हर साल 29 जुलाई को दुनिया के कई देशों में विश्व टाइगर दिवस मनाया जाता है. लेकिन इस साल जुलाई माह में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण(एनटीसीए) की रिपोर्ट देख कर वन विभाग के अधिकारियों के माथे पर चिंता की लकीरें उभर आईं. एनटीसीए की रिपोर्ट पर नजर डाली जाए तो साल 2022 में एक जनवरी से 15 जुलाई तक पूरे देश में कुल 74 बाघों की मौत हो चुकी है.

इन में से सब से अधिक 27 बाघों की मध्य प्रदेश में मौत हुई है. यह संख्या इस अवधि के दौरान किसी भी राज्य में मारे गए बाघों की संख्या से अधिक है. मध्य प्रदेश के नैशनल पार्कों में बाघों की सब से अधिक संख्या के आधार पर एमपी को ‘टाइगर स्टेट’ का दरजा मिला हुआ है, मगर मध्य प्रदेश में पिछले साढ़े 6 महीने में 27 बाघों की मौत की खबर भी चौंकाने वाली है.एनटीसीए के आंकड़ों के अनुसार मध्य प्रदेश के बाद दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र आता है, जहां इस अवधि के दौरान 15 बाघों की मौत हुई. जबकि इस के बाद कर्नाटक में 11, असम में 5, केरल और राजस्थान में 4-4, उत्तर प्रदेश में 3, आंध्र प्रदेश में 2 और बिहार, ओडिशा एवं छत्तीसगढ़ में 1-1 बाघ की मौत हुई है.

2021 के इन्हीं 7 माह में 90 बाघों की मौत हुई थी. तब भी मध्य प्रदेश में सब से ज्यादा 28 बाघ मरे थे. पिछले 10 साल के आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो मध्यप्रदेश में 270, महाराष्ट्र में 183, कर्नाटक में 150, उत्तराखंड में 96, तमिलनाडु में 67, असम में 71, उत्तर प्रदेश में 57, केरल में 55, राजस्थान में 25 और पंजाब में 13 बाघों की मौत हो चुकी है.अकेले मध्य प्रदेश की बात करें तो प्रदेश में वर्ष 2012 से 2020 तक शिकारियों ने 45 बाघों की हत्या की. जबकि बाघों ने 52 लोगों का शिकार किया.

गौरतलब है कि 31 जुलाई, 2019 को जारी हुई राष्ट्रीय बाघ आंकलन रिपोर्ट 2018 के अनुसार, 526 बाघों के साथ मध्य प्रदेश ने ‘टाइगर स्टेट’ का अपना खोया हुआ प्रतिष्ठित दरजा कर्नाटक से 8 साल बाद फिर से हासिल किया है.2010 से 2018 तक कर्नाटक में बाघों की संख्या सब से अधिक 524 होने के कारण उसे ही टाइगर स्टेट का दरजा मिला हुआ था. 2018 में हुई बाघों की गणना में कर्नाटक में बाघों की संख्या 524 रह गई और मध्य प्रदेश में 526 बाघों की संख्या के लिहाज से वह देश का सिरमौर बन गया.
मध्य प्रदेश में मौजूदा दौर में 6 नैशनल पार्क हैं, जिन्हें बाघों के संरक्षण के लिए रिजर्व रखा गया है. जिन में मंडला का कान्हा किसली नैशनल पार्क, शहडोल का बांधवगढ़, सिवनी छिंदवाड़ा का पेंच नैशनल पार्क, पचमढ़ी नर्मदापुरम का सतपुड़ा टाइगर रिजर्व, पन्ना टाइगर रिजर्व और सीधी सिंगरौली जिले का संजय डुबरी नैशनल पार्क शामिल हैं.

सब से अधिक बाघों की मौत बांधवगढ़ में

मध्य प्रदेश के उमरिया शहडोल जिले में स्थित बांधवगढ़ नैशनल पार्क में बाघों की मौत का आंकड़ा सब से ज्यादा है. 7 महीने में सब से ज्यादा 6 बाघों ने बांधवगढ़ में दम तोड़ा है. अनोखी है सीता और चार्जर की प्रेम कहानलैलामजनूं, हीररांझा, सोहनीमहिवाल की प्रेम कहानियां तो लोगों ने खूब सुनी होंगी, लेकिन बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटक आज भी बाघिन सीता और बाघ चार्जर की प्रेम कहानी सुन कर रोमांचित हो जाते हैं. दोनों की प्रेम कहानी फिल्मी नायकनायिका की कहानी से अलग बिलकुल भी नहीं है.

बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व के घने जंगलों में रची गई बाघ और बाघिन की एक प्रेम कहानी आज भी यहां आने वाले पर्यटकों को गाइड सुनाते हैं. बाघ चार्जर और बाघिन सीता का स्वभाव एकदूसरे से विपरीत होने के बावजूद भी उन की प्रेम कहानी एक मिसाल बनी हुई है. ये दोनों जंगल में उस तरह जिए और मरे, मानो दोनों ने एक साथ जीनेमरने की कसम खाई थी.बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में आने वाले पर्यटक आज भी दोनों की प्रेम कहानी को सुन कर रोमांचित हो जाते हैं. सीता पर्यटकों को अलगअलग पोज देती थी, चार्जर पर्यटकों की जिप्सी देख कर दहाड़ता था. चार्जर के जिप्सियों पर लपकने और आक्रामक स्वभाव के कारण गाइडों ने उसे चार्जर नाम दिया था.

गाइड दिवाकर प्रजापति और कामता यादव बताते हैं सीता और चार्जर न होते तो शायद बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व में आज 124 बाघ भी न होते.बांधवगढ़ में 1990 के आसपास सिर्फ यही दोनों शेष रह गए थे. दोनों ने साथ रह कर बाघों का कुनबा बढ़ाया. सीता 5 बार मां बनी और उस ने 23 शावकों को जन्म दिया. आज बांधवगढ़ में जितने भी बाघ और बाघिन हैं, उन में से ज्यादातर सीता और चार्जर के ही वंशज हैं.

सीता खूबसूरत और फोटोजेनिक बाघिन थी, जबकि चार्जर आक्रामक था. दोनों ने खुल कर जिंदगी जी, जब सीता ने शावकों को जन्म दिया, तब भी चार्जर बाघों के मूल स्वभाव के विपरीत कुनबे के साथ रहा.
1998 में चार्जर लगभग 16 साल का हो चुका था और उस के दांत टूट गए थे. वन विभाग के अधिकारियों ने मगधी में चार्जर के लिए बाड़ा (इनक्लोजर) बनाया और सुरक्षा की दृष्टि से वहां रखा. बाड़े के बाहर से सीता की पुकार सुन कर चार्जर व्याकुल हो कर चहलकदमी करने लगता था.

सीता की यह जुदाई उसे बरदाश्त नहीं हुई और कुछ दिन बाद उस ने दम तोड़ दिया. जहां चार्जर ने दम तोड़ा था, उस स्थान को लोग चार्जर पौइंट के नाम से जानते हैं. वर्ष 2000 में सीता का भी शिकार हो गया.
आमतौर पर बाघ अपनी बाघिन के साथ शावकों को बरदाश्त नहीं करता और उन पर हमला कर के उन्हें खत्म करने की कोशिश करता है. इस दौरान बाघिन भी बाघ पर हमला कर देती है और इस पशुसंग्राम का अंत किसी एक की मौत पर होता है.

सीता और चार्जर की प्रेमकथा दोहरा रहे हैं तारा और छोटा भीम

इस के विपरीत बांधवगढ़ के खितौली रेंज मे छोटा भीम नाम का बाघ बाघिन तारा और उस के 4 शावक एक परिवार की तरह रह रहे हैं. इन्हें देखने वाले बताते हैं कि तारा और छोटा भीम तो सीता और चार्जर की प्रेमकथा को दोहरा रहे हैं. चार्जर भी सीता के साथ इसी तरह रहता है और उस के शावकों का भी खयाल रखता है.हाल ही में छोटा भीम की तारा के 4 शावकों के साथ एक ताजा तसवीर सामने आई है. इस तसवीर में तारा के चारों शावक छोटा भीम के साथ नजर आ रहे हैं लेकिन तारा इस में नहीं है, यह तारा का छोटा भीम पर भरोसा ही है कि वह अपने शावकों को छोटा भीम के साथ छोड़ कर कहीं भी जा सकती है. तसवीर में छोटा भीम शावकों के साथ एक जिम्मेदार पिता की तरह नजर आ रहा है.

छोटा भीम अपने विशाल डीलडौल के कारण पर्यटकों के बीच आकर्षण का केंद्र बना रहता है. खास बात यह है कि शावकों के जवान होने के बावजूद भी छोटा भीम उन के तारा के साथ रहने पर आपत्ति नहीं करता और उन्हें अपने साथ रखता है.करीब 20 साल पहले दूरदर्शन पर हर रविवार को भारत में ‘जंगलजंगल बात चली है पता चला है…’ इस टाइटल सौंग ने धूम मचाई थी. गुलजार का लिखा ये गीत, द जंगल बुक के प्रमुख किरदार ‘मोगली’ पर फिल्माया गया था.

मोगली का पेंच भी बाघों के लिए महफूज नहीं

इसी मोगली का संबंध मध्य प्रदेश के सिवनी जिले के जंगल (पेंच टाइगर रिजर्व) से रहा है. जंगल बुक पुस्तक के लेखक रूडयार्ड किपलिंग का पात्र मोगली सिवनी के संतबावड़ी गांव में सन 1831 में पकड़ा गया था, जो इसी क्षेत्र के जंगली भेडि़यों के साथ गुफाओं में रहता था.1179 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले पेंच नैशनल पार्क में वैसे तो इस समय 87 बाघ हैं, मगर मोगली से संबंध रखने वाले पेंच टाइगर रिजर्व में भी बाघ महफूज नहीं हैं. मध्य प्रदेश के पेंच टाइगर रिजर्व में ‘सुपर टाइग्रेस मौम’ नाम से प्रसिद्ध बाघिन की भी 15 जनवरी, 2022 की शाम को मौत हो गई.

29 शावकों को जन्म देने वाली बाघिन को टी-15 ‘कालर वाली’ बाघिन भी कहा जाता था. बाघिन की उम्र करीबकरीब 17 साल थी.सुपर मौम बाघिन का जन्म सितंबर 2005 में हुआ था और सब से पहले मात्र ढाई साल की उम्र में 2008 में बाघिन ने 3 शावकों को जन्म दिया था. इस के बाद 2021 तक 8 बार में कालर वाली बाघिन 29 शावकों को जन्म दे चुकी थी.

इस बाघिन ने सब से ज्यादा बच्चे देने का विश्व रिकौर्ड भी बनाया. मध्य प्रदेश को टाइगर स्टेट का तमगा दिलाने में कालर वाली बाघिन का अहम योगदान रहा है.पेंच टाइगर रिजर्व में इस बाघिन को 11 मार्च, 2008 को बेहोश कर देहरादून के विशेषज्ञों ने रेडियो कालर पहनाया था. इस के बाद से ही पर्यटकों के बीच यह बाघिन कालर वाली के नाम से प्रसिद्ध हो गई थी.

फादर औफ द पन्ना टाइगर रिजर्व

लंबीचौड़ी कदकाठी वाले बाघ टी 3 को ‘फादर औफ द पन्ना टाइगर रिजर्व’ कहा जाता है. फादर इसलिए क्योंकि पन्ना में जो 70 से ज्यादा बाघ हैं, वह सब इसी के वंशज हैं. एक समय ऐसा था, जब यह बाघ जहां से गुजरता था, तो वहां के जंगली जानवर उस की दहाड़ से सहम जाते थे.
बाघ टी 3 की हुकूमत लगभग एक दशक तक कायम रही. लेकिन आज औसत उम्र पार कर 18वें साल में प्रवेश कर चुका यह बाघ टी 3 अब गुमनामी की जिंदगी जी रहा है. उसी की संतानों ने अब उसे खदेड़ दिया है. विभाग को भी उस की कोई फिक्र नहीं है.

वर्ष 2009 में जब पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन हो गया था, तब यहां बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए बाघ पुनर्स्थापना योजना शुरू हुई. योजना के तहत बांधवगढ़ से 4 मार्च, 2009 को बाघिन टी-1 पन्ना लाई गई. इस बाघिन का पेंच टाइगर रिजर्व से पन्ना लाए गए नर बाघ टी-3 से संसर्ग हुआ.तदुपरांत बाघिन टी-1 ने 16 अप्रैल, 2010 को रात धुंधुआ सेहा में 4 शावकों को जन्म दिया था. इन्हीं शावकों में पहला शावक पी-111 था, जिस का जन्मदिन हर साल 16 अप्रैल को धूमधाम के साथ मनाया जाता था.

टी-3 रेडियो कालर बना था 70 बच्चों का पिता

मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व को आबाद करने वाले बाघ पी-111 की मौत 9 जून, 2022 को हो गई. उस दिन सुबह उस का शव संदिग्ध परिस्थितियों में पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर एरिया में राजा बरिया बीट से गुजरने वाली पन्नाकटनी सड़क के किनारे मिला था.डाक्टरों के मुताबिक 12 साल के इस बाघ की मौत किडनी फेल होने की वजह से हुई थी.डीलडौल और कद में पन्ना टाइगर रिजर्व का यह सब से बड़ा बाघ था, इस की एक झलक पाने के लिए पर्यटक बेताब रहते थे. इस ने पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के वंश की बढ़ोत्तरी में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था.

इसी तरह कान्हा से बाघिन टी-2 की नर बाघ टी-3 से बाघिन की मेटिंग कराई गई तो टी-2 ने पहली बार में 4 और दूसरे बार में 2 शावकों को जन्म दिया था. बाघविहीन हो चुके पन्ना को फिर गुलजार करने की दास्तां पूरे देश में मिसाल है.

मौजूदा समय में पन्ना नैशनल पार्क में 70 से ज्यादा बाघ हैं. बाघों का संसार दोबारा आबाद करने वाला बाघ टी-3 रेडियो कालर हटाए जाने के बाद गुमनामी का जीवन जी रहा है. एक अनुमान के अनुसार, इस बाघ के संसर्ग से टाइगर रिजर्व की बाघिनों से 70 से भी ज्यादा शावक जन्मे हैं.
वन्यप्राणी चिकित्सक डा. संजीव गुप्ता बताते हैं कि जंगली बाघों की औसत उम्र 12 से 17 साल मानी जाती है. नर बाघ टी-3 की उम्र 17 से 18 साल है. टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर उत्तम कुमार शर्मा के अनुसार,
टी-3 औसत उम्र पूरी कर चुका है. वर्तमान लोकेशन की जानकारी नहीं है. नियमित रूप से लोकेशन ट्रेस नहीं की जाती, जिस के कारण अभी उस का पता नहीं चल पा रहा है.

सतपुड़ा के घने जंगलों में भी बाघ सुरक्षित नहीं

मध्य प्रदेश का सतपुड़ा टाइगर रिजर्व का नाम आते ही कवि भवानी प्रसाद मिश्र की कविता ‘सतपुड़ा के घने जंगल ऊंघते अनमने जंगल’ याद आ जाती है. नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित सतपुड़ा पर्वत माला क्षेत्र में जैव विविधता से समृद्ध वनक्षेत्र है, जो अनेक लुप्तप्राय प्रजातियों का रहवास भी है.
मध्य प्रदेश का हिल स्टेशन पचमढ़ी भी सतपुड़ा टाइगर रिजर्व के अंतर्गत आता है. प्रकृति के खूबसूरत नजारों के साथ सैलानी यहां आ कर जंगलों में उन्मुक्त घूमते बाघों को देखने दूरदूर से आते हैं. दुखद बात यह है कि यहां भी बाध सुरक्षित नहीं हैं.

इलाके के कब्जे को ले कर होती है जबरदस्त लड़ाई

प्रदेश के नर्मदापुरम संभाग के सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में इसी साल अप्रैल महीने में 2 दिनों में 2 बाघों की मौत हो गई थी. 2 अप्रैल को एक मादा बाघ शावक का शव मिलने के बाद दूसरे दिन 3 अप्रैल की सुबह सतपुड़ा टाइगर रिजर्व अंतर्गत पूर्व पचमढ़ी परिक्षेत्र के मागरा बीट में गश्त के दौरान एक नर बाघ मरणासन्न अवस्था में मिला था. वन विभाग की टीम के पहुंचने के कुछ देर बाद ही उस की भी मृत्यु हो गई.

बाघ को अपना इलाका बचाने के लिए कई बार दूसरे बाघों से लड़ना पड़ता है. वन विभाग के अधिकारियों द्वारा यह अंदाज भी लगाया गया था कि मादा बाघ शावक को बचाने के लिए हुई बाघों की फाइट में नर बाघ की मौत हुई हो. इसी तरह 4 जून, 2022 को सतपुड़ा टाइगर रिजर्व क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले कामती परिक्षेत्र की देवखला बीट में एक उम्रदराज मादा बाघिन का शव लहूलुहान हालत में मिला था. एसटीआर के गश्ती दल ने यह शव बरामद कर उस का पोस्टमार्टम कराया तो पता चला है कि बाघिन पर एक नर बाघ ने हमला किया था.बाघिन काफी समय से इस क्षेत्र में रह रही थी. यह उस का इलाका था. उम्रदराज होने का पता इस बात से लग रहा था कि बाघिन के दांत घिस चुके थे और 2 केनाइन दांत टूटे हुए थे. आमतौर पर शिकार के दौरान ही यह दांत टूटते हैं.

पोस्टमार्टम रिपोर्ट में यह भी सामने आया है कि बाघिन की पसलियां व रीढ़ की हड्डी टूटी हुई थी और गले, चेहरे, पीठ पर जगहजगह चोट के गहरे निशान थे.16 मार्च, 2022 को सीधी जिले के संजय दुबरी नैशनल पार्क में रहने वाली बाघिन टी-18 की दुबरी रेंज के कोर एरिया में ट्रेन से टकराने से मौत हो गई थी. इस वजह से उस के 9-9 माह के 4 शावक अनाथ हो गए. उस समय इन शावकों की सुरक्षा की जिम्मेदारी निभाने के लिए वन विभाग के दल ने हाथियों पर सवार हो कर उन्हें शिकार और सुरक्षा मुहैया कराई थी.

शावकों को पाला मौसी ने

4 शावकों में से एक शावक का शिकार नर बाघ ने कर लिया था. बचे हुए 3 शावक बाद में बाघिन टी-17 और उस के 4 नन्हे शावकों के साथ घुलमिल गए थे. बाद में ये 3 शावक टी-18 की बहन बाघिन टी-28 के साथ देखे गए थे. इस तरह इन अनाथ शावकों को उस की मौसी ने प्रशिक्षित कर उन की सुरक्षा की थी.
वर्तमान में ये 3 शावक स्वतंत्र रूप से शिकार करने में सक्षम हैं और मिल कर अपने कुनबे के साथ शिकार साझा करते हैं. इस समय इस पार्क में 17 शावक, 6 अल्पवयस्क और पूर्ण वयस्क 8 नर बाघ सहित 9 मादा बाघ हैं.

भोपाल को अभी तक झीलों के शहर के नाम से जाना जाता था, मगर अब इस की पहचान टाइगर्स कैपिटल के रूप में भी होने लगी है.भोपाल के आसपास 40 से ज्यादा टाइगरों का मूवमेंट है. देश भर में शहरी इलाके में इतने बाघ कहीं नहीं हैं. यहां के बाघों की खासियत है कि वे इंसानों के फ्रैंड जैसे हो गए हैं. यही वजह है कि पिछले 15 साल में एक भी जनहानि नहीं हुई.जंगल के साथ वन विहार नैशनल पार्क में भी उन की दहाड़ें गूंज रही हैं. यहां सफेद बाघिन रिद्धि भी है. पन्ना नाम का बाघ दिन भर योग जैसी मुद्रा में रहता है. बाघिन गौरी सफाई पसंद है. दिन भर खुद को साफ करती रहती है.

भोपाल के कलियासोत, केरवा, समरधा, अमोनी और भानपुर के दायरे में 13 रेसिडेंशियल बाघ घूम रहे हैं. इन का जन्म यहीं हुआ है. अब इन का यहां दबदबा भी कायम है. बाघिन टी-123 का तो यहां पूरा कुनबा ही है.कई बार भोज यूनिवर्सिटी में बाघ की चहलकदमी देखने को मिली है, लेकिन उन्होंने कभी इंसानों को नुकसान नहीं पहुंचाया. शहर से जुड़े रातापानी इलाके में भी बाघ हैं. वन विहार के डिप्टी डायरेक्टर डा. ए.के. जैन ने बताया कि वन विहार में 13 बाघ हैं, इन्हें मिला कर भोपाल के आसपास 40 से ज्यादा बाघ हैं.
वन विहार देश में पहला ऐसा नैशनल पार्क है, जो शहर के बीचोबीच है. यहां 13 बाघ हैं, एक बाघ पंचम को देश के बड़े उद्योगपतियों में से एक मुकेश अंबानी के जामनगर गुजरात में बन रहे दुनिया के सब से बड़े चिडि़याघर को सौंपा गया है.वन विहार में जो बाघ हैं, उन में सब से खूबसूरत सफेद बाघिन रिद्धि है. रिद्धि को इंदौर जू से यहां लाया गया. मटककली, बंधन, बंधनी, शौर्य, बंधु, सत्तू, सुंदरी, शरण, गंगा, पन्ना, बांधव और गौरी भी हैं. यहां रहने वाले ज्यादातर बाघों के नाम वन विहार में ही रखे गए हैं. नाम उसी जगह के नाम पर रखे जाते हैं, जहां से बाघ लाए जाते हैं.

टाइगर स्टेट में हो रही मौतों की वजह की पड़ताल करने पर सामने आया कि बाघों की मौत की वजहें भी अलगअलग हैं. कहीं नन्हे शावकों को वयस्क बाघों ने अपना निवाला बनाया तो कहीं वर्चस्व की लड़ाई उन की मौत का कारण बनी.कहीं उम्रदराज हो चुके बाघ दुनिया छोड़ गए तो कहीं शिकारियों के फैलाए जाल में फंसे बाघ मौत के मुंह में जा पहुंचे. कभी शिकार की तलाश में टेरेटरी से बाहर आ कर किसी ट्रेन या भारी वाहन की चपेट में आए तो कभी दूसरे जंगली जानवरों के साथ मुठभेड़ में मारे गए.

आखिर बाघों की मौत की क्या है वजह

मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (पीसीसीएफ) वन्यजीव जे.एस. चौहान कहते हैं, ‘‘बाघों की मृत्यु की अधिक संख्या इस तथ्य के कारण है कि मध्य प्रदेश में देश में बाघों की आबादी सब से ज्यादा है. इस से उन की मौत की संख्या भी स्वाभाविक रूप से अधिक है. बाघों के बीच क्षेत्रीय लड़ाई को टाला नहीं जा सकता, क्योंकि यह उन के लिए एक प्राकृतिक प्रक्रिया है.’’उन्होंने कहा कि बुढ़ापा एक और मुद्दा है. वन विभाग केवल अवैध शिकार को रोकने की कोशिश कर सकता है और वह हमेशा ऐसा करने का प्रयास भी करता है. रही बात अप्राकृतिक मौत की तो उन्हें कंट्रोल करने की कोशिश की जा रही है.

मगर यह जवाब बाघों के संरक्षण के लिहाज से गैरजिम्मेदाराना है. दरअसल, प्रदेश के टाइगर रिजर्व में बाघों के शिकार की घटनाएं भी सुनने को मिलती रहती हैं, परंतु वन विभाग का अमला अपनी नाकामी को छिपाने के लिए बाघों की मौत का कारण उन के वर्चस्व की लड़ाई बता कर पल्ला झाड़ लेता है.
मध्य प्रदेश के वन मंत्री कुंवर विजय शाह ने पिछले साल विधानसभा में पूछे गए सवाल के लिखित जवाब में जानकारी दी थी कि एक जनवरी से 31 दिसंबर, 2020 तक प्रदेश में 30 बाघों की मौत हुई थी, इन में से 9 मामले शिकार के हैं.

टाइगर रिजर्व में 19 बाघों की स्वाभाविक मौत हुई है और 2 बाघों का शिकार हुआ है, जबकि संरक्षित क्षेत्र में 2 बाघों की स्वाभाविक मौत दर्ज की गई है और 7 बाघों का शिकार हुआ है. वन मंत्री ने इस वर्ष के आंकड़े पेश करते हुए बताया था कि एक जनवरी से 5 दिसंबर, 2021 के बीच 41 बाघों की मौत की पुष्टि हुई है, इन में से 11 बाघों का शिकार हुआ है.टाइगर रिजर्व में 20 बाघों की स्वाभाविक मौत हुई है और 5 बाघों का शिकार हुआ है, जबकि संरक्षित क्षेत्रों में 6 बाघों का शिकार और 10 की स्वाभाविक मौत दर्ज की गई. विधानसभा के पटल पर रखे गए इस जबाब से साफ जाहिर है कि टाइगर रिजर्व और दूसरे संरक्षित वन इलाकों में शिकार की घटनाएं भी बदस्तूर जारी हैं.

सितंबर, 2021 में शिकार के मामलों की धरपकड़ कर मंडला जिले की नैनपुर तहसील और बालाघाट जिले की परसवाड़ा तहसील सहित नगरवाड़ा क्षेत्र से कुल 8 युवकों को गिरफ्तार कर उन से पूछताछ की गई. इन में से कुछ युवकों पर पहले भी शिकार के मामले दर्ज हुए थे.इन के पास से वन्य प्राणी के अवशेष जबड़े, पंजे और अन्य अंग मिलने पर शिकार की घटना की पुष्टि हुई थी. बाद में इन युवकों पर वन्य प्राणी अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर काररवाई की गई थी.

पन्ना टाइगर रिजर्व में हीरा और पन्ना नाम से बाघों की मशहूर जोड़ी थी, जो पर्यटकों के आकर्षण का मुख्य केंद्र थी. दोनों अकसर साथ में ही टाइगर रिजर्व में पर्यटकों को दिखते थे. पहली नवंबर 2021 को सतना जिले के रक्सेलवा गांव के जंगल में शिकारियों ने बाघ की खाल खींच कर उस के शव को नजदीक के तालाब में फेंक दिया. बाघ का नाम हीरा था.

हैरानी की बात है कि रेडियो कालर लगा होने के बावजूद वन विभाग उस की ट्रेसिंग नहीं कर पाया था. शिकार की खबर लगते ही वन विभाग के आला अधिकारी मौके पर पहुंच गए. शक के आधार पर वन विभाग ने 3 लोगों को हिरासत में लिया और बाघ के अस्थिपंजर का जंगल में ही अंतिम संस्कार कर दिया.
हीरा नाम के इस बाघ की लोकेशन 13 अक्तूबर के बाद से ही नहीं मिल रही थी और तभी से उस की खोजबीन जारी थी. शिकारियों ने बड़ी बेरहमी से उस की खाल तक निकाल ली थी.
विशेष बाघ संरक्षण बल की है जरूरत

आरटीआई एक्टिविस्ट और बाघों के लिए काम कर रहे सामाजिक कार्यकर्ता भोपाल के अजय दुबे का कहना है कि मध्य प्रदेश में बाघों के संरक्षण में कई दिक्कतें हैं. फारेस्ट रिजर्व में खाने की कमी और अनियोजित विकास की वजह से फारेस्ट कवर कम हो रहा है. इस की वजह से बाघों का मूवमेंट बाधित हो रहा है, जिस से उन की असामयिक मौतें हो रही हैं. जंगलों के पास के खेतों में जानवरों से बचाव के लिए करंट दौड़ा कर जाल बिछाए जाते हैं, जिस में फंस कर भी बाघ दम तोड़ रहे हैं.

एनटीसीए ने राज्यों को विशेष रूप से शिकारियों से बाघों की सुरक्षा के लिए स्वयं के विशेष बाघ संरक्षण बल (एसटीपीएफ) स्थापित करने की सलाह दी थी, लेकिन मध्य प्रदेश सरकार ने अभी तक अपने निहित स्वार्थों के कारण इस तरह के किसी भी बल का गठन नहीं किया है.अजय दुबे का मानना है कि अगर यह बल स्थापित हो जाता है तो यह अवैध शिकार पर रोक लगाने में कारगर साबित होगा. अजय दुबे ने यह भी कहा कि कर्नाटक, ओडिशा और महाराष्ट्र जैसे राज्यों ने एसटीपीएफ बनाए हैं और उन के परिणाम कर्नाटक के रूप में दिखाई दे रहे हैं. बाघों की एक बड़ी आबादी होने के बावजूद कर्नाटक में मध्य प्रदेश की तुलना में बाघों की मृत्यु दर कम है.

एसटीपीएफ के गठन के मुद्दे पर पीसीसीएफ जे.एस. चौहान का कहना है कि मध्य प्रदेश पहला राज्य है, जिस ने इसे मंजूरी दी है, लेकिन अभी तक इस का गठन नहीं हुआ है. वहीं उन्होंने इस वर्ष राज्य में लगभग 120 बाघों के जन्म का अनुमान जताया है.फारेस्ट सेवा से रिटायर्ड 1978 बैच के आईएफएस अफसर और नैशनल टाइगर कंजरवेशन अथौरिटी (एनटीसीए) के पूर्व सदस्य डा. राजेश गोपाल संरक्षित क्षेत्र के अंदर शिकार की घटनाओं पर चिंतित हो कर कहते हैं कि सरकार और वन विभाग इस पर नियंत्रण नहीं कर पा रहे हैं. क्योंकि उन की कोई ठोस कार्ययोजना नहीं है.

हालांकि बाघों की ज्यादा मौत होना प्राकृतिक है. जहां घनत्व ज्यादा होता है वहां मौतें होती हैं. सरकार को बाघों के लिए नए क्षेत्र तैयार करने चाहिए, जिस से बाघों के बीच होने वाले आपसी संघर्ष को नियंत्रित किया जा सके. वन मंत्री विजय शाह का कहना है कि प्रदेश में बाघों की संख्या में वृद्धि के लिए लगातार प्रयास हो रहे हैं.बाघों के रहवासी इलाके के प्रबंधन से बाघों की संख्या में लगातार वृद्धि भी हो रही है. उन्होंने कहा कि विश्व में आधे से ज्यादा बाघ भारत में हैं. राष्ट्रीय उद्यानों ने वन्य प्राणियों के संरक्षण के लिए नवाचारी उपाय किए हैं.

पेंच टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्रफल 1179.632 वर्ग किलोमीटर है. एक बाघ को 25 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल की जरूरत पड़ती है. क्षेत्रफल के अनुसार यहां 45 से 50 बाघ रह सकते हैं, लेकिन बाघों की संख्या ज्यादा होने से वनक्षेत्र की कमी के कारण पेंच के बाघ टेरिटरी से बाहर बफर और आसपास के जंगलों में घूम रहे हैं.बाघ नए टेरिटरी बनाते समय कान्हा, सतपुड़ा और पेंच टाइगर रिजर्व की सीमाओं में प्रवेश कर रहे हैं. पेंच के अधिकारियों का कहना है कि बाघ अपनी टेरिटेरी में अन्य बाघ या शावकों को प्रवेश नहीं करने देते हैं. अगर कोई बाघ आ जाता है तो उस पर हमला कर देते हैं, ऐसे में बाघ एक से दूसरे जंगल की सीमाओं में चले जाते हैं. और बाघों की आपसी लड़ाई में मारे जाते हैं.

हार्ट अटैक से भी बाघों की मौत

इंसानों की बदलती लाइफस्टाइल को डाक्टर हार्ट अटैक का कारण मानते हैं, लेकिन यह जान कर आप को आश्चर्य होगा कि प्रदेश के जंगलों में बाघों की भी हार्ट अटैक से मौत हो रही है.
इस बात की पुष्टि राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) सेंचुरी की रिपोर्ट में वेटरनरी डाक्टर ने की है. देश में इस साल अब तक 75 बाघों की मौत हुई. सब से ज्यादा 27 बाघों की मौत मध्य प्रदेश में हुई, इन में भी 15 फीसदी यानी 4 बाघों की मौत हार्ट अटैक से हुई है.
अन्य की मौतों के लिए आपसी संघर्ष व अन्य कारण गिनाए जा रहे हैं. चौंकाने वाले आंकड़े यह हैं कि 10 साल में मध्य प्रदश में सब से ज्यादा 270 बाघों की मौत हुई है. सवाल यह भी है कि क्या जंगलों में बाघों की जीवनशैली बदल रही है?
इसे ले कर वेटनरी डा. अनूप चटर्जी कहते हैं, ‘‘हां, हार्ट अटैक से बाघों की मौत होती है. अमूमन बाघों की उम्र 12 से 17 वर्ष होती है. इस बीच उन की धमनियों में अलगअलग कारणों से खून के थक्के बन जाते हैं. ऐसे में हार्ट ब्लौकहोता है और अटैक से मौत हो जाती है.’’

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