रात 9.30 बजे विवेक ने मान्यता को फोन कर के कहा, “दीदी, मैं अब अर्चना के साथ नहीं रह सकता. मैं ने उस के साथ निभाने की बहुत कोशिश की, परंतु अब और बरदाश्त नहीं होता. मैं उसे 2-4 दिन में ही ‘तलाक’ देने की सोच रहा हूं…”
“परंतु विवेक, अभी 5 दिन बाद ही तो तुम दोनों की शादी की 8वीं सालगिरह है…”
“मुझे अब कुछ नहीं सुनना दीदी. और प्लीज, आप इस सब के बीच में पड़ कर अपना टाइम बरबाद मत करो. मैं ने बहुत सोचसमझ कर ही यह फैसला किया है,” कह कर विवेक ने फोन रख दिया.
मान्यता, विवेक से 4 साल बड़ी थी. उस की शादी 15 साल पहले अनुज के साथ हुई थी. अनुज का लखनऊ में एडवरटाइजिंग एजेंसी का कारोबार था. कंप्यूटर डिजाइनर की डिगरी होने के कारण मान्यता भी दिन में एक बार 2-3 घंटे अनुज के औफिस में जा कर उस का काम देखती थी. वह खुद भी काफी इनोवेटिव आइडिया देती थी, जिस से उन की एडवरटाइजिंग एजेंसी लखनऊ की सब से प्रतिष्ठित एडवरटाइजिंग एजेंसी कहलाती थी. उन की एजेंसी में एड देना यानी सफलता की गारंटी माना जाता था.
अनुज और मान्यता के 2 बेटे थे. अक्षज 8वीं जमात में और अक्षया 5वीं जमात में थे. उन का एक सुखी परिवार था. वे चारों लखनऊ की पौश कालोनी गोमती नगर में बड़े से बंगले में रहा करते थे.
विवेक की बात सुन कर मान्यता को रातभर नींद नहीं आई. हालांकि वह विवेक से महज 4 साल ही बड़ी थी, परंतु वह और उस के पति अनुज विवेक और उस की पत्नी अर्चना को अपने बच्चों की तरह ही प्यार करते थे.
मान्यता की बात सुन कर अनुज भी काफी दुखी हुए.
हालांकि विवेक और अर्चना ने प्रेम विवाह किया था, पर दोनों सजातीय थे और विवेक भी कानपुर में ही सरकारी कंपनी एचएएल में काम करता था, इसलिए दोनों परिवारों ने हंसीखुशी इस विवाह को मंजूरी दे दी थी.
अर्चना भी बहुत समझदार थी. उस ने पूरे घर को अपने प्यार से बांध रखा था. वह मान्यता और अनुज की बहुत इज्जत करती थी. बेटे पुष्कर के जन्म के 2 साल बाद से ही अर्चना ने भी एक निजी कान्वेंट स्कूल में बतौर शिक्षिका ज्वाइन कर लिया. पिताजी तो अर्चना को इतना पसंद करते थे कि उन्होंने मृत्यु से पूर्व अपनी वसीयत में अपना पुश्तैनी घर अर्चना के नाम ही कर दिया था. सबकुछ ठीकठाक चल रहा था, तो पता नहीं किस की नजर लग गई.
मान्यता को तो अपनी मां के जरीए ही उन दोनों के बीच पिछले 6 महीने से जारी खटपट का पता चल रहा था, परंतु इसे पतिपत्नी के बीच सामान्य सी बात समझ कर मान्यता ने इस बात में ज्यादा दखल देना उचित नहीं समझा, पर बात इतनी बिगड़ जाएगी कि उन दोनों के तलाक की नौबत आ जाए, सोच कर मान्यता उलझन में थी.
पूरा मामला जानने के लिए मान्यता ने सुबह जब मां को फोन किया, तो मां ने भी विवेक की साइड लेते हुए मान्यता को अर्चना के बारे में बहुत बुराभला कहा.
मां कह रही थी कि बहूरानी के पर निकल आए हैं. स्कूल से घर आ कर सिर्फ मोबाइल फोन और टीवी में लगी रहती है. थोड़ाबहुत काम निबटाने के बाद बेटे पुष्कर की पढ़ाई कराने में ही पूरी रात निकाल देती है. उस ने अब हम लोगों की तरफ ध्यान देना भी कम कर दिया, इसलिए जब पिछले हफ्ते उस के भाईभाभी यहां आए थे, तो विवेक ने उन को कुछ रिस्पौंस नहीं दिया. उन के जाने के बाद से ही बात बिगड़तेबिगड़ते तलाक तक आ पहुंची है.
मान्यता ने अपनी मां से कहा कि वह इस मामले में नहीं पड़ेगी, और उस ने फोन रख दिया.
मान्यता ने सारी बात अनुज से विस्तार से कही, जिस पर कुछ सोच कर उस ने मोबाइल पर अर्चना और विवेक को फोन कर के कहा कि वह एक नया एडवरटाइजिंग प्रोजैक्ट 2 दिन बाद शुरू कर रहा है, जिस के लिए उस ने उन दोनों को आमंत्रित किया है.
अर्चना और विवेक ने संकोच के कारण अपने जीजाजी अनुज को औपचारिक रूप से हामी भर दी, पर मन ही मन निश्चित किया कि वह कुछ बहाना बना कर टाल देंगे.
परंतु 2 दिन बाद ही अनुज ने सुबहसुबह उन दोनों को लाने के लिए ड्राइवर के साथ अपनी इनोवा गाड़ी कानपुर भेज दी.
अब घर में गाड़ी आने के कारण विवेक ने मां से आग्रह किया कि वह चली जाएं, पर मां ने साफ मना कर दिया कि वह पुराने खयालों की है, बेटीदामाद के घर का पानी भी नहीं पी सकती, मजबूरन विवेक और अर्चना ने पुष्कर के साथ 2 दिन का सामान साथ ले कर लखनऊ जाने का फैसला किया. वो दोनों खाली गाड़ी लौटा कर अपने जीजाजी का अपमान करने की हिम्मत नहीं कर सकते थे.
रास्ते में ही विवेक और अर्चना ने जरूरी कार्य के नाम पर अपनेअपने औफिस से 2 दिन की छुट्टी ले ली.
चूंकि उन दोनों ने पहले से कोई तैयारी नहीं की थी, इसलिए उन्होंने लखनऊ पहुंच कर घर जाने के पहले ही फल, मिठाइयां, पुष्प गुच्छ और उपहार रास्ते में ही ले लिए.
दीदी के घर पहुंचने के बाद उन्होंने देखा कि घर में पूजा हो रही थी. जीजाजी और दीदी को प्रणाम कर विवेक अपने भांजे और भांजी से खेलने में व्यस्त हो गया. अर्चना ने विवेक को इशारे से पहले उपहार और पुष्प गुच्छ दे कर अभिवादन करने को कहा.
अनुज ने विवेक और अर्चना का जिंदादिली से स्वागत किया. विवेक और अर्चना को लगा कि शायद दीदी ने जीजाजी को हमारे तलाक की बात नहीं बताई होगी. इसलिए वह दोनों उस घर में समझदार पतिपत्नी का अभिनय करने लगे.
लंच कर के जीजाजी ने विवेक और अर्चना का सामान एक बैडरूम में शिफ्ट कर दिया.
जब अनुज कुछ काम से औफिस चले गए, तो विवेक और अर्चना को लगा कि शायद अब मान्यता दीदी हम से हमारे तलाक के मुद्दे पर बात करेंगी.
परंतु यह क्या, वह तो अर्चना को साथ ले कर रसोईघर में कुछ काम करतेकरते बातें कर रही थी. उसे विश्वास ही नहीं हुआ कि मान्यता दीदी अनुज जीजाजी की बुराई कर रही थीं.
वह बोली, “सालभर बाद उन का साला और सरहज आए हैं, तो क्या छुट्टी ले कर इतना वक्त नहीं दे सकते थे, पर नहीं, उन को घर की तो कोई चिंता ही नहीं है.”
अर्चना ने कहा, “नहीं दीदी, हो सकता है कि उन्हें कोई जरूरी काम हो. देखना, वह जल्दी ही घर आ जाएंगे.”
इस के बाद विवेक, अर्चना और मान्यता बच्चों के साथ खेलने में व्यस्त हो गए.
रोज शाम को 7 बजे तक घर आ जाने वाले अनुज का जब रात 8 बजे तक भी कोई फोन न आया, तो मान्यता ने अनुज को फोन किया.
अनुज ने कहा कि वह बिजनैस मीटिंग में रहेगा, डिनर भी उन्हीं के साथ करेगा, आप लोग खाना खा लो.
मान्यता का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया, काहे की बिजनैस मीटिंग, दोस्तों के साथ पीने बैठ गए होंगे. कोई फिक्र ही नहीं हम सब की, अब तुम लोगों के साथ समय निकालना था कि दोस्तों के साथ जाना ज्यादा जरूरी था.
किसी तरह अर्चना ने मान्यता को समझाया कि हो सकता है कि कोई मीटिंग हो, फिर हम कोई बाहर के लोग तो हैं नहीं, कल साथ में डिनर कर लेंगे.
रात 11.30 बजे जब अनुज घर आए तो मान्यता और अर्चना बच्चों के साथ अपनेअपने बैडरूम में सोने चली गई थी. विवेक ड्राइंगरूम में जीजाजी की प्रतीक्षा कर रहा था.
दरवाजा खोलते ही विवेक को अनुज के मुंह और कपड़ों से शराब की बदबू आई. अनुज बड़बड़ा रहा था, ‘तुम्हारी बहन क्यों नहीं आई दरवाजा खोलने? मेरी कोई कद्र नहीं करती. मैं तलाक दे दूंगा उसे,’ कहतेकहते विवेक की मदद से गिरतेपड़ते अनुज अपने बैडरूम पहुंचा.
विवेक को अनुज जीजाजी का यह व्यवहार बहुत ही बुरा लगा.
अपने कमरे में आ कर विवेक ने देखा कि अर्चना अभी सोई नहीं थी. उस ने उसे इशारे से कहा कि जीजाजी ड्रिंक कर के आए हैं.
यह देख अर्चना बुरी तरह सहम गई. उस ने भय के मारे विवेक के हाथ मजबूती से पकड़ लिए थे. भले ही अर्चना और विवेक के संबंध खराब चल रहे थे, परंतु विवेक ने कभी इस तरह शराब पी कर अर्चना के बारे में कोई गालीगलौज नहीं की थी.
दूसरे दिन सुबह जब विवेक और अर्चना चाय पीने के लिए डाइनिंगरूम गए तो देखा कि अनुज जीजाजी और मान्यता दीदी में जोरजोर से बहस चल रही थी.
मान्यता दीदी अनुज जीजाजी को कल के व्यवहार पर बोली, तो वह भड़क उठे थे. अनुज जीजाजी गुस्से में बिना खाएपिए ही औफिस निकल गए.
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किसी तरह टेंशन के बीच उन लोगों ने दोपहर का लंच किया. मान्यता दीदी अभी भी दुखी होने के कारण बैडरूम में सो रही थी, इसलिए अर्चना ने ही उस के दोनों बच्चों अक्षज और अक्षया को शाम को स्नेक्स आदि कराया.
उस भरेपूरे घर का माहौल पूर्णतः बोझिल हो रहा था.
आज गुस्से में न तो मान्यता दीदी ने जीजाजी को फोन किया कि कब तक आ रहे हो, और न ही जीजाजी का कोई फोन आया.
रात 10.30 बजे तक जब जीजाजी नहीं आए, तो उन चारों ने बच्चों के साथ मिल कर डिनर किया.
जीजाजी के इस तरह समय पर न आने से मान्यता दीदी बहुत आहत हुई थी. वह रहरह कर बोल रही थी कि इस तरह सहन करने से अच्छा है कि मैं अनुज को तलाक दे कर वापस कानपुर चली आऊं.
उन की बात सुन कर विवेक और भी सहम गया था.
विवेक के सहमे हुए चेहरे को देख कर मान्यता फीकी सी हंसी दे कर बोली, “घबराने की जरूरत नहीं भाई, मैं वहां तुम पर बोझ नहीं रहूंगी.”
विवेक रोआंसा होते हुए बोला, “नहीं दीदी, आप तो मेरे साथ सारी जिंदगी रह सकती हो. बस ये भांजे और भांजी बिना जीजाजी के कैसे रहेंगे, सोच कर दुखी हो रहा था.”
अर्चना ने बीच में ही टोक कर कहा, “दीदी, हफ्तेपंद्रह दिन के लिए मायके जाना अलग बात होती है, और तलाक ले कर तो एक दिन भी नहीं गुजर सकता. लोगों की सवालियां निगाहें आप को बहुत परेशान करेंगी. मेरे हिसाब से एक बार हम सब मिल कर जीजाजी को समझाते हैं. ऐसी छोटीमोटी बातें तलाक तक नहीं पहुंचनी चाहिए.”
मान्यता दीदी ने पूछा, “अरे, तुम दोनों भी तो वैसे ही कम परेशान हो क्या? और मैं आ कर वहां क्या करूंगी? अच्छा, तुम दोनों की ऐसी क्या वजह थी कि तुम दोनों तलाक लेना चाहते हो?”
अर्चना ने कहा, “आप दोनों की बीच बढ़ी इतनी दूरियों को देख कर तो लगता है कि हमारे बीच ऐसी कोई बड़ी वजह ही नहीं थी, जिस के आधार पर हम तलाक लेने की बात कर रहे थे.
बस शायद ये मुझे टाइम नहीं दे पा रहे और न मैं इन्हें, इसलिए थोड़ा मनमुटाव बढ़ गया था. मैं विवेक और मां से अपने बरताव के लिए माफी मांगती हूं.”
विवेक ने भी कहा, “मुझे भी तुम्हारे भैयाभाभी को वक्त देना था. आज 2 दिन में ही मुझे समझ आ गया कि उन दोनों को कितना बुरा लगा होगा. अब आगे से मुझ से अनजाने में भी कोई ऐसी गलती नहीं होगी.”
विवेक ने आगे कहा, “हम ने सिर्फ 2 दिन की ही छुट्टी ली थी. कल हमें सुबह जल्दी ही कानपुर निकलना होगा. हम अपना सामान पैक कर लेते हैं.”
उन दोनों को जीजाजी की प्रतीक्षा करतेकरते रात 11.45 हो चुके थे. विवेक को डर था कि शायद आज भी अनुज जीजाजी इसी प्रकार कल की तरह शराब पी कर आएंगे और अर्चना व बच्चों के सामने बखेड़ा न खड़ा कर दे, इसलिए विवेक जल्दी ही उन सब को बैडरूम में जाने का आग्रह कर रहा था.
अभी वे लोग अपने बैडरूम पहुंचे ही थे कि तभी डोरबेल बजती है. किसी अनहोनी की आशंका से विवेक ने मान्यता दीदी और उन के बच्चों को भी उन के बैडरूम में सोने के लिए भेज दिया.
विवेक ने सोच रखा था कि यदि आज भी अनुज जीजाजी कल की तरह शराब पी कर आए और कोई तमाशा किया, तो वह उन्हें बोल देगा कि आप मान्यता दीदी को अकेला मत समझना. मैं कल ही उन को अपने साथ कानपुर ले जा रहा हूं.
विवेक धड़कते दिल से दरवाजा खोलता है. वह देखता है कि अनुज जीजाजी एक हाथ में केक बौक्स और एक हाथ में पुष्प गुच्छ ले कर मुसकराते हुए अंदर आते हैं, जैसे कि कोई बात ही न हुई हो.
अनुज जीजाजी ने विवेक को कहा कि वह अर्चना को ले कर आए, और स्वयं मान्यता को आवाज देने लगे.
विवेक जब तक अर्चना को ले कर ड्राइंगरूम में आता है, मान्यता भी वहां आ जाती है और केक ओपन कर के विवेक और अर्चना को केक काटने को बोलती है. तुम दोनों को शादी की सालगिरह की बहुत शुभाशीर्वाद.
अनुज भी मुसकराते हुए उन दोनों को पुष्प गुच्छ और साथ लाया उपहार दे कर कहते हैं, “मुझे बहुत प्रसन्नता हुई कि तुम दोनों ने तलाक लेने जैसा निकृष्ट विचार त्याग दिया है. हर पतिपत्नी के बीच शादी के कुछ सालों बाद छोटीमोटी खटपट तो होती रहती हैं. उन को भी दिनचर्या की बातों में ही भूल जाना चाहिए.
“और हां, मैं तुम्हारी बहन मान्यता को बहुत प्यार करता हूं और उसे कोई तलाक नहीं दे रहा हूं,” कह कर वे हंसने लगे.
मान्यता भी विवेक के ठगे से चेहरे को देख कर जोर से हंस पड़ी और बोली, “यदि मैं तुम दोनों को बातों से समझाने की कोशिश करती तो शायद तुम दोनों मेरे सामने हां करते, पर तुम दोनों के बीच मन का दुराव कभी दूर नहीं होता, इसलिए हम दोनों ने यह सब प्लानिंग कर के तुम दोनों को उस माहौल में विचार करने के लिए छोड़ दिया.
“मुझे खुशी है कि तुम और अर्चना दोनों ने समझदारी से काम लिया. अब वादा करो कि तुम दोनों के बीच यदि झगड़ा हो तो उसे आपसी समझदारी से दूर करोगे.
अर्चना और विवेक आत्मग्लानि से सिर झुका कर खड़े थे. उन की आंखों में पश्चाताप के आंसू थे.
तभी अनुज ने कहा कि विवेक तुम्हें समझाने के चक्कर में अब दोबारा उस देशी दारू की दुकान नहीं जाने वाला मैं.
जीजाजी की बात सुन कर सभी खिलखिला कर हंस दिए.
आखिर किसी की शादीशुदा जिंदगी पटरी पर लाने के लिए उन दोनों का अपनी शादीशुदा जिंदगी के पटरी से उतरने का “अभिनय” करना काम कर गया था.
दूसरे दिन उसी इनोवा से विवेक और अर्चना बेटे पुष्कर के साथ कानपुर की ओर जा रहे थे.
रास्ते भर गिरता पानी उन दोनों के दिलों में जमी गर्द धो रहा था. अर्चना विवेक के कंधे पर सिर रख कर बेफिक्री से सो रही थी. उस की आंखों की कोर से बहती अश्रुधारा बता रही थी कि अब उस के मन में कोई क्लेश शेष नहीं है.