प्रीत की आंख खुली, तो सरला की टूटीफूटी अंगरेजी में बात करने की अस्पष्ट सी आवाज कानों में पड़ी. संभवतः वह वार्डन से छुट्टी देने की विनती कर रही थी.

प्रीत की डिलीवरी हुए आज 10 दिन हो गए थे. आस्ट्रेलिया के सिडनी शहर का यह अस्पताल घर से तकरीबन एक घंटे की ड्राइव पर था. सबकुछ ठीकठाक हो गया था व नवजात शिशु और प्रीत दोनों की तबीयत भी बिलकुल ठीक थी. पता नहीं, अस्पताल वाले 2 दिन और क्यों रखना चाह रहे थे?

प्रीत की भाभी सरला के लिए घर अस्पताल दोनों मैनेज करना बहुत मुश्किल हो रहा था. वह पहली बार विदेश आई थी. यहां का रहनसहन, भाषा, तौरतरीके सब से बिलकुल अनजान.

सुबह का नाश्ता, अतुल का खाना और प्रीत के लिए सूप और दलिया बना कर 8 बजे वह तैयार हो जाती थी. ड्राइव करना उसे आता नहीं था, इसलिए कभी अतुल खुद छोड़ जाते या कभी उस के लिए कैब कर देते.

सरला के रूम में घुसते ही प्रीत ने पूछा, “क्या हुआ भाभी? मिल रही है क्या छुट्टी?”

“पता नहीं, वार्डन बात करेगी,” भाभी सरला ने प्रीत को बताया.

“चलो छोड़ो, लो बेबी की फीड का टाइम हो गया है,” उस ने नन्हे गोलमटोल से अंक को प्रीत की गोद में दे दिया और खुद उस के पास बैठ उस का सिर सहलाने लगी.

आज खुद मां बनने के बाद प्रीत ने पहली बार महसूस किया कि भाभी के प्यार में भी मां का दुलार ही झलक रहा था. बीता हुआ वक्त अचानक उस के सामने आ खड़ा हुआ.

कितना गलत सोचती थी प्रीत सरला के बारे में. हर वक्त उस ने उसे नीचा दिखाने, हंसी उड़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, पर सीधीसादी सरला ने कभी पलट कर जवाब नहीं दिया था. उस की निश्चल हंसी देख कर प्रीत कुढ़ कर रह जाती थी.

प्रीत और उसके बड़े भाई में 10 साल का अंतर था. भैया शुरू से ही शांत, गंभीर और पढ़ाकू टाइप के थे. कालेज के होनहार छात्रों में लोकप्रिय लेक्चरर. प्रीत बिल्कुल उलटी, चंचल, फैशनेबल, चुलबुली और अपनी हर बात मनवाने वाली. मांपापा और भैया की सब से लाड़ली थी प्रीत. मजाल है कि भैया उस की कोई बात टाल दे.

पर, उस दिन प्रीत का दिल शीशे की तरह चटक गया, जब मानव ने बताया कि वह गांव की अनाथ सरला से विवाह करेगा. उस ने तो पता नहीं अपने भैया की शादी के लिए क्याक्या सपने संजोए थे. भैया के लिए ऊंचे घराने की कई सुंदर लड़कियों के रिश्ते आ रहे थे. प्रीत की पसंद मम्मीपापा भी अपनी मुहर लगा देते. पर भैया…? उन पर तो जैसे किसी का रंग ही नहीं चढ़ता था.

3 साल से यही सिलसिला चल रहा था. कानपुर से कुछ दूर गांव में सरकार ने नया कालेज खोला था और भैया को 6 महीने के डैपुटेशन पर भेज दिया था. गांव के प्राइमरी स्कूल में भैया ने सरला को पहली बार देखा था हिंदी पढ़ाते हुए.

सांवले चेहरे पर मासूम सी बड़ीबड़ी आंखें, कमर तक लटकती ढीली सी चोटी, माथे पर छोटी सी बिंदी. सादी सी सूती साड़ी में एक ही बार में वह मानव को भा गई थी.

छोटे से गांव में 2-3 बार दोनों की मुलाकात हो गई थी. मानव उस के संस्कार और विचारों की स्पष्टता से बहुत प्रभावित था. सरला ने भी झुकी पलकों से आदर्शवादी मानव को अपना दिल दे दिया.

घर आ कर जब भैया ने इस संबंध की घोषणा की, तो मम्मीपापा और प्रीत तीनों जैसे सकते में आ गए थे.

प्रीत को तो ढाई सौ वाट का करंट लग गया था, पर मानव अपने निर्णय पर अटल था. धीरेधीरे पापा तो मान गए. मां को भी निराशा हुई थी, पर वे कुछ नहीं बोलीं.

लेकिन प्रीत, वह तो बिलकुल उखड़ गई थी. उस ने सब से बात करना बंद कर दिया था. विवाह आर्य समाज रीति से बिलकुल सादा समारोह में हुआ था. प्रीत बुझे मन से शादी में शामिल हुई थी. सरला का स्वागत भी ठंडाठंडा सा ही हुआ था ससुराल में.

प्रीत के रूप में एक छोटी बहन, सहेली मिल जाएगी, बहुत खुश थी. सरला पर प्रीत का व्यवहार देख कर उस का कोमल मन आहत हो गया था, पर उस ने अपने जज्बात दिल में ही दबा लिए थे.

सरला घर की जिम्मेदारियों में ऐसी रम गई थी, जैसे दूध में शक्कर. सब उस के शालीन व्यवहार के कायल हो गए थे. समय बीत रहा था, पर प्रीत के व्यवहार में कोई परिवर्तन नहीं आया.

शादी के 6 महीने बाद एक दिन पता चला कि मां को ब्रैस्ट कैंसर है और फिर शुरू हो गया कीमो, रेडियोथैरेपी और इलाज का लंबा सिलसिला. एक साल इसी में ही निकल गया. मां की जिद थी कि उन के सामने प्रीत की भी शादी हो जाए.

सरला ने मां की सेवा में कोई कमी नहीं छोड़ रखी थी. अपनी नई शादी के सुनहरे सपनों को सेमल के कोमल रेशों की तरफ फूंक मार कर हवा में उड़ाते हुए हर जिम्मेदारी अपने नाजुक कंधों पर उठा ली थी.

मां भी तो सरला… सरला आवाज देते थकती न थी. सरला का जैसेजैसे घर में प्रभाव बढ़ रहा था, प्रीत को लगता था मानो उस के अधिकारों पर किसी ने अतिक्रमण कर लिया है. पापा की आंखें बहू के आगे नम हो जाती थीं और मानव ऐसी सेवाभावी जीवनसाथी पा कर अपने को धन्य समझ रहा था. लेकिन, छोटी बहन प्रीत की नाराजगी अभी भी चट्टान जैसी कठोर थी, जिसे वह नहीं हिला सका था.

प्रीत के एमए फाइनल ईयर की परीक्षाएं नजदीक थीं. वह जानबूझ कर घर से बेखबर हो अधिक से अधिक समय कालेज में और अपनी पढ़ाई में बिता रही थी.

एक दिन शाम को सरला, मां को व्हीलचेयर पर लान में घुमा रही थी, पापा और मानव वहीं बैठ कर चाय पी रहे थे और तभी पापा के बचपन के दोस्त शर्मा अंकल गेट से दाखिल हुए.

“और भई, अकेलेअकेले चाय पी जा रही है. यार, कभीकभी दोस्तों को भी याद कर लिया करो. और भई मानव, कैसा चल रहा है तुम्हारा कालेज?”

“बढ़िया अंकल,” मानव ने शर्मा अंकल के पैर छूते हुए कहा, तभी मां और सरला भी पास आ गए.

“कैसी हैं अब हमारी भाभी?” शर्मा अंकल ने थोड़ा बैठते हुए मां से पूछा, तो मां फीकी सी हंसी हंस दी.

“भैया, इस बीमारी का तो नाम ही बुरा है, अब आप को तो सब पता है, पता नहीं, कब बुलावा आ जाए, प्रीत की शादी मेरी आंखों के सामने हो जाती तो मैं शांति से चली जाती.”

“ओहो भाभी, अभी ऊपर वाले के यहां हाउसफुल चल रहा है. आप का नंबर इतनी जल्दी नहीं आने वाला,” यह सुन कर सब हंस पड़े.

“मैं अंकल के लिए चाय ले आती हूं,” कहते हुए सरला अंदर चली गई.

“लो भाभी, आप की चिंता दूर किए देता हूं. प्रीत के लिए एक बहुत बढ़िया रिश्ता लाया हूं.”

“अरे, वह हमारी लखनऊ वाली जिज्जी हैं न, उन की ननद का लड़का है. खूब जमेगी जोड़ी… ऐसा सुंदर, सुशील आईटी इंजीनियर ढूंढ़ने से भी नहीं मिलेगा.”

“यह देखो… और शर्मा अंकल ने अतुल का फोटो आगे कर दिया. बस एक ही समस्या है, लड़का अभी एक प्रोजैक्ट पर आस्ट्रेलिया गया है. हो सकता है कि हमारी प्रीत को कुछ साल वहीं रहना पड़े.

अतुल के आकर्षक व्यक्तित्व को देख सब जैसे मोहित हो गए थे. पापा ने फोटो मां को देते हुए कहा, “लो, दिखा देना अपनी लाड़ली को.”

“प्रीत की मरजी जानना भी जरूरी है. लड़का आ रहा है अगले हफ्ते. वे लोग जल्दी शादी करने में इंटरेस्टेड हैं,” कहते हुए शर्मा अंकल जाने के लिए खड़े हो गए.

प्रीत घर में घुसी ही थी, सरला मां को सूप पिला रही थी.

“दीदी, आप फ्रैश हो जाओ. मैं आप के लिए कौफी बना देती हूं,” पर प्रीत ने कोई जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में चली गई.

मां भी समझ गई थी. यह कोई नई बात नहीं है.

प्रीत कई बार अपने दोस्तों के सामने भी सरला के ड्रैसिंग सैंस, सीधेपन की हंसी उड़ा चुकी थी. रात को खाने के बाद मां ने प्रीत को अपने कमरे में बुलाया.

“देख प्रीत, मेरी सेहत दिनोंदिन गिरती जा रही है. तू ने अभी तक तो हमेशा अपनी बात मनवाई है, पर आज तुझे मेरी बात पर गौर करना ही पड़ेगा,” मां ने अतुल का फोटो प्रीत के आगे कर दिया.

“मुझे नहीं करनी अभी कोई शादीवादी. आप मुझे ब्लैकमेल नहीं कर सकते,” और वह फोटो वहीं पटक कर अपने कमरे में चली गई.

“क्या करूं इस लड़की का…?” मां लड़खड़ाते हुए पलंग पर गिर गईं.

सरला ने सहारा दे कर मां को लेटा दिया और बोली, “मां, थोड़ा सा वक्त दीजिए दीदी को. वे बहुत प्यार करती हैं आप से. आप की बात कभी नहीं टालेगी.”

“मैं यह फोटो दीदी की टेबल पर रख आती हूं,” सरला ने मां को समझाते हुए कहा.

अगले हफ्ते अतुल अपने मम्मीपापा व शर्मा अंकल के साथ घर आए थे.

प्रीत बेमन से अतुल से मिलने को राजी हो गई थी. प्रीत की सुंदरता और स्मार्टनैस ने सभी को बहुत प्रभावित किया.

नजरें चुराते हुए प्रीत भी अतुल के चुंबकीय व्यक्तित्व की ओर सहज ही आकर्षित हो गई थी.

दोनों परिवारों की रजामंदी के बाद अगले महीने प्रीत के फाइनल एग्जाम के तुरंत बाद विवाह का मुहूर्त निकाल दिया गया.

शादी बहुत धूमधाम से हुई. भैया की शादी के सारे अधूरे ख्वाब प्रीत ने अपनी शादी में पूरे कर लिए थे. शादी में भैया ने पहली बार खुशी से डांस किया था.

घर मेहमानों से भर गया था. सरला ने सब की खातिरदारी में कोई कमी नहीं रखी थी और ऊपर से बीमार मां का ध्यान भी. उसे अपने सजनेसंवरने का भी होश नहीं था. बहुत खुशी से उस ने शादी के सारे काम निबटाए थे.

विदाई के समय प्रीत मां के गले लग रोए जा रही थी. उसे डर था कि पता नहीं, अब मां को कब देख पाएगी?

सरला, भैया, पापा सब रो रहे थे. लेकिन, प्रीत भाभी के गले नहीं लगी थी.

अतुल की छुट्टियां समाप्त होने को थीं. 2 दिन बाद ही उस की आस्ट्रेलिया की फ्लाइट थी. आस्ट्रेलिया में अभी उन का मधुमास ही चल रहा था कि एक दिन खबर आई कि मां चल बसी है. सात समंदर पार से इतनी जल्दी आना संभव नहीं था.

वह मां की फोटो गोद में ले कर बहुत दिनों तक रोती रही थी, पर अतुल के प्यार ने उसे संभाल लिया था.

समय सब से बड़ा डाक्टर होता है. जीवन अपनेअपने रास्ते पर चल पड़ा था.

जब भी घर बात होती, पापा पूरे समय लक्ष्मी जैसी बहू सरला की ही माला जपते रहते और प्रीत चिढ़ कर फोन रख देती.

और जब उस की प्रेगनेंसी की रिपोर्ट पौजिटिव आई, तो वह अतुल के गले लग कर लगभग रो ही पड़ी थी. अतुल ने उसे बहुत ही प्यार से समझाया, “अरे, इतनी बड़ी खुशखबरी… और तुम दुखी हो रही हो.”

“नहीं अतुल, तुम ने सुना नहीं कि डाक्टर ने क्या कहा, मेरा यूट्रस छोटा होने से कौम्प्लिकेशन बढ़ सकते हैं. ऐसे में 9 महीने बैड रैस्ट कैसे करूंगी? कौन संभालेगा सबकुछ?

“इस अनजान देश में न कोई नातेरिश्तेदार, न कोई आसपड़ोस, न कोई नौकरचाकर और न मेरी कोई सखीसहेली. ऐसे समय कितनी याद आती है अपनों की? यह दूर बैठा व्यक्ति ही समझ सकता है.”

एक महीना तो अतुल ने घर पर रह कर ही काम किया. वह औफिस और घर दोनों संभालते रहे. कई बार बाहर से खाना मंगवा लेते. जैसेतैसे करते 4 महीने निकल गए.

अब डाक्टर ने प्रीत को बिलकुल बिस्तर से उतरने के लिए मना कर दिया था. वह अपनी सासू मां को भी नहीं बुला सकती थी. उन का एक महीने पहले ही घुटने का आपरेशन हुआ था.

पापा और भैया को भी परेशान नहीं करना चाहती थी. और सरला भाभी, उन से किस मुंह से कहती उन को तो वह अपना दुश्मन समझती थी.

पर, अतुल के दिल में सरला के लिए बहुत आदर था.

एक हफ्ते बाद ही अचानक रात को भैया का फोन आया कि सरला की फ्लाइट सिडनी के लिए रवाना हो गई है.

प्रीत एक बार तो सुन कर सन्न रह गई. जो औरत लखनऊ से बाहर कभी अकेले नहीं गई, वह पहली बार अकेली अपने देश से इतनी दूर आ रही है, वह भी मेरी खातिर. उस का मन थोड़ा सा तरल हो गया.

अगले दिन जैसे ही सरला अतुल के साथ एयरपोर्ट से घर पहुंची, प्रीत ने सरला का स्वागत मुसकान के साथ किया, लेकिन अभी भी उस में गरमाहट नहीं थी.

लेकिन सरला के मासूम चेहरे पर प्यार के ही भाव थे. उस ने प्रीत का हाथ पकड़ते हुए कहा, “अरे, तुम ने मुझे इतना पराया समझ लिया. तुम और अतुल अकेले परेशान होते रहे, मुझे बताया तक नहीं.”

“चलो, अब मैं सब संभाल लूंगी,” और वाकई सरला के आते सबकुछ बदल गया.

8वां महीना खत्म होते ही प्रीत को अचानक लेबर पेन शुरू हो गया था. अतुल और सरला आननफानन ही प्रीत को ले कर अस्पताल भागे.

डाक्टर ने प्रीत को देखते ही कहा कि कंडीशन थोड़ी क्रिटिकल है. आपरेशन करना पड़ेगा. लेकिन हो सकता है कि हमें खून की जरूरत पड़े. और हमारे ब्लड बैंक में प्रीत के ब्लड ग्रुप का ब्लड आज ही खत्म हुआ है. इतनी रात को तो ब्लड मिलना भी मुश्किल रहेगा. आप किसी तरह इंतजाम कीजिए.

अतुल का चेहरा सफेद पड़ गया. उस ने कहा कि आप मेरा टैस्ट कर लीजिए, लेकिन अतुल का ब्लड ग्रुप अलग था. उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. उस ने अपने औफिस के 2-3 लोगों से फोन पर बात की, लेकिन किसी का भी पौजिटिव रिस्पांस नहीं मिला. तभी सरला ने स्थिति समझते हुए कहा कि आप चिंता ना करें. एक बार डाक्टर को मेरा ब्लड भी टैस्ट कर लेने दीजिए.

किस्मत अच्छी थी. सरला का ब्लड प्रीत के ब्लड ग्रुप से मिल गया था. तुरंत ही सर्जरी कर डिलीवरी करा दी गई.

सरला के 2 यूनिट खून ने प्रीत को खतरे से बचा लिया था. जब प्रीत को होश आया और अतुल ने उसे सारी बात बताई, तो प्रीत फफकफफक कर सरला से लिपट कर रो पड़ी.

बरसों से दुख, ग्लानि, पश्चाताप का बांध टूट कर बह गया था. वह बोली, “भाभी, मुझे माफ कर दो. आज आप ने मेरे लिए जो कुछ किया है, शायद मां, पापा, भैया कोई भी नहीं कर पाता. मैं ने आप के साथ बहुत गलत व्यवहार किया. मैं अपने को कभी माफ नहीं कर पाऊंगी.”

सरला ने उसे चूमते हुए कहा, “हट पगली, इतनी खुशी का मौका है. और तू रो रही है. मैं ने तो हमेशा तुझे अपनी छोटी बहन ही माना है,” दोनों की आंखों से अविरल आंसू बह रहे थे.

डाक्टर के कमरे में आने की आहट से प्रीत अचानक वर्तमान में लौट आई.

“हां तो यंग लेडी, हम आप को डिस्चार्ज कर रहे हैं. आप की भाभी ने हमें आखिर कनवींस कर ही लिया.”

किस्मत अच्छी थी. लेडी डाक्टर भी भारतीय थी और सरला भाभी ने अपने व्यवहार से उन से अच्छी दोस्ती कर ली थी.

घर पहुंची तो देखा, घर पर भी भाभी ने सोंठ और गोंद के लड्डू, मालिश का तेल, सबकुछ प्रीत के लिए तैयार कर रखे थे.

पता नहीं, सरला जैसी शख्सियत को किस मिट्टी से बनाया था. सेवा करतेकरते कभी थकती ही न थी, वह भी बिना किसी शिकन के.

अगले हफ्ते ही सरला का भारत लौटने का टिकट था और प्रीत का दिल बैठा जा रहा था. आज सुबह से उस के आंसू नहीं रुक रहे थे. उसे लगा कि सरला, जो कल भाभी बन कर आई थी, उस की मां बन कर जा रही थी. और एक बार फिर मां से बिछड़ना प्रीत के लिए असहनीय हो रहा था.

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