लेखक-डा. नगेंद्र कुमार त्रिपाठी डा. एनके त्रिपाठी, वैज्ञानिक, पशुपालन, कृषि विज्ञान केंद्र, लखीमपुर खीरी

भारत एक कृषि प्रधान देश होने के साथ ही पशुधन में भी प्रथम स्थान रखता है. पशुओं की देखभाल में पशुपालकों को अनेक तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. पशुपालकों को पशु स्वास्थ्य की बेसिक जानकारी होना बहुत जरूरी है, जिस से उन में होने वाले साधारण रोगों को पशुपालक सम?ा सकें और उन का उचित उपचार किया जा सके. अपच दुधारू पशुओं में होने वाली एक ऐसी समस्या है, जो दुग्ध उत्पादन को कम कर पशुपालकों को माली नुकसान पहुंचाती है. गायों का प्रमुख पाचन अंग रूमेन है, जहां घास, भूसा, हरा चारा व दाना का माइक्रोबियल गतिविधि के कारण संशोधन होता है.

अपच की स्थिति में अधिक मात्रा में बिना पचा हुआ भोजन रूमेन में जमा हो जाता है, जिस के कारण रूमेन के काम करने की क्षमता और वहां उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु भी प्रभावित होते हैं. जब रूमेन सही तरीके से काम नहीं कर पाता है, तो जानवरों में इस के कारण अनेक तरीकों की समस्याएं जैसे हाजमा खराब होना, अफरा आदि उत्पन्न करती हैं. नतीजतन, उत्पादन क्षमता पर भी बुरा असर पड़ता है. अपच की समस्या सीधे डेरी फार्म की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है, इसलिए दुधारू पशुओं की सामान्य शारीरिक क्रिया व उत्पादन क्षमता में तालमेल बनाए रखने के लिए उन के भोजन व प्रबंधन में पर्याप्त ध्यान देने की जरूरत होती है.

अपच के मुख्य कारण प्रबंधन खाने में अधिक मात्रा में दाना देने से पशुओं में अपच की समस्या आती है. कम गुणवत्ता वाला चारा खिलाना या अधिक मात्रा में दलहनी हरा चारा व नई पत्ती वाला हरा चारा खिलाना. खाद्यान्न के प्रकार में अचानक ही परिवर्तन होना. वातावरणीय कारण गरम वातावरण : अधिक तापमान का होना भी अपच का मुख्य कारण होता है.

नम हरा चारा : इस तरह का चारा मुख्यत: मानसून के समय मिलता है, जो पशुओं को खिलाने से उन में अपच की समस्या पैदा होती है. पशुकारक कारण ट्रांजिशन पीरियड (प्रसव अवस्था के पहले और बाद) : अधिक उम्र्र में सड़ागला खाना, एक ही करवट लेटे रहने और आंतों में रुकावट होने के कारण भी अपच की समस्या होती है. दुधारू गायों में आमतौर पर इस तरह का अपच होता है :

* अम्लीय अपच : रूमेन एसिडोसिस एक महत्त्वपूर्ण पोषण संबंधी विकार है. यह आमतौर पर उत्पादकता बढ़ाने के लिए अत्यधिक किण्वन योग्य भोजन खिलाने के कारण होता है. स्टार्च खिलाने से अत्यधिक किण्वन होने के कारण रूमेन में बैक्टीरिया की संख्या बढ़ जाती है. ये बैक्टीरिया रूमेन में अधिक मात्रा में वोलेटाइल फैटी एसिड यानी वीएफए और लैक्टिक एसिड का उत्पादन करने लगते हैं, जिस के फलस्वरूप रूमेन एसिडोसिस और अपच की समस्या उत्पन्न होती है.

* क्षारीय अपच : अत्यधिक मात्रा में प्रोटीनयुक्त भोजन या गैरप्रोटीन नाइट्रोजनयुक्त पदार्थ खाने से रूमेन एल्कालोसिस अथवा क्षारीय अपच की समस्या दुधारू पशुओं में देखी जाती है. इस रोग की विशेषता यह है कि रूमेन में अमोनिया अत्यधिक बनने लगता है, जिस के कारण आहार नाल संबंधी जैसे अपच, लिवर, किडनी, परिसंचरण तंत्र व तंत्रिका तंत्र में गड़बड़ी आने लगती है. * वेगस अपच : मूल रूप से यह विकार वेट्रल वेगस तंत्रिका को प्रभावित करने वाले घावों, चोट, सूजन या दबाव के परिणामस्वरूप होता है. यह समस्या मुख्य रूप से मवेशियों में देखी जाती है, परंतु कभीकभी भेड़ों में भी यह विकार देखा गया है. अपच से जुड़ी और भी समस्याएं रूमिनल एसिडोसिस : रूमेन के पीएच का कम हो जाना. रूमिनल एल्क्लोसिस : रूमेन के पीएच का अधिक बढ़ जाना. अफरा यानी गैस का पेट में रुक जाना.

अपच के लक्षण

* पशुओं का जुगाली कम करना.

* पशुओं में भूख की कमी.

* दूध का कम देना.

* डिहाइड्रेशन.

* पशु सुस्त हो जाता है और सूखा व सख्त गोबर करता है.

उपचार * पहचान होने पर सब से पहले इस के कारण का निवारण करना चाहिए, जैसे यदि खराब चारा हो, तो तुरंत बदल देना चाहिए या फिर पेट में कृमि हो, तो उपयुक्त कृमिनाशक दवा देनी चाहिए. * पेट की मालिश आगे से पीछे की ओर व खूंटे पर बंधे पशु को नियमित व्यायाम कराना चाहिए. * देशी उपचार हलदी, कुचला, अजवाइन, काली मिर्च, अदरक, मेथी, चिरायता, लौंग, पीपर इत्यादि का उपयोग पशु के वजन के हिसाब से किया जा सकता है. एलोपैथिक उपचार * फ्लूड उपचार यानी अपच से प्रभावित पशु को शरीर के अनुसार पर्याप्त मात्रा में डीएनएस, आरएल और एनएस देना चाहिए. * मैग्नीशियम हाईड्रोक्साइड 100-300 ग्राम प्रति 10 लिटर पानी के साथ देना चाहिए. * मैग्नीशियम कार्बोनेट 10-80 ग्राम. * सोडियम बाई कार्बोनेट 1 ग्राम प्रति किलोग्राम भार के अनुसार दें. * विनेगर (सिरका) 5 फीसदी 1 मिलीग्राम प्रति किलोग्राम भार के अनुसार देना चाहिए. * एंटीबायोटिक जैसे पेनिसिलीन, टायलोसीन, सल्फोनामाइड, टेट्रासाइकिलिन का उपयोग किया जा सकता है. साथ ही, एंटीहिस्टामिनिक (एविल, सिट्रीजिन) व बी. कौंप्लैक्स इंजैक्शन दिया जा सकता है. इन सभी एलोपैथिक दवाओं का उपयोग माहिर पशु डाक्टर की सलाह से किया जाना चाहिए.

अपच की रोकथाम * पशुओं को संपूर्ण मिश्रित भोजन खिलाएं. दाने व चारे को अलगअलग नहीं खिलाना चाहिए.

* पशुओं को रोज निर्धारित समय पर ही भोजन दें.

* साफ पानी ही पीने के लिए पशुओं को देना चाहिए.

* चारे में परिवर्तन धीरेधीरे तकरीबन 21 दिनों में करना चाहिए.

* भोजन के साथ कैल्शियम प्रोपिओनेट, सोडियम प्रोपिओनेट और प्रोपायलीनग्लायकोल आदि को ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में दिया जा सकता है.

* गरमी के मौसम में छायादार, हवादार और ठंडी जगह पर पशुओं को रखना चाहिए, ताकि उन में कम से कम गरमी का बुरा असर पड़े. अधिक जानकारी के लिए कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक और अध्यक्ष से संपर्क करें.

गर्भवती दुधारू पशुओं की देखभाल ज्यादातर दुधारू पशु ब्याने के 3 से 4 महीने के अंदर गर्भ धारण कर लेते हैं. गर्भ की शुरुआत में उन को कोई खास अतिरिक्त आहार देने की जरूरत नहीं पड़ती है, लेकिन जब गर्भ की अवस्था 5 माह की हो जाती है, तो गर्भ में पल रहा भ्रूण अपने विकास अवस्था में पोषक तत्त्वों के लिए मां पर ही निर्भर करता है. दुधारू पशु को गर्भकाल के 5 महीने के बाद पोषक तत्त्वों की ज्यादा जरूरत पड़ती है. इस के लिए उसे जो दूध उत्पादन के लिए आहार दिया जा रहा था, उस के अतिरिक्त गर्भ के विकास के लिए 2 किलोग्राम अतिरिक्त दाना देना चाहिए. इस से गर्भ में पल रहे बच्चे का भलीभांति विकास होगा एवं जन्म के समय उस का वजन भरपूर होगा. इस की वजह से दुधारू पशु ब्यांत के बाद अच्छा दूध उत्पादन करेगा. यह भी ध्यान रखना होगा कि अगर आप दुधारू पशु से दूध उत्पादन ले रहे हैं,

तो डेढ़ से 2 माह पहले उस के दूध को सुखाना होगा, जिस से वह अपने स्वास्थ्य को फिर से अगले दूध उत्पादन के लिए तैयार कर ले. दुधारू पशु को कम से कम 5 किलोग्राम भूसे के साथ 20 से 25 किलोग्राम हरा चारा एवं 3 किलोग्राम दाना मिश्रण अवश्य देना चाहिए. दाने में चोकर एवं खली के साथसाथ 50 ग्राम मिनरल मिक्सचर, जिस में कैल्शियम, फास्फोरस एवं सूक्ष्म पोषक तत्त्व की भरपुर मात्रा हो, देनी चाहिए. अगर हरा चारा बिलकुल न मिल रहा हो, तो दाने की मात्रा 3 किलोग्राम से बढ़ा कर 5 किलोग्राम तक कर देनी चाहिए. गर्भवती पशु को ऊंचीनीची जगह से बचाना चाहिए एवं अन्य पशुओं से दूर रखना चाहिए, अन्यथा आपस में लड़ने की अवस्था में गर्भ को नुकसान पहुंचने का खतरा रहेगा. अधिक जानकारी के लिए अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र के पशु वैज्ञानिकों से संपर्क करें या लेखक द्वारा दिए गए पते पर समस्या का समाधान करें.

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