प्रदेश की राजधानी होने के नाते रोजाना लाखों लोग लखनऊ आतेजाते रहते हैं. इसी वजह से लखनऊ के रेलवे स्टेशन चारबाग के आसपास तो हर तरह के होटलों की भरमार है ही, उस से सटे इलाकों का भी यही हाल है. ऐसा ही एक इलाका है नाका हिंडोला. यहां भी छोटेबड़े तमाम होटल हैं.

नाका हिंडोला के मोहल्ला विजयनगर में गुरुद्वारे के पीछे एक होटल है सिंह होटल एंड पंजाबी रसोई. 16 सितंबर की सुबह 11 बजे के आसपास होटल का कर्मचारी मोहन बहादुर बेसमेंट में बने कमरों की ओर गया तो गैलरी में उसे एक बच्चा रोता हुआ दिखाई दिया.

वह लपक कर बच्चे के पास पहुंचा. बच्चा 4 साल के आसपास रहा होगा. उस ने उसे गोद में उठा कर पुचकारते हुए पूछा, ‘‘क्या हुआ बेटा, मम्मी ने मारा क्या?’’

‘‘नहीं, मम्मी ने नहीं मारा. मम्मी को पापा मार कर भाग गए.’’ बच्चे ने कहा.

‘‘मार कर कहां भाग गए पापा?’’ मोहन ने पूछा तो बच्चा रोते हुए बोला, ‘‘पता नहीं?’’

मोहन बहादुर को पहले लगा कि पतिपत्नी में मारपीट हुई होगी या हो रही होगी, इसलिए बच्चा रोते हुए बाहर आ गया होगा. लेकिन अब उसे मामला कुछ और ही लगा, इसलिए उस ने पूछा, ‘‘मम्मी कहां हैं?’’

‘‘वह बाथरूम में पड़ी है.’’ बच्चे ने कहा.

‘‘तुम किस कमरे से बाहर आए हो?’’ मोहन ने जल्दी से पूछा तो बच्चे ने कमरा नंबर 102 की ओर इशारा कर दिया.

मोहन बच्चे को गोद में लिए कमरे के अंदर बने बाथरूम में पहुंचा तो वहां की हकीकत देख कर परेशान हो उठा. बाथरूम में एक महिला की अर्धनग्न लाश पड़ी थी. बच्चे ने उस लाश की ओर अंगुली से इशारा कर के कहा, ‘‘यही मेरी मम्मी है. पापा इन्हें मार कर भाग गए हैं.’’

लाश देख कर मोहन बच्चे को गोद में उठाए लगभग भागते हुए होटल के मैनेजर रामकुमार के पास पहुंचा. उस ने पूरी बात उन्हें बताई तो होटल में अफरातफरी मच गई. होटल के सारे कर्मचारी इकट्ठा हो गए.

मैनेजर रामकुमार ने स्वयं कमरे में जा कर देखा. लाश देख कर उन के भी हाथपांव फूल गए. उन्होंने तुरंत होटल मालिक राजकुमार और स्थानीय थाना नाका हिंडोला पुलिस को घटना की सूचना दी.

सूचना मिलते ही इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह ने पहले तो इस घटना की सूचना पुलिस अधिकारियों को दी, उस के बाद खुद पुलिसकर्मियों को साथ ले कर सिंह होटल पहुंच गए.

होटल मालिक राजकुमार उन का इंतजार बाहर कर रहे थे. उन के पहुंचते ही वह उन्हें साथ ले कर बेसमेंट स्थित उस कमरे पर पहुंचे, जिस में लाश पड़ी थी. लाश कमरे के बाथरूम में अर्धनग्न अवस्था में थी. सरसरी तौर पर निरीक्षण के बाद उन्होंने मृतका के नग्न हिस्से पर कपड़ा डलवाया.

मृतका की उम्र 22-23 साल रही होगी. उस के गले को किसी तेज धारदार हथियार से काटा गया था, जिस से निकला खून गरदन से ले कर पीठ के नीचे तक जमीन पर फैला था.

इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह लाश का निरीक्षण कर ही रहे थे कि एएसपी (पश्चिम) अजय कुमार और सीओ कैसरबाग हृदेश कठेरिया भी फोरेंसिक टीम के साथ होटल पहुंच गए. फोरेंसिक टीम घटनास्थल से साक्ष्य जुटाने में लग गई तो पुलिस अधिकारी होटल के मालिक और मैनेजर से पूछताछ करने लगे.

कमरे की तलाशी में ऐसी कोई भी चीज नहीं मिली, जिस से मृतका या उस के पति के बारे में कुछ पता चलता. पुलिस अधिकारियों ने बच्चे को अपने पास बुला कर पुचकारते हुए प्यार से पूछा, ‘‘बेटा, तुम्हारा नाम क्या है?’’

‘‘आयुष. यह मेरा स्कूल का नाम है. घर में मुझे सब शिवा कहते थे.’’ बच्चे ने जवाब में बताया.

‘‘तुम्हारी मम्मी को किस ने मारा?’’

‘‘पापा ने मारा है.’’

‘‘पापा ने मम्मी को कैसे मारा?’’ एएसपी अजय कुमार ने पूछा तो बच्चे ने कहा, ‘‘पहले तो पापा ने मम्मी को खूब मारा. मम्मी खूब रो रही थीं. फिर भी पापा उन को मारते रहे. पापा उन्हें मारते हुए बाथरूम में ले गए. वहीं मम्मी बेहोश हो गईं. मम्मी को मारते देख मैं जोरजोर से रो रहा था. पापा ने मुझे गोद में उठाया और बिस्तर पर लिटा दिया. कुछ देर में मैं सो गया. सुबह उठ कर देखा तो मम्मी मर चुकी थी. पापा नहीं दिखाई दिए तो मैं रोने लगा. रोते हुए कमरे से बाहर आया तो अंकल ने मुझे गोद में ले लिया.’’

पुलिस अधिकारियों ने बच्चे को एक महिला सिपाही के हवाले कर के उसे बच्चे को कुछ खिलानेपिलाने को कहा. इस के बाद होटल के मैनेजर रामकुमार से मृतका के बारे में पूछताछ की गई तो उस ने बताया, ‘‘कल यानी 15 सितंबर की रात 11 बजे एक आदमी पत्नी और बेटे के साथ आया था. उस ने अपना नाम बबलू, पत्नी का सीमा और 4 वर्षीय बेटे का नाम आयुष उर्फ शिवा बताया. कमरा मांगने पर मैं ने उस से आईडी मांगी तो उस ने अपना आधार कार्ड दिया. तब काफी रात हो चुकी थी, इसलिए उस की फोटोकौपी नहीं हो सकती थी. इसलिए मैं ने उस का आधार कार्ड रख लिया और उसे कमरा नंबर 102 की चाबी दे दी. होटल का वेटर उस का सामान ले कर उसे कमरे तक पहुंचाने गया.

‘‘कमरे में जाने के कुछ देर बाद बबलू चारबाग गया और वहां से खाना ले आया. सुबह साढ़े 6 बजे बबलू ने मेरे पास आ कर कहा कि मुझे आधार कार्ड की जरूरत है इसलिए आप मुझे मेरा आधार कार्ड दे दीजिए. थोड़ी देर में दुकान खुल जाएगी तो मैं फोटोकौपी करा कर दे दूंगा. चिंता की कोई बात नहीं, मेरी पत्नी और बच्चा होटल में ही है.

‘‘मैं ने आधार कार्ड दे दिया तो वह कमरे में गया और अपना बैग ले कर चला गया. उस की पत्नी और बच्चा होटल में ही था, इसलिए मैं ने सोचा वह लौट कर आएगा ही. लेकिन वह लौट कर नहीं आया. जब आयुष रोता हुआ कमरे से बाहर आया तो पता चला कि वह पत्नी की हत्या कर के भाग गया है.’’

बबलू भले ही आधार कार्ड ले कर चला गया था, लेकिन उस का नंबर, उस पर लिखा पता और मोबाइल नंबर होटल के रजिस्टर में लिख लिया गया था. पुलिस ने उस का आधार नंबर, पता और मोबाइल नंबर नोट कर लिया. इस के बाद घटनास्थल की काररवाई निपटा कर लाश को पोस्टमार्टम के लिए मैडिकल कालेज भिजवा दिया गया.

थाना नाका हिंडोला के थानाप्रभारी विजय प्रकाश बच्चे को साथ ले कर थाने आ गए और होटल मालिक राजकुमार की ओर से मृतका सीमा के पति बबलू के खिलाफ हत्या का मुकदमा दर्ज करा दिया. रिपोर्ट दर्ज करने के बाद पुलिस ने होटल में दर्ज आधार कार्ड के पते और मोबाइल नंबर की जांच कराई तो दोनों फरजी निकले.

आधार कार्ड के अनुसार बबलू का पता आरजेड-30, स्मितापुरी, पार्क रोड, नई दिल्ली लिखा था जो फरजी पाया गया. आधार कार्ड के नंबर में 2 अंक गलत थे. कमरे में ऐसा कुछ भी नहीं मिला था, जिस से हत्यारे के बारे में या मृतका के बारे में कुछ पता चलता.

इंसपेक्टर विजय प्रकाश सिंह सोच रहे थे कि अब क्या किया जाए. तभी उन की नजर आयुष पर पड़ी. वह स्कूल की ड्रेस पहने था. उन्होंने उस की स्कूली शर्ट के कालर पर लगे टैग को देखा. उस में जो लेबल लगा था, उस में स्टार यूनिफार्म लिखा था. इस का मतलब ड्रेस जिस कंपनी में तैयार की गई थी, उस का नाम स्टार यूनिफार्म था.

स्कूल ड्रेस तैयार करने वाली इस कंपनी के बारे में शायद इंटरनेट से कुछ पता चल जाए, यह सोच कर उन्होंने इंटरनेट पर सर्च किया तो कंपनी का पता और फोन नंबर मिल गया. पुलिस ने उस नंबर पर फोन कर के संपर्क किया. जब कंपनी के बारे में पता चल गया तो पुलिस ने वाट्सएप द्वारा आयुष और उस की ड्रेस की फोटो कंपनी को भेजी तो कंपनी ने बताया कि यह ड्रेस एक प्ले स्कूल की है, जिस का पता है एम-24, चाणक्य प्लेस, डाबड़ी, नई दिल्ली.

यह जानकारी मिलने के बाद पुलिस की एक टीम नई दिल्ली पहुंच गई. इस पुलिस टीम ने प्ले स्कूल के प्रबंधक को आयुष का फोटो दिखा कर पूरी बात बताई तो प्रबंधक ने स्कूल के रजिस्टर से आयुष के घर का पता लिखा दिया.

आयुष के मातापिता स्कूल से कुछ दूरी पर सीतापुरी कालोनी में अवधेश के मकान में किराए पर कमरा ले कर रहते थे.

पुलिस टीम ने अवधेश से पूछताछ की तो पता चला कि उस के किराएदार का नाम बबलू नहीं बल्कि मणिकांत मिश्रा है और वह गोरखपुर के थाना सहजनवां के मोहल्ला डुगडुइया का रहने वाला है. उस के पिता का नाम विश्वंभरनाथ मिश्रा है. सीमा उस की ब्याहता पत्नी नहीं थी बल्कि दोनों लिवइन रिलेशन में रहते थे.

पुलिस टीम ने दिल्ली से ही इंसपेक्टर विजय प्रकाश को फोन कर के सीमा के असली हत्यारे का नाम पता बता दिया. इस के बाद विजय कुमार ने दूसरी पुलिस टीम गोरखपुर भेज दी.

19 सितंबर को गोरखपुर गई पुलिस टीम ने स्थानीय पुलिस की मदद से मणिकांत के घर छापा मारा तो वह घर पर ही मिल गया. पूछताछ में उस ने न केवल सीमा की हत्या का अपना अपराध कुबूल कर लिया बल्कि हत्या में प्रयुक्त सब्जी काटने वाला चाकू भी बरामद करा दिया. पुलिस टीम मणिकांत को गिरफ्तार कर के लखनऊ ले आई. थाने में की गई पूछताछ में मणिकांत ने सीमा की हत्या की जो कहानी सुनाई, वह कुछ इस प्रकार थी.

उत्तर प्रदेश के जिला गोरखपुर के थाना पिपराइच के पुखरभिंडा गांव में रहता था कमल सिंह. उस के परिवार में पत्नी और एक ही बेटी थी सीमा. वह अपराधी प्रवृत्ति का था, इसलिए पत्नी और बच्चों पर खास ध्यान नहीं देता था. वैसे भी वह ज्यादातर जेल में ही रहता था, इसलिए पत्नी और बेटी अपने मन की मालिक थीं.

सीमा खूबसूरत भी थी और महत्त्वाकांक्षी भी. वह जवान हुई तो उस की खूबसूरती लोगों की आंखों में बैठ गई. उसे जो भी देखता, देखता ही रह जाता. जिस का बाप अपराधी हो, उस के घर का माहौल तो वैसे भी अच्छा नहीं होता क्योंकि उस के साथ उठनेबैठने वाले कोई अच्छे लोग तो होते नहीं.

कमल के यहां भी उसी के जैसे लोग आते थे. जवान बेटी को ऐसे लोगों से दूर रखना चाहिए, लेकिन कमल को इस बात की कोई चिंता ही नहीं थी. वह सभी को घर के अंदर ही बैठाता था. बदमाश प्रवृत्ति का व्यक्ति किसी का नहीं होता, इसलिए उन सब की नजरें कमल की जवान बेटी पर जम गई थीं.

बगल के ही गांव भरहट का रहने वाला एक लड़का कमल के यहां आता रहता था. वह भी अपराधी प्रवृत्ति का था. वह कुंवारा था, इसलिए उस ने कमल सिंह के सामने सीमा से शादी करने का प्रस्ताव रखा तो कमल सिंह ने सोचा कि उसे बेटी की शादी तो करनी ही है. अगर वह अपने हिसाब से शादी करेगा तो दुनिया भर का इंतजाम और दानदहेज के लिए काफी पैसे खर्च करने पड़ेंगे.

और यदि वह सीमा की शादी इस लड़के से कर देता है तो उसे अपने पास से एक पैसा खर्च नहीं करना पड़ेगा. इतना ही नहीं बल्कि वह चाहे तो इस लड़के से कुछ पैसे भी ले लेगा. लड़का उसे पसंद था इसलिए उस ने कहा, ‘‘सीमा की शादी तो मैं तुम से कर दूंगा लेकिन कुछ देने के बजाय मुझे तुम से कुछ चाहिए.’’

लड़का भी सीमा के लिए बेचैन था. इसलिए उस ने कहा, ‘‘चाचाजी, मैं सीमा के लिए अपना सब कुछ आप को दे सकता हूं.’’

‘‘मुझे तुम्हारा सब कुछ नहीं चाहिए. सब कुछ दे दोगे तो मेरी बेटी को खिलाओगे पिलाओगे कहां से. मुझे कुछ रुपए चाहिए. क्योंकि मेरे ऊपर काफी कर्ज हो गया है.’’

वह लड़का कमल द्वारा मांगी गई रकम देने को तैयार हो गया तो उस ने सीमा का विवाह उस युवक से करा दिया. सीमा पिता के घर से ससुराल पहुंच गई. वहां कुछ दिनों तक तो सब कुछ ठीकठाक रहा, लेकिन बाद में वह लड़का बातबात पर सीमा से मारपीट करने लगा तो परेशान हो कर सीमा उस से तलाक ले कर मायके चली आई.

सीमा पहले से ही बिना अंकुश की थी. शादी के बाद वह और आजाद हो गई. उसे किसी से भी बात करने या मिलने में जरा भी हिचक नहीं होती थी. कोई रोकटोक भी नहीं थी इसलिए वह कहीं भी किसी के भी साथ घूमने चली जाती थी. इस की सब से बड़ी वजह थी उस की जरूरतें. इसलिए जो भी उस की जरूरतें पूरी करता, वह उसी की हो जाती.

ऐसे में ही उस की मुलाकात थाना पिपराइच के गांव पकडि़यार के रहने वाले केदार सिंह के बेटे मनोहर सिंह से हुई तो वह उस से जुड़ गई. केदार सिंह खेतीकिसानी करते थे. मनोहर सीमा को इस कदर चाहने लगा कि वह उस से शादी करने के बारे में सोचने लगा.

मनोहर ने अपने पिता केदार सिंह से शादी के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया. लेकिन मनोहर ने जिद पकड़ ली कि वह शादी करेगा तो सीमा से ही करेगा अन्यथा कुंवारा ही रहेगा. तब मजबूर हो कर केदार सिंह को झुकना पड़ा. वह सीमा से उस की शादी कराने को राजी तो हो गए लेकिन उन्होंने शर्त रख दी कि सीमा को उन के हिसाब से घर में रहना होगा. जबकि वह जानते थे कि सीमा ज्यादा दिनों तक उन की इच्छानुरूप नहीं रह सकती. इसीलिए उन्होंने यह शर्त रखी थी.

मनोहर से शादी के बाद सीमा ने एक बेटे को जन्म दिया, जिस का नाम आयुष रखा गया. लेकिन घर में उसे सब प्यार से शिवा कहते थे. केदार सिंह ने सीमा पर काफी बंदिशें लगा रखी थीं. उसे परेशान करने के लिए वह बातबात पर उसे प्रताडि़त करते रहते थे.

सीमा को बंदिशें वैसे भी कभी रास नहीं आईं, वह तो खुले आकाश में विचरण करने वाली युवती थी. यही वजह थी कि जल्दी ही वह उस घर के माहौल से तंग आ गई. वह उस घर से भागने की कोशिश करने लगी. आखिर एक दिन मौका मिलते ही वह बेटे को ले कर उस घर से हमेशाहमेशा के लिए भाग निकली.

सीमा मायके आई तो उस का पिता कमल सिंह किसी मामले में गोरखपुर जेल में बंद था. सीमा अकसर अपने पिता से मिलने जेल जाती रहती थी. वहीं उस की मुलाकात मणिकांत मिश्रा से हुई. वह भी अपने पिता विश्वंभरनाथ मिश्रा से मिलने जेल आता रहता था.

मणिकांत के पिता विश्वंभरनाथ मिश्रा जिला महाराजगंज में कोऔपरेटिव बैंक की नौतनवां शाखा में सचिव थे. 2008 में उन्हें गबन और धोखाधड़ी के मामले में गोरखपुर जेल भेज दिया गया था. मणिकांत मिश्रा मांबाप का एकलौता बेटा था.

मणिकांत भी अपने पिता से मिलने जेल आता रहता था और सीमा भी. अकसर दोनों की मुलाकात हो जाती थी. कभी दोनों ने एकदूसरे के बारे में पूछ लिया तो उस के बाद उन में बातचीत होने लगी. बातचीत होतेहोते उन में दोस्ती हुई और फिर प्यार.

बाप जेल में था, मुकदमा चल रहा था. आमदनी का कोई और जरिया नहीं था इसलिए मणिकांत दिल्ली चला गया और वहां वह कढ़ाई का काम करने लगा. रहने के लिए उस ने डाबड़ी की सीतापुरी कालोनी में अवधेश के मकान में एक कमरा किराए पर ले लिया. मणिकांत दिल्ली में रहता था और सीमा गोरखपुर में. लेकिन दोनों में फोन पर बातें होती रहती थीं. सीमा ने उस से कहा कि उसे वहां अच्छा नहीं लगता. इस पर मणिकांत ने उसे दिल्ली बुला लिया. वह बेटे को ले कर दिल्ली पहुंच गई.

सीमा को दिल्ली आए 2-3 दिन ही हुए थे कि एक रात उस ने कहा, ‘‘मणि, हम दोनों एकदूसरे को पसंद ही नहीं करते, बल्कि एकदूसरे को जीजान से चाहते भी हैं. हमें एकदूसरे से दूर रहना भी अच्छा नहीं लगता. क्यों न हम दोनों शादी कर लें?’’

सीमा की इस बात पर मणिकांत गंभीर हो गया. कुछ देर सोचने के बाद उस ने कहा, ‘‘सीमा, प्यार करना अलग बात है और शादी करना अलग बात. मैं तुम से प्यार तो करता हूं, लेकिन शादी नहीं कर सकता.’’

‘‘क्यों, प्यार करते हो तो शादी करने में क्या परेशानी है?’’

‘‘तुम शादीशुदा ही नहीं, किसी दूसरे के एक बच्चे की मां भी हो. ऐसे में मैं तुम से कैसे शादी कर सकता हूं?’’

‘‘तो क्या तुम मुझे बेसहारा छोड़ दोगे? मैं तो बड़ी उम्मीद ले कर तुम्हारे पास आई थी कि तुम मुझ से प्यार करते हो, इसलिए मुझे अपना लोगे.’’

‘‘सीमा, मैं तुम्हें बेसहारा भी नहीं छोड़ सकता और शादी भी नहीं कर सकता. अगर तुम चाहो तो एक रास्ता है.’’

‘‘क्या?’’

‘‘लिवइन रिलेशनशिप. यानी हम दोनों बिना शादी के एक साथ पतिपत्नी की तरह रह सकते हैं.’’

सीमा मरती क्या न करती, वह राजी हो गई. इस के बाद दोनों बिना शादी के ही पतिपत्नी की तरह साथ रहने लगे. मणिकांत ने पास के ही चाणक्य प्लेस स्थित एक प्ले स्कूल में आयुष का एडमिशन करा दिया. सीमा की भी उस ने एक कालसेंटर में नौकरी लगवा दी. वहां सीमा को 5 हजार रुपए प्रतिमाह वेतन मिलता था.

सीमा जल्दी ही अपने रंग दिखाने लगी. वह घूमने, फिल्में देखने और महंगा खाना खाने पर जरूरत से ज्यादा पैसे खर्च करने लगी. उस का पूरा वेतन इसी में खर्च हो जाता. पैसे खत्म हो जाते तो वह परेशान हो उठती. तब वह आसपड़ोस से उधार लेने लगी. उन पैसों को भी वह अपने शौक पूरा करने में उड़ा देती.

उधार देने वालों के पैसे सीमा वापस न करती तो वे मणिकांत से पैसे मांगते. सीमा की इन हरकतों से मणिकांत परेशान रहने लगा. उस ने सीमा को कई बार समझाया, लेकिन उस पर कोई असर नहीं हुआ.

धीरेधीरे उसे सीमा के चरित्र पर भी शक होने लगा. क्योंकि सीमा हर किसी से इस तरह खुल कर बात करती थी जैसे वह उस का बहुत खास हो. इस के अलावा उसे लोगों से पैसा भी बड़े आराम से उधार मिल जाता था. इस से मणिकांत को लगने लगा कि सीमा ने ऐसे लोगों से संबंध बना रखे हैं. इन्हीं बातों को ले कर दोनों के बीच आए दिन झगड़ा होने लगा.

हद तब हो गई, जब सीमा मणिकांत पर दबाव बनाने लगी कि वह गोरखपुर की अपनी सारी संपत्ति बेच कर दिल्ली में एक अच्छा सा मकान ले कर यहीं रहे. मणिकांत सीमा की हरकतों से वैसे भी परेशान था. जब वह उस पर संपत्ति बेचने के लिए ज्यादा दबाव बनाने लगी तो वह सीमा से छुटकारा पाने के बारे में सोचने लगा. उसे पता था कि यह औरत सीधे उस का पीछा नहीं छोड़ेगी. इसलिए उस ने उसे खत्म करने का विचार बना लिया.

पूरी योजना बना कर उस ने सीमा से गोरखपुर के अपने गांव चलने को कहा तो वह खुशीखुशी चलने को तैयार हो गई. 15 सितंबर की दोपहर मणिकांत ने सीमा और आयुष को साथ ले कर लखनऊ जाने के लिए गोमती एक्सप्रेस पकड़ी.

रात 10 बजे वह लखनऊ के चारबाग स्टेशन पर उतरा. उस ने सीमा से कहा कि इस समय गोरखपुर जाने के लिए कोई बस या ट्रेन नहीं मिलेगी, इसलिए आज रात यहीं किसी होटल में रुक जाते हैं.

सीमा क्या कहती, वह होटल में रुकने को तैयार हो गई. रिक्शे पर बैठ कर उस ने रिक्शे वाले से किसी छोटे और सस्ते होटल में चलने को कहा. रिक्शे वाला तीनों को नाका हिंडोला थाने के विजयनगर स्थित सिंह होटल एंड पंजाबी रसोई ले गया. वहां मणिकांत ने  होटल के रिसैप्शन पर बैठे मैनेजर रामकुमार से एक कमरे की डिमांड की तो उस ने उस से आईडी मांगी.

मणिकांत ने सुबह को आईडी की फोटोकौपी देने को कहा. तब उस ने उस का आधार कार्ड ले कर उस का नंबर, मोबाइल नंबर और पता दर्ज कर लिया. कमरे का किराया 350 रुपए ले कर उस ने कमरा नंबर 102 की चाबी मणिकांत को दे दी. वह सीमा और आयुष को ले कर कमरे में चला गया.

सीमा और आयुष को कमरे में छोड़ कर मणिकांत चारबाग गया और वहां किसी ढाबे से खाना ले आया. खाना खा कर वह सीमा से बातें करने लगा. तभी किसी बात पर उस की  सीमा से बहस हो गई तो वह सीमा को पीटने लगा. सीमा जोरजोर से रोने लगी. मां की पिटाई और उसे रोता देख कर मासूम आयुष भी रोने लगा.

मणिकांत सीमा की पिटाई करते हुए उसे बाथरूम में ले गया. वहां उस ने उसे इस तरह पीटा की वह बेहोश हो गई. उसे उसी हालत में छोड़ कर वह आयुष के पास आया और उसे बिस्तर पर लिटा कर किसी तरह सुला दिया. इस के बाद उस ने घर से बैग में रख कर लाया सब्जी काटने वाला चाकू निकाला और बाथरूम में बेहोश पड़ी सीमा का बेरहमी से गला काट दिया, जिस से उस की मौत हो गई. रात भर वह उसी कमरे में रहा. सवेरा होने पर उस ने मैनेजर से अपना आधार कार्ड लिया और बैग ले कर निकल गया. होटल से निकल कर वह गोरखपुर स्थित अपने घर चला गया.

उस ने अपनी ओर से होटल में कोई सुबूत नहीं छोड़ा था, लेकिन पुलिस आयुष की स्कूल ड्रेस के टैग के सहारे उस तक पहुंच ही गई. सारी कानूनी औपचारिकताएं पूरी कर के पुलिस ने मणिकांत को न्यायालय में पेश किया, जहां से उसे न्यायिक अभिरक्षा में जेल भेज दिया गया.

पुलिस ने आयुष को चाइल्डलाइन भेज कर सीमा के पति मनोहर और उस के घर वालों से संपर्क किया तो उस के चाचाचाची आ कर उसे ले गए. कथा लिखे जाने तक पुलिस होटल के मालिक के खिलाफ भी काररवाई करने की तैयारी कर रही थी.

—कथा पुलिस सूत्रों पर आधारित

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