नास्तिक शब्द, जिसे इंग्लिश में एथीस्ट कहते हैं, को बहुत ही नकारात्मक अर्थ में लिया जाता है. तुरंत नास्तिकों के विचारों से दूरी बनाए रखने की सलाह दे दी जाती है. इस से होता यह है कि नास्तिक लोग भी खुद को प्रगतिशील, तर्कशील, उदार जैसे शब्दों में पिरोने लगते हैं. ऐसा क्यों? नास्तिकता की विचारधारा किसी एक जगह, देश, या व्यक्ति से नहीं बंधी, यह तो किसी भी तार्किक जगह, देश या व्यक्ति के भीतर पनप सकती है.

अकसर भारत में नास्तिकता को पश्चिमी विचार मान कर खारिज कर दिया जाता है पर जानकारी लायक बात यह है कि इसी देश की धरती पर दैवीय शक्तियों को नकारने वाले विचार पैदा हुए और बढ़े भी, भले उन का आज स्वरूप बदल गया हो पर चार्वाक, बौद्ध और जैन इत्यादि विचार यहीं के पैदाइश रहे.

अधिकांश लोग धार्मिक हैं और उन का विश्वास होता है कि ईश्वर में आस्था रखने पर ही वे दयालु, परोपकारी, प्रेममय और प्रफुल्ल होते हैं और तभी जीवन का आनंद ले सकते हैं. वे सच में यह सोचते हैं कि जो ईश्वर को नहीं मानता वह एक अच्छा और नैतिक व्यक्ति नहीं हो सकता. वह दूसरों का भला नहीं कर सकता और न तो हंसबोल सकता है. यानी वह एक दुखी और बुरा व्यक्ति है.

कोई व्यक्ति जो किसी दैवीय चमत्कारों पर विश्वास नहीं करता पर चुपचाप यह सब सहतासुनता है तो वास्तव में वह इस नकारात्मक सोच का समर्थन ही कर रहा होता है. इस से वह यही साबित कर रहा होता है कि वास्तव में नास्तिक खुश नहीं रह सकते, आनंदित नहीं हो सकते.

दुनिया में अधिकतर भेदभाव को सही बनाए जाने का आधार ही धर्म पर टिका है. जाहिर है धर्म और दिक्कतें आपस में गुंथी हुई हैं. अगर तार्किक व्यक्ति थोड़ी और दक्षता का प्रयोग करे तो सब से पहले इन्हीं धार्मिक वर्जनाओं से खुद को मुक्त करे. यदि आप जातिवाद के खिलाफ अपने विचार रखते हैं तो उसी तर्ज पर उन ग्रंथों के खिलाफ विचार खुदबखुद पैदा हो जाने चाहिए जो इन कुव्यवस्थाओं को थोपे हुए हैं.

प्रगतिशील शब्द बुरा नहीं पर प्रगतिशीलता सटीक नहीं. इस के कई आयाम हो सकते हैं. अगर आप कहते हैं कि आप ‘प्रगतिशील’ हैं तो उस का अर्थ अपनी पूजा, अर्चना, दीये की जगह बिजली का बल्ब जला कर करने वाले व्यक्ति से ले कर ईश्वर पर विश्वास न करने वाले किसी नास्तिक व्यक्ति तक, कुछ भी लगाया जा सकता है. जो बात कहनी है, बिना लागलपेट के साफसाफ कही जाए तो स्पष्टता आती है.

और कहानियां पढ़ने के लिए क्लिक करें...