आज के समय में परिवार छोटे होते जा रहे हैं जबकि पहले परिवार बड़े होते थे. एक परिवार में तीनचार पीढि़यां भी एकसाथ रहती थीं. भाईबहन अब के मुकाबले अधिक होते थे. यानी, हमें एक बड़े परिवार में रहने की आदत थी. सब मिल कर कारोबार करते थे. नई पीढि़यां उसी कारोबार में जुड़ती जाती थीं पर जरा सोचिए, क्या उन बड़े परिवारों में सबकुछ सही था? क्या उन परिवारों में रहने वालों में आपसी प्यार था?

भारत में संयुक्त परिवारों के भीतर कई संपत्ति विवाद देखे गए हैं. राजनेताओं, रईस खानदानों, सैलिब्रिटीज और बड़ेबड़े उद्योगपतियों के यहां भी ऐसे विवाद आएदिन सामने आते रहते हैं. उन की जिंदगी के भी पारिवारिक ?ागड़ों और विवादों ने सुर्खियां बटोरी हैं. वहीं, कई ऐसे भी नामीगिरामी परिवार हैं जिन की एकता और प्रेम ने उन के बिजनैस को ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया.

उदाहरण के लिए रिलायंस इंडस्ट्रीज के संस्थापक धीरूभाई अंबानी रिश्तों को बहुत तवज्जुह देते थे. हालांकि अपने निधन से पहले वे एक बड़ी गलती कर गए. अपने जीतेजी उन्होंने बेटों के नाम वसीयत नहीं की. इसी के कारण मुकेश और अनिल के बीच रिश्ते दरक गए. धीरूभाई ने सोचा भी नहीं होगा कि एकदूसरे पर जान छिड़कने वाले मुकेश और अनिल एकदूसरे के प्रतिद्वंद्वी बन जाएंगे.

वर्ष 2002 में धीरूभाई के आंख मूंदते ही भाइयों में कारोबारी वर्चस्व की जंग शुरू हो गई. आखिरकार, 2005 में रिलायंस ग्रुप के बंटवारे के बाद ही चीजें शांत पड़ीं. लेकिन तब तक भाइयों में फांस पैदा हो चुकी थी और परिवार टूट गया था. यही वजह है कि अपने पिता के निधन के बाद से मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी अकसर एकदूसरे से नजरें नहीं मिला पाते. फिलहाल हालात कुछ सुधरे हैं, मगर समस्याएं अभी भी हैं.

इसी तरह भारतीय मूल का हिंदुजा ग्रुप पिछले 100 वर्षों से दुनिया के अलगअलग देशों में व्यापार कर रहा है लेकिन पिछले कुछ वर्षों में हिंदुजा बंधुओं के बीच संपत्ति को ले कर विवाद बना हुआ है. करीब 1,400 अरब रुपए की दौलत वाले और 38 देशों में कारोबार करने वाले हिंदुजा ग्रुप में 8 साल से ज्यादा समय तक पारिवारिक संपत्ति के बंटवारे का विवाद चला, बाद में परिवार के सदस्यों ने आपसी सुलह करने का फैसला किया.

विवाद की शुरुआत 2014 में सम?ाते के बाद हुई जब हिंदुजा समूह के संस्थापक दीपचंद हिंदुजा के 4 बेटों श्रीचंद, गोपीचंद, प्रकाश और अशोक के बीच हुए सम?ाते में कहा गया था कि एक भाई के नाम पर रखी गई संपत्ति एक की नहीं, बल्कि चारों भाइयों की होगी. सम?ाते के करीब एक साल बाद हिंदुजा भाइयों में सब से बड़े श्रीचंद हिंदुजा ने हिंदुजा बैंक औफ स्विट्जरलैंड पर अकेले स्वामित्व का दावा किया था. इस के लिए उन्होंने हाईकोर्ट में अपने तीनों भाइयों पर केस कर दिया था. दशकों से संयुक्त परिवार की तरह रहने वाली फैमिली में संपत्ति को ले कर शुरू हुए विवाद को देख कर लोग अचरज में पड़ गए थे.

ऐसा ही कुछ हुआ फैशन के क्षेत्र में 100 साल से भी ज्यादा पुराने और जानेमाने ब्रैंड रेमंड से जुड़े उद्योगपति सिंघानिया फैमिली के साथ. महाराष्ट्र के ठाणे में साल 1900 में रेमंड की शुरुआत वूलन मिल के रूप में हुई थी. धीरेधीरे कंपनी फेमस होने लगी. साल 1980 में रेमंड की कमान विजयपत सिंघानिया के हाथों में आई जिन्होंने भारत के बाहर भी इस कारोबार को बढ़ाया.

बापबेटे के बीच विवाद

साल 2015 में विजयपत सिंघानिया ने अपने बेटे गौतम सिंघानिया को अपने सारे शेयर और लगभग 12 हजार करोड़ रुपए की कंपनी दे दी. यहीं से विवाद शुरू हुआ. दरअसल, बापबेटों के बीच एक फ्लैट को ले कर विवाद शुरू हुआ. पिता उस फ्लैट को बेचना चाहते थे लेकिन गौतम नहीं. विवाद इतना बढ़ गया कि इस व्यावसायिक घराने के बापबेटे की लड़ाई लोगों के सामने आ गई. बाद में मध्यस्थता द्वारा पारिवारिक संपत्तियों को तीनतरफा विभाजित करने के बाद सिंघानिया परिवार समूहों के बीच विवाद समाप्त हो गया.

विजयपत सिंघानिया ने अपनी आत्मकथा ‘ऐन इन्कम्प्लीट लाइफ’ में अपना दर्द बयां किया. विवाद की वजह से उन्हें अपना काम और पैतृक घर छोड़ना पड़ा था. किताब में उन्होंने लिखा कि अपने जीवन में जो सब से बड़े सबक सीखे उन में से एक यह है कि किसी को जीवित रहते अपनी संपत्ति अपने बच्चों को देते समय सावधान रहना चाहिए.

यही हाल रैनबैक्सी ग्रुप का भी रहा. दादा मोहन सिंह ने 1950 में रैनबैक्सी की कमान संभाली थी, जिस की विरासत बाद में उन के बेटे परविंदर सिंह को मिली. परविंदर के बेटे मलविंदर और शिविंदर ने रैनबैक्सी को कुछ साल पहले बेच कर हौस्पिटल्स, टैस्ट लैबोरेटरीज, फाइनैंस और अन्य सैक्टर्स में डायवर्सिफाई किया. दोनों भाइयों ने करीब 10 हजार करोड़ रुपए में रैनबैक्सी को एक जापानी कंपनी के हाथों बेचा था. आज ग्रुप पर करीब 13 हजार करोड़ रुपए का कर्ज चढ़ चुका है. कारोबार के मामले में गर्दिश के दौर से गुजर रहे रैनबैक्सी लैबोरेट्रीज के पूर्व प्रमोटर और फोर्टिस हौस्पिटल्स के फाउंडर शिविंदर सिंह ने अपने बड़े भाई मालविंदर सिंह के खिलाफ कोर्ट में मामला दायर कराया.

भारत की सब से बड़ी लौ फर्म अमरचंद मंगलदास एंड सुरेश श्रौफ एंड कंपनी 2015 में परस्पर विरोधी भाइयों सिरिल श्रौफ और शार्दुल श्रौफ के बीच विभाजित हो गई थी. शार्दुल और सिरिल की मां ने कंपनी में अपनी हिस्सेदारी की वसीयत बड़े के पक्ष में कर दी थी, जिस के कारण दोनों भाइयों के बीच कानूनी टकराव हुआ. मगर बाद में मामला सुल?ा गया और कंपनी का बंटवारा हो गया.

किर्लोस्कर समूह के संरक्षक एस एल किर्लोस्कर की मृत्यु के बाद हुई ?ाड़पों के बाद समूह परिवार में विभाजित हो गया. विजय आर किर्लोस्कर अपने स्वयं के दृष्टिकोण और व्यावसायिक लक्ष्यों को आगे बढ़ाने के लिए समूह से बाहर हो गए.

वहीं, हाल ही में दक्षिण भारत के बड़े बिजनैस समूह मुरुगप्पा ग्रुप का पारिवारिक विवाद सुल?ा है. परिवार ने 20 अगस्त को ऐलान किया कि जो भी विवाद था उसे आपसी सहमति से सुल?ा लिया गया है. दरअसल, यह पारिवारिक विवाद साल 2017 में मुरुगप्पा ग्रुप के चेयरमैन एम वी मुरुगप्पा के निधन के बाद शुरू हुआ था. एम वी मुरुगप्पा ने एक विल छोड़ी थी जिस में उन्होंने अपना हिस्सा अपनी पत्नी और बेटियों के नाम किया था. हालांकि परिवार ने उन की पत्नी या बेटियों को महिला होने की वजह से बोर्ड में जगह देने से इनकार कर दिया था. मुरुगप्पा ग्रुप की शुरुआत वर्ष 1900 में हुई थी. फिलहाल मुरुगप्पा परिवार की 5वीं पीढ़ी कंपनी संभाल रही है. मुरुगप्पा गु्रप औफ कंपनीज में 28 कंपनियां हैं.

भारत के बड़े कारोबारी समूहों में से एक गोदरेज ग्रुप में भी आपसी सम?ौते से बंटवारा होने जा रहा है. 126 साल पुराने गोदरेज ग्रुप के पास लगभग 1.76 लाख करोड़ रुपए की संपत्ति है. यह गोदरेज ग्रुप जल्द ही मुख्य रूप से 2 भागों में बंटने वाला है. पहला भाग है- गोदरेज इंडस्ट्रीज एंड एसोसिएट्स, जिस की अगुआई आदी और नासिर गोदरेज कर रहे हैं. ये दोनों भाई हैं. वहीं, दूसरा भाग है- गोदरेज एंड बौयस मैन्युफैक्चरिंग कंपनी, जिस की अगुआई उन के कजिन जमशेद गोदरेज और स्मिता गोदरेज कृष्णा कर रहे हैं.

ऐसे ही विदेशों के भी कई हाई प्रोफाइल उदाहरण हैं जहां रिश्ते खराब हुए. परिवार में विवाद के कारण ही स्पोर्ट्सवियर के 2 मशहूर ब्रैंड्स- प्यूमा और एडिडास का जन्म हुआ. प्यूमा एसई एक जरमन बहुराष्ट्रीय निगम है जो एथलैटिक और कैजुअल जूते, परिधान आदि डिजाइन व निर्माण करता है और जिस का मुख्यालय जरमनी में है. प्यूमा दुनिया की तीसरी सब से बड़ी स्पोर्ट्सवियर निर्माता है.

कंपनी की स्थापना 1948 में रुडौल्फ डैस्लर द्वारा की गई थी. 1924 में रुडौल्फ और उन के भाई एडौल्फ ‘आदी’ डैस्लर ने संयुक्त रूप से कंपनी ‘डैसलर ब्रदर्स शू फैक्ट्री’ बनाई थी. बाद में दोनों भाइयों के बीच रिश्ते खराब हो गए. वे 1948 में विभाजित होने के लिए सहमत हो गए और 2 अलग संस्थाएं, एडिडास और प्यूमा बन गईं. विभाजन के बाद प्यूमा और एडिडास के बीच भयंकर और कड़वी प्रतिद्वंद्विता शुरू हो गई.

सैमसंग में भी परिवार का ?ागड़ा और विरासत का संकट हुआ. इसी तरह आस्ट्रेलिया की अरबपति खनन कारोबारी गिना राइन हार्ट ने अपने परिजनों के खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ी. हाल में ही प्रिंस हैरी और मेगन मर्केल ब्रिटेन के शाही परिवार की वरिष्ठ सदस्यता से अलग हुए तो लोग सोच में पड़ गए. परिवार से अलग होना मुश्किल फैसला होता है क्योंकि वहां भावनात्मक मुद्दे जुड़े होते हैं.

दरअसल, पारिवारिक व्यवसायों में भरोसे की वजह से अहम कानूनी औपचारिकताओं को नजरअंदाज किया जाता है. जब सभी लोग खुश होते हैं तो कानूनी दस्तावेज बनाने की नहीं सोचते. हाथ मिलाने और मौखिक वादे पर ही एतबार कर लेते हैं. लेकिन जब चीजें बिगड़ने लगती हैं तो सम?ाते को साबित करने वाले कागजात नहीं होते. ऐसे में समस्याएं पैदा होती हैं.

वैसे, परिवार के साथ बना कर रखा जाए तो नजारा कुछ और ही होता है. यह बात जापान की होशी रयोकन ने साबित की है. 46 पीढि़यों से एक ही परिवार इस कंपनी को चला रहा है. होशी एक रयोकन यानी जापानी पारंपरिक सराय है जिस की स्थापना 718 में जापान के इशिकावा प्रांत में हुई थी. इस का स्वामित्व और प्रबंधन होशी परिवार द्वारा 46 पीढि़यों से किया जा रहा है. वहीं, रिटेल जायंट वालमार्ट भी समस्याओं से अछूता नहीं है लेकिन आज भी संस्थापक सैम वाल्टन के वंशज करीब 50 फीसदी हिस्से के मालिक हैं. परिवार में कोई विवाद हो भी तो खबरों में नहीं आ पाता. आस्ट्रेलिया में 70 फीसदी कंपनियां परिवार के स्वामित्व में हैं.

सदियों पहले भी यही हालात थे हमारी पौराणिक कहानियों में एक बात साफ नजर आती है कि उस समय परिवार काफी बड़े थे मगर उन में प्यार नहीं था. यह बात किसी से छिपी नहीं है कि रामायण-महाभारत काल में भी परिवारों को कभी सुकून नहीं मिला. आप महाभारत काल का उदाहरण लें या फिर रामायण काल का, दोनों में ही परिवार के सदस्य एकदूसरे से लड़ते?ागड़ते, मारकाट या साजिश करते ही दिखेंगे. चाहे महाभारत में कौरव और पांडव यानी भाइयों का ?ागड़ा हो या फिर रामायण में कैकेई जैसे किरदारों का चित्रण. हमें यही नजर आता है कि वे एकदूसरे के अहित में अपना हित देखते थे.

पांडव हमेशा कौरवों की आंखों में गड़ते रहे. इस चक्कर में महायुद्ध हुआ और हर तरफ नाश का तांडव मचा. इसी तरह अपने बेटे भरत के लिए कैकेई ने जिस तरह मंथरा के झासे में आ कर तूफान खड़ा किया और उस के बाद जैसे पूरे परिवार का बिखरना तय हो गया, वह क्या दर्शाता है? यही न कि राजामहाराजाओं के आलीशान महलों और बड़े खानदानों में भी सुकून नहीं था.

तो क्या हम यह समझे कि हमारे जींस में पारिवारिक द्वेष, हिंसा, ?ागड़ा जैसी प्रवृत्तियां घुसी हुई हैं? अगर ऐसा है भी, तो ध्यान रखें कि हमारी वर्तमान सोच तर्क और विवेक पर आधारित होनी चाहिए. हम ने बौद्धिक रूप से काफी सफलताएं हासिल की हैं. ऐसे में हमें इस मामले में भी अपनी सोच तार्किक रखनी होगी.

तर्क यह कहता है कि अभी के समय में हमारे परिवार छोटे हैं. ऐसे में और भी ज्यादा जरूरी है कि जो थोड़े से लोग परिवार में हैं वे कम से कम एकदूसरे के साथ खड़े रहें. परिवार छोटे हैं, इसलिए हमें अपने रिश्तों को संभाल कर रखना होगा. याद रखें, आपसी वैर और द्वेष से किसी का भला नहीं होता, सब खत्म हो जाता है. जबकि, प्यार के सहारे आप बड़ी से बड़ी मुश्किल भी आसानी से पार कर जाते हैं.

सफलता के लिए प्यार जरूरी

दुनियाभर की दोतिहाई कंपनियां परिवारों द्वारा चलाई जाती हैं. उन में काम करने के कई फायदे हो सकते हैं. 2014 की फैमिली बिजनैस सर्वे रिपोर्ट में प्राइस वाटरहाउस कूपर्स ने लिखा था कि रिश्तों के साथ काम करना विश्वास और प्रतिबद्धता का ऊंचा स्तर पैदा कर सकता है लेकिन वहीं यह तनाव, नाराजगी और खुले संघर्ष की ओर भी ले जा सकता है क्योंकि लोगों को दिल और दिमाग अलग रखने व कारोबार एवं परिवार दोनों को सफल बनाने में मुश्किल होती है.

कैरियर के साथ मन के सुकून के लिए भी बेहतर है कि आप संबंधों को न बिगाड़ें. पारिवारिक कारोबार में यह और जरूरी होता है क्योंकि सभी से जिंदगीभर आप का वास्ता रहने वाला है. संबंध बिगड़ भी गए हैं तो प्रयास कर के उन्हें सुधार लें.

राजनीतिक गलियारे में परिवारवाद

राजनीतिक गलियारे की बात करें तो अकसर कांग्रेस पर परिवारवाद को बढ़ावा देने के इलजाम लगते रहते हैं. नेहरू, इंदिरा, राजीव, सोनिया और फिर राहुल व प्रियंका के राजनीतिक सफर को वंशवाद या परिवारवाद का नाम दिया जाता है मगर जरा सोचें कि इस में बुराई क्या है? अगर एक ही परिवार से आने वाली नई पीढि़यां राजनीति या किसी भी क्षेत्र में आगे बढ़ती हैं तो

उन्हें काफी फायदा होता है. उन्हें सही मार्गदर्शन मिलता है और वे माहौल से पूरी तरह परिचित होते हैं. उन्हें पता होता है कि आगे क्या करना है. उन्हें अनुभव का लाभ मिलता है. उन का सफर आसान हो जाता है और वे ज्यादा समर्थ बन पाते हैं. नेहरू खानदान ने हमेशा इसी हकीकत को दर्शाया है.

बड़ेबड़े और रईस खानदानों व सैलिब्रिटीज की जिंदगी के भी पारिवारिक ?ागड़ों व विवादों ने सुर्खियां बटोरी हैं जबकि कई ऐसे भी नामीगिरामी परिवार हैं जिन की एकता व प्रेम ने उन के बिजनैस को ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया.

क्या करें

जो जैसा है, वैसा रहने दें : हर इंसान दूसरे से अलग होता है. आप के परिवार में भी संभव है कि सब की सोच और रहनसहन का तरीका अलग हो. ऐसे में अगर आप को किसी की कोई बात सही न लगती हो तो बारबार उस से ?ागड़ने या उसे सम?ाने के बजाय उसे अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जीने दें. आप ज्यादा सोचेंगे तो आप का सुकून तो जाएगा ही, रिश्ता भी खराब होगा.

बेहतर है कि दूसरों को टोकने से बचें. जरा सोचिए, सफर के दौरान आप मैट्रो/सड़क/औफिस में किसी से कुछ नहीं कहते. जो जैसा है या जैसा कर रहा है उसे वैसा रहने देते हैं. कोई म्यूजिक सुन रहा है, कोई बातें कर रहा है, कोई टेढ़ा हो कर बैठा है और कोई फोन में लगा है. आप सब के साथ चलते हैं, सब की तरफ देखते भी रहते हैं मगर किसी को टोकते नहीं. ऐसी ही मनोवृत्ति परिवार के सदस्यों के साथ भी रखें.

इसी तरह मान लीजिए कि राजधानी ऐक्सप्रैस ट्रेन में आप सफर कर रहे हैं. आप की सीट का बीच वाला शख्स हल्ला मचा रहा है कि खाना ठंडा है या कौफी में शुगर कम है आदि. जबकि आप आराम से खाना खा कर बैठे हो और उस की बातें आप को इरिटेट कर रही हैं फिर भी आप कुछ नहीं कहते. कौर्नर वाली सीट का शख्स बारबार ऊपर वाले ड्रौयर से सामान निकाल और रख रहा है. वह आप को डिस्टर्ब करते हुए बारबार वाशरूम जा रहा है. तब भी आप कुछ नहीं कहते क्योंकि आप बेकार के ?ागड़ों में पड़ना नहीं चाहते.

आप को लगता है कि कुछ समय की बात है, फिर आप यहां से निकल ही जाओगे. ऐसा ही व्यवहार घर के लोगों के साथ भी रखें. अगर किसी सदस्य की वजह से आप को परेशानी हो रही है तो उसे इग्नोर करें और सोचें कि सारी जिंदगी तो वह साथ रहेगा नहीं और अगर रहे भी तो उस की खूबियां देखें और गलतियों को नजरअंदाज करें. परिवार में कोई सदस्य जैसा भी हो, उसे वैसा रहने दो.

कनैक्टेड रहें : आप भले ही घर से दूर रह रहे हों या आप ने बड़ी गाड़ी खरीद ली हो या आप की अच्छी जौब लग गई है पर दूसरों के आगे घमंड न करें और सब से कनैक्टेड रहें. इसी तरह यदि आप के पास छोटी गाड़ी हो, जबकि आप का भाई महंगी गाड़ी खरीद कर लाया है या उसे बहुत अच्छी जौब मिल गई है और उस की सैलरी आप से दोगुनी हो गई है तो भी उस से जलें नहीं.

कहने का मतलब यह है कि सब से मिल कर रहें. अपने साथ दूसरों की खुशियों में भी खुश रहें. आर्थिक मतभेद उभरने न दें. संपत्ति में हिस्सा चाहिए तो यह बात कहें. मगर रोजरोज इसे ले कर ?ागड़ें नहीं. आप परिवार की लड़की या बहन हैं. वर्ष 1956 और 2005 के एक्ट के अनुसार आप ने फैसला लिया है कि संपत्ति में से अपना हिस्सा लेंगी. इस के लिए आप जरूरी कदम उठाएं. लेकिन जब त्योहार का समय हो या सब मिल कर खुशियां मना रहे हों तब मन की नाराजगी को उभरने न दें. प्यार से मिल कर खुशियों का आनंद लें.

परिवार में किसी से जलें नहीं और न ही ईर्ष्या रखें. कोई दूर भले ही हो पर सब से संपर्क बना कर रखें. यह मत भूलें कि आप पर विपत्ति आएगी तो परिवार के यही लोग आप के काम आएंगे. पुलिस स्टेशन हो या अस्पताल, आप के परिवार वालों से ही बातें पूछी जाएंगी या उन के सहयोग से ही आप किसी भी तरह की मुश्किलों से निकल पाएंगे.

पुराने गिलेशिकवे दबा कर रखें : 34 साल की प्रभा की अपनी देवरानी से बनती नहीं है. उस की देवरानी आशा ज्यादा पढ़ीलिखी है और इस बात का वह घमंड भी दिखाती है. जबकि प्रभा घर के कामों में निपुण है और उसे आशा के तौरतरीके बिलकुल भी पसंद नहीं. पहले दोनों भाई एक घर में रहते थे मगर प्रभा और आशा के बढ़ते ?ागड़ों की वजह से छोटा भाई पास में ही अलग घर ले कर रहने लगा. अब आलम यह है कि प्रभा जब भी आशा के घर जाती है या तीजत्योहार में आशा ससुराल आती है तो दोनों की तकरार शुरू हो जाती है.

प्रभा आशा के कामों में हर समय कमी निकालती रहती है तो आशा के दिल का गुबार भी फूट पड़ता है. इस वजह से वह त्योहारों का भी मजा नहीं ले पाती. मगर जब एक बार प्रभा का ऐक्सिडैंट होता है तो आशा बहुत अच्छे से उसे संभालती है. उस का खयाल रखती है तब प्रभा समझती है कि अपने ही काम आते हैं. अब वह कभी भी प्रभा को बात नहीं सुनाती और हर तरह के गिलेशिकवे मन में दबा कर रखती है. इस से घर में प्यार और शांति लौट आती है.

आप भी इस बात का खयाल रखें कि किसी को बात सुना देना आसान है, मगर इस से रिश्तों में कड़वाहट आ जाती है जबकि प्यार रहे तो कमियां नजरअंदाज करना आसान होता है.

परिवार नहीं होगा तो झगड़ा किस से करोगे ?

आप किसी अकेले रह रहे शख्स से पूछिए कि वह अपने परिवार को कितना मिस करता है. परिवार होता है तो आप अपनों से ?ागड़ सकते हैं, उन्हें बात सुना सकते हैं. वहीं, सौरी कह कर फिर गले भी लग सकते हैं. परिवार के साथ गम आधा और खुशियां दोगुनी हो जाती हैं. परिवार ही नहीं होगा तो आप न झगड़ने का आनंद ले सकेंगे और न साथ खुशियां मनाने का. बस, दिल में एक कसक ही रह जाएगी. ऐसी स्थिति से बचना है तो अपने परिवार का खयाल रखें. रिश्तों को संभाल कर रखें.

आज के समय में कब कौन कहां फंस जाए ?

हकीकत यह है कि कब, किस तरह की विपत्ति आ जाए या कौन, कहां फंस जाए, कब किस का ऐक्सिडैंट हो जाए, कब आप को अपने बच्चों की जिम्मेदारी किसी और को सौंपनी पड़े, कब कोई बीमारी हो जाए या आप कहां किस तरह की धोखाधड़ी में फंस जाएं. ऐसे हालात में इंसान अपने परिवार की तरफ ही देखता है और परिवार ही आसरा बनता है. इसलिए परिवार की कीमत समझे.

घरपरिवार बचाना है तो अपने मतलब से बढ़ कर सोचें

हमेशा अपने मतलब की न सोचें. कभीकभी थोड़ा त्याग कर के आप परिवार से बहुत सारा प्यार व अपनापन पाते हैं जिस की कीमत नहीं आंकी जा सकती. इसलिए स्वार्थ से बढ़ कर परिवार के लिए सोचें. सब के आगे बढ़ने का सपना देखें. सब को अपना मानें. रिश्तों में एक ग्लू जरूरी है जो सब को बांध कर रखेगा.

फिल्मी हस्तियों के परिवारों में मनमुटाव

बौलीवुड में ऐसे कई सैलेब्स हैं जिन के परिवार से विवाद खुल कर सामने आए हैं :

  • कृष्णा अभिषेक

कृष्णा के अपने मामा गोविंदा से मतभेद हैं. कुछ समय पहले गोविंदा जब ‘द कपिल शर्मा शो’ में मेहमान बन कर पहुंचे तो कृष्णा शो का हिस्सा नहीं बने. दरअसल दोनों की तल्खी की वजह कृष्णा की पत्नी कश्मीरा शाह द्वारा किया गया सोशल मीडिया पर एक कमैंट है, जिसे गोविंदा से जोड़ कर देखने के बाद हंगामा मच गया था.

  • जान कुमार सानू

बिग बौस 14 के कंटैंस्टैंट जान कुमार सानू के अपने पिता कुमार सानू से संबंध बिलकुल ठीक नहीं हैं. दोनों के बीच आरोपप्रत्यारोपों का दौर चलता रहा है. जान को बचपन में पिता ने छोड़ दिया था और उन की परवरिश मां रीता ने की. वहीं पत्नी और बेटे को छोड़ कर कुमार सानू ने दूसरी शादी कर ली.

पिछले दिनों ‘बिग बौस’ में जान कुमार सानू द्वारा मराठी भाषा के अपमान के बाद पिता ने उन की परवरिश पर सवाल उठा दिए थे, जिस के बाद जान भड़क गए. तब से दोनों के बीच विवाद और गहराता गया.

  • अमीषा पटेल

2004 में अमीषा अपने परिवार पर अपनी कमाई का गलत इस्तेमाल करने का आरोप लगा चुकी हैं. उन्होंने अपने पिता के खिलाफ 12 करोड़ रुपए के हर्जाने का मुकदमा दायर कर दिया था. यह लड़ाई तब और बदतर हो गई जब अमीषा के रिश्ते डायरैक्टर विक्रम भट्ट से जुड़े. अमीषा ने मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में बताया था कि उन के मम्मीपापा नहीं चाहते थे कि वे विक्रम से मिलें या फिर उन से शादी करें. वे चाहते थे कि उन की शादी किसी पैसे वाले आदमी से हो. जब अमीषा ने उन से अपने पैसों के बारे में पूछा तो वे ?ागड़ने लगे.

  • कंगना रनौत

एक समय कंगना की अपने पिता अमरदीप रनौत से बिलकुल नहीं बनती थी. कंगना मौडलिंग और ऐक्ंिटग में अपना कैरियर बनाना चाहती थीं लेकिन पिता इस के सख्त खिलाफ थे. वे बेटी को डाक्टर बनाना चाहते थे. उन्होंने मैडिकल की पढ़ाई के लिए कंगना का एडमिशन चंडीगढ़ के डीएवी स्कूल में कराया था. कंगना को मौडलिंग पसंद थी. उन्होंने स्कूल जाना छोड़ दिया और होस्टल से पीजी में शिफ्ट हो गईं.

कंगना के घर से भागने और फिल्मों में काम करने की वजह से कंगना के पिता ने उन से सालों तक बात नहीं की थी. हालांकि अब बेटी की सफलता से पिता बेहद खुश हैं और दोनों के रिश्ते सुधर गए हैं.

  • नवाजुद्दीन सिद्दीकी

अपनी ऐक्टिंग के लिए पौपुलर नवाजुद्दीन पिछले कुछ दिनों से अपने भाई और एक्स वाइफ संग मतभेद के कारण चर्चा में बने हुए हैं. ऐक्टर के भाई शमास नवाब सिद्दीकी ने ऐक्टर पर आरोप लगाया कि उन्होंने अपने किसी भी भाई का कैरियर बनाने में मदद नहीं की. दोनों के बीच बात इतनी बढ़ गई कि हाल ही में नवाज अपनी बीमार मां से मिलने के लिए शमास के घर पर पहुंचे थे. लेकिन उन्होंने ऐक्टर को घर में घुसने नहीं दिया.

  • आमिर खान

आमिर खान बौलीवुड में मिस्टर परफैक्शनिस्ट के नाम से जाने जाते हैं. फिल्मों को बेहतर बनाने के लिए ऐक्टर कोई कसर नहीं छोड़ते, लेकिन रियल लाइफ में उन्हें अपनों संग बनाने में स्ट्रगल करना पड़ा.

  • रेखा

एवरग्रीन रेखा भी उन स्टार्स में से एक हैं जिन का उन के परिवार संग मनमुटाव रहा. ऐक्ट्रैस ने अपने एक इंटरव्यू में कहा था कि अपने पिता से उन के रिश्ते अच्छे नहीं थे. दोनों के बीच काफी लड़ाई होती थी.

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