8 नवंबर हर साल एक महायातना की याद दिलाता है जब पूरे देश के नागरिकों की जमापूंजी को नरेंद्र मोदी के एक भाषण से सरकार ने एक तरह से अपराध का पैसा मान कर जब्त कर लिया था. नोटबंदी थोपे जाने के 6 वर्षों बाद यह जिन्न एक बार फिर से बाहर आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने नोटबंदी की संवैधानिक वैधता पर सुनवाई करना शुरू कर दिया है. कोर्ट ने केंद्र सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक को विस्तृत हलफनामा दाखिल कर नोटबंदी की प्रकिया बताने को कहा है. कोर्ट ने कहा कि वह सरकार के नीतिगत फैसलों की न्यायिक समीक्षा पर अपनी लक्ष्मणरेखा को जानता है.
5 जजों की एस ए नजीर की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि जब संविधान पीठ के सामने कोई मुद्दा उठता है तो जवाब देना उस का कर्तव्य है. इस से पहले 16 दिसंबर, 2016 को तत्कालीन सीजेआई टी एस ठाकुर की अध्यक्षता वाली बैंच ने नोटबंदी की वैधता वाली याचिका को 5 न्यायाधीशों की एक बड़ी बैंच के पास भेज दिया था. हर साल का नवंबर माह आते ही देशवासियों को 8 नवंबर, 2016 का वह दिन और रात 8 बजे का समय याद आ जाता है. यह बताया जाता है कि आज रात 8 बजे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के नाम अपना संदेश देंगे. लोगों को इस बात का कोई अंदाजा नहीं था कि प्रधानमंत्री मोदी अपने संदेश में क्या कहने वाले हैं. मोदी ने जैसे ही यह कहा कि ‘आज रात 12 बजे के बाद आप के 1 हजार और 500 रुपए के नोट लीगल टैंडर नहीं रहेंगे.’
लोगों को यह सम झ ही नहीं आया कि ‘लीगल टैंडर नहीं रहेंगे, का मतलब क्या है? अभी प्रधानमंत्री का संदेश खत्म भी नहीं हुआ था कि व्हाट्सऐप पर लोगों को यह मैसेज मिलने लगा कि 500 और 1 हजार रुपए के नोट चलन से बाहर कर दिए गए हैं. यह पता चलते ही भारी भीड़ बैंकों के एटीएम के सामने लाइन लगा कर खड़ी हो गई. रात 12 बजे से पहले ही सभी एटीएम पूरी तरह से खाली हो गए. देशवसियों की पूरी रात यह सम झने में निकल गई कि नोटबंदी का मतलब यह है कि सरकार की नजर में आप के पास जो भी नकद पैसा रखा है वह ‘कालाधन’ है. वह अपराध से जमा किया पैसा है और आप को साबित करना है कि आप शरीफ हैं, बेगुनाह हैं. नरेंद्र मोदी की एक घोषणा ने नकद पैसा रखे हर किसी को अपराधी बना दिया. अब वह इस की सजा भुगतने के लिए सुबहसुबह अखबारों में यह पढ़ने लगा कि नोटबंदी क्या है? उस के पैसों का क्या होगा? नए नोट उस को कैसे मिलेंगे? देश की दिनचर्या बदल गई.
देशवासी सारा कामधाम छोड़ कर नोट बदलने के लिए बैंकों के चक्कर लगाने लगे. यह एक तरह की अदालती कार्रवाई थी जिस में लोग अपने पैसे को गुनाह का पैसा नहीं है सिद्ध कर रहे थे. एटीएम से पैसे निकालने की पूरी व्यवस्था ध्वस्त हो गई थी. बैंकों के सामने लंबी लाइनें लग चुकी थीं. जैसेजैसे एटीएम काम करने लगे थे वहां लंबी लाइनें लगने लगी थीं. किसी को अस्पताल के लिए पैसा चाहिए था, किसी को शादी के लिए, किसी को स्कूलकालेज की फीस के लिए तो किसी को किसी दूसरी जरूरत के लिए. उस के अपने ही पैसे बैंक में रखे थे पर उस के काम नहीं आ रहे थे. जिन के पैसे बैंकों में जमा थे वे अपने पैसे लेने के लिए मुजरिमों की तरह बैंक के मैनेजर के सामने गिड़गिड़ा रहे थे कि ‘हुजूर हमारे पैसे हमें दे दीजिए.’ बैंक का मैनेजर कह रहा था कि ‘नहीं, केवल दो हजार रुपए ही रोज के बदले जा सकते हैं.’ नहीं भूलते नोटबंदी वाले दिन देश का सामाजिक तानाबाना बनताबिगड़ता दिखने लगा.
लोगों के अंदर बहुत भाईचारा देखने को मिलने लगा था. अमीर दोस्तों को उन के गरीब दोस्त याद आए. अमीर रिश्तेदारों को अपने गरीब रिश्तेदारों के महत्त्व का एहसास होने लगा. मालिक ने नौकर को पुराने नोट दे कर नए नोट लाने के लिए विवश किया. अपने ही पैसे बचाने के लिए गरीब दोस्तों, रिश्तेदारों के बैंक अकाउंट्स में पैसा डालना पड़ा. लोगों ने 20 से 30 प्रतिशत के लालच पर पुराने नोटों को बदलना शुरू किया. कुछ बैंकों व डाक कर्मचारियों ने कालाधन खपाने के लिए रिश्वत ले कर काम किया. नोटबंदी ऐसा कदम था जिस में समूचा भारत व्यापक स्तर पर प्रभावित हुआ. गरीब, अमीर, छोटा, बड़ा, बुजुर्ग, बच्चे और महिलाएं हर किसी को नोटबंदी के फैसले ने प्रभावित किया. नोटबंदी लागू करने के लिए किसी तरह की पुख्ता तैयारी सरकार, भारतीय रिजर्व बैंक और बैंकों की नहीं थी.
इस वजह से रोज नए नियमों में बदलाव हो रहे थे. रिजर्व बैंक और केंद्र सरकार दोनों ने कुल 70 से अधिक बदलाव किए. 9 से 13 नवंबर तक नोटबंदी के चलते बैंक और एटीएम बंद रखे गए. सप्ताह में रुपया निकासी की लिमिट तय कर दी गई थी मानो यह पैसा सरकार का था और जनता को दान में या उपहार में मिल रहा है. एटीएम की लाइन में लगी महिला ने दिया बच्चे को जन्म सब से यादगार घटना उत्तर प्रदेश के कानपुर जिले में घटी. 2 दिसंबर, 2016 को पंजाब नैशनल बैंक की झीं झक शाखा में सरदार पुरवा गांव की रहने वाली महिला सर्वेशा देवी पैसे निकालने के लिए सुबह 11 बजे से लाइन में लगी थी. उस को अस्पताल जाना था. उसे बच्चा होने वाला था. पैसे निकालने में देर हो रही थी. 2 घंटे लाइन में लगेलगे ही उस को लेबर पेन शुरू हो गया. महिला ने वहीं लाइन में ही बच्चे को जन्म दे दिया. उत्तर प्रदेश के उस समय के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने इस बच्चे का नाम खजांची रख दिया था.
परिवार की मदद के लिए एक लाख रुपए भी दिए थे. अखिलेश यादव ने इस परिवार की मदद का वादा किया था और वे बराबर इस काम को करते आ रहे हैं. 2018 में खजांची के परिवार को रहने के लिए घर गिफ्ट में दिया था. अखिलेश यादव खुद खजांची के पैतृक गांव सरदार पुरवा पहुंचे थे. खजांची के नए घर का निरीक्षण किया था. खजांची को दिया यह घर इसलिए भी खास है क्योंकि गांव में यह पहला लोहे व कंक्रीट से बना घर है. जिस कसबे में खंजाची का जन्म हुआ था उसी कसबे में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का पैतृक आवास है. अखिलेश यादव ने नोटबंदी का विरोध करने के लिए खजांची को नोटबंदी विरोध का ‘ब्रैंड एंबेसडर’ बनाया है. उत्तर प्रदेश में 2022 के विधानसभा चुनाव के समय जब अखिलेश यादव की विजय रथ यात्रा कानपुर आई तो उस का शुभारंभ खजांची के हाथ से हुआ था. नोटबंदी के 6 साल पूरे लेकिन घाव हरे नोटबंदी के दौरान बैंक और एटीएम की लाइन में लगे लोगों को तमाम तरह की दिक्कतों का सामना पूरे देश में करना पड़ा था. नोटबंदी के 50 दिनों में करीब 115 लोगों की मौतें हुई थीं.
8 नवंबर आते ही याद आता है कि किस तरह से अपना पैसा लेने के लिए बैंक मैनेजर को सफाई देनी पड़ रही थी. आधार कार्ड पर लिख कर देना पड़ रहा था कि यह पैसा हमारा ही है, हम अपराधी नहीं हैं. घंटों लाइन में लगे होने के बाद भी जब पैसा मिलने का नंबर आता था तो बैंक और एटीएम दोनों ही जगह नोट खत्म होने की बात कह हर पैसा देने से मना कर दिया जाता था. सरकार का मानना है कि नोटबंदी का सकारात्मक असर रहा. हालांकि जिस उम्मीद के साथ सरकार ने नोटबंदी का फैसला लिया था वह उम्मीद पूरी होती नहीं दिखी है. नोटबंदी का सब से ज्यादा प्रभाव उन उद्योगों पर पड़ा जो ज्यादातर कैश में लेनदेन करते थे. उन में अधिकतर छोटे उद्योग शामिल हैं. नोटबंदी के दौरान इन उद्योगों के लिए कैश की किल्लत हो गई. इस की वजह से उन का कारोबार ठप पड़ गया. लोगों की नौकरियां गईं. बड़ी संख्या में बेरोजगारी बढ़ी. 6 साल के बाद भी यह खत्म नहीं हुई है. अचानक नोटबंदी के फैसले से पूरे देश में अफरातफरी का माहौल बन गया था.
नोटबंदी का प्रभाव संगठित और असंगठित दोनों क्षेत्रों के कारोबारों पर पड़ा. हालात को काबू में करने के लिए नोटबंदी से जुड़े नियम हर रोज बदले जा रहे थे, जिस से यह साफ हो गया था कि नोटबंदी को ले कर सरकार की पहले से कोई तैयारी नहीं थी. नोटबंदी की मोदी सरकार ने कई वजहें बताईं. उन में कालेधन का खात्मा करना, सर्कुलेशन में मौजूद नकली नोटों को खत्म करना, आतंकवाद और नक्सल गतिविधियों पर लगाम कसना आदि थीं. सरकार का तर्क था कि नोटबंदी के बाद टैक्स कलैक्शन बढ़ेगा और कालेधन में इस्तेमाल होने वाला पैसा सिस्टम में आ जाएगा. रिजर्व बैंक के आंकड़े बताते हैं कि नोटबंदी के दौरान बंद हुए 99.30 फीसदी 500 और 1,000 के पुराने नोट बैंक में वापस आ गए.
इस का मतलब यह था कि वह कालाधान नहीं था. नोटबंदी के बाद जीडीपी को झटका लगा, जिस से देश अभी तक नहीं उबर पाया है. नोटबंदी की घोषणा के बाद की पहली तिमाही में जीडीपी वृद्धि दर घट कर 6.1 फीसदी पर आ गई थी. जबकि इसी दौरान साल 2015 में यह 7.9 फीसदी पर थी. सरकार का कहना है कि डिजिटल लेनदेन बढ़ा है. इस का दूसरा सच यह है कि इस से कारोबार करने वालों की परेशानी बढ़ी है. उस ने अपनी चीजों के दाम बढ़ा दिए है. नोटबंदी और जीएसटी के चक्कर में छोटेछोटे दुकानदारों को अपने हिसाबकिताब के लिए एक सीए यानी चार्टर्ड अकाउंटैंट, एक वकील और एक कंप्यूटर जानने वाले की जरूरत पड़ने लगी है. इस का खर्च भी उस ने अपने सामान में जोड़ दिया है, जिस से महंगाई और भी बढ़ी है. नोटबंदी में किसान हुए परेशान कृषि मंत्रालय ने वित्त पर संसदीय स्थायी समिति को सौंपी अपनी रिपोर्ट में कहा कि नोटबंदी की वजह से भारत के लाखों किसान ठंड की फसलों के लिए खाद और बीज नहीं खरीद पाए थे.
वित्त पर संसद की स्थायी समिति के अध्यक्ष कांग्रेस सांसद वीरप्पा मोइली को कृषि मंत्रालय, श्रम एवं रोजगार मंत्रालय और सूक्ष्म, लघु व मध्यम उद्योग मंत्रालय द्वारा नोटबंदी के प्रभावों के बारे में बताया गया. कृषि मंत्रालय द्वारा सौंपी गई रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी ऐसे समय पर की गई जब किसान अपनी खरीफ फसलों की बिक्री और रबी फसलों की बुआई में लगे थे. इन दोनों कामों के लिए भारी मात्रा में कैश की जरूरत थी लेकिन नोटबंदी की वजह से सारा कैश बाजार से खत्म हो गया था. मंत्रालय ने कहा कि भारत के 26.3 करोड़ किसान ज्यादातर कैश अर्थव्यवस्था पर आधारित हैं. इस की वजह से रबी फसलों के लिए लाखों किसान बीज और खाद नहीं खरीद पाए थे.
यहां तक कि बड़े जमींदारों को भी किसानों को मजदूरी देने और खेती के लिए चीजें खरीदने में समस्याओं का सामना करना पड़ा था. कैश की कमी की वजह से राष्ट्रीय बीज निगम लगभग 1.38 लाख क्विंटल गेंहू के बीज नहीं बेच पाया था. यह स्थिति तब भी नहीं सुधर पाई जब सरकार ने कहा था कि 500 और 1,000 के पुराने नोट गेंहू के बीज बेचने के लिए इस्तेमाल किए जा सकते हैं. मजदूरों को बड़े शहरों से भागना पड़ा मिलों में काम करने वाले लेबर यानी सब से गरीब तबके पर नोटबंदी के फैसले की मार सब से अधिक पड़ी. जहां उद्योगों निर्यातकों को अपने सप्लाई और्डर कैंसिल कर भारी घाटा उठाने के लिए मजबूर होना पड़ा वहीं दिल्ली से यूपी या बिहार जाने वाली ट्रेनों की भीड़ यह बात चीखचीख कर कह रही है कि लोग कई सालों, कई महीनों कड़ी मेहनत कर कमाए गए पैसों के कागज बन जाने के कारण शहर छोड़ कर खाली हाथ गांवों को लौटने को मजबूर हुए.
सैंटर फौर मौनिटरिंग इंडियन इकोनौमी (सीएमआईई) की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि नोटबंदी के बाद जनवरीअप्रैल 2017 के बीच 15 लाख लोगों की नौकरियां चली गईं. मई से ले कर अगस्त 2019 के बीच 59 लाख लोगों को फैक्ट्रियों और सेवा क्षेत्रों से निकाल दिया गया. सरकारी विभागों में तो नौकरियों की किल्लत लगातार बढ़ ही रही थी. इधर नोटबंदी के बाद निजी कंपनियों ने भी नौकरियों में छंटनी की. कंपनियों में सैलरी समय से नहीं मिल रही है. दोदो महीने की देरी हो रही है. दो साल से सैलरी नहीं बढ़ी है. ठेकेदारों, दुकानदारों व छोटे उद्योगपतियों ने अपने कर्मचारियों व मजदूरों का भुगतान पुरानी करैंसी में किया जो बेकार हो गई थी. इस से मजबूरों को भूखे मरने की नौबत आ गई. उन में से जिन लोगों के बैंक खाते में पैसे थे वे निकल नहीं पा रहे थे. नोटबंदी के फैसले से अपने ही कमाए पैसों पर अधिकार नहीं रह गया था. ऐसे में नोट पर से जनता का भरोसा खत्म हो गया.
नोटबंदी के कारण मंदी में फंसे कारोबार में काम खत्म होने के कारण कई सालों की नौकरी छोड़ कर बेरोजगारी के कारण लोगों को अपने गांवघर वापस जाना पड़ा. नकद मतलब अपराध से मिला धन नोटबंदी के फैसले का मकसद कालेधन पर चोट करना था. सरकार को इस में कोई कामयाबी नहीं मिली है. सरकार के इस फैसले से नकद पैसा रखने वाला हर आदमी अपराधी बन गया. सरकार ने अपने इस कदम से यह साबित किया कि जिस के पास भी नकद धन है वह कालाधन जो किसी अपराध कर के कमाया गया है. अपनी मेहनत का पैसा रखने वाला अपराधी बन कर गिड़गिड़ा रहा था कि उस का बैंक में जमा कर के बैंक से नए नोट के रूप में दे दो. इस काम में आम जनता को ही सब से अधिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा. बड़ा नेता, अफसर, कारोबारी जिस के पास अपराध का पैसा था उस ने जुगाड़ कर के कालेधन को सफेद कर लिया. नोटबंदी की मार छोटे कारोबारियों पर ज्यादा पड़ी. नकदी की कमी से कारोबार ठप पड़ गए.
नोट की कमी से रिकशा वालों या रेहड़ी वालों, मजदूरों और किसानों को ज्यादा दिक्कतें हुईं. बड़े उद्योगपतियों का ज्यादातर कामकाज नकद में नहीं होता. इसलिए उन पर खास असर नहीं पड़ा था. नोटबंदी का सब से बड़ा नुकसान यह हुआ कि लोगों का करैंसी से भरोसा उठ गया. इस का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा. कांग्रेस नेता और पूर्व राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी ने उस समय कहा था कि नोटबंदी का असर देश की खराब अर्थव्यवस्था पर पड़ेगा. देश मंदी का शिकार हो जाएगा. उस समय उन की बात को महत्त्व नहीं दिया गया पर नोटबंदी के 6 साल बाद आज वह बात सच साबित हो गई है. सरकार ने दावा किया था कि नोटबंदी की वजह से साढ़े 11 लाख करोड़ रुपए बैंकों में जमा हो गए. उस में से 4 लाख करोड़ रुपए बैंकों ने लोगों को दे दिए. इस हिसाब से बैंकों के पास साढ़े 7 लाख करोड़ रुपए जमा हो गए थे. इस का नुकसान बैंकों को चुकाना पड़ा. बैंकों को इस जमा धन पर ब्याज देना पड़ा.
इस से तमाम बैंकों की हालत खराब हो गई. जिस की वजह से कई बैंकों को एकदूसरे में मिलाना पड़ा. इस से देश की पूरी बैंकिंग व्यवस्था चरमरा गई. आम जनता को नुकसान यह हुआ कि बैंक ने अपनी हर सर्विस की बढ़ी हुई फीस वसूलनी शुरू कर दी. नोटबंदी में जो पैसा बैंकों में जमा हो गया उसे वापस ले कर किसी ने खर्च नहीं किया. इस से मुद्रा का सर्कुलेशन ठप हो गया. खर्च न होने से कारोबार का पहिया रुक गया. नोटबंदी का देश की जीडीपी पर असर पड़ा. भारत का कालाधन विदेश जाने लगा क्योंकि लोगों के मन में डर बन गया कि मौजूदा सरकार फिर से नोटबंद कर सकती है. नोट पर भरोसा घटने का ही प्रभाव है कि लोग डौलर खरीदने लगे हैं जिस से डौलर के मुकाबले रुपया लगातार कमजोर होता जा रहा है. नोटबंदी नहीं घोटाला कांग्रेस सहित तमाम विपक्षी दलों ने नोटबंदी पर लगातार सवाल उठाए.
इस को देश की अर्थव्यवस्था के लिए खराब बताया. कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने इस को स्वतंत्र भारत के इतिहास में सब से बड़ा घोटाला बताया था. इस से कालाधन तो बाहर नहीं आ सका, उलटे, किसानों, मजदूरों, दुकानदारों, मध्यवर्ग और छोटे कारोबारियों को खासी परेशानियां उठानी पड़ीं. नोटबंदी के बाद प्रधानमंत्री ने दावा किया था कि 50 दिनों में स्थिति सामान्य हो जाएगी लेकिन इस का प्रभाव सालों बाद भी खत्म नहीं हो रहा है. नोटबंदी के बाद बंद हुए तमाम बैंकों के एटीएम बदहाल और बंद पड़े हैं. महंगाई, बेरोजगार की स्थितियां नियंत्रण से बाहर हैं. करैंसी की कमी से एटीएम चल नहीं पा रहे हैं, बैंकों की चमक गायब है. नोटबंदी को सफल बताने वाली भाजपा का दावा है कि 2016 के बाद भाजपा ने 2019 को लोकसभा चुनाव जीता. कई प्रदेशों के विधानसभा चुनाव जीते.
जो इस बात का प्रमाण है कि देश की जनता नोटबंदी से खुश थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी के 3 कारण- आतंकवाद बंद होना, कालाधन वापस आना और भ्रष्टाचार खत्म होना- बताए थे. नोटबंदी के 6 साल बाद आज भी ये तीनों मुद्दे जस के तस अपनी जगह हैं. उलटे, महंगाई, बेरोजगारी बढ़ी है. देश मंदी की तरफ बढ़ रहा है. रुपए की कीमत लगातार घट रही है जिस से देश की अर्थव्यवस्था खराब हो रही है और जीडीपी 2016 के मुकाबले लगातार कमजोर हो रही है. नोटबंदी के समय सरकार ने कहा था कि एक बार 1,000 और 5 सौ रुपए के नोट चलन से बाहर हो जाएंगे तो भ्रष्टाचार खत्म हो जाएगा.
लेकिन नोटबंदी के 6 साल बाद भी भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ. जो लोग कालाधन 500 और 1,000 रुपए के नोटों की शक्ल में रखते थे अब वे 500 और 2,000 रुपए के नोटों की शक्ल में रखने लगे हैं. नोटबंदी के बाद कई अफसरों के घरों पर पड़े छापे इस बात को दिखाते हैं कि वहां पर कालाधन बड़े नोटों की शक्ल में रखा मिला. नोट इतने थे कि गिनने के लिए मशीनों का प्रयोग करना पड़ा. इस से साफ हो गया कि नोटबंदी से भ्रष्टाचार खत्म नहीं हुआ है. नोटबंदी का फैसला लेते समय सरकार और उस के सलाहकारों को यह अनुमान नहीं था कि इतनी बड़ी नकदी बाजार से हटा देने से देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान पहुंचेगा.
अपनी गलती को स्वीकार करने की जगह पर यह धारणा बनाने का काम हुआ कि नोटबंदी की निंदा करना भ्रष्टाचार के खिलाफ जारी लड़ाई का विरोध करने के समान है. विपक्ष ने नोटबंदी पर जायज सवाल उठाए तो प्रधानमंत्री ने कहा, ‘मैं देख रहा हूं कि सार्वजनिक जीवन में कुछ लोग भ्रष्टाचार और कालेधन के समर्थन में भाषण दे रहे हैं.’ इस के अलावा, नोटबंदी के संबंध में जब गलत तथ्य पकड़े जाने लगे तो सरकार बड़ी चतुराई से इस के लाभ गिनाने की कोशिश करने लगी. उदाहरण के तौर पर, नोटबंदी के बाद उम्मीद थी कि काफी सारे नोट वापस नहीं आएंगे लेकिन जब लगभग सारे नोट बैंकों में जमा हो गए तो कहा गया कि इस से आयकर विभाग को जांच करने में मदद मिलेगी. यानी सरकार द्वारा हर तरह से जनता को अपराधी साबित करने का प्रयास किया गया.
उसे अपराधी बना कर बैंक मैनेजर और आयकर विभाग के लोगों के सामने खड़ा कर दिया कि वह न्याय करेगा, दंड देगा. कर वसूल करने वाले विभागों में सब से अधिक भ्रष्टाचार है. ऐसे लोगों को सरकार ने न्याय देने के काम पर लगा दिया. जिस की वजह से इन की भूमिका पर सवाल उठने लगे. कैशलैस ने बढ़ाई महंगाई छोटे नोट बाजार से कम करने के चक्कर में छोटेछोटे दुकानदारों को अपनी दुकानों पर पेटीएम व्यवस्था लागू करनी पड़ी, जिस से छोटे सामान की कीमत में भारी इजाफा हो गया. दुकानदार ने इन सब की कीमत के बहाने सामान की कीमत को कई गुना बढ़ा दिया. उदाहरण के लिए 2016 में चाय के एक कप की कीमत 4 से 5 रुपए थी, नोटबंदी के 6 साल के बाद यह कीमत बढ़ कर 12 से 15 रुपए हो गई है. कुल्हड की चाय की कीमत 20 से 25 रुपए हो गई है.
5 रुपए का मिलने वाला समोसा 10 से 15 रुपए का हो गया है. हर सामान की कीमत में दोगुने से अधिक का इजाफा हुआ है. इस में पैट्रोल, डीजल और एलपीजी गैस की कीमतों में होने वाली तेजी का भी प्रमुख हाथ है. दोचार सौ रुपए की खरीदारी पर भी दुकानदार खुदरा पैसे की मांग करने लगे हैं. खुदरा पैसा नहीं होने पर पेटीएम करने को कहते हैं. दुकानदार कहता है, उसे पेटीएम का खर्च देना पड़ता है, इसलिए सामान के दाम बढ़ाने पड़ रहे हैं. नकदी का संकट बरकरार होने के कारण लोगों को अपनी छोटीबड़ी जरूरतों के लिए दिक्कतों का सामना करना पड़ता है. छोटीबड़ी हर दुकान पर पेटीएम और क्यूआर कोड देखे जा सकते हैं. इस से यह लगता है कि शौपिंग कैशलैस हो गई है. इस का उपभोक्ता को कोई लाभ नहीं हो रहा. उसे अधिक महंगाई का सामना करना पड़ रहा है.
नोटबंदी और जीएसटी के बाद महंगाई घटने का दावा उलटा साबित हुआ है. महंगाई कम होने के बजाय बढ़ गई है. नोटबंदी के बाद भी चलन में है फेक करैंसी नोटबंदी का एक बड़ा कारण फेक करैंसी बताया गया था. नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘नोटबंदी से फेक करैंसी का चलन कम होगा.’ प्रधानमंत्री का यह दावा भी सही साबित नहीं हुआ. नोटबंदी के बाद भी 500 के नकली नोट पकड़े गए. नोटबंदी से पहले 86 प्रतिशत बड़े नोट यानी 5 सौ और 1 हजार रुपए के नोट चलन में थे. अब सिर्फ 18 प्रतिशत यानी 28 लाख करोड़ रुपए के 2 हजार रुपए के नोट चलन में हैं. इस से यह दावा खारिज हो जाता है कि बड़े नोटों का चलन कम हुआ है और फेक करैंसी कम हुई है. इस समय 55 फीसदी 5 सौ रुपए के नोट चलन में हैं. 200 रुपए के नोट तकरीबन 15 फीसदी हैं. भारतीय रिजर्व बैंक की अगस्त 2018 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक, बंद किए नोटों का 99 फीसदी हिस्सा बैंकों के पास लौट आया.
इस से यह पता चलता है कि फेक करैंसी को रोकने के लिए नोटबंदी करनी पड़ी, यह तर्क बेकार का था. भारतीय रिजर्व बैंक के मुताबिक, नोटबंदी के फैसले के बाद पिछले सालों की तुलना में 500 और 2,000 रुपए के जाली नोट कहीं ज्यादा संख्या में बरामद हुए. पहले भारतीय रिजर्व बैंक की ओर से कहा गया था कि बाजार में 500 और 2,000 रुपए के नए नोट जारी किए गए हैं, उन की नकल कर पाना मुश्किल होगा. यह दावा भी गलत साबित हुआ. मिला कुछ नहीं, नोट छापने पर खर्च अलग 8 नवंबर, 2016 को नोटबंदी की घोषणा के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने सरकारी घोषणा के अनुसार बड़े नोटों का चलन बंद कर दिया था. इस का तात्कालिक प्रभाव यह पड़ा था कि लगभग 86 प्रतिशत मुद्रा चलन से बाहर हो गई. देश में नकदी का संकट पैदा हो गया. नए नोट छापने में होने वाली देरी के कारण नकदी का संकट गहराया.
इस को दूर करने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक ने 500 व 2,000 रुपए के लगभग 14 लाख करोड़ रुपए की नई मुद्रा जारी की. इस में जितना पैसा खर्च किया, उस की भरपाई बैंक में जमा पुराने नोटों से क्या हो पाई? इन के छापने में जो पैसा लगा वह बेमतलब का खर्च हो गया क्योंकि नोटबंदी से कालाधन तो मिला नहीं. नई मुद्रा के प्रकाशन व निर्गमन की लागत लगभग 13 हजार करोड़ रुपए आई है जोकि चारगुना अधिक है. आरबीआई द्वारा भारत सरकार को देय लाभांश में व्यापक कमी आई है. वर्ष 2016 में यह लाभांश लगभग 65 हजार करोड़ रुपए था जोकि वर्ष 2017 में घट कर 30 हजार करोड़ रह गया. इस का कारण यह रहा है कि नोटबंदी के कारण बैंकों के पास अतिरिक्त जमा में तेजी से वृद्धि हुई है जिस पर जमा धारकों को ब्याज देना पड़ रहा है और बैंकों ने यह पैसा भारतीय रिजर्व बैंक में जमा करवा दिया जिस पर आरबीआई को ब्याज देना पड़ रहा है.
भारतीय आयकर विभाग में लगभग 18 लाख ऐसे मामले सर्च किए गए हैं जिन में 2 लाख रुपए से अधिक की नकदी जमा करवाई गई. लगभग आधे करधारकों ने नोटिस का जवाब नहीं दिया. कर विभाग ने यह माना कि लगभग एक लाख व्यक्ति संदेह के घेरे में हैं जिन्होंने लगभग 1.72 लाख करोड़ रुपए से अधिक की नकदी जमा करवाई है. नोटबंदी के कारण निवेश रियल एस्टेट, जेम्स एवं ज्वैलरी, सोनाचांदी आदि धातुओं में किया गया लेकिन म्युचअल फंड के निवेश में व्यापक वृद्धि हुई है. वर्ष 2015-16 में म्यूचुअल फंड में निवेश 1.34 लाख करोड़ रुपए हुआ है जोकि वर्ष 2016-17 में बढ़ कर 3.43 लाख करोड़ रुपए हो गया. मात्र 3 महीनों में अप्रैल से जून 2017 में लगभग 93 हजार करोड़ रुपए की वृद्धि हुई है.
नोटबंदी से तबाह हुए बैंक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने मध्य प्रदेश के झाबुआ में एक चुनावी रैली में कहा था कि ‘कालाधन बैंकिग सिस्टम में वापस लाने के लिए नोटबंदी एक कड़वी दवा थी, जिस को दिया गया. इस के बाद देश में आर्थिक सुधार होगा. लेकिन देखें तो इस का सब से खराब प्रभाव देश की बैकिंग व्यवस्था पर पड़ा. एनपीए का बो झ झेल रहे बैंक दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए. उन को बचाने के लिए सरकार ने बैंकों को आपस में मिला दिया. इस के बाद भी बैंकिंग और आर्थिक व्यवस्था में कोई सुधार नहीं आया. नोटबंदी के समय मोदी ने कहा था कि इस से नक्सल और आतंक समाप्त हो जाएगा. लेकिन आंकड़े और घटनाएं बताती हैं कि नोटबंदी के बाद दोनों क्षेत्रों में बढ़ोतरी हुई है. झारखंड और छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या खत्म नहीं हुई है.
जम्मूकश्मीर में आतंकवाद रहरह कर अपना असर दिखाता रहता है. नोटबंदी का दूसरा लाभ कालाधन बंद हो जाएगा, यह दावा भी गलत निकल रहा है. नोटबंदी के बाद भी बाजार से जिस तरह से कालाधन निकल रहा है उस से साफ हो जाता है कि नोटबंदी से कालाधन नहीं रुका है. नोटबंदी के समय यह दावा किया गया था कि भारत का चौमुखी आर्थिक विकास होगा. लेकिन देश के सभी सैक्टरों में गिरावट दर्ज की जा रही है. सुधार की जगह पर यह बदलाव हुआ कि बैंक अपने हर छोटे से छोटे काम की फीस ग्राहकों से लेने लगे. इस में एटीएम से पैसा निकालने की तय लिमिट हो गई. चैकबुक और एसएमएस भेजने के लिए फीस ली जाने लगी. बैंक खातों में मिनिमम बैलेंस की सीमा खत्म कर दी गई.
चैक बाउंस होने पर कटने वाली पैनल्टी का रेट बढ़ गया. जमादारों पर ब्याज कम हो गया. एक तरह से यह देखें तो बैंक में पैसा रखना ग्राहकों को भारी पड़ने लगा है. नोटबंदी के समर्थक कहते हैं कि इस से कैशलैस व्यवस्था को मजबूत करने में मदद मिल रही है. ऐसे में यह सवाल उठाना स्वाभाविक है कि क्या एक व्यवस्था को मजबूत करने के लिए दूसरी व्यवस्था को ध्वस्त करना चाहिए? दरअसल केंद्र सरकार द्वारा देश में देशवासियों पर थोपी गई नोटबंदी फ्लौप शो साबित हुई. नोटबंदी ने लोगों को परेशानी और मौत के अलावा कुछ भी नहीं दिया. जनता अपराधी साबित हुई. जज बने बैंकरों की चांदी हो गई. नोट बदलने के काम में लोग करोड़पति हो गए. नोटबंदी के फेल होने का सब से बड़ा कारण यह था कि नोटबंदी बिना किसी तैयारी के थोप दी गई, जिस से लाभ की जगह नुकसान ही नुकसान हुआ.
द्य हर देश में नोटबंदी लाई मंदी नोटबंदी के इतिहास को देखें तो साफ पता चलता है कि जिस भी देश में नोटबंदी लागू की गई, वह देश कुछ ही सालों में मंदी का शिकार हो गया. 1921 से 1927 के बीच जब मुसोलिनी ने इटली की करैंसी लीरा को बंद कर के अपना प्रभाव जमाने का प्रयास किया तो इस का दुष्परिणाम यह हुआ कि बाकी देशों ने इटली की करैंसी पर विश्वास करना बंद कर दिया. कुछ ही वर्षों में इटली आर्थिक रूप से कंगाल हो गया. जरमनी में हिटलर ने करैंसी बंद की तो लोग एक वेलियन मार्क से भी दिनभर की रोटी नहीं खरीद पा रहे थे. हिटलर ने यह काम स्टालिन को नीचा दिखाने के लिए किया लेकिन इस का गंभीर परिणाम निकला.
यह तब तक जारी रहा जब तक 1933 में नैशनल सोशलिस्ट सत्ता में नहीं आ गए. 1991 में सोवियत संघ के राष्ट्रपति मिखाइल गोर्बाचेव ने कालेधन पर काबू पाने के लिए 50 और 100 रुबल को बंद कर दिया जो कुल करैंसी का एकतिहाई हिस्सा हुआ करते हैं. नतीजतन कुछ सालों के बाद सोवियत संघ का भूगोल ही बदल गया. वहीं, अब 21वीं सदी के दूसरे शतक में भारत के सर्वेसर्वा नरेंद्र मोदी ने देश में 500 और 1,000 रुपए के नोटों को चलन से बाहर करने का निर्णय थोप दिया बिना यह सोचेविचारे कि इस के साइड इफैक्ट्स कितने भयानक हो सकते हैं. नोटबंदी ने न सिर्फ देश की आम जनता का जीना मुहाल कर दिया बल्कि व्यापार एवं दूसरे धंधों पर भी इस ने बहुत बुरा असर डाला.