रेटिंग : पांच में से डेढ़ स्टार

निर्माता : अनिल शर्मा व जी स्टूडियो

लेखक : शक्तिमान

निर्देशक : अनिल शर्मा

कलाकार : सनी देओल, अमिषा पटेल, उत्कर्ष शर्मा, सिमरत कौर, मनीष वाधवा, रोहित चौधरी, मीर सरवर, अनिल जौर्ज, गौरव चोपड़ा, डौली बिंद्रा, लव सिन्हा, शान कक्कड़ व अन्य.

अवधि : 2 घंटे, 50 मिनट.

वर्ष 2001 में प्रदर्शित सफलतम फिल्म ‘गदर : एक प्रेम कथा’ का सीक्वल फिल्मकार अनिल शर्मा ‘गदर 2’ के नाम से ले कर आए हैं. इस फिल्म के रिलीज होने से पहले अनिल शर्मा ने दावा किया था कि लेखक शक्तिमान ने उन्हें ‘वन लाइनर’ कहानी सुनाई, जो उन्हें पसंद आ गई और वही ‘वन लाइनर’ सनी देओल व जी स्टूडियो को भी पसंद आई, जिस पर उन्होंने फिल्म ‘गदर 2’ बनाई है.

फिल्म देखने के बाद यह बात समझ में आ गई कि लेखक व निर्देशक के पास एक वन लाइनर थी, मगर उस पर वे लगभग 3 घंटे की रोचक व मनोरंजक पटकथा लिखने में पूरी तरह से विफल रहे हैं. बेहद कमजोर पटकथा ने पूरी फिल्म बरबाद कर दी.

पूरे 22 वर्ष के अंतराल के बाद आई ‘गदर 2’ में लेखक व निर्देशक दोनों ही ‘गदर : एक प्रेम कथा’ से बेहतर कुछ नहीं दे पाए. फिल्म ‘गदर 2’ 22 वर्ष पहले की फिल्म ‘गदरः एक प्रेम कथा’ से काफी कमजोर है, जबकि लेखक व निर्देशक ने पहली फिल्म के कई दृश्यों को भर कर लोगों को इमोशनल ब्लैकमेल करने का प्रयास किया है. पहली फिल्म तारा सिंह व सकीना की प्रेम कहानी थी, जबकि ‘गदर 2’ तो वर्ष 1971 की पृष्ठभूमि में तारा सिंह व जीते यानी बापबेटे की कहानी है.

पूरी फिल्म देख कर इस बात का भी अहसास होता है कि अनिल शर्मा ने इस फिल्म का निर्माण अपने बेटे
उत्कर्ष के कैरियर को संवारने के लिए बनाई है, जिस में वह बुरी तरह से
विफल रहे हैं.

वैसे, उत्कर्ष शर्मा इस से पहले भी अपने पिता अनिल शर्मा के निर्देशन में ‘जीनियस’ जैसी असफल फिल्म दे चुके हैं.

कहानी :

फिल्म ‘गदर 2’ की कहानी शुरू होती है वर्ष 1971 के भारतपाक युद्ध से कुछ माह पहले, जब तारा सिंह (सनी देओल) अपनी पत्नी सकीना व बेटे जीते के साथ खुशहाल जिंदगी बिता रहे हैं. वे तब भी देशभक्त थे, आज भी देशभक्त हैं. वे अब भी ट्रक चलाते हैं. तारा सिंह अब एक ट्रांसपोर्ट ट्रक एसोसिएशन के नेता हैं. भारतीय सैनिक, खासकर मेजर रावत उन की बड़ी इज्जत करते हैं. तारा सिंह
का बेटा जीते (उत्कर्ष शर्मा) कालेज में पढ़ता है, मगर वह फिल्मों का शौकीन है. कालेज न जा कर नाटकों में अभिनय करता है. मगर उसे अपने पिता से उतना ही प्यार है.

वैसे, तारा सिंह अपने बेटे को भारतीय सैनिक बनाना चाहते हैं. सभी को पता है कि जब तारा सिंह अपनी पत्नी सकीना को ले कर भारत आ गए थे, तब अपने साथियों की मौत से पाकिस्तानी आर्मी के जनरल हामिद इकबाल (मनीष वाधवा) आगबबूला हो गए थे और वह तब से तारा सिंह को मारना चाहते हैं.

इतना ही नहीं, उस वक्त हामिद इकबाल ने सकीना के पिता अशरफ अली को गद्दार घोषित करवा कर उन्हें फांसी दिला दी थी. इधर बेटे जीते के रंगढंग देख कर तारा सिंह जीते को चंडीगढ़ पढ़ने के लिए भेजना चाहते हैं.

एक दिन भारतीय सेना के मेजर रावत तारा सिंह को बताते हैं कि पूर्वी पाकिस्तान केे हालात कैसे हैं. युद्ध के हालात बन रहे हैं. वह तारा सिंह से 40 ट्रक मांगते हैं. 2-4 दिन बाद ही खबर आती है कि पाकिस्तानी सेना ने धोखे से हमला कर कुछ भारतीय सैनिकों के साथ ही कुछ ट्रक चालकों को भी बंदी बना लिया है. इन में तारा सिंह भी हैं. खबर आती है कि यह सब पाकिस्तानी जनरल हामिद इकबाल के इशारे पर हुआ है. इस से जीते का खून खौल उठता है. अब उसे अपने पिता को पाकिस्तान से वापस लाने के साथ ही अपने नाना के हत्यारे को सजा देना भी है. वह नकली पासपोर्ट और वीजा के सहारे पाकिस्तान में अपने चचेरे नाना गुल खान के घर लाहौर पहुंच जाता है.

पिता की तलाश में वह कामयाब होटल के मालिक कुर्बान अली की बेटी मुसकान (सिमरत कौर) के साथ प्यार का नाटक भी करता है. इधर पिता की तलाश में मुसकान के साथ जीते लखपत जेल पहुंचता है और हामिद इकबाल के चक्रव्यूह में फंस जाता है. उधर तारा सिंह अपने घर पहुंचते हैं. पता चलता है कि तारा सिंह नहर में गिर गए थे. कुछ दिन अस्पताल में वह कोमा में रहे. जब तारा सिंह को पता चलता है कि जीते पाकिस्तान में है, तो तारा सिंह भी पाकिस्तान पहुंच जाते हैं.

कई घटनाक्रम बड़ी तेजी से बदलते हैं. अंततः तारा सिंह अपने बेटे जीते व बहू मुसकान के संग भारत वापस आ जाते हैं.

लेखन व निर्देशन :

लेखक शक्तिमान व निर्देशक अनिल शर्मा दोनों ही मात खा गए. फिल्म
की पटकथा काफी कमजोर है. फिल्म का लगभग हर दृष्य काफी पुराना नजर आता है.

कहानी 1947 से 1971 में पहुंची है, मगर ऐसा कोई बदलाव या नयापन फिल्म में नजर नहीं आता. इस बार तारा सिंह का पाकिस्तान जाना पूरी तरह से बनावटी नजर आता है.

फिल्मकार को यही नहीं पता कि पाकिस्तान में सैनिकों को जवान नहीं कहा जाता. इस के अलावा जीते को नकली पासपोर्ट व वीजा बनवा कर पाकिस्तान जाना पड़ता है और रास्ते में उस की जांच भी होती है. मगर तारा सिंह बिना किसी रुकावट के बस में बैठ कर भारत से लाहौर पहुंच जाते हैं. यह भी लेखक व निर्देशक की कमजोर कड़ी ही है.

अनिल शर्मा ने क्लाइमैक्स में भी ‘गदर : एक प्रेम कथा’ के दृश्यों को ही दोहराया है. फिल्म का बैकग्राउंड संगीत काफी लाउड है.

अभिनय :

कमजोर पटकथा के बावजूद तारा सिंह के किरदार में सनी देओल ने अच्छा अभिनय किया है. उन की दहाड़ रोंगटे खड़े कर देने वाली है. सकीना के किरदार में अमीषा पटेल रोने के चंद दृश्यों के अलावा किसी भी दृश्य में नहीं जमी हैं. इस फिल्म में उन्हें देख कर अहसास होता है कि अब उन का अभिनय चुक गया है. जीते के किरदार में उत्कर्ष शर्मा ने एक बार फिर निराश किया है. उन के अभिनय को देख कर अहसास ही नहीं होता कि वह फिल्म मेकिंग व अभिनय में अमेरिका से ट्रेनिग ले कर आए हैं. इमोशनल दृश्यों में तो वे बिलकुल नहीं जमे.

‘गदर 2’ के मुख्य विलेन यानी पाकिस्तानी जनरल हामिद इकबाल के किरदार में मनीष वाधवा का अभिनय जानदार है. उन्होंने अपने अभिनय को एक नया रंग देने के लिए सिगार का शानदार उपयोग किया है. सिगार सुलगाते हुए वह अपने चेहरे पर जिस तरह से खतरनाक भाव लाते हैं, उस से दर्शकों के रोंगटे खड़े हो जाते हैं.

मनीष वाधवा ने अपने अभिनय से साबित कर दिया कि वह बौलीवुड के नए सशक्त खलनायक हैं. मुसकान के किरदार में सिमरत कौर खूबसूरत जरूर नजर आई हैं, मगर उन के चेहरे पर भाव कम ही आते हैं, जबकि वे 4 तेलुगु फिल्मों में अभिनय कर चुकी हैं. उन्हें एक बेहतरीन अदाकारा बनने के लिए काफी मेहनत करने की जरूरत है.

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