उस प्रदर्शनी में हर देश ने अपनीअपनी कारीगरी दिखाई थी. अमेरिका, जापान आदि तमाम देशों ने अपनेअपने उत्पाद सजाए हुए थे. एक जापानी खिलौने पर सारी दुनिया के लोगों की नजरें थीं जो इलैक्ट्रौनिक तकनीक से बनाया गया था. जापानी अपनी इस सफलता पर गौरवान्वित हो रहे थे कि तभी एक भारतीय ने उस स्टौल पर खड़े 2 जापानियों की नजर बचाते हुए उस पर एक टैग लगा दिया : ‘मेड इन इंडिया’.

लोगों के आश्चर्य का ठिकाना न रहा और वे जापानी हैरत में पड़ गए कि यह सब एक पल में कैसे हो गया.खैर, उन्होंने भारतीयों के दर्शन पर अध्ययन शुरू किया तो पाया कि जब यहां पहली बार मानव उत्पाद लौंच किया गया था, हमारे ग्रेट ग्रैंड अंकलों ने तभी से यह टैगिंग शुरू कर दी थी. नतीजा यह हुआ कि बहुत कम समय में यहां ढेरों जातियां बनीं जो आज फलफूल कर हजारोंलाखों में पहुंच चुकी हैं.

हद तो यह है कि उन की देखादेखी चोरी और गबन जैसे अपराधों तक की भी तमाम जातियां, प्रजातियां उग आई हैं. चोरी एक अपराध होते हुए भी ऊंची, नीची और सामान्य, तमाम जातियों में विभक्त हो चुकी है. कद्दू, लुटिया, भैंस की चोरियां गंवई मानी जाती हैं. जबकि बाइक, कार, चेन की चोरियां शहरी. मंदिर से प्रसाद की चोरी धार्मिक, अष्टधातु मूर्तियों की चोरी कलात्मक, मरघट पर अर्थियों के शेष बांसों की चोरी आध्यात्मिक मानी जाती है. कफनचोरी बुनकर जाति और पूरे ताबूत की चोरी एक वीआईपी जाति की मानी जाती है. जब कोई गारमैंट चोर कोई गारमैंट मय धारक के चुरा लाता है तो वह संवेदनशील चोरी होती है, जिसे कुछ लोग अपहरण कह कर पुकारते हैं. करचोरी अमीर जाति की मानी जाती है.

नजरें चुराना बगला चोरी कहलाती है, रूपचोरी अत्यंत लोकप्रिय होती है. गुर्दाचोरी डाक्टर जाति की होती है. दिलचोरी हंस जाति की, पर मय दिलदार की चोरी श्रेष्ठतम मानी गई है. वह प्यार और शादी के कीर्तिमान तक स्थापित कर सकती है.कामचोरी की जाति दरिद्र मानी गई है. इस के वाहक परजीवी (पैरासाइट्स) कहलाते हैं. यह सरकारी विभागों में वास करती है, पर इस की कमी दूसरी कर्मठ चोरियां पूरी करती रहती हैं. लिहाजा, सरकारें 60-65 दिनों की हड़तालों के बावजूद सुचारु रूप से चला करती हैं, इस के बावजूद तमाम काम जिस चोरी से चला करते हैं वह डिटैक्टिव चोरी कहलाती है. हाल में एक रिश्वत को चोरी का जामा पहनाने की भी कोशिश की गई है. यह चोरी किस प्रजाति की है, तय नहीं हो पाया है.

शब्दों, विचारों आदि की चोरी सर्वोच्च जाति की मानी गई है. कवि, शायर, लेखक और व्यंग्यकार इसी श्रेणी में आते हैं. चोरी में मिलावटखोरी तो सोने में सुहागे का काम करती है. मजे की बात तो यह है कि रचना की मौलिकता का शपथपत्र लिए वे लाखों लोग लाइन में लगे मिलते हैं जो माल एक, ब्रांड सौ, रैपर हजार और पैकिंग लाख वाली मसल में विश्वास करते हैं, पर इस के बावजूद कुछ लोग विशुद्ध चोरी के उपासक होते हैं. एक बड़े अंगरेजी अंतर्राष्ट्रीय दैनिक के सहसंपादक ने एक दशक पहले इंगलैंड के एक टैब्लौयड का एक आर्टिकल चोरी कर के बिना किसी मिलावट के हूबहू अपने पत्र में छपवा डाला था.

अत: उन को वांछित प्रशस्तिपत्र के साथ जो ससम्मान विदाई दी गई थी, मैं आज तक नहीं भुला सका हूं. ऐसी चोरियां गुरूघंटालों के दिल में वास करती हैं. वैसे आजकल मिलावटी वाली ज्यादा प्रचलन में हैं जिन के पकड़े जाने की संभावनाएं न के बराबर होती हैं. उन पर तमाम इनामों की व्यवस्था अलग से हुआ करती है.मु झे इस धंधे में पड़े लगभग 48 साल हो चुके हैं, पर कभी पकड़ा नहीं गया इसलिए अभी भी शाह ही कहलाता आ रहा हूं. हां, जब कभी इनाम की लालसा की तो दोस्त रूपी दुश्मनों ने और समझाया, हताश किया, ‘उस के लिए दारू, पैलगी, खुशामद और सैटिंग जैसी तमाम औपचारिकताएं तुम्हारे वश की बात    नहीं है.’

हां, कुछ दोस्तों ने यह दिलासा अवश्य दिलाया, ‘संभव है कि पिछले दिनों भारतरत्न पर मची छीछालेदर से आहत कुछ लोग संसद में एक ऐसा प्रस्ताव ले आएं कि हर वरिष्ठ नागरिक की उम्र को ही एक योग्यता मान कर एक भारतरत्न बांटा जाए तो उस दशा में तुम्हारा नंबर  जरूर लग सकता है.’

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