भारत ऐसा देश है जहां लड़कियों को बचपन से ही घरगृहस्थी की शिक्षा दी जाती है ताकि वे भविष्य में अपने परिवार को भली प्रकार संभाल सकें लेकिन बदलते समय में लड़कियां न सिर्फ घर संभाल रही हैं बल्कि अपने व्यक्तित्व को भी मजबूत कर रही हैं और आर्थिक रूप से संपन्न हो रही हैं.

हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) कानून 2005 कहता है कि बेटाबेटी में कोई फर्क नहीं है. बेटी का जन्म 9 सितंबर, 2005 से पहले हुआ है या बाद में, पिता की संपत्ति में उस का हिस्सा भाई के बराबर ही होगा. कानून ने बेटे और बेटी दोनों को जन्म से ही बराबरी का दरजा दे दिया गया है.

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 में रह गए लैंगिक भेदभाव को समाप्त करने के लिए इस एक्ट में संशोधन कर हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 2005 लाया गया. इस के अंतर्गत बेटी को जन्म से ही संयुक्त परिवार की संपत्ति में भी भागीदार बना दिया गया. पुत्र के ही समान अब एक पुत्री को भी संयुक्त परिवार की संपत्ति में भागीदार माना जाएगा.

लेकिन समय अब बदल गया है. लड़कालड़की अब एकजैसी शिक्षा ले रहे हैं, दोनों पर बराबर खर्चा होता है. ऐसे में अब महिलाओं को मैनेजमैंट में भी हिस्सेदारी देने की जरूरत है. मैनेजमैंट किसी भी कार्य को सुव्यवस्थित तरीके से कराने की एक कला होती है. इस के अंतर्गत अन्य व्यक्तियों द्वारा कार्य को इस तरह से करवाया जाता है कि कर्मचारियों द्वारा कम से कम समय में अधिक से अधिक कार्य लिया जा सके या फिर कम से कम लागत के अंतर्गत अधिकतम लाभ या लक्ष्य प्राप्त किया जा सके.

भारत ने पिछले कुछ दशकों में महिला उद्यमियों की संख्या में काफी वृद्धि देखी है. महिलाएं आज लगभग हर उद्योग व क्षेत्र में कदम रख रही हैं.

महिलाओं ने अपनी काबिलीयत से इस सोच को हरा दिया है कि वे सिर्फ घर का चूल्हाचौका संभालने के लिए बनी हैं. भारत में महिलाएं अब न सिर्फ बाहर काम करने जा रही हैं बल्कि कई तो बिजनैस टाईकून भी बन गई हैं और व्यापार संभाल रही हैं. यह न सिर्फ पारिवारिक बिजनैस संभाल रही हैं, बल्कि खुद का स्टार्टअप भी बड़ी समझदारी के साथ संभालती हैं. देश की कई ऐसी बिजनैस वुमेन हैं जिन्होंने कारोबार की दुनिया में अपना मुकाम हासिल कर लिया है. उन्हें देश ही नहीं बल्कि विदेशों तक में लोग जानते हैं.

अपनी प्रतिभा, सूझबूझ से उन्होंने अपने सपने को पूरा करते हुए करोड़ों कमजोर वर्ग की महिलाओं को प्रेरणा दी. इन्हीं कारोबारी महिलाओं की सूची में किरण मजूमदार शा, सावित्री जिंदल, दिव्या गोकुलनाथ, लीना तिवारी के नाम शामिल हैं. फार्मा कंपनी यूएसवी इंडिया की चेयरपर्सन लीना तिवारी तो भारत की सब से अमीर महिलाओं की सूची में तीसरे स्थान पर हैं. वहीं 100 लोगों की लिस्ट में लीना तिवारी का 43वां स्थान है. लीना तिवारी की कुल संपत्ति 4.4 अरब डौलर है. लीना तिवारी की कंपनी यूएसवी इंडिया डायबिटीज और कार्डियोवैस्कुलर ड्रग से संबंधित है.

ऐसे ही नेहा नरखड़े और फाल्गुनी नायर हैं जो सैल्फमेड बिजनैस वीमेन हैं. 2021 में भारत की 8वीं सब से अमीर आंकी गई नेहा की कुल संपत्ति 13,830 करोड़ रुपए आंकी गई है थी. हालांकि उन्हें बाद में नुकसान हुआ लेकिन उन की बिजनेस मैनेजमैंट पर काफी अच्छी पकड़ है.

वहीं मुंबई के एक समृद्ध गुजराती परिवार में जन्मी फाल्गुनी ने अपने कैरियर के 20 साल कोटक महिंद्रा ग्रुप के साथ काम किया. 1993 में उन्होंने कंपनी जौइन की थी और उस के बाद 2012 में छोड़ कर अपना खुद का बिजनैस शुरू करने की सोची. 2012 में फाल्गुनी ने ब्यूटी और फैशन प्रोडक्ट्स के औनलाइन रीटेल स्टोर नायका की शुरुआत की. सिर्फ 10 सालों के भीतर ‘नायका’ भारत का सब से बड़ा औनलाइन ब्यूटी एंड फैशन रीटेल प्लेटफौर्म बन गया है.

महिला सशक्तीकरण की रफ्तार

आजादी के बाद महिलाओं का समाज में सम्मान बढ़ा लेकिन उन के सशक्तीकरण की गति दशकों तक धीमी रही. गरीबी व निरक्षरता महिलाओं की प्रगति में गंभीर बाधा रही हैं. गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और कौशल के माध्यम से महिलाओं को व्यवसाय की ओर प्रोत्साहित कर इन्हें आर्थिक रूप से सुदृढ़ किया जा सकता है. विशेषकर कृषि प्रसंस्करण उद्योगों, बैंकिंग सेवाओं और डिजिटलीकरण की सहायता से महिलाओं के सामाजिक व वित्तीय सशक्तीकरण की शुरुआत की जा सकती है.

भारतीय महिलाएं ऊर्जा से लबरेज, दूरदर्शिता, जीवंत उत्साह और प्रतिबद्धता के साथ सभी चुनौतियों का सामना करने में सक्षम हैं. भारत के प्रथम नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर के शब्दों में, ‘हमारे लिए महिलाएं न केवल घर की रोशनी हैं बल्कि इस रोशनी की लौ भी हैं. अनादि काल से ही महिलाएं मानवता की प्रेरणा का स्रोत रही हैं. ?ांसी की रानी लक्ष्मीबाई से ले कर भारत की पहली महिला शिक्षिका सावित्रीबाई फुले तक, महिलाओं ने बड़े पैमाने पर समाज में बदलाव के बड़े उदाहरण स्थापित किए हैं.’

2030 तक पृथ्वी को मानवता के लिए बेहतरीन जगह बनाने के लिए भारत सतत विकास लक्ष्यों की ओर तेजी से बढ़ चला है. लैंगिक समानता और महिला सशक्तीकरण करना सतत विकास लक्ष्यों में एक प्रमुखता है. वर्तमान में मैनेजमैंट, पर्यावरण संरक्षण, समावेशी आर्थिक व सामाजिक विकास जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए विशेष ध्यान दिया गया है.

महिलाएं और नेतृत्व

महिलाओं में जन्मजात नेतृत्वगुण समाज के लिए संपत्ति है. प्रसिद्ध अमेरिकी धार्मिक नेता ब्रिघम यंग ने ठीक ही कहा है कि जब आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं तो आप एक आदमी को शिक्षित करते हैं लेकिन जब आप एक महिला को शिक्षित करते हैं तो आप एक पीढ़ी को शिक्षित करते हैं. इसलिए, यह इस वर्ष के अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस की थीम ‘एक स्थायी कल के लिए आज लैंगिक समानता’ है.

भारतीय इतिहास महिलाओं की उपलब्धि से भरा पड़ा है. आनंदीबाई गोपालराव जोशी (1865-1887) पहली भारतीय महिला चिकित्सक थीं और संयुक्त राज्य अमेरिका में पश्चिमी चिकित्सा में 2 साल की डिग्री के साथ स्नातक होने वाली पहली महिला चिकित्सक रही हैं.

सरोजिनी नायडू ने साहित्य जगत में अपनी छाप छोड़ी. हरियाणा की संतोष यादव ने 2 बार माउंट एवरेस्ट फतेह किया. बौक्सर एमसी मैरी कौम जानापहचाना नाम है. हाल के वर्षों में, हम ने कई महिलाओं को भारत में शीर्ष पदों पर और बड़े संस्थानों का मैनेजमैंट करते हुए भी देखा है. अरुंधति भट्टाचार्य, एसबीआई की पहली महिला अध्यक्ष, अलका मित्तल, ओएनजीसी की पहली महिला सीएमडी, सोमा मंडल, सेल अध्यक्ष, कुछ और नामचीन महिलाएं हैं, जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है.

कोविड-19 के दौरान कोरोना योद्धाओं के रूप में महिला डाक्टरों, नर्सों, आशा वर्करों, आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं व समाजिक कार्यकर्ताओं ने अपनी जान की परवा न करते हुए मरीजों को सेवाएं दी हैं. कोरोना के खिलाफ टीकाकरण अभियान को सफल बनाने में भी महिलाओं ने अहम भूमिका निभाई. भारत बायोटैक की संयुक्त एमडी सुचित्रा एला को स्वदेशी कोविड-19 की वैक्सीन विकसित करने में उन की शानदार भूमिका के लिए पद्मभूषण से सम्मानित किया गया है. महिमा दतला, एमडी, बायोलौजिकल ई, ने 12-18 वर्ष की आयु के लोगों को दी जाने वाली कोविड-19 वैक्सीन विकसित करने के लिए अपनी टीम का नेतृत्व किया. निस्संदेह, महिलाएं और लड़कियां समाज में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बदलाव की अग्रदूत हैं.

जैसा कि कोविड-19 के कारण हुई तबाही की पृष्ठभूमि में ‘बिल्ड बैक’ प्रक्रिया में शामिल करें तो महिला उद्यमियों को प्रोत्साहित करने के लिए हर संभव प्रयास किया जाना चाहिए. 6ठी आर्थिक गणना के अनुसार, हमारे पास देश में 8.05 मिलियन महिला उद्यमी हैं. शौपक्लूज, घर और रसोई, दैनिक उपयोगिता वस्तुओं की मार्केटिंग के लिए 2011 में राधिका ने औनलाइन स्टार्टअप शुरू किया. ये यूनिकौर्न क्लब में प्रवेश करने वाली पहली भारतीय महिला उद्यमी थीं. राजोशी घोष के हसुरा, स्मिता देवराह के लीड स्कूल, दिव्या गोकुलनाथ के बायजू और राधिका घई के ’शौपक्लूज’ अन्य यूनिकौर्न हैं जो महिला स्टार्टअप की क्षमता के बारे में बहुतकुछ बयां करते हैं.

स्टार्टअप्स की भूमिका

केंद्र सरकार ने देश में उद्यमिता को बढ़ावा देने के लिए कई योजनाएं शुरू की हैं. अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और महिला उद्यमियों के सामने आने वाली चुनौतियों को दूर करने के लिए स्टैंडअप इंडिया और स्टार्टअप संबंधी कई योजनाएं शुरू की हैं. अब एक महिला उद्यमिता मंच पोर्टल का गठन करना एक प्रमुख पहल है जो नीति आयोग की एक प्रमुख पहल है. यह अपनी तरह का पहला एकीकृत पोर्टल है जो विभिन्न प्रकार की पृष्ठभूमि की महिलाओं को एक पटल और सुविधा प्रदान करता है.

महिलाओं को उद्यमिता के क्षेत्र में पांव रखने के लिए महिला स्टार्टअप महत्त्वपूर्ण है. अब महिलाओं ने पूरी उर्जा के साथ उद्यमिता के क्षेत्र में पांव जमाए हैं. बैन एंड कंपनी और गूगल के अनुसार, महिला उद्यमी 2030 तक लगभग

150-170 मिलियन नौकरियां पैदा करेंगी. एक आधिकारिक अनुमान के अनुसार, 2018-21 तक स्टार्टअप्स द्वारा लगभग 5.9 लाख नौकरियां पैदा की गईं. नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के माध्यम से शुरू से ही उद्यमिता के बीज बोने का सार्थक प्रयास किया जा चुका है.

हाल ही में हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ में आयोजित दीक्षांत समारोह में 24 छात्रों को स्वर्ण पदक प्रदान किए गए. उन में से

16 लड़कियां थीं. यह सिर्फ एक विश्वविद्यालय की बात नहीं है. वे लगभग हर संस्थान में लड़कों से कहीं बेहतर कर रही हैं. उन में उत्कृष्टता प्राप्त करने की तीव्र इच्छा और दृढ़ता है. ‘आजादी के अमृत महोत्सव’ वर्ष के पहले भाग में ही केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय ने 6-12 सितंबर के बीच केवल एक सप्ताह में 2,614 स्वयं सहायता समूह के उद्यमियों को सामुदायिक उद्यम निधि का 8 करोड़ 60 लाख रुपए का ऋण प्रदान किया.

स्वयं सहायता समूहों (एसएचजी) के माध्यम से महिलाएं न केवल खुद को सशक्त बना रही हैं बल्कि हमारी अर्थव्यवस्था की मजबूती में भी योगदान दे रही हैं. सरकार के निरंतर आर्थिक सहयोग से आत्मनिर्भर भारत के संकल्प में उन की भागीदारी दिनबदिन बढ़ती जा रही है.

पिछले 6-7 वर्षों में महिला स्वयं सहायता समूहों का अभियान और तेज हुआ है. आज देशभर में 70 लाख स्वयं सहायता समूह हैं. महिलाओं के पराक्रम को सम?ाने की जरूरत है, जो हमें महिमा की अधिक ऊंचाइयों तक पहुंचाएगी. सो, हमें चाहिए कि हम उन्हें आगे बढ़ने और फलनेफूलने में उन की मदद करें.

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