दिल्ली के उपराज्यपाल वी के सक्सेना ने आम आदमी पार्टी के 5 सदस्यों को मानहानि का नोटिस भेजा है. इन आम आदमी पार्टी के नेताओं ने उपराज्यपाल पर आरोप लगाए हैं कि जब वे खादी ग्रामोद्योग विकास आयोग के अध्यक्ष थे, तो उन्होंने 1,400 करोड़ रुपए के नोट 2016 में नोटबंदी के दौरान बदलवाए थे. जबकि, वी के सक्सेना के अनुसार, नोटबंदी के दौरान खुली केवल 50 दिन की खिडक़ी के दौरान आयोग की बिक्री ही इतनी नहीं थी कि पुराने नोट जमा कर के बैंकों से नए नोट लिए जा सकें.

आप के नेताओं ने आरोप लगाया है कि उन्हें शक है कि यह कांड हुआ और सीबीआई, ईडी, पीएमएलए को जांच करनी चाहिए. आप नेताओं का कहना है कि उन्हें संदेह है कि ऐसा हुआ और जांच एजेंसियां दूध का दूध पानी का पानी कर सकती हैं.

वी के सक्सेना के तर्क में दम है पर केवल उसी तर्क के दम पर फैसले मान्य हों तो देशभर में आयकर, जीएसटी, पुलिस मामले जो लाखों में चल रहे हैं उन में गिरफ्तारियां और छापे अवैध हो जाएंगे. एन्फोर्समैंट डायरैक्टोरेट या सैंट्रल ब्यूरो औफ इन्वैस्टिगेशन अफवाहों के आधार पर नोटिस भेजते हैं और छापे मारते हैं. देश में अफवाह को सुबूत मान लिया गया है और तभी अरविंद केजरीवाल, अन्ना हजारे, किरण बेदी, अनुपम खेर, रामदेव जैसों ने 2012-13 में विनोद राय, कंप्ट्रोलर जनरल औफ इंडिया, की नितांत झूठी रिपोर्ट पर तब की यूपीए सरकार को घेरे में डाल दिया था.

जब अपने पर आरोप लगे तो तर्कों और तथ्यों का सहारा लिया जाए और जब दूसरों पर आरोप लगाना हो तो कोई भी तिनका ले कर ताड़ बना दिया जाए और देश की न्याय व्यवस्था इसे मुद्दा मान कर कुछ को महीनोंसालों बंद कर के सलाखों के पीछे रख दे या उन का राजनीतिक कैरियर बरबाद कर दिया जाए, यह कैसे माना जा सकता है?

दूसरों पर झूठे आरोप लगाना और न केवल खाने की मेज पर उन्हें कहना या चाय के टपरे पर दोहराना हमारे समाज की परंपरा है. हमारी सारी धार्मिक पुस्तकों में सैंकड़ों कहानियां भरी हुई हैं जिन में तरहतरह के आरोप लगाए गए हैं. शास्त्रों में श्राद्ध की बड़ी महिमा गाई गई है. हमारे नीतिनिर्धारक इन पुराणों, शास्त्रों, स्मृतियों को संविधान और कानूनों से ऊपर मानते हैं. पर इन में किस तरह ब्राह्मïण को श्राद्ध के समय किन लोगों से खाना या दान नहीं लेना चाहिए उस की सूची में बिना तथ्यों व तर्कों के बहुतों को आरोपी बना दिया गया है.

कूर्म पुराण अपने अध्याय 21 में कहता है कि विधवा स्त्री से विवाह करने वाले, काने, अपंगों, स्त्रियों के साथ संबंध बनाने वाले, समुद्र की यात्रा करने वाले जैसों से श्राद्ध का दान या भोजन नहीं लेना चाहिए. पर यह फैसला किया जाएगा कि ये लोग ???…………??? हैं. सूची तो बहुत लंबी है और उस युग में जब पुराण लिखा गया कौन सी ईडी जांच कर के बताती थी कि ये आरोप सही हैं.

पौराणिक युग को संस्कारमयी मानने वाले लोगों को सोचना होगा कि जब पुराणों में आरोप लगाना मात्र किसी को अपराधी घोषित कर देना है तो आज एक एफआईआर, ईडी, सीबीआई, एनआईए का छापा किसी को अपराधी घोषित कर देने के लिए काफी है. सो, जनप्रतिनिधियों के आरोप को राजनीति से प्रेरित झूठ कैसे माना जा सकता है जब तक जांच न हो जाए?

वी के सक्सेना ने मानहानि के नोटिस अवश्य भेजे हैं पर वे वास्तव में दावे की दलील दे पाएंगे, इस में संदेह है क्योंकि मानहानि के दावे में आरोप लगाने वाले से भी बहुत से सवाल पूछे जाते हैं. वी के सक्सेना उपराज्यपाल चाहे हों, पर वे यह जोखिम लेंगे, इस में संदेह है.

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