कामिनी नाम था उस का. उस के मृत शरीर और फटे कपड़ों को देख कर यह अनुमान लगाना कठिन नहीं था कि उस के साथ वहशियाना बरताव किया गया है.

मैं ने कांस्टेबल नरेश को कहा कि घटनास्थल से जो भी संदिग्ध वस्तु मिले, उसे एक पौलीथिन में जमा कर के सीलिंगवैक्स से सिल कर दे. जैसा कि होता रहा है, पुलिस वालों को आम लोगों का सहयोग नहीं मिलता है. वैसा ही हुआ. कोई भी कुछ बोलने को तैयार नहीं था.

घटनास्थल से थाने की दूरी कम से कम 3 किलोमीटर थी. पास में होने पर थाने को ही दोषी ठहराया जाता. पर सच तो यह है कि किसी के लिए यह संभव नहीं कि पगपग पर नजर रखी जा सके.

मैं ने अनुमान लगाया कि घटना पिछले रात की है. मुझे थोड़ी निश्चिंतता हुई कि रात में मेरी ड्यूटी नहीं थी और दुख भी हुआ कि जो भी नपेगा वह मेरा साथी और सहकर्मी ही होगा.

पुलिस के काम में इस तरह के पल तो आते ही रहते हैं.

ओवरब्रिज के नीचे से गुजर रही सड़क के किनारे झाड़ियां थीं और आसपास कोई घर अभी नहीं बने थे. ऐसा लगता था कि बदमाशों के द्वारा उसे कहीं से अगवा कर के वहां लाया गया होगा और घटना को वहीं पर अंजाम दिया गया. ऐसा इसलिए कि झाड़ियों के पीछे की घासपतवार और पौधे रौंदे हुए थे. एक चप्पल थी और जूतों के निशान भी थे.

खैर छोड़िए भी इन बातों को. मुझे ड्यूटी पर आए अभी एक ही घंटा हुआ था कि ट्रैफिक पुलिस के एक जवान ने मुझे सूचित किया था कि अमुक जगह किसी की लाश पड़ी है. वह अपनी ड्यूटी पर जा रहा था. मैं ने आसपास खड़े लोगों से जानना चाहा कि वे उसे पहचानते हैं या नहीं? उन्हें कुछ पता था या कुछ पता हो तो जानकारी दें, परंतु सब ने मुंह लटका कर एक ही बात कही कि उन्हें कुछ पता नहीं.

कांस्टेबलों ने मृतका के शरीर को सीधा किया तो उस का चेहरा दिखाई पड़ा. चेहरा देखते ही मैं उसे पहचान गया. विवाह के पिछले सीजन में वह मुझे मिली थी, परंतु मुझे उस का नाम नहीं याद आ रहा था…

मैं ने दिमाग पर जोर डाला कि उस का नाम क्या है? उसी समय नरेश ने जीप स्टार्ट कर दी और मुझे चलने कहा. डैड बौडी को मैं ने पोस्टमार्टम के लिए भिजवा दिया. सब थानों को सूचित कर दिया कि यदि इस मामले में उन के पास किसी ने लड़की के गुमशुदा होने की एफआईआर की हो या करने आए तो मुझे जानकारी दी जाए.

कुछ फाइलें थीं उन्हें निबटाने के बाद मेरा ध्यान एक बार फिर से उस पर गया ही था कि फोन आ गया और एक बार मैं फिर से कुछ देर के लिए व्यस्त हो गया.

मुझे याद आया कि उस का नाम कामिनी था. डीजे वाली गाड़ी के पीछे पिंजड़े का आकार दे कर उस में एक नर्तकी को बंद कर उस के नाच देखने का प्रचलन पिछले कुछ वर्षों से चल पड़ा है. गीत बजाए जाते हैं और बाहर चल रहे बराती भी उस धुन पर नाचते हैं. जाली और ग्रिल में जगहजगह हाथ डालने लायक जगह रहती है और लोग उस से हो कर उस नर्तकी पर रुपए फेंकते हैं. स्पष्टतः इन सब की आड़ में छेड़छाड़ और अन्य अशोभनीय बातें भी होती हैं. कामिनी उस में नाचती थी.

यह याद आते ही मैं ने उस एरिया के थाने को सूचित किया, जहां इस तरह के डीजे वाले अपनी गाड़ियां खड़ी किया करते थे.

कुछ ही देर में एक थाने से फोन आया कि कामिनी के लापता होने की रिपोर्ट वहां किसी ने लिखाई थी.

मेरा मस्तिष्क एक वर्ष पहले घटी घटना पर स्थिर था. गरमियों के दिन थे और शादीब्याह का मौसम चल रहा था. उस दिन मेरी रात की ड्यूटी थी. पैट्रोलिंग वाले मेरे साथी और कांस्टेबल अपनी ड्यूटी पर जा चुके थे. रात के लगभग साढ़े 12 बजे थे. उसी समय कामिनी बदहवास हालत में थाने आई थी. वह चाह रही थी कि उस की एफआईआर लिखी जाए. उस के चेहरे पर किसी ने काट खाया था. उस के साथ उस के ग्रुप के और अन्य लोग भी थे. वे उसे समझा रहे थे कि इस तरह की घटनाएं होती ही रहती हैं और उसे व्यर्थ में बवाल खड़ा करने की आवश्यकता नहीं है.

वह बहुत ज्यादा डरी हुई थी और गुस्से में भी थी. गुस्से में उस ने अपने ग्रुप के लोगों को चिल्ला कर कहा था कि सब उसे अकेला छोड़ दें. मैं ने उन्हें समझाया था कि वे बाहर बैठें और उसे थोड़ी देर संभलने और शांत होने का मौका दें. वह कुछ देर तक रोती रही और मैं उसे समझाने का प्रयास करता रहा.

“पहले शांत हो जाओ. उन लोगों को कड़ी से कड़ी सजा हो, यही मेरी कोशिश रहेगी. तुम्हारा नाम क्या है?”

“कामिनी,’’ उस ने अपना सिर अपने घुटने पर टिका रखा था.

“कितनी उम्र है तुम्हारी? इस छोटी उम्र में इस पेशे में आने की क्या आवश्यकता आ पड़ी? कैसे आ गई, बताओ?”

वह धीरेधीरे खुलती गई और मैं उसे समझाता रहा. उस का घर वर्दवान से कुछ दूर दिउरी गांव में था. मातापिता दोनों मजदूरी करते थे. एक छोटा भाई और एक छोटी बहन भी थी. घर का खर्च बड़ी मुश्किल से चलता था. उस का रंग साफ था और देखने में वह अच्छी थी. गांव के एकमात्र सरकारी स्कूल में उस समय वह 5वीं कक्षा में पढ़ रही थी.

दुर्गा पूजा के अवसर पर चंदा जमा करने के लिए स्कूल के पीछे वाले मैदान में टैलीविजन पर फिल्में दिखाई जा रही थीं. आगे बैठने वाले से 10 और उस के पीछे वालों से 5 रुपए लिए गए. आसपास के घरों के लोग छत पर बैठ कर इस का आनंद लिया करते.

एक फिल्म में हीरोइन ने जो नाच किया, कुसुम ने उस की नकल अपने साथियों के बीच की. स्कूल में तो सभी उस की कला से प्रसन्न हुए थे, परंतु मां ने तमाचे लगा दिए थे और बापू ने डांटा था. वह बहुत क्रोधित हुई थी, फिर भी यदाकदा उस का नाचना नहीं रुका था. किसी भी पूजापाठ में नृत्यसंगीत का प्रचलन था और उस अवसर पर सभी उसे नाचने को कहते. मां भी मना नहीं करती. वह नाचती. नृत्य और संगीत से इसी तरह वह जुड़ती गई.

नई पीढ़ी के किशोरों में गर्लफ्रैंड और ब्वायफ्रैंड रखने का चलन शहरों से शुरू हो कर गांव तक पहुंच चुका है. एक बार वह किसी रिश्तेदार के यहां विवाह में वर्दवान गई थी, तो पहली बार उस ने ऐसा ही कुछ देखा था.

शाम के धुंधलके में कई जोड़े पोखर के किनारे बैठे थे. कुछ मर्यादित थे और कुछ… उस ने अपने गांव में भी शाम के समय डीह पर ऐसे कुछ जोड़ों को प्रायः बैठे हुए देखा था.

स्कूल में 9वीं कक्षा में पढ़ने वाले एक लड़के से उस की दोस्ती हो गई. उस उम्र में उस लड़के में कुछ बुरा भी नहीं था और वह देखने में भी सुदर्शन था. एकदो बार वह किसी रिश्तेदार के यहां विवाह में शहर गया था. उस ने वहां जोकुछ देखा था, उसी के आधार पर उस ने कामिनी को बताया कि वह चाहे तो उस की कला को पंख लग सकते हैं. पहले लोग संतोष को परमसुख मानते थे, परंतु आज तो कहा जाता है, सपने देखोगे तभी तो उसे पूरा कर सकते हो.

सारांश यह कि चादर से बाहर पैर निकालना होगा, तभी तो नए चादर खरीदने की बात सोची जा सकती है. एक वर्ष तक वह मां से छिपछिप कर उस के साथ रही और किशोरवय का रसपान किया. 10वीं कक्षा के बाद वह पढ़ने के लिए शहर चला गया और जबजब आता उस से भेंट करता.

3-4 वर्षों का समय गुजर गया. आंखों में सपने तो तैर ही रहे थे. उस ने योजना बनाई कि कामिनी शहर चलने की सोचे तो रुपए कमाना आसान होगा. पहले तो कामिनी डर गई, कहां रहेगी, क्या खाएगी? तारक नाम था उस का, वह सबकुछ पता कर के आया था. उस ने एक आरकेस्ट्रा पार्टी में उस के लिए बात की थी. एक दिन वह उसी के साथ अनजान डगर पर चल पड़ी. सप्ताहभर वह किसी तरह उस के साथ रही.

तारक ने वहां झूठ कहा था कि वह उस की बहन है. इन चंद दिनों में उस ने समझ लिया कि अब वह कभी घर नहीं लौट सकेगी. बहुत रोई, लेकिन अब हो भी क्या सकता था? गनीमत यह थी कि तारक ने उसे और कहीं नहीं जोड़ कर शहर के जानमाने ‘सुंदरी’ आरकेस्ट्रा पार्टी से जोड़ दिया. आरकेस्ट्रा पार्टी का संचालन सुंदरी नाम की महिला करती थी. उस आरकेस्ट्रा में 10 की संख्या में लड़कियां थीं.

तारक की इच्छा थी कि वह उस के साथ रहे, परंतु उसे पता था कि अविवाहित जोड़े को कहीं रहने के लिए जगह नहीं मिलेगी. कामिनी आरकेस्ट्रा की सहेलियों के साथ रहने लगी. उस ने अपने तारक को कहा था कि वह उस से विवाह कर ले तब साथ रहेगी.

इस पर तारक ने समझाया था कि वह कुछ कमाने लग जाए, तब ही तो विवाह कर सकता है. इन कुछ दिनों ने कामिनी को बहुत समझदार बना दिया था. वह जानती थी कि घर से कोई उस की खोजखबर नहीं लेगा और नाबालिग लड़की का किसी लड़के के साथ इस तरह रहना समाज कभी भी नहीं स्वीकार करेगा. उस के ब्वायफ्रैंड को भी उस की बात सही लगी थी.

उस की नई सहेलियों ने अपने विषय में जो कुछ उसे बताया, उसे सुन कर उस ने अपने भाग्य को सराहा था कि अब तक उस के ब्वायफ्रैंड ने उसे सिर्फ अपने तक सीमित रखा था. समय निकाल कर वे मिलते रहते और भविष्य के सपने देखने से नहीं चूकते.

तारक से उस को अपने गांव और मांबाप की जानकारी मिलती रहती. उस के माध्यम से उस ने घर पर कहला भेजा था कि वह शहर में काम कर रही है. उस के मांबाप उस के लिए ज्यादा चिंतित भी नहीं थे.

तारक ने बताया था कि वे लोग उस की तरफ़ से निश्चिंत हो गए हैं. उन का यह भी सोचना था कि कम से कम उस के विवाह के लिए अब उन्हें नहीं सोचना है.

तारक ने ही बताया कि उस की मां ने उस से पूछा था कि क्या उन्होंने विवाह कर लिया है? कामिनी ने उस की आंखों में फिर से देखा था, जिन में भविष्य के सपने थे. तारक ने उस की मां को कहा कि अभी तो नहीं, परंतु कोई काम पर लग जाए तो कर लेगा.

एक बार कामिनी ने कुछ रुपए और एक सस्ता सा मोबाइल फोन भी घर पर भिजवाया था. मां से उस ने फोन पर बात की थी. मां ने सबकुछ बताया था कि रुपए उसे मिलते रहे थे.

कामिनी का अपने तारक पर विश्वास और बढ़ गया था. उस ने स्वयं से कहा था कि दूसरा होता तो अब तक उस के भेजे पैसे बीच में ही हड़प जाता.

मैं ने उसे सांत्वना दी थी कि मैं उन बदमाशों की खबर लूंगा. मेरे सहानुभूतिपूर्ण व्यवहार ने उसे शांत कर दिया था. मैं रिपोर्ट लिखने जा रहा था कि उस ने मना कर दिया था.

मैं ने उस से कहा था कि उसे रिपोर्ट लिखा देनी चाहिए और उस ने मुझे कहा था कि अभी इस सीजन में उस के ग्रुप ने और बहुत से काम ले रखे हैं. अभी तो वैवाहिक मौसम शुरू ही हुआ था और वह इसलिए इन उलझनों में फंसना नहीं चाहती है. इधर समस्याओं में उलझ गई तो फिर दौड़धूप करना पड़ेगा और फिर रुपए कैसे कमा सकेगी? वह उठ खड़ी हुई मुझ से विदा लेने के लिए.

“तुम्हें कभी आवश्यकता पड़े तो यहां आ सकती हो या फिर फोन कर सकती हो.’’

“नमस्ते सर. आप पुलिस वालों में सब आप जैसे नहीं होते.’’

“हर पेशे में अच्छेबुरे लोग होते ही हैं. तुम जो काम कर रही हो, उस में भी सब तुम्हारे जैसे नहीं होते. तुम्हें जो ब्वायफ्रैंड मिला उस जैसा भी तो सबों का ब्वायफ्रैंड नहीं होता. फिर भी तुम्हें इतना अवश्य कहूंगा कि यह सब छोड़ दो. अच्छा रहेगा तुम्हारे लिए. इतनी तो तुम्हें भी समझ है कि जिस राह पर तुम चल रही हो, वह अच्छी नहीं है. दुनिया में और भी कई रास्ते हैं कमाने के लिए. क्या पता कि आगे चल कर तुम्हें और दलदल मिले?”

“कुदरत ने आदमी को बनाया है और सारे पेशे तो आदमी ने बनाए. अब इस से निकल पाना संभव नहीं है मेरे लिए.’’

“प्रयास करो… कुछ भी असंभव नहीं होता.’’

“कौन सी नौकरी मिलेगी मुझे?”

“बहुत से काम हैं…’’

“इस समाज में बदचलन पुरुष को काम मिल सकता है, पर बदचलन लड़की के लिए बदचलनी के सिवा कोई काम नहीं है.’’

“ऐसा क्यों सोचती हो? घर लौट जाओ.’’

“ताकि मांबाप पर फिर से बोझ बन जाऊं…? उन्हें पता है कि मैं कमा रही हूं. पैसे भेज रही हूं. घर छोड़े दूसरा साल है. कभी किसी ने कहा कि कम्मो इस पूजा में घर आ जा? गरीबी सबकुछ निगल जाती है.’’

“फिर भी वह तुम्हारा घर है.’’

“हमारे घर नहीं होते, सर. मैं अभी एडल्ट नहीं हुई. मैं जहां हूं, जैसी हूं सही हूं. शहर और संसर्ग ने बहुतकुछ सिखा दिया है. मैं जानती हूं, आप से मदद ली तो आप रिमांड होम भेज देंगे यानी कड़ाही से निकल कर आग में. कौन सा रिमांड होम और कौन सी सुरक्षित जगह बची है? मां के पेट में ही बेटियां मार दी जाती हैं. आप भी सलाह दे रहे हैं. आप की सलाह अच्छी भी है. सब हमें ही सलाह देते हैं. कोई पुरुषों को सलाह क्यों नहीं देता?

“प्रशासन को तो सब पता ही होगा, तब यह डीजे वाली गाड़ी का प्रचलन ही कैसे हुआ? मुझ सी लड़कियां नाचती हैं. नोट देने के बहाने क्याक्या होता है ऐसे नाच में, आप लोगों को नहीं पता है क्या… कैसे गंदे इशारे करते हैं लोग, आप क्या जानें? सरेआम भवें टेढ़ी कर साथ चलने का इशारा करते हैं, वह भी तर्जनी पर नोट टिका कर, इस का मतलब समझते हैं न आप…?’’

मैं पथराई आंखों से उसे बाहर जाते हुए देखता रहा.

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