प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना में मोदी सरकार ने साल 2016 में 7,000 करोड़ रुपए, साल 2017 में 9,000 करोड़ रुपए व साल 2018 में 13,000 करोड़ रुपए बजट दिया था. इतना ही राज्य सरकारों ने दिया था. मतलब, सरकार की तरफ से 3 साल में कुल 58,000 करोड़ रुपए दिए गए. किसानों के खातों से जो हफ्तावसूली हुई है, वह इस की 30 फीसदी है मतलब 19,000 करोड़ रुपए से ज्यादा. कुलमिला कर 77,000 करोड़ रुपए बीमा कंपनियों को दे दिए गए. बीमा कंपनियों से फसल क्षति होने वाले कुल किसानों में से 20 फीसदी किसानों को मुआवजा मिला था.

प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना खरीफ साल 2017-18 की रिपोर्ट के मुताबिक, दूसरे साल भी बीमा कंपनियों द्वारा किसानों को लूटने का काम जारी रहा. देश के 3.74 करोड़ किसानों से 3,027 करोड़ रुपए बीमा हफ्ता वसूली, केंद्र सरकार द्वारा 9,000 करोड़ रुपए और राज्य सरकार द्वारा 9,000 करोड़ रुपए मिला कर कुल 21,027 करोड़ रुपए फसल बीमा कंपनियों को प्राप्त हुए. कंपनियों के द्वारा 8,724 करोड़ रुपयों के दावे अनुमोदित किए गए, लेकिन केवल 4,276 करोड़ रुपए ही किसानों को भुगतान किए गए. साल 2018-19 चुनावी वर्ष था. किसानों ने इस दौरान हंगामा मचाया, तो कुल प्रीमियम 29,693 करोड़ रुपए के मुकाबले कंपनियों ने 28,464 करोड़ रुपए का किसानों को क्लेम जारी कर दिया था.

फिर वही लूट शुरू. साल 2019-20 में 32,340 करोड़ रुपए के मुकाबले 26,413 करोड़ रुपए का भुगतान किया गया. साल 2020-21 में 31,861 करोड़ के प्रीमियम के मुकाबले 17,931 करोड़ रुपए किसानों को मुआवजे के रूप में बांटे. पिछले साल 2021-22 की अंतरिम रिपोर्ट में सामने आया कि कंपनियों ने 18,944 करोड़ रुपए प्रीमियम लिया, लेकिन महज 7,557 करोड़ रुपए किसानों को क्लेम बांटे. इस क्लेम को लेने के लिए किसानों को कई जगह धरनाप्रदर्शन करने पड़े. तो कुलमिला कर प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना चहेती बीमा कंपनियों पर धन लुटाने का जरीया बन कर रह गई.

गौरतलब है कि 13 जनवरी, 2016 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (पीएमएफबीवाई) शुरू करते हुए दावा किया था कि यह योजना उन किसानों पर प्रीमियम का बोझ कम करने में मदद करेगी, जो अपनी खेती के लिए कर्ज यानी लोन लेते हैं और खराब मौसम से उन की रक्षा भी करेगी, जिस हिसाब से बीमा कंपनियां किसानों व सरकार से मिलने वाली प्रीमियम राशि से अपने खजाने भर रही हैं, उस से ऐसा नहीं लगता कि यह योजना किसानों के हित के लिए लागू की गई थी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएमएफबीवाई शुरू करते समय यह भी दावा किया था कि इस योजना में बीमा दावे के निबटान की प्रक्रिया को तेज और आसान बनाने का निर्णय लिया गया है

, ताकि किसानों को फसल बीमा योजना के संबंध में किसी परेशानी का सामना न करना पड़े, लेकिन सरकार के इस दावे की पोल इसी से खुल रही है कि योजना शुरू हुई तब से ले कर अब तक एक बार भी किसानों को क्लेम का भुगतान एक साल से पहले नहीं किया गया. बीमा कंपनियों की लूट की इस गणित को महज एक साधारण उदाहरण से समझा जा सकता है. मसलन, ग्वार प्रति हेक्टेयर क्षेत्रफल बारानी किसान से राशि ली जाती है 864 रुपए और सरकार सब्सिडी के रूप में बीमा कंपनी को 5,661 रुपए जमा कराती है. कुल योग हुआ 6,525 रुपए. इसी प्रकार, मोंठ प्रति हेक्टेयर किसान से राशि ली जाती है 633 रुपए, वहीं सरकार सब्सिडी देती है बीमा कंपनी को 4,752 रुपए. कुल योग हुआ 5,385 रुपए. इस हिसाब से बीमा कंपनी के खाते में जमा हो रही है मोटी राशि और किसान व सरकार ब्याज अलग से दे रहे हैं, जबकि बीमा कंपनियां जमा राशि पर ब्याज भी कमा रही हैं.

सौ फीसदी फसल खराब होने पर मोटेतौर पर प्रति हेक्टेयर 40,000 रुपए के लगभग बीमा राशि लौटाई जाती है, परंतु गिरदावरी रिपोर्ट/फसल क्रौप कटिंग/बीमा कंपनी के एजेंट व कृषि विभाग के भ्रष्ट अधिकारी, कुलमिला कर किसान की फसल खराब होने पर 33 फीसदी तक ले आते हैं. किसान को अपनी व सरकार द्वारा दी गई राशि भी मुश्किल से वापस मिल पाती है. अगर 1-2 साल फसल के खराब होने की क्षेत्र विशेष में स्थिति पैदा नहीं होती है, तो बीमा कंपनियां मालामाल हो जाती हैं. ठ्ठ पशु बीमा पर भी लूट गायों की लंपी स्किन बीमारी की आपदा को फसल बीमा की तरह पशु बीमा को भी अपनी चहेती कंपनियों के लिए अवसर के रूप में शुरू कर दिया गया है. भैंस का बीमा 1,105 रुपए व गाय का बीमा 880 रुपए तय किया गया है. इस में 70 फीसदी प्रीमियम केंद्र व राज्य सरकार उठाएगी व 30 फीसदी किसानों को भरना होगा.

जब सारे प्रीमियम का भुगतान केंद्र, राज्य व किसान मिल कर भर रहे हैं, तो बीमा कंपनी के रूप में बिचौलिए की जरूरत क्यों है? किसान से निश्चित प्रीमियम खुद सरकार लें और एक किसान कोष में डाल दें. जब किसान को मुआवजे की जरूरत पड़े, तो केंद्र व राज्य अपना हिस्सा उस फंड में जमा करवा कर किसानों को वितरित कर दें. जब सारा काम पटवारी व तहसीलदार को ही करना है और मुआवजा उस के मुताबिक सरकारी बैंक को बांटना है, तो निजी बीमा कंपनी की जरूरत कहां है?

कुलमिला कर ये बीमा योजनाएं सरकारी सिस्टम को किनारे कर के चहेतों को पूंजी लुटाने का जरीया हैं. लंपी स्किन बीमारी में मरी गायों के कारण जो किसानों का नुकसान हुआ है, उस से बच कर लूट का तरीका ईजाद कर लिया गया है. दूसरी तरफ, गौशालाओं को दिए जा रहे अनुदान को बंद कर के किसानों को सीधा भुगतान किया जाता है, तो ये गौरखशालाएं लूट के अड्डे नहीं बनतीं. चौतरफा लूट किसानों की ही हो रही है, राहत योजनाएं लुटेरी गैंग के हवाले हैं और किसानों को मांगने वाला कह कर बदनाम किया जाता है. किसानों व पशुपालकों को सहारा देने के लिए शुरू की गई प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना, पशु बीमा योजना बीमा कंपनियों के लिए कमाई का अच्छा जरीया बनी हुई हैं. इन योजनाओं का फायदा जहां किसानों को मिलना चाहिए, वहां ये योजनाएं बीमा कंपनियों को मालामाल कर रही हैं.

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