भारत में केंद्र सरकार के साथ राज्य सरकारें भी अपनी संपत्तियों के अलावा आम लोगों की संपत्तियों पर भी दृष्टि जमाए रखती हैं. आज तो आलम यह है कि अपराधियों की संपत्ति को तो वे, बिना कानूनी खानापूर्ति किए ही, बुलडोजर से ध्वस्त करा देती हैं. यह और बात है कि सत्ताधारी पार्टी में शामिल अपराधियों की संपत्ति को कोई छू भी नहीं सकता.

अपराधियों ही नहीं बल्कि अवैध संपत्ति के नाम पर तमाम दूसरे लोगों के मकान भी सरकारों ने ध्वस्त किएहैं और नियमकानून का कोई पालन नहीं हुआ. जिस गलीमहल्ले और कालोनी में बुलडोजर चलता है वहीं पर देखें तो दूसरे तमाम अवैध निर्माण ऐसे भी होते हैं जिनको कोई छूता भी नहीं है. यह मनमानी बताती है कि जिन संपत्तियों पर सरकार की नजर होती है वही गिराई जाती हैं. यह काम करीबकरीब पूरे देश में हो रहा है पर जिन प्रदेशों में भारतीय जनता पार्टी यानी भाजपा की सरकारेंहैं वहां यह ज्यादा किया जा रहा है.

 ऐसे नजर रखती है सरकार

संपत्ति पर सरकार की नजर का मसला नया नहीं है. इसकी शुरुआत देश के आजाद होने के साथ ही हो गईथी. जनता के हित को बताते हुए कहा गया कि भूमिहीन लोगों को जमीन देने के लिए जिनके पास ज्यादा जमीन है उनसे ली जाएगी. सरकार ने इसके तहत जमीनों का अधिग्रहण शुरू किया. उसी समय सीलिंग एक्ट भी लाया गया था. अलगअलग राज्यों ने अपने राजस्व कानून बनाने शुरू किए.

छोटे किसानों के लिए हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाना सरल नहीं होता. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में मुकदमा लड़ने का मतलब लाखों रुपयों का खर्च होना होता है. ऐसे में बहुत सारे किसान चुप रह गए. जमीन उनके मौलिक अधिकार से बाहर हो चुकी थी. संसद को कानून बना कर जमीनों पर प्रयोग बदलने के अधिकार मिल गए थे. इन्हीं का प्रयोग करके मोदी सरकार ने 3 कृषि कानून भी बनाए थे.

केरल के कासरगोड जिले के एडनीर गांव में स्वामी केशवानंद भारती का एक मठ था. उनके पास भी जमीन थी. संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत मठों को छूट दी थी कि वे अपने प्रबंधन के खर्च को चलाने के लिए जमीन अपने पास रख सकतेहैं. केरल सरकार ने इस बात का ध्यान नहीं रखा. उसने मठ की जमीन को भी अपने कब्जे में ले लिया. केशवानंद भारती इस मसले को लेकर सुप्रीम कोर्ट चले आए और 1970 में हुए 2 भूमि सुधार अधिनियमों के तहत अपनी संपत्ति के प्रबंधन पर प्रतिबंध लगाने के प्रयासों को चुनौती दी.

संविधान के अनुच्छेद 26 के तहत सरकार के खिलाफ यह याचिका सुप्रीम कोर्ट के आगे रखी गई. मामले की सुनवाई 68 दिनों तक चली. दलीलें 31 अक्टूबर, 1972 को शुरू हुईं और 23 मार्च, 1973 को समाप्त हुईं. इसके फैसले में 700 पृष्ठ लिखे गए. 13 जजों की संविधान पीठ ने फैसला दिया. केशवानंद के फैसले ने यह परिभाषित किया कि किस हद तक संसद संपत्ति के अधिकारों को सीमित कर सकती है. इस फैसले के बाद सरकार को जमीनों के प्रयोग के तमाम अधिकार प्राप्त हो गए. वैसे, केशवानंद भारती केस इससे अधिक सुप्रीम कोर्ट के ‘संविधान मूलभूत ढांचे’ को परिभाषित करने के लिए अधिक जाना जाता है.

        जेवर और जमीन पर भी हुकूमत की मंशा

सोना और जेवर यानी पहने जाने वाले गहनों पर भी सरकार की नजर है. नोटबंदी के बाद यह बात तेजी से उठी थी कि सरकार जमीन और गहनों को लेकर भी कानून लाने वाली है जिसमें यह बताया जाएगा कि कितने ग्राम सोना बिना टैक्स के रख सकते हैं, कितना अधिक होने पर टैक्स देना पड़ेगा.

इसके पीछे की वजह यह है कि सरकार का मानना है कि कालेधन को रखने का सबसे बड़ा उपाय जेवर और जमीन ही हैं. इसलिए आने वाले दिनों में इसका हिसाब भी वह ले सकती है. सरकार की नजर इस परभी है.

जेवर या गहने जब भी खरीदें उसकी रसीद अपने पास रखें. अगर गहने उपहार में ही मिले हों तो भी कोशिशकरें कि उसकी रसीद आपके पास हो. एक सीमा से अधिक गहने होने पर उसको उपहार समझ कर सरकार छोड़ती नहीं है. 2 लाख से अधिक का जेवर लेने के लिएआधार कार्ड और पैन कार्ड का विवरण देने को कहा गया है. बड़ी ज्वैलरी शौप इसके बिना जेवर नहीं देतीं. इसके अलावा आज हर ज्वैलरी शौप औनलाइन पेमैंट का रास्ता अपनाती है. इसमें आपका फोन नंबर लिखा जाता है. फोन नंबर आधार और पैन से जुड़ा होता है.

ऐसे में फोन नंबर से ही यह पता लगाना सरल हो गया है कि कितनी खरीदारी की गई है. इसी तरह से जब जमीन खरीद रहे होते हैं वहां भी स्टांप फीस औनलाइन जमा की जाती है. अगर 50 लाख रुपए से अधिक की प्रौपर्टी खरीद रहे हैं तो उस पर सरकार की नजर होती है. इस तरह से बिना सरकार की जानकारी के कोई भी संपत्ति आपके पास नहीं हो सकती.

इस प्रकार, सरकार हर तरह से न केवल जनता की संपत्ति पर नजर रख रही, बल्कि उसके जरिए ही उस को परेशान करने का काम भी करती है. ऐसे में जरूरी है कि इन मुद्दों को आप समझें और अपनी संपत्ति को सरकारी लूट से बचाने का उपाय करें वरना आप की संपत्ति भी कहीं किसी ‘अडानी’ की झोली में न चली जाए.

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