शीतल जैसी 22-23 साल की लड़की को अपनी सहेली बना कर अंजू खुश थी क्योंकि वह उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जिस में युवावर्ग द्वारा स्वयं को आंटी कहलाना पसंद नहीं होता. शीतल भी सहेली बन कर अंजू के घर में ऐसी घुसी कि… गरमी के दिन थे. दोपहर को खिड़की से बाहर नजर आती चिलचिलाती धूप. उफ, यह घुटन और उस पर बोरियतभरा अकेलापन. प्रशांत औफिस चले गए थे. घर में इस समय मेरे सिवा और कोई नहीं था. कोई कब तक कंप्यूटर गेम खेलेगा या टीवी देखेगा. अच्छा है कि मुझे पत्रपत्रिकाएं पढ़ने का शौक है वरना… मैं ऐसा ही कुछ सोच रही थी कि डोरबेल बज उठी.

‘कौन होगा इस समय. देखूं तो सही,’ खुद से कहती हुई मैं उठी और कमरे की खिड़की से परदा हटा कर गेट की तरफ देखा. एक युवा लड़की सलवारकमीज पहने आंखों पर धूप का चश्मा, कंधे पर टंगा हुआ बड़ा सा पर्स और धूप से लाल हुआ चेहरा. कोई भले घर की लग रही थी. हो सकता है सेल्स गर्ल हो लेकिन अब बैल बजाई है तो उसे अंदर बुलाने में क्या हर्ज है. बेचारी ठंडा पानी पी कर चली ही तो जाएगी, सोचती हुई मैं गेट खोलने चली गई. ‘‘नमस्ते, मैं पड़ोस में आरती आंटी के यहां आई थी. उन के गेट पर ताला देख कर यहां चली आई. आप को कुछ पता है, कहां गई हैं वे,’’ गेट खुलते ही लड़की ने पूछा. ‘‘बताती हूं, बताती हूं.

जरा सांस तो ले. अंदर आ जा, कितनी तेज धूप है,’’ मैं ने उसे अंदर बुलाया कि हो सकता है आरती की कोई रिश्तेदार हो. वह मेरे पीछेपीछे अंदर आई. मैं ने उसे ड्राइंगरूम में बैठाया और उस के लिए ठंडा शरबत बना कर लाई. वह जल्दी से पी गई और गिलास सैंटर टेबल पर रखती हुई बोली, ‘‘मैं यहां, दिल्ली में 4 महीने से रह रही हूं. वैसे, ?झासी की रहने वाली हूं.’’ ‘‘अच्छा. आरती भी झांसी की ही रहने वाली थी. क्या तुझको पता नहीं ये लोग यहां का बंगला बेच कर दूर महरौली इलाके में चले गए.’’ ‘‘नहीं तो. दरअसल मैं यहां कंप्यूटर कोर्स कर रही हूं और उसी इंस्टिट्यूट में पार्टटाइम जौब भी कर रही हूं.

साथ ही, पत्राचार से बीए भी. आरती आंटी मम्मी की सहेली हैं. मम्मी ने मुझे उन का पता दे कर मिलने को कहा था. इस बात को भी 2 महीने हो गए. मैं आज टाइम निकाल कर जैसेतैसे घर ढूंढ़ती आई. खैर, कोई बात नहीं. धन्यवाद. अब मैं चलती हूं. यों ही दोपहर के समय आप को तकलीफ दी,’’ वह अपनी कलाई पर बंधी हुई घड़ी की तरफ देख कर बोली. ‘‘अरे, नहीं नहीं, तेरा आना मुझे बहुत अच्छा लगा. अकेली बैठी बोर हो रही थी. तू ने नाम तो बताया नहीं.’’ ‘‘शीतल वर्मा.’’ ‘‘बहुत ही प्यारा नाम है, जैसे मेरे घर में शीतल हवा का एक का चला आया,’’ मु?ो भी न जाने क्या सूझा कि मैं बोल गई.

‘‘ओह, आप ने तो मानो कविता सुना दी. और हां, आप ने भी अपना नाम नहीं बताया,’’ खुले बालों को क्लिप में बांधती हुई वह बोली. ‘‘अंजू. अंजली मेहरा.’’ ‘‘मैं आप को आंटीवांटी कुछ नहीं कहूंगी, सिर्फ अंजू कहूंगी. लेकिन आप बड़ी हैं न, इसलिए ‘आप’ कहूंगी. कैसा रहेगा?’’ उस ने मेरी तरफ देख कर पूछा. उस की आंखों की चमक से मेरी आंखें चौंधिया गईं. मैं बोली, ‘‘बहुत अच्छा रहेगा. अब मेरे साथ लंच ले कर ही जाना.’’ ‘‘नहींनहीं, मुझे जाने दीजिए. फिर कभी आऊंगी,’’ कहती हुई वह खड़ी हो गई. ‘‘आज तो मैं ऐसे जाने नहीं दूंगी. अब हम दोनों सहेलियां बन गईं, क्यों.’’ कहते हुए मैं ने उसे कंधे से पकड़ कर बैठा ही लिया. शाम 4 बजे तक वह रुकी रही. बहुत बातूनी थी. उस का सामान्य ज्ञान भी कमाल का था.

उसे सहेली बना कर मैं मानो फिर अपनी जवानी के दिनों में लौट आई. शाम को प्रशांत आए तब मुझे खुश देख कर वे भी खुश हुए. मैं ने उन्हें शीतल से अचानक जानपहचान होने की बात बताई. अब मुझे शीतल के फिर आने का इंतजार था. मेरा बड़ा बेटा अमेरिका चला गया था. छोटा बेंगलुरु में इंजीनियरिंग कर रहा था. उन दोनों के जाने के बाद घर सूनासूना हो गया था. दरअसल मैं उम्र के उस दौर से गुजर रही थी जहां युवावर्ग का आंटी कहना मुझे पसंद नहीं था क्योंकि मन से मैं खुद को युवा ही समझाती थी और इसी वजह से मैं अपने से बड़ी या खुद को बुजुर्ग मान कर चलने वाली हमउम्र महिलाओं के साथ तालमेल बैठा नहीं पा रही थी. ऐसे में शीतल जैसी 22-23 साल की लड़की का सहेली बन जाना बेहद अच्छा लग रहा था. एक दोपहर वह फिर आई. इस बार उस के साथ उस की सहेली काजल भी थी.

शीतल ने इस बार खुलासा किया कि वह काजल और अन्य 2 लड़कियों के साथ किराए के 2 कमरों में पहली मंजिल पर रहती है. जगह अच्छी है. फोन भी लगा हुआ है. मकान मालिक परिवार के साथ नीचे रहता है. उस ने अपना फोन नंबर और पता भी लिख कर दे दिया कि कभी जरूरत पड़ सकती है. मेरे साथ ही लंच ले कर दोनों 4 बजे चली गईं. दूसरे ही दिन शीतल फिर आई और शरमाती हुई कहने लगी, ‘‘मेरे इंस्टिट्यूट का अगले सप्ताह वार्षिकोत्सव है. मैं फैंसी ड्रैस कंपीटिशन में दुलहन बन रही हूं. इस के लिए मुझे सुंदर सी बूटियों वाली प्योर सिल्क की साड़ी चाहिए.’’ इस पर मैं ने हंस कर कहा, ‘‘इस में शरमाने की क्या बात है. मेरे पास बहुत सुंदरसुंदर साडि़यां हैं. कोई भी पसंद कर ले.’’ मैं ने उसे ड्रैसिंगरूम में ले जा कर साडि़यां दिखाईं लेकिन जब वह पसंद न कर पाई तो मैं ने अपनी पसंद की एक कीमती साड़ी निकाल कर उसे दी. उसे ले कर वह उस दिन जल्दी ही चली गई. शाम को जब प्रशांत आए तो मैं ने उन्हें शीतल को साड़ी देने की बात बताई. यह सुन कर वे उखड़ गए, ‘‘कौन है यह शीतल. सिर चढ़ा रखा है.

पता नहीं वह लड़की कैसी है. न जान न पहचान, उसे अपनी कीमती साड़ी दे दी. अब वह वापस आने से रही.’’ ‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं. उस का पता और टैलीफोन नंबर है मेरे पास. ऐसे तो दुनिया में कोई किसी का विश्वास नहीं करेगा. मैं अभी फोन मिलाती हूं,’’ कह कर मैं ने नंबर मिलाया. ‘‘हैलो, कौन काजल. जरा शीतल को बुलाना, कहना अंजू का फोन है.’’ ‘‘जी. अभी बुलाती हूं,’’ काजल ने फोन होल्ड करवाया और शीतल को आवाज दी. ‘‘देखा, आप को तो सारे चोर ही नजर आते हैं,’’ मैं ने प्रशांत की तरफ देख कर कहा. ‘‘हैलो,’’ उधर से शीतल की आवाज आई. ‘‘हूं. कैसी है?’’ ‘‘मैं ठीक हूं, अंजू, आप कैसी हैं, कैसे याद किया?’’ ‘‘ऐसे ही याद आ गई. अच्छा.

फैंसी ड्रैस की तैयारी कर ली और किसी चीज की जरूरत तो नहीं है. अगर वह साड़ी पसंद नहीं है तो…’’ मैं गोलमोल बोल रही थी. ‘‘अरे वाह, इतनी सुंदर साड़ी आप ने दे दी. लेकिन अब मैं उस कंपीटिशन में हिस्सा नहीं ले रही. बहुत ही  का काम है. पढ़ाई अलग से खराब होती है. मैं कल या परसों साड़ी दे जाऊंगी,’’ उस ने खुलासा किया. ‘‘मुझे इतनी जल्दी नहीं है. जब भी घर आओगी, साड़ी ले आना. मैं ने तो बस, हालचाल पूछने के लिए फोन किया था. ओके, गुडनाइट, शीतल,’’ मैं ने बात बदल दी. ‘‘थैंक्यू, गुडनाइट, अंजू.’’ कह कर उस ने रिसीवर रख दिया. मैं ने विजयी मुद्रा से प्रशांत को देखा, वे दूसरी तरफ देख रहे थे. सप्ताहभर बाद शीतल आई और साड़ी दे गई. बात आईगई हो गई.

कुछ दिनों बाद प्रशांत का जन्मदिन था. मैं ने और प्रशांत ने शौपिंग की और डिनर के लिए एक बढि़या होटल में गए. मैं ने देखा कुछ दूरी पर 4-5 लड़केलड़कियां बैठे थे. लड़कियों ने जींस और बदनउघाड़ू टौप पहने हुए थे. एक लड़की के हाथ में जलती हुई सिगरेट थी और वह ‘नो स्मोकिंग’ की तख्ती की परवा न करते हुए धुएं के छल्ले उड़ा रही थी. उन में शीतल भी थी, मगर वह सिगरेट नहीं पी रही थी. मैं बारबार उधर देख रही थी लेकिन शीतल का ध्यान मेरी तरफ नहीं था.

वह बतियाने और हंसीठिठोली में मस्त थी. शरम के मारे मैं ने प्रशांत को भी नहीं बताया कि शीतल उधर बैठी है. डिनर के बाद हम घर आ गए. शीतल और उस के दोस्त न जाने कब तक वहां बैठे रहे. मुझे लगा, प्रशांत ठीक ही कह रहे थे कि पता नहीं वह लड़की कैसी है. मैं भी उस की बातों में आ गई और उसे सहेली बना बैठी. अब की बार आएगी तो आगे से आने के लिए मना कर दूंगी. मुझे जरूरत नहीं है ऐसी सहेली की.

4 दिनों बाद शीतल आई. मैं ने उस का ठंडा स्वागत किया. बैठने के लिए भी नहीं कहा. वह खुद ही बैठ गई. अब मैं ने जान कर बात छेड़ी, ‘‘कभी होटल वगैरह जाना तो होता ही होगा.’’ ‘‘हां. चले जाते हैं. अभी 4 दिनों पहले हमारे इंस्टिट्यूट की एक लड़की का बर्थडे था तो डिनर के लिए ‘ड्रीम पैलेस’ में गए थे,’’ शीतल ने सच बताया. ‘‘शीतल, उस समय मैं भी प्रशांत के साथ वहीं थी. तू ने जींस और स्लीवलैस टौप पहना हुआ था.’’ ‘‘हां, कभीकभार पहन लेती हूं, लेकिन आप ने मुझे देखने के बावजूद नहीं बुलाया,’’ वह नाराजगी जताती बोली. ‘‘देख शीतल, तेरा फ्रैंड सर्कल मुझे अच्छा नहीं लगा.

तू ऐसे घटिया लड़केलड़कियों का साथ छोड़ दे, वरना….’’ मैं ने अपने मन की बात कह दी. ‘‘मैं भी यही चाहती हूं. वैसे भी मम्मी ने एक जगह मेरी शादी के लिए बात चलाई है. लड़का इंजीनियर है और यहीं दिल्ली में ही जौब करता है. उसे देखने मेरे भैया भी आ रहे हैं,’’ बताते हुए शीतल का मुंह शरम से सुर्ख हो उठा. ‘‘ओह, कब आ रहे हैं, भैया. क्या करते हैं वे.’’ अब मेरा गुस्सा काफूर हो गया था. ‘‘वे डाक्टर हैं और ?झांसी के ही सरकारी अस्पताल में हाउस सर्जन हैं.’’ ‘‘अरे, तू ने पहले क्यों नहीं बताया?’’ ‘‘आप ने पूछा ही कब था,’’ शीतल तपाक से बोली. ‘‘अच्छा. वे जब भी आएं, उन्हें साथ जरूर लाना.

शाम के समय आएगी तो प्रशांत भी घर पर ही मिलेंगे. ऐसे ही तो जानपहचान बढ़ती है,’’ मैं बोली. कहां मैं उसे आने के लिए मना करने जा रही थी और अब उस के भाई को भी आमंत्रित कर रही थी. मैं उठी और उस के लिए शरबत ले कर आई. ‘‘यह देख शीतल, प्रशांत ने मुझे यह डायमंड का नैकलेस ले कर दिया है,’’ मैं ने उसे अलमारी के लौकर में से निकाल कर नैकलेस दिखाया. यह मैं ने सब साफ महसूस किया था, उस की तिरछी नजरें अलमारी और लौकर को घूर रही थीं. ‘‘वाह. कितना प्यारा है, कितने का है,’’ वह हाथ में ले कर देखती हुई बोली. ‘‘40 हजार रुपए का है,’’ मैं ने गर्व से कहा.

आज भी शीतल हमेशा की तरह शाम 4 बजे चली गई. ठीक 15 दिनों बाद वह दोपहर को सफेद शर्टपैंट पहने हुए अच्छी कदकाठी के रोबदार युवक के साथ आई. ‘‘ये मेरे परेश भैया हैं. मैं ने कहा था न कि आने वाले हैं. वैसे, शाम को भैया उस लड़के, जिस से मेरी शादी की बातचीत चल रही है, के घर जाने वाले हैं. अगर आप या प्रशांतजी भी साथ जाएं तो अच्छा रहेगा,’’ शीतल ने गेट में घुसते ही बताया. ‘‘तुझे बड़ी जल्दी है. पहले भैया को अंदर तो आने दे,’’ मैं ने मजाक किया. परेश ने मुझे नमस्ते किया. उस के चेहरे पर मंदमंद मुसकान थी. दोनों अंदर आए और सोफे पर बैठ गए. मैं रसोई में जा कर कोल्डड्रिंक गिलासों में डाल ही रही थी कि पीछे से किसी ने मुझको कस कर पकड़ा और कुछ समझ आए, उस से पहले तेजी से मेरे मुंह में कपड़ा ठूंस कर ऊपर से पट्टी बांध दी.

मैं ने पलट कर देखा, वे शीतल और परेश थे. अब वे दोनों मुझे घसीटते हुए बैडरूम में ले गए और कुरसी पर बैठा कर रस्सी से बांध दिया. मैं बेबस थी. सबकुछ खुली आंखों से देख रही थी. इसी बीच फोन की घंटी बजती रही लेकिन वे क्यों उठाते. दोनों ने अलमारी खोल कर कीमती सामान, गहने और कैश बाहर निकाला और स्टोररूम में से अटैची निकाल कर उस में भर लिया. दूसरी अटैची में मेरी कीमती साडि़यां और प्रशांत के अच्छे सूट छांटछांट कर डाल लिए. टीवी और वीसीआर भी चादर में बांध लिए और मेरे ही सामने फोन कर के टैक्सी बुला ली. वे मुझे बैडरूम में बंद कर के सामान ड्राइंगरूम में ले गए. थोड़ी देर में टैक्सी रुकने की आवाज आई, सामान टैक्सी में रखवाया और दरवाजे को बाहर से ताला लगा कर चंपत हो गए. मैं गुमसुम सी बंधी हुई बैठी थी. हिल भी नहीं सकती थी.

बीचबीच में फोन की घंटी बजती रही लेकिन मैं उठाने में असमर्थ थी. समय का भी पता नहीं चल रहा था. थोड़ी ही देर बाद बाहर से ताला तोड़ने की आवाज आई. शायद फोन न उठाने और मेन गेट के रोशनदान में से अंदर  कर ड्राइंगरूम की अस्तव्यस्त हालत देख प्रशांत को किसी अप्रिय घटना का अंदेशा हो गया था. प्रशांत ने अंदर घुसते ही पहले मुझे खोला और फिर पुलिस को खबर की. पुलिस ने मेरे बताए हुए शीतल के नंबर पर फोन किया तो पता चला कि वहां भी चोरी की वारदात हुई है. मकान मालिक 2 दिनों के लिए परिवार के साथ शहर से बाहर गया हुआ था. पीछे से उस का ताला तोड़ कर किराएदार शीतल और उस के साथी कीमती वस्तुएं तथा लगभग 1 लाख रुपए कैश ले कर फरार हैं. मकान मालिक, जो अभी लौटा है, ने पुलिस में रिपोर्ट लिखवाई है और छानबीन चल रही है. ‘ओह, यह क्या हो गया,’ मैं ने अपने दिल पर बोला महसूस किया और आंखों के सामने अंधेरा छा गया.

मैं गिरने ही वाली थी कि प्रशांत ने सहारा दे कर मुझे संभाल लिया. पुलिस केस बन गया था और शीतल के गिरोह की तलाश जारी थी. इस के ठीक एक सप्ताह बाद मु?ो डाक से एक चिट्ठी मिली. लिखा था : ‘हाय अंजू, कैसी हैं आप? आप की बहुत याद आती है. आप एक बहुत अच्छी सहेली थीं. आप को लूटने का मन तो नहीं था लेकिन यह तो हमारा ‘बिजनैस’ है, करना ही पड़ता है. हम लोग शहरशहर घूमते हैं, फिर कभी दिल्ली आई भी तो मिलूंगी नहीं. इस का मुझे बेहद अफसोस है. हां, उस दिन ‘होटल ड्रीम पैलेस’ में मैं ने भी आप को देखा था लेकिन अनदेखा कर दिया क्योंकि आप के पति की नजरों में मैं चढ़ना नहीं चाहती थी और फिर मैं जानती थी कि उस समय पति से मिलवाने में आप संकोच का अनुभव करोगी. मन की भाषा मैं खूब पढ़ लेती हूं.

अरे, पहले ही दिन मैं भांप गई थी कि आप जवानी की मानसिकता से बाहर निकलना नहीं चाहतीं. उसी का फायदा उठाते हुए मैं ने आप से दोस्ती कर ली. आगे क्याक्या हुआ, यह तो आप जानती ही हैं. खैर, वह डायमंड नैकलेस तो बिक गया लेकिन आप की पसंद की वह ‘खास’ साड़ी मैं ने खास अपने लिए रख ली है. कभी शादी की तो वह पहन कर दुलहन बनूंगी. धन्यवाद, शीतल (यह नाम सिर्फ आप के लिए है).’ चिट्ठी पढ़ कर उसे मैं ने पुलिस के हवाले कर दी. हो सकता है, हैंडराइटिंग या फिंगर प्रिंट्स शीतल को पकड़वाने में काम आएं.

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