आज फिर बसंती बुआ का मन रहरह कर घबरा रहा था. कमरे की छोटी सी खिड़की से वह आसमान की ओर नजरें टिकाए खड़ी थी. बिजली कौंध रही थी. जैसे ही बादलों की गरजती आवाज धरती से टकराती तो उन के कलेजे को चीर जाती. किसी अनहोनी का डर उन्हें अंदर तक हिला देता. अपने सपनों का गांव उन्हें किसी भूतिया गांव सरीखा लगता.
पलभर में बूढ़ी आंखें बहुत दूर तक पहुंच जातीं. क्या कुछ नहीं था उन के जीवन में...पिताजी भले ही खेतीबाड़ी करने वाले अनपढ़ इंसान थे, लेकिन व्यावहारिक बुद्धि में पढ़ेलिखों से ज्यादा विवेकशील और समझदार. बचपन में नहीं पढ़ सके तो क्या, समय के साथसाथ कानूनी मसलों में भी विशेषज्ञता हासिल कर ली थी उन्होंने. और जहां गांव की लड़कियों की शादी 15-16 साल में कर दी जाती, वहां उन्होंने अपनी बेटी बसंती की शादी 21 साल होने के बाद ही की.
वे देशभक्ति से ओतप्रोत व्यक्ति थे इसलिए 24 साल का युवा सेना में लांस नायक हरिवीर उन्हें अपनी बेटी बसंती के लिए पसंद आ गया था. भले ही उस का घर टिहरी में था, जो समय की नजाकत को समझते हुए उस वक्त चमोली जिले से काफी दूर लगता था क्योंकि आवाजाही के साधन कम थे. आज की तरह हर घर में वाहन कहां थे, सड़कों का जाल भी आज की तरह नहीं बिछा हुआ था. बसंती की जवानी के दिनों में तो एक संकरी सङक हुआ करती थी, जिस के एक तरफ ऊंचेऊंचे पहाड़ और दूसरी तरफ नदी बहती थी. इक्कादुक्का बसें होती थीं लेकिन बहुत ही संभल कर चलना होता था. जरा सी चूक हुई तो नदी में समा जाने का डर रहता था.
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