धार्मिक पूजापाठ में भक्त/ श्रद्धालु इस तरह खोए रहते हैं कि उन्हें पता ही नहीं चलता कि वे इस से प्रकृति और खुद को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं. यह इसलिए कि धार्मिक स्थलों में बैठे पंडेपुजारी अपने लिए दानदक्षिणा जुटाने के चलते उन्हें ऐसा सोचने ही नहीं देते.

इस बार अभी तक दिल्ली में हलफीफुलकी नाममात्र की बरसात हुई है. सूखा पड़ने की संभावना है. पता नहीं अब की बार हमारे अतिउत्साही, अंधविश्वासी हिंदूभाई वर्षा के लिए कौन सा जादूटोटका, तंत्रमंत्र, यज्ञहवन करने वाले हैं. 2-3 वर्षों पहले तो अखबारों में खबर पढ़ी थी कि वर्षा के देवता इंद्र को खुश करने के लिए वस्त्रविहीन महिला से खेत में हल चलवाया गया था.

पिछले कई सालों से भारी वर्षा के कारण केदारनाथ, बद्रीनाथ आदि धार्मिक स्थलों पर बादल फटे व भूस्खलन हुए, सुनामी जैसी जलप्रलय हुई. हर साल से उत्तर काशी तक अनेक गांव छोटेमोटे कसबे, मकान, दुकान होटल, स्कूल, अस्पताल, सरकारी दफ्तर, सड़कें, पुल काफी नष्ट हो रहे हैं.

प्रकृति हमें सबक सिखा रही है कि यदि हम लोग नहीं सुधरे तो जलप्रलय का भयानक रूप देखना पड़ सकता है. अभी तक पहाड़ी इलाकों में आधाअधूरा विकास ही हो पाया है परंतु हमारे अतिधार्मिक भक्तों को घर में बैठना मुश्किल हो रहा है. फिर वही भेड़चाल, हमारे अंधश्रद्धालु जहां सौ लोगों को जाना चाहिए वहां 10 हजार और जहां हजार लोगों की गुंजाइश हो वहां लाखों लोग पहुंच रहे हैं. सारे देश में ट्रैवल एजेंसियां मंदिरों में खुली हुई हैं जो भक्तों को पहाड़ों पर ले जाती हैं.

अगला जन्म सुधरने, स्वर्ग में आरक्षण कराने आदि के लिए छलकपट से अधिक से अधिक धन कमाने के चक्कर में इंसान कथित भगवानों के दर्शन हेतु मारामारा फिरता है लेकिन न मोक्ष मिलता है और न ही राम. गरीबों को खूब लूटताखसोटता है पर धनदौलत से दिल नहीं भरता उस का.

धर्म का चोला पहने लोग नदियों में तरहतरह की पूजा सामग्री, कूड़ाकचरा लगातार डालडाल कर उन्हें प्रदूषित व गंदा करते रहते हैं. कांवड़ सेवा के नाम पर धर्म के ठेकेदार, व्यापारी व सरकार ने मिल कर दिल्ली से हरिद्वार तक कांवडि़यों की सेवार्थ हिंदू धर्म के ढोंग की खातिर जगहजगह पर हजारों कांवड़ शिविर लगाए. अपने मांबाप का सम्मान न करते हों, उन्हें एक गिलास पानी तक न देते हों, ऐसे कांवडि़यों के लिए जगहजगह भरपूर व्यवस्था रहती है. कई स्थानों पर ये हिंसा करने पर उतर आते हैं.

अंधविश्वासी इलैक्ट्रौनिक मीडिया ने तो पहले ही प्रचार करना शुरू कर दिया है कि इस बार और ज्यादा लोग पहुंचेंगे. हमारे मीडिया द्वारा अंधश्रद्धालुओं को इस तरह प्रेरित करने का ही असर था कि इतनी बड़ी संख्या में कांवड़ गंगा नदी के तट पर हरिद्वार में जमा हुए. उन के शौच, पेशाब व स्नान से गंगा गंदी और मैली हो जाती है और वही दूषित जल शिवालयों में चढ़ाया जाता है. कुंभ मेले में गंगा नदी मैली हो जाती है. गंगा में 10-15 दिनों में ही हजारोंलाखों टन कूड़ाकचरा भर जाता है. हरिद्वार व कुंभ के समय यह नदी मेले के दौरान अपनी चरम सीमा पर होती है.

धर्म के नाम पर हर तीर्थस्थल पर दुकानदार, पंडेपुजारी खूब लूटखसोट करते हैं. अंधश्रद्धालु कांवड़ पूरे हिमालय के तीर्थों पर से पंडेपुजारियों द्वारा लुटपिट कर अपने पांव सुजा कर घर चले आते हैं. अपने मंदिरों में जल चढ़ाते हैं. हर साल गणेश व दुर्गा की बड़ीबड़ी विशाल मूर्तियां लाखों रुपए खर्च कर के नदियों, ?ालों में विसर्जित की जाती हैं जिस से प्रदूषण बढ़ता है.

ऐसी फुजूल की परंपरा दुनिया में कहीं नहीं मिलती. भगवा सरकारों ने नदियों की सफाई पर अरबोंखरबों का बजट रखा है पर उस का आधा तो सफाई के बहाने भ्रष्टाचारी राजनीतिबाज व धार्मिक हिंदू ही मिल कर सटक जाते हैं और नदियां इन पोंगापंथियों के कारण मैली की मैली ही रहती हैं.

अंधश्रद्धा और मौतें

हर वर्ष हिंदू आस्थावान तीर्थयात्री अकाल मौत को प्राप्त हो जाते हैं, खासतौर से हरिद्वार से ले कर उत्तराखंड के धार्मिक स्थलों को तीर्थ यात्रियों को ले जाने वाली बसें हजारों मीटर नीचे घाटी में गिर जाती हैं, जिन में सैकड़ों यात्री मारे जाते हैं.

नदियों के कारण ही नहीं, धार्मिक कामों में बेवकूफियों के कारण भी मौतें होती हैं. अप्रैल 2022 में तमिलनाडु के तंजौर जिले के एक गांव कालिमेडू में एक विशाल रथ को सड़कों पर रात को खींच कर हर घर के सामने से ले जाया जा रहा था. 50 लोग मोटे रस्से से उसे खींच रहे थे. एक जगह रथ को मोड़ने पर उस की बुर्जी एक बिजली के तार से छू गई. रथ को आग लग गई और 10 लोग उस आग में जल कर भस्म हो गए.

ओडिशा के तारातारिणी में मूर्ति पर घी जलाते हुए दिए फेंकने से वहां लगे तारों में शौर्ट सर्किट हो गया और जानें बालबाल बचीं.

मंदिरों में मची भगदड़ में लोग मारे जाते हैं. कई साल पहले चामुंडा मंदिर में 216 लोग मौत के शिकार हुए. एक बार हिमाचल प्रदेश के धर्मशाला के नजदीक नैना मंदिर में 160 लोग अकाल मृत्यु को प्राप्त हो गए थे. 2011 में केरल के सबरीमाला मंदिर में मची भगदड़ में 104 हिंदू जान से हाथ धो बैठे. हिंदुओं में धन के लिए खींचतान, छीना?ापटी, लूटखसोट मची हुई है. मुनाफाखोरों, कालाबाजारियों, घोटालेबाजों व भ्रष्टाचारियों का अनैतिकता से कमाया धन 10 प्रतिशत तो हिंदू धर्म के प्रचारप्रसार में लग जाता है.

धर्म के धंधेबाजों ने हिंदुओं की कमजोरी सम?ा ली है और वे मंदिरों, कांवड़ों, कुंभों, अनुष्ठानों और तीर्थ यात्राओं के नाम पर लोगों को लूटनेखसोटने में लगे हैं और अंधभक्त हिंदू भगवान के दीदार की कल्पना मन में संजोए लुटने को तत्पर रहता है. चाहे ऐसे स्थानों पर उस की जान भी जोखिम में पड़ जाए.

यह कितना सच है कि हिंदू धर्म ही सिखाता है आपस में बैर रखना. ऐसे लोग मंदिरमंदिर खाक छानते फिरते हैं. मंदिरों में घंटी बजाने, पंड़ेपुजारियों के चरणों में रुपएपैसे, मिठाई चढ़ाना, सिर रगड़ना ही धार्मिक कृत्य है. ऐसे ही लोग अपने सगेसंबंधियों और केवल अपनी जात वालों को अवैध धन कमाने के मक्कारीभरे तौरतरीके बताते हैं.

धर्म के व्यापारी

हजारों ढोंगियों ने पैसे के बल पर पहाड़ों में नदियों के किनारे बड़ेबड़े होटल, धर्मशाला, रैस्टोरैंट, फ्लैट बना लिए हैं. दिल्ली जैसे बड़े शहरों की तरह ऐशोआराम की जगहें सभी पहाड़ी क्षेत्रों में बना डालीं. इन्हीं लोगों ने अधिक धन कमाने के चक्कर में पहाड़ों के पेड़ काट कर हर हरियाली समाप्त कर पहाड़ों का पर्यावरण ही नष्ट कर दिया है.

जितना भारत में हिंदू धर्म का प्रचार बढ़ रहा है उस का समाज पर उलटा ही असर हो रहा है. जैसे दहेज के लिए बहुएं जला दी जाती हैं. दहेज के लालची, धन के भूखे हत्या तक करने में नहीं चूकते. गरीब तबकों के बच्चेबच्चियों के अपहरण के मामले, गरीबों, दलितों की नाबालिग बच्चियों के साथ गैंगरेप कर और हत्या कर के पेड़ पर लटकाने की क्रूरतम घटनाओं को दबंग लोग अंजाम दे रहे हैं. हिंदू देवीदेवता, जिन की अब दलित भी पूजाअर्चना करते हैं, आंखें बंद किए बैठे हैं.

कुछ पंडेपुजारी व साधु जेवरात ले कर हैलिकौप्टर पर चढ़ने वाले ही थे कि उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया. पता चला कि उन्होंने उत्तराखंड में हुई जल प्रलय में मरे लोगों को लूटा था और भागने की फिराक में थे. विपदाओं में भी बेईमान बाज नहीं आते. उन्हें किसी का डर नहीं होता. एक बार गौरीकुंड में डाक्टरों का एक कैंप लगा था. कुछ लोग इलाज के लिए पहुंचे. एक डाक्टर ने उन लोगों के पास

2 प्रैशरकुकर देखे तो पूछा कि इन कुकरों को क्यों लिए जा रहे हो? उन के जवाब पर डाक्टर को शक हुआ. सेना के जवान बुलाए गए. उन्होंने प्रैशरकुकर खोले तो सभी दंग रह गए. उन में दर्जनों हाथ व कटी हुई उंगलियां थीं, जिन में सोने की अंगूठियां थीं.

अफसोस होता है ऐसे लोगों पर जो धर्म की दुहाई दे कर, लोगों को बरगला कर उन का धार्मिक व आर्थिक शोषण करते हैं. ऐसे लोगों का न धर्म से कोई सरोकार होता है और न ही पर्यावरण से. ऐसे लोगों की वजह से ही नदियां प्रदूषित हो रही हैं, प्राकृतिक आपदाएं आ रही हैं. ये तो बस तीर्थयात्राओं को बढ़ावा दे रहे हैं ताकि हिंदू अंधभक्तों की जेबें खाली की जा सकें.

मोदी सरकार अगर वाकई भारत में अच्छे दिन लाना चाहती है तो उसे धार्मिक प्रपंच को समाप्त करने के प्रयास करने होंगे. हिंदुओं की मानसिकता को बदलना होगा, पर्यावरण की रक्षा के समुचित प्रयास करने होंगे. मगर नहीं, वह तो खुद ही धर्म में डूबी हुई है, वह तो राजनीति में धर्म को तरहतरह से प्रयोग करती है, वह तो धर्म के सहारे ही नफरत फैला कर सत्ता पर काबिज है.

-विभागीय लेखक

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