भारत में भी मैरिज को टाला जा रहा है. एक सर्वे के हिसाब से 15-19 साल के युवा जो वर्ष 2011 में 17.2 फीसदी थे, वर्ष 2019 में बढ़ कर 23 फीसदी हो गए. पहले की अपेक्षा अब युवक ज्यादा देर से शादी करते हैं और काफी युवक शादी नहीं कर रहे. वर्ष 2011 में 15-29 साल के 20.8 फीसदी युवाओं की शादी नहीं हुई थी और यह फीसद 2019 में बढ़ कर 20.1 हो गया. वहीँ, 15 से 29 साल की युवतियां वर्ष 2011 में 13.5 फीसदी बिना शादी की थीं लेकिन वर्ष 2019 तक, केवल 8 सालों में, अविवाहित युवतियों का फीसद 19.9 हो गया था. वर्ष 2022 के आंकड़े अभी उपलब्ध नहीं हैं, ज़ाहिर है ऐसे युवकयुवतियों के फीसद अब और भी ज्यादा हो गया होगा.
शादी न करने की वजहें कई हैं. सब से बड़ी बात यह है कि कैरियर अब जन्म में नहीं मिलता, बनाना पड़ता है. गांवों में पुश्तैनी काम यानी किसानी कम होती जा रही है और शहरों में घरों के चलते व्यापार कम हो रहे हैं. युवाओं को पहले रोजीरोटी की फिक्र होती है, शादी व बच्चों की जिम्मेदारी की फ़िक्र बाद में. आज समाज के खुले माहौल में अपोजिट सैक्स से मिलने की आजादी शहरों में तो काफी बढ़ गई है और इसलिए युवकयुवतियों को वह कमी महसूस नहीं होती.
एक और वजह है मातापिता का घटता दबाव. आज के मांबाप जानते हैं कि बेटेबेटी की शादी करने का मतलब बहू या दामाद की मुसीबत को गले बांधो. पहले बच्चे जब बड़े हो कर शादी लायक होते थे तो मातापिताओं को घर में बहू लाने की जल्दी होने लगती थी कि वह आ कर घर संभालेगी. अब न तो मातापिता बूढ़े होते हैं और न घर में आ कर बहुएं खास जिम्मेदारियां लेती हैं.
ज्यादातर महिलाएं जानती हैं कि बहू आते ही उन की अपनी आजादी में खलल पड़ जाएगा. उन्हें किचन में ज्यादा रहना पड़ेगा और बच्चे हो गए तो उन्हें आया बन कर पालना होगा. बहू कामकाजी, घर से बाहर जा कर कमाने वाली होगी, तो और मुसीबत.
मकानों की बढ़ती कीमत और कम होती अवेलेबिलिटी भी इस के लिए जिम्मेदार है क्योंकि युवाओं को मालूम होता है कि वे यदि इतना न कमा पाए कि अपना घर ले सकें तो उन्हें मातापिता के साथ एडजस्ट करना होगा, जो हर रोज की आफत खड़ा करेगा.
आबादी की रफ्तार रोकने के लिए यह चेंज अच्छा है क्योंकि देर से शादी या शादी न करने से बच्चे नहीं होते और देश पर बोझ नहीं बढ़ता. पौपुलेशन कंट्रोल का जो हल्ला भारतीय जनता पार्टी मचा रही है वह इस गलतफहमी को भुनाने के लिए है कि मुसलमानों में बच्चे ज्यादा होते है जबकि सच यह है कि टोटल फर्टिलिटी रेट में हिंदू और मुसलमान औरतों का अंतर केवल 1.9 और 2.2 का है. इस रेट का मतलब है कि हर औरत औसतन कितने बच्चे पैदा कर रही है. यह रेट 1.9 या 1.8 हो जाए तो आबादी बढऩा रुक जाती है. वर्ष 1980 के आसपास यह रेट 3.5 था. देर से शादी करना इस रेट को घटा रहा है.
जहां देर से शादी करना अच्छा है वहीं अकेलेपन के चलते बढ़ रहीं डिप्रैशन, एंग्जाइटी की बीमारियां चिंता की बात है. युवाओं को अकेले बहुत से मोरचों को संभालना होता है. अब तो भाईबहन कम हो गए. चाचा, मौसा, फूफा जैसे रिश्तों में से हर घर में कुछ लुप्त हो गए हैं. इस वजह से घर की परेशानियों में अकेले बच्चों को देर तक मांबाप का साथ देना होता है और उन में से किसी को कभी गंभीर बीमारी हो जाए तो उन की देखभाल करने के लिए उन्हें अपने दोस्तों पर डिपैंड होना होता है जो पहले अपने मांबाप को देखते हैं, दूसरों के पेरैंट्स को बाद में.
शादी में देर या शादी न करने का ट्रैंड आंकड़ों में चाहे कितना ही अच्छा लगे लेकिन यह जिंदगी को हवा में उड़ाने वाला है और जिंदगी कटी पतंग की तरह कभी इधर तो कभी उधर भागती रहती है. कैरियर का या गर्लफ्रैंड का बोझ इतना नहीं होता कि वह युवाओं को बांध कर रख सके, इसलिए युवाओं को समय पर शादी कर लेनी चाहिए. शादी न करने या देरी करने के चलते युवाओं में नशे व कईकई पार्टनर रखने की आदत पड़ जाती है.