ऐक्टिंग के क्षेत्र में देशविदेश में मशहूर अभिनेता शाहरुख़ खान के पुत्र आर्यन खान को मुंबई क्रूज ड्रग्ज केस में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) की एसआईटी ने क्लीन चिट दे दी है, यानी, वे ड्रग्स केस मामले में पूरी तरह बेकुसूर पाए गए हैं. एनसीबी को आर्यन खान के खिलाफ कोई ठोस सबूत नहीं मिला. ऐसे में उन सारे दावों की हवा निकल गई जो इस मामले के शुरू होने के बाद किए जा रहे थे. 22 दिन जेल और 238 दिनों लंबे चले ट्रायल के बाद आर्यन खान बेदाग निकले हैं. आर्यन के बेदाग निकलने के बाद एनसीबी और मीडिया की भूमिका पर सवाल खड़े हो गए हैं.
इस में कोई शक नहीं है कि आर्यन खान को जबरदस्ती बलि का बकरा बनाया गया था ठीक वैसे ही जैसे कुछ समय पहले रिया चक्रवर्ती को बनाया गया. आर्यन खान मामले की जांच करने वाले एनसीबी के डीडीपी संजय सिंह ने जांच में यह पाया कि आर्यन के पास ड्रग्स नहीं था. आर्यन द्वारा ड्रग्स के सेवन करने का प्रमाण भी उन्हें नहीं मिला. जो व्हाट्सऐप चैट्स निकली गईं वो इस मामले से लिंक नहीं करतीं. वहीं, एनसीबी के डीजी एस एन प्रधान ने कहा कि जिस तरह के सुबूत सामने आए हैं उन से यह साफ है कि यह कोई अंतर्राष्ट्रीय साजिश का मामला नहीं था. पर सवाल ये कि जो दाग मीडिया और नारकोटिक्स ने इन दिनों आर्यन खान पर लगाए क्या वे आसानी से धुल पाएंगे? 24 वर्षीय एक युवा को जिस तरह के तनावों से गुजरना पड़ा क्या उस की भरपाई हो पाएगी?
आर्यन खान का मामला 2 अक्टूबर, 2021 को उछला था जब एनसीबी ने मुंबई से गोवा जा रहे क्रूज पर रैड डाली थी. उस रैड में 13 ग्राम कोकीन, 21 ग्राम चरस और एमडीएमए की 22 गोलियां मिलने की बात सामने आई थी. इस मामले ने सनसनी तब फैला दी थी जब फिल्मस्टार शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन खान को उन के दोस्तों के साथ क्रूज से एनसीबी ने हिरासत में ले लिया. उस के बाद उन्हें अदालत में पेश किया गया. आर्यन को हिरासत में लेने के बाद से मानो मीडियारूपी गिद्धों को परोसा हुआ शिकार मिल गया. वे इस मामले पर टूट पड़े, क्योंकि इस मामले में उन्हें एकसाथ ग्लैमर, सिनेमा, स्कैंडल, ड्रग्स, क्राइम का ही नहीं बल्कि धर्म का भी छौंका मिल रहा था.
मसलन, कोर्ट कार्यवाही एक तरफ चल रही थी दूसरी तरफ मीडिया ट्रायल का खेल शुरू हो चुका था. जब आर्यन खान पर आरोप लगाए गए तब मीडिया ने उन्हें नशेड़ी, तस्कर, पैडलर और न जाने क्याक्या कहा. हर रोज सुबहशाम टीवी चैनलों पर आर्यन खान की लाइव लिंचिंग की गई. चैनलों द्वारा ऐसे सनसनीखेज दावे किए गए जो ‘गुप्त सूत्रों’ के हवाले से हुआ करते थे. ये कौन से गुप्त सूत्र थे और कहां से थे, ये तो वो ही जानें पर उन गुप्त सूत्रों की आड़ में हदों की सीमाएं लांघी गईं.
यह कैसा मीडिया ट्रायल
इस पूरे मसले में आर्यन खान की विच हंटिंग की गई. गिरफ्तारी के दिन उन्होंने कौन से रंग की टीशर्ट, जैकेट, मास्क, जींस पहनी थी, इसे बारीकी से बताया जाने लगा. जमानत के दिन वे किस कार में, कौन सी सीट में, कैसे, कहां से जाएंगे, घर जाएंगे या होटल आदि फुजूल बातें रिपोर्टिंग का हिस्सा थीं. सिर्फ हवाई बातों और झूठेबेबुनियाद या आधेअधूरे तथ्यों से ही चैनलों द्वारा कई प्रकार के दावे किए गए. इस ड्रग्स मामले में आर्यन खान के खिलाफ कोई सुबूत न मिलने पर एनसीबी और मीडिया ने इसे अंतर्राष्ट्रीय तारों से जुड़ा हुआ बताया. इस के लिए चैट्स का हवाला दिया, ताकि दर्शकों को लगे कि देश के खिलाफ यह बहुत बड़े षड्यंत्र का हिस्सा है.
उन दिनों मीडिया की कवरेज एकतरफा, हवाहवाई और धूर्त किस्म की थी. बड़ी चालाकी से न्यूज चैनल शीर्षकों का चयन करते, उदाहरण के लिए, जी न्यूज ने अपने प्राइमटाइम शो ‘ताल ठोक’ कार्यक्रम में ‘बौलीवुड के नशेबाज बच्चे’ शीर्षक से शो चलाया, जिस पर आर्यन खान की बड़ी फोटो चस्पां की गई. अंत में दर्शकों के कन्फ्यूजन के लिए क्वेश्चन मार्क डाला. साथ में, हैशटैग दिया गया ‘बौलीवुड ड्रग्स पार्टी’. शीर्षक में शब्दों का चयन ही आरोपी को अपराधी घोषित कर देने वाला था. इस में तथ्य न के बराबर थे. चैनलों में, बस, एंकरएंकरनियों व बेतुके पेनलिस्टों की चीखमचिल्ली और तेज दनदनाते साउंड इफैक्ट्स थे.
ऐसे ही अपने एक और शो में ‘आर्यन ड्रग्स और डील’ नाम से शो चलाया. इस में भी अधिकतर जानकारियां सूत्रों के हवाले थीं. व्हाट्सऐप चैट के सामने आने के बाद चरित्र हनन के लिए चैनलों ने ‘आर्यन खान के फोन में आपत्तिजनक तसवीरें’ वाले शीर्षक चलाए. रिपोर्टर खबरें देने की जगह सड़कों पर कारों का पीछा कर रहे थे. मीडिया ट्रायल के नाम पर बगैर तथ्यों या आधेअधूरे तथ्यों से वे वह सब कहने के लिए आजाद थे जो भड़ासी हो, सनसनीखेज हो और आर्यन खान को कैसे अपराधी साबित किया सके, इसी के इर्दगिर्द था.
जी हिंदुस्तान चैनल के एक शो में कहा गया, ‘आर्यन खान से एमडीएमए की 22 गोलियां बरामद हुईं.’ चैनल को यह खबर भी सूत्रों से मिली. चैनल के अनुसार, अगर 22 गोलियां मिलीं तो आर्यन बरी कैसे हो गया. सिर्फ आर्यन नहीं, आर्यन के जरिए बौलीवुड को बदनाम किया जाने लगा. ‘आज तक’ में ऐसे कई शो चलाए गए. ‘आज तक’ के प्राइम टाइम ‘दंगल’ शो में ‘उड़ता बौलीवुड’ शीर्षक दिया गया, जिस में फ्रंट पर शाहरुख़ खान की बड़ी तसवीर लगाई गई. शाहरुख़ खान की छवि को खराब करने वाले शो भी चलाए गए, जैसे, शो ‘राष्ट्रवाद’ में शीर्षक दिया ‘खुल गया ‘मन्नत’ में ‘जन्नत का गेम’. यह शीर्षक सी ग्रेड भोजपुरी फिल्मों के टाइटल जैसा सुनाई पड़ता है.
इसी प्रकार रिपब्लिक चैनल ने अपने एक शो में शीर्षक दिया, ‘शिकंजे में बादशाह का बेटा’. हिरासत और शिकंजा क्या होता है, शायद चैनल वाले जानते नहीं थे, या आर्यन को अपराधी मान कर बैठे थे. ‘शिकंजे’ शब्द को बारीकी से पढ़ने की जरूरत है, गड़बड़ यहीं समझ आ जाएगी. ‘शिकंजा’ शब्द कब और किन परिस्थितियों में उपयोग होता है? क्या आर्यन खान को किसी बहुत बड़ी क्रिमिनल एक्टिविटी में पकड़ा गया? क्या वे पुलिस से बच कर भाग निकलना चाह रहे थे? क्या उन्होंने पुलिस या एनसीबी से बचने के लिए पलटवार किया? नहीं, यकीनन नहीं. तो फिर शिकंजा किस बात का? शिकंजा शब्द तो घोषित अपराधियों के लिए उपयोग किया जाता है जो भागने की कोशिश कर रहे हों, या हत्थे न चढ़े हों. आर्यन तो महज आरोपी थे, जिन्हें ‘हिरासत’ में लिया गया.
आर्यन खान पर शुरू हुए मीडिया ट्रायल में किसी न किसी तरह से हर रोज घंटों उन के ड्रग्स कनैक्शन को साबित करने की कोशिश की जा रही थी. बौलीवुड का ‘काला सच’, ‘ड्रग्स कनैक्शन’, ‘नशेबाज बेटा’, ‘बिगडैल बेटा’ जैसे शब्दों से न्यूज चलाई जा रही थीं. तथाकथित व्हाट्सऐप चैट्स का इस्तेमाल कर उन की इमेज को खराब किया गया. साथ ही, मीडिया उन्हें फंसाने में लगे लोगों को बचाने और उन्हें हीरो के रूप में पेश करने में लगा रहा.
एक तरफ जहां मीडिया आर्यन खान का गुनाह साबित होने से पहले उन्हें गुनाहगार मान कर बैठा था, वहीं उन की रिपोर्टिंग में ख़बरों के नाम पर चौबीसों घंटे लोगों को कूड़ा परोसा जा रहा था. जितने दिन आर्यन जेल में रहे, मीडिया ‘गुप्त स्रोतों’ से भीतरखाने की खबरें लाता रहा. खबरें चलाई गईं कि ‘शाहरुख़ खान के बेटे आर्यन जेल में पारले जी बिस्कुट को पानी में डुबो कर खा रहे हैं, और इस के बाद उन्हें कब्ज की शिकायत भी हो गई है.’ ‘आर्यन खान के चलते गौरी खान और शाहरुख़ खान के झगड़े चल रहे हैं.’ ‘आर्यन खान 4 साल से ड्रग्स लेते रहे हैं, जिस की खबर उन के पेरैंट्स को थी.’
इस तरह की खबरें जानबूझ कर दर्शकों को परोसी गईं और दर्शक भी चटकारे ले कर इन ख़बरों का भोग करते रहे. मीडिया ट्रायल के नाम पर चलाई जा रही खबरों ने न सिर्फ एक युवा के जीवन और उस के कैरियर को तबाह करने की कोशिश की बल्कि आम लोगों को भी भ्रमित करने का काम किया. आर्यन ख़ान के पक्ष में एनसीपी के नेता नवाब मलिक, जो पहले दिन से ही आवाज उठा रहे थे, के औफिस ने भी ट्वीट किया, उन्होंने लिखा, “’अब जबकि आर्यन खान और 5 अन्य लोगों को क्लीन चिट मिल गई है तो क्या एनसीबी समीर वानखेड़े की टीम और उन की निजी सेना के खिलाफ कार्रवाई करेगी? या फिर अपराधियों को बचाने का काम होगा?”
गलती होना और जानबूझ कर गलती करना 2 अलगअलग चीजें हैं. सवाल यह है कि अब जब आर्यन खान निर्दोष साबित हुए हैं तो सिर्फ समीर वानखेड़े ही क्यों, मीडिया पर भी आपराधिक मुकदमा क्यों न चलाया जाए जो जानबूझ कर केस को भ्रमित करता रहा? आखिर मीडिया ट्रायल के नाम पर कब तक मीडिया अपनी बेशर्मी व अपराधों पर परदा डालता रहेगा?
एसएसआर और रिया चक्रवर्ती प्रकरण
यह सिर्फ आर्यन खान का मसला नहीं. पिछले कुछ समय से मीडिया का रवैया ‘मीडिया ट्रायल’ के नाम पर एकतरफ़ा और सांप्रदायिक हो चला है. इस में कोई संदेह नहीं कि शाहरुख़ खान के बेटे को भी इसी चलते रडार पर लिया गया, क्योंकि शाहरुख़ खान उन अभिनेताओं में से रहे हैं जो भाजपा-आरएसएस की पसंद नहीं रहे हैं.
इस के साथ भाजपा के बड़े नेता पहले भी शाहरुख खान को ले कर आपत्ति जता चुके हैं. ऐसे में यह पूरा मामला बौलीवुड को डराने और ‘खानों’ के मान को हानि पहुंचाने का दिखाई देता है. इस के इतर, बौलीवुड में ‘खानों’ के दबदबे को ख़त्म करने और एंटरटेनमैंट को किसी ख़ास सोच में तबदील किए जाने का मसला भी है, जिस के आगे बौलीवुड फिलहाल रोड़ा है.
यही कारण है कि मीडिया के साथ ही, एनसीबी को ले कर केंद्र सरकार की भूमिका पर भी सवाल उठते हैं. इस से पहले सुशांत सिंह राजपूत केस में भी मीडिया ट्रायल और एनसीबी का एजेंडा विवादों में था. रिया चक्रवर्ती का मामला भी महाराष्ट्र का था. पर जानबूझ कर एक केस बिहार में दर्ज करवा कर जांच अपने हाथों में ली गई. मनमाने ढंग से गिरफ़्तारियां की गईं. फिर मीडिया ट्रायल के नाम पर वही खेल शुरू हुआ जो आर्यन खान के मामले में देखने को मिला.
गौर करने वाली बात यह है कि उस दौरान बिहार में चुनाव होने थे और भाजपा व उस का सहयोगी दल जेडीयू कठोर जांच और बिहार प्राइड के नाम पर इस मामले को भुनाने में लगे थे. एसएसआर और रिया चक्रवर्ती प्रकरण को तब तक भुनाया गया जब तक बिहार चुनाव नहीं हो गए. रिया चक्रवर्ती ने सुप्रीम कोर्ट में उस दौरान इस बात का जिक्र भी किया कि उन्हें बिहार चुनाव के मद्देनजर राजनीतिक एजेंडे के तौर पर बलि का बकरा बनाया जा रहा है. वे अपने पर हो रहे मीडिया ट्रायल को ले कर नाखुश थीं.
नाखुश हों भी क्यों न, उन दिनों चैनल हर रोज एक महिला का चीरहरण जो किया करता था. उस के कुछ उदाहरण आप भी देखिए, जैसे एबीपी न्यूज ने अपने खबर में शीर्षक दिया, “रिया का अंडरवर्ल्ड कनैक्शन सामने आया”, “हत्या से पहले मिटाए सुबूत… रिपब्लिक भारत चैनल का शीर्षक- “सुपारी गैंग की साथी है रिया?”, “बेनकाब हो गए रिया के रक्षक”. न्यूज़ 18 का शीर्षक- “रिया का तंत्रमंत्र और तिजोरी”, न्यूज़ 24 का शीर्षक- “इश्क का काला जादू.”
इस मीडिया ट्रायल के नाम पर टीवी चैनल रोज रात को यही सब चीखमचिल्ली करते रहे, फुजूल की गपबाजी में लोगों को मुर्ख बनाते रहे. बाबा, साधुओं और ज्योतिषियों को बैठा कर आरोपप्रत्यारोप करते रहे. रिया चक्रवर्ती की कार का पीछा करना, उन के ड्राइवर, नौकर, गार्ड को रोकरोक कर पूछापाछी करना आदि सामान्य होने लगा. रिया को ‘काला जादू’ करने वाली कहा गया. रिया का दोष साबित होने से पहले उसे दोषी बना दिया गया. यह बात फैलाई गई कि उस ने पैसों के लालच में सुशांत की हत्या की या करवाई और उसे ड्रग्स दिए, अपने यौवन के जाल में फंसा कर सुशांत को फुसलाया, फिर ब्लैकमेल किया.
उस दौरान भी तमाम केंद्रीय एजेंसियां सीबीआई, ईडी, नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ऐसे सक्रिय हो गई थीं मानो मामले के जर्रेजर्रे का सच सामने ला देंगी. महीनों यह सब चलता रहा. लेकिन हाथ खाली रहे. सवाल यह कि इतने दिन यह सब चलता रहा, लोगों को इन ख़बरों में दिनरात जबरन बांधे रखा गया, आखिर इस से हुआ क्या? क्या सच सामने आया? एसएसआर का क्या हुआ?
किसान आंदोलन और तबलीगी जमात के समय
यह बात किसी से छिपी नहीं रह गई है कि मीडिया के एक बड़े धड़े की भूमिका खुल कर भाजपा समर्थक और सांप्रदायिकता को बढ़ावा देने की बन गई है. इस के लिए वह दिनरात गैरजरूरी मुद्दों को हवा देता है और जन मुद्दों को दबाता है. पिछले साल किसान आंदोलन के शुरू होने पर यह बात किसान समझ चुके थे, तभी उन्होंने मीडिया के कुछ ख़ास समूहों, जिन्हें गोदी मीडिया कहा जाता है, को धरना स्थलों में घुसने पर पाबंदी लगा दी थी. वे जानते थे कि इन्हें घुसने भी दिया जाए तब भी ये उन का पक्ष दिखाएंगे नहीं, उलटा उन्हें ही बदनाम करेंगे, जैसा हुआ भी.
किसान आंदोलन के दौरान किसानों को क्याक्या नहीं कहा गया. सब से पहले उन्हें किसान मानने से ही इनकार किया गया. उन के आंदोलन को कुछ लोगों का ही आंदोलन कहा गया. जैसेजैसे किसानों की संख्या बढ़ती गई वैसेवैसे उन्हें देशद्रोही, खालिस्तानी औए न जाने क्याक्या कहा गया. जब वे बड़ी संख्या में बौर्डरों पर जमा होने लगे तो उन्हें ‘भटके हुए किसान’ कहा गया. सरकार का अड़ियल और जिद्दी रवैया होने के उलट किसानों को जिद्दी और अड़ियल कहा गया. पूरे 1 साल 6 दिन किसानों ने दिल्ली के बौर्डर पर सर्दीगरमीबरसात झेली. जिन के आगे आखिरकार सरकार को झुकना पड़ा. पर जैसे ही सरकार ने नए कृषि कानून वापस लिए वैसे ही किसानों की जीत न कह कर सरकार का उदार और ऐतिहासिक फैसला बताया गया. फिर कृषि कानूनों में वही मीडिया नुक्स निकालता दिखा जो कल तक उन के फायदे गिना रहा था.
मीडिया, खासकर टीवीचैनल, आज जन मुद्दों को सिर्फ दबा ही नहीं रहा, इस का हालिया अतीत दिखाता है कि यह खुल कर सांप्रदायिक भी हो चला है. बढ़चढ़ कर लोगों में उन्माद भरने का काम टीवी चैनलों का हो गया है. कोरोनाकाल में तबलीगी जमात प्रकरण कौन भूल सकता है. सरकारी लापरवाही और प्रवासी मजदूरों के प्रति सरकार की बदइंतजामी को ढंकने के लिए तबलीगी जमात के मुद्दे को उठाया गया. मामले की गंभीरता को समझने की जगह चैनलों ने हिंदूमुसलमान की बहस चलाई. मुसलमानों को कोरोनावाहक कहा गया. हर किसी के मन में एकदूसरे के धर्म को ले कर शंका और डर का वातावरण फैलाया गया. ‘कोरोना जिहाद’, ‘थूक जिहाद’ जैसे कार्यक्रम परोसे गए. देश के माहौल को सांप्रदायिक बनाया गया. इस का असर यह हुआ कि गरीब, ठेलेपटरी वाले पीटे जाने लगे, सरकार की सारी जवाबदेहियां ख़त्म हो गईं, सारा दोष मुसलिमों पर मढ़ा गया.
भावुक दर्शकों को लपेटे में लेते चैनल
‘आर्यन खान ने ड्रग्स ली या नहीं?’ इस सवाल का जवाब आज 7 महीने बाद आ गया है. अब जाहिर है इस जवाब के बाद एनसीबी की साख पहले जैसे नहीं रही, लोगों का भरोसा इस संस्था से जरूर टूटा है. अब सवाल यह कि तकरीबन 7 महीने बाद मिले इस जवाब से आम आदमी को क्या सीखने को मिला? मीडिया ने जिस तरह दर्शकों को महीनों इसी गपबाजी में फंसाए रखा उस से उन्हें क्या हासिल हुआ? सवाल यह भी कि आर्यन खान, रिया चक्रवर्ती, एसएसआर के अनसुलझे या सुलझे जवाब से आम आदमी को क्या हासिल हुआ? कौन सा रोजगार बढ़ा? कितनी महंगाई कम हुई? कितने भूखों को खाना मिला?
हालिया प्रैस फ्रीडम रिपोर्ट बताती है कि भारत का रैंक पिछले साल के मुकाबले 8 अंक और नीचे गिर कर 150 पर पहुंच गया है. यह इसीलिए क्योंकि अधिकतर मीडिया प्लेटफौर्म सरकार की चाटुकारिता कर रहे हैं और जो सचाई बयान कर रहे हैं उन्हें तरहतरह से परेशान किया जा रहा है. क्या यह आंकड़ा नहीं बताता कि हमारी मीडिया किस हद तक कपटी बन चुका है.
आज अधिकतर टीवी चैनल पिछले कई वर्षों से शाम 5 बजे शाम से ले कर रात 10 बजे तक भूल कर भी ऐसा कोई कार्यक्रम नहीं करते जिस में ‘ब्रैंड मोदी’ को जरा सा भी नुकसान पहुंचे. दिनभर का थका, नौकरीपेशा इंसान जब शाम को घर पहुंच कर टीवी खोलता है तो उसे ‘ब्रैंड मोदी’ के गुणगान से ओतप्रोत भक्त प्रजाति के न्यूज चैनल ही देखने को मिलते हैं. उसे अपने काम की खबरें नहीं मिलतीं.
आज आम आदमी अपनी परेशानियों से थका और महंगाई से पिटा अपने काम की ख़बरों के बजाए लगातार एकजैसे कंटैंट को सुनता रहता है. जिस से उस में भक्ति जगे, फिर चाहे वह मोदी के प्रति हो या भगवानों के प्रति. उस के दुख और हताशों को ये चैनल सही मार्गदर्शन देने की जगह दूसरे धर्म के प्रति नफरत और हिंसा के उकसावे से भर रहे हैं. जो लोग गरीबी, बेरोजगारी और महंगाई की मार झेल रहे हैं उन्हें बताया जा रहा है कि धर्म का पालन करो, सच्चे हिंदू यानी कट्टर हिंदू बनो. इस कारण, वह अपनी तकलीफों के कारणों को खुद में सरकारी नीतियों में न ढूंढ कर गैरधर्मियों के वजूद में खोज रहा है.
बीते सभी मामले बताते हैं कि टीवी चैनल बड़ी चालाकी से लोगों के दिमाग पर कब्जा कर लेते हैं, या इसे ऐसा कहना ज्यादा उचित होगा कि सबकुछ जानते हुए हम खुद उन्हें हमारे दिमाग पर कब्जा करने का न्योता देते हैं. वे जनता कि भावुकता का इस्तेमाल करते हैं. हर बार चैनल भ्रम फैलाने वाले मुद्दे उछालते हैं और जनता उसे लपक लेती है. तथ्य यही है कि इतना सब घटित होने के बाद भी हम सोचनेसमझने को तैयार नहीं हैं. वरना, आर्यन खान के बेबुनियाद मामले की जगह गौर तो इस पर भी किया जा सकता था कि जिस दौरान मीडिया पर आर्यन खान मामला तूल पकड़ रहा था, उसी दौरान भाजपा नेता केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्र टेनी की कार से 4 किसानों को लखीमपुर में बेरहमी से कुचला गया, आरोप है कि जिसे उन के बेटे अजय मिश्र टेनी चला रहे थे.