले कर मैं यहां आ जाया करूंगी,’’ शन्नो ने कहा.

‘‘वह तो अच्छा है. हमारे पास रौनक हो जाएगी. दिल लगा रहेगा. सब मिल कर संभाल लेंगे. इस के अलावा भी घर की बहुत सी चीजें होती हैं जो रोजरोज लानी पड़ती हैं,’’ पापाजी ने कहा.

‘‘पापाजी, यहां सब मिलेगा. दूध और सब्जी के लिए गेट के बाहर मदर डेरी के बूथ हैं. पैसों के लिए बैंक का एटीएम है. कैंटीन की गाड़ी आएगी, राशन की गाड़ी आएगी. बच्चों के स्कूल जाने के लिए स्कूल बसें आती हैं. गेट पर सब की टाइमिंग लिखी हुई है. अपनेअपने समय पर आती रहेंगी.

‘‘इमरजैंसी में किसी चीज की जरूरत पड़ती है तो वे सामने बनिया कैंटीन है, उस में सबकुछ मिल जाएगा. सेना का कोई काम रामभरोसे नहीं होता है. वह गार्ड रूम के साथ एक कमरा है, वह एमआई रूम है. वहां सुबह 9 बजे से ले कर 1 बजे तक सेना का डाक्टर बैठता है, कोई बीमार होता है तो दवाइयां दी जातीं हैं. 24 घंटे एंबुलैंस खड़ी रहती है. कोई सीरियस हो जाता है तो उसे तुरंत अस्पताल पहुंचाया जाता है,’’ मैं ने पापाजी से कहा, ‘‘बस, गलती यह हो गई थी कि मैं ने घर वालों पर विश्वास किया. जब पता चला, बहुत नुकसान हो चुका था.’’

‘‘कोई बात नहीं. देर आए, दुरुस्त आए. मुन्ना की चिंता न करें. उस की देखभाल हो जाएगी. शन्नो का भी खयाल रखा जाएगा.’’

‘‘पापाजी, मुन्ना को मैं सुबह आप के पास छोड़ जाया करूंगी और आते वक्त ले आया करूंगी. सब्जी रामबाग सब्जी मंडी से ले आया करूंगी. नहीं तो यहां मिल जाया करेगी. कोई मुश्किल नहीं होगी. फिर आप सब तो हैं खयाल रखने के लिए.’’

पापाजी संतुष्ट हो कर घर गए. मैं और शन्नो क्वार्टर सैट करने में लग गए. किचन सैट हुआ तो बाकी सैट करना मुश्किल नहीं था. सब ठीक हुआ तो दोपहर के खाने की चिंता हुई. मुन्ना दूध पी कर सो गया था.

‘‘सामने वैज कैंटीन है. वहां खाने के लिए कुछनकुछ मिल जाएगा,’’ मैं ने कहा.

कैंटीन में 100 रुपए की थाली लंच की मिल रही थी. मैं ने 2 थाली के पैसे दिए और वेटर से कहा, ‘‘मेरे साथ आओ, सामने ए ब्लौक में जाना है.’’

लंच के बाद कुछ घर का सामान लेना था. शन्नो के बिना यह हो नहीं सकता था, इसलिए मुन्ना को भी साथ ले लिया. मुन्ना को शन्नो के मायके छोड़ कर बाजार चले गए. सारा सामान ले कर वापस आए तो रात के 9 बज गए थे. खाना तैयार था. क्वार्टर में जा कर रात को खाना कहां बनाएंगे, इसलिए यहीं खाना श्रेष्ठ समझ. स्कूटर पर सारा सामान ले जाना संभव नहीं था. जरूरी सामान लिया और वापस क्वार्टर पर आ गए. रास्ते से सुबह के लिए दूध ले लिया.

दूसरे रोज मीनू के लिए स्टेशन हैडक्वार्टर से यहां रहने का पहचानपत्र ले आया. मीनू शन्नो की पक्की सहेली थी. इतनी पक्की कि उसी ने हमारा रिश्ता भी करवाया था. दोनों फैक्ट्री में साथ काम करती थीं. मीनू, मेरी बूआ की जेठ की लड़की थी. इस नाते वह मेरी बहन लगती थी पर वह मुझे जीजू कहती थी.

छुट्टी खत्म होने पर यूनिट वापस जाने लगा तो मन में बहुत टीस थी, पीड़ा थी. समय पर निर्णय न लेने की पीड़ा थी. जवानों को मैं ने कई बार बैरक के कोनों में रोते देखा था. शायद वे भी मेरी जैसी परिस्थितियों में मन की पीड़ा को आंसुओं में बहाते थे. कई तो अपनी पत्नी, बच्चों को किन्हीं कारणों से अपने साथ रख ही नहीं पाते हैं. किसी को घर संभालना है तो किसी को जमीन.

वे अपनी फैमिली सैप्रेट क्वार्टरों में भी नहीं रख पाते हैं. उन की और उन के बीवीबच्चों की पीड़ा अलग है. हर छत की अपनी पीड़ा होती है और हर पीड़ा का निदान नहीं होता है. सैनिक सम्मेलनों में चाहे हमें समझया जाता है, फैमिली का मतलब है, पत्नी और बच्चे. कोई जवान मांबाप का अकेला बेटा है तो मांबाप भी फैमिली में आते हैं. सेना, उन की दवाइयों आदि का भी खर्चा उठाती है. पर थोड़े से बदलाव के साथ पीड़ा उन का पीछा नहीं छोड़ती है.

सारी सुविधाएं होने पर भी अपनी फैमिली को साथ न रख पाना पीड़ादायक है. जवान अपनी ड्यूटी को ले कर कभी पीडि़त नहीं हुए. वे अपनों के कारण पीडि़त होते हैं. समस्या भयंकर है पर इस का हल केवल यही है कि वे पत्नी और बच्चों का पुख्ता प्रबंध कर के बौर्डर ड्यूटी पर जाएं. जब पीस एरिया में हों तो अपने साथ रखें.

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