देश की आधी आबादी को यह उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिस समय लोकसभा में महिला आरक्षण बिल पेश करेंगे, उसकी घोषणा भी कुछ उसी तरह से होगी जैसे नोटबंदी और तालाबंदी की हुई थी. रात 8 बजे प्रधानमंत्री आए और भाईयोबहनो कह कर उन्होंने तुरंत नोटबंदी और तालाबंदी की घोषणा कर दी थी.

महिला आरक्षण के मसले पर ऐसा नहीं हो सका. प्रधानमंत्री ने सीधी बात नहीं की. इधरउधर से छनछन कर जो खबरें आ रही हैं उन के अनुसार यह लग रहा है कि महिला आरक्षण बिल के कानून बनने के बाद भी इसके लागू होने कि उम्मीद 2027 और 2029 के पहले नहीं है.

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता डाक्टर सुधा मिश्रा कहती हैं,““देश के पूर्व प्रधानमंत्री और कांग्रेस नेता राजीव गांधी ने बिना किसी जुमलेबाजी के देश में पंचायती राज कानून 1985 में लागू किया था, जिसके जरिए महिलाओं को पंचायत और स्थानीय निकाय चुनाव में 33 फीसदी महिला आरक्षण दिया गया. इसके बाद यूपीए की डाक्टर मनमोहन सिंह सरकार के समय कांग्रेस अध्यक्ष सोनिय गांधी ने महिला आरक्षण बिल को राज्यसभा में पेश किया. अगर उसी को आधार मान कर सरकार तत्काल इस कानून को लागू करे तभी इसका अर्थ है. अगर कानून बनने के बाद भी महिलाओं को अपने अधिकार के लिए5-7 साल लंबा इंतजार करना पड़ा तो यह बेमतलब है. इसे चुनावी झुनझुने की तरह ही देखना चाहिए.”

27वर्षों से लटका है महिला आरक्षण बिल

संसद के विशेष सत्र के पहले दिन मोदी सरकार ने संसद के नए भवन में पहला बिल महिला आरक्षण पर पेश किया. यह बिल 27वर्षों से लटका हुआ है. अब मोदी कैबिनेट ने महिला आरक्षण बिल को मंजूरी दे दी है. केंद्रीय मंत्री प्रह्लाद सिंह पटेल ने पहले ट्वीट कर इसकी जानकारी दी. लेकिन कुछ समय बाद ही उन्होंने अपना ट्वीट डिलीट कर दिया. तभी यह लगा था कि कहीं कुछ गड़बड़ है. सदन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कामकाज की चर्चा करते राजनीति में महिलाओं की भागीदारी का महत्त्व बताते हुए महिला आरक्षण बिल पेश किया.

नेता प्रतिपक्ष अधीर रंजन चौधरी ने 75 सालों में कांग्रेस सरकारों के कामकाज का लेखाजोखा पेश करते हुएसोनिया गांधी के समय महिला आरक्षण बिल पेश किए जाने की याद दिलाई. महिला आरक्षण बिल 1996 से ही अधर में लटका हुआ है. उस समय एचडी देवगौड़ा सरकार ने 12 सितंबर,1996 को इस बिल को संसद में पेश किया था लेकिन पारित नहीं हो सका था. यह बिल 81वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में पेश हुआ था.

अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने 1998 में लोकसभा में फिर महिला आरक्षण बिल को पेश किया था. कई दलों के सहयोग से चल रही वाजपेयी सरकार को इसको लेकर विरोध का सामना करना पड़ा. वाजपेयी सरकार ने इसे 1999, 2002 और 2003-2004 में भी पारित कराने की कोशिश की, लेकिन सफल नहीं हुई. बीजेपी सरकार जाने के बाद 2004 में कांग्रेस के नेतृत्व में यूपीए सरकार सत्ता में आई और डाक्टर मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री बने. यूपीए सरकार ने 2008 में इस बिल को 108वें संविधान संशोधन विधेयक के रूप में राज्यसभा में पेश किया. वहां यह बिल 9 मार्च, 2010 को भारी बहुमत से पारित हुआ. बीजेपी, वाम दलों और जेडीयू ने बिल का समर्थन किया था.

यूपीए सरकार ने इस बिल को लोकसभा में पेश नहीं किया. इसका विरोध करने वालों में समाजवादी पार्टी और राष्ट्रीय जनता दल शामिल थीं. ये दोनों दल यूपीए का हिस्सा थे. कांग्रेस को डर था कि अगर उसने बिल को लोकसभा में पेश किया तो उसकी सरकार खतरे में पड़ सकती है.साल 2008 में इस बिल को कानून और न्याय संबंधी स्थायी समिति को भेजा गया था. इसके 2 सदस्य वीरेंद्र भाटिया और शैलेंद्र कुमार समाजवादी पार्टी के थे. इन लोगों ने कहा कि वे महिला आरक्षण के विरोधी नहीं हैं लेकिन जिस तरह से बिल का मसौदा तैयार किया गया, वे उससे सहमत नहीं थे. इन दोनों सदस्यों ने सिफारिश की थी कि हर राजनीतिक दल अपने 20 फीसदी टिकट महिलाओं को दे और महिला आरक्षण 20 फीसदी से अधिक न हो.

क्या था महिला आरक्षण बिल

बिल में संसद और राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव था. इस 33 फीसदी आरक्षण के भीतर ही अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए उपआरक्षण का प्रावधान था. लेकिन अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान नहीं था. इस बिल में प्रस्ताव है कि लोकसभा के हर चुनाव के बाद आरक्षित सीटों को रोटेट किया जाना चाहिए. आरक्षित सीटें राज्य या केंद्रशासित प्रदेशों के विभिन्न निर्वाचन क्षेत्रों में रोटेशन के जरिए आवंटित की जा सकती हैं. इस संशोधन अधिनियम के लागू होने के 15 साल बाद महिलाओं के लिए सीटों का आरक्षण खत्म हो जाएगा.

मोदी सरकार ने बदल दिया महिला आरक्षण बिल का नाम

मोदी सरकार ने नई संसद की कार्यवाही के पहले दिन संसद और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने के लिए बिल संसद में पेश कर दिया. जैसे कि भाजपा सरकार की आदत रही है कि वह नाम बदलने में यकीन रखती है, महिला आरक्षण बिल का नाम बदल कर ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ कर दिया है. अगर यह बिल कानून बना तो लोकसभा में 181 सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित हो जाएंगी. सीटों पर आरक्षण भी रोटेशन के आधार पर होगा और हर परिसीमन के बाद सीटें बदली जा सकेंगी, जैसे पंचायत या निकाय चुनाव में होता है. मोदी सरकार की नीयत पर संदेह का कारण यह है कि इस बिल को रहस्यमय बनाने का काम किया गया है जबकि इसमें आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए था.

मोदी सरकार ने इस बिल को नई शक्ल में नए नाम के साथ पेश किया है. यह माना जा रहा है कि जनगणना और लोकसभा विधानसभा क्षेत्रों के परिसीमन और महिला आरक्षण में एससी, ओबीसी और मुसलिम आरक्षण की बात तमाम दलों ने उठाई है. इन सबको समायोजित करने के चक्कर में यह बिल कानून बनने के बाद भी 2027 और 2029 से पहले पेश नहीं हो पाएगा. इसी वजह से इसको जुमला या झुनझुना कहा जा रहा है.

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