देश की सामाजिक समस्या ङ्क्षहदूमुसलिम से ज्यादा ङ्क्षहदू ङ्क्षहदू है पर उसे बड़ी सावधानी से ढक़ कर रखा जाता है. जातियों में बंटे ङ्क्षहदू समाज में एकदूसरी जाति के प्रति ज्यादा अलगाव है बजाए ङ्क्षहदूमुसलिम अलगाव के ङ्क्षहदू समाज की जातियों को साथसाथ बराबरबराबर रहना पड़ता है और मुसलमानों ने कुछ सुरक्षा की दृष्टि से और कुछ व्यावहारिक कारणों से अलग सी बस्तियां बना ली है ताकि ङ्क्षहदूओं से नाहक मुठभेंड न हो जो धाॢमक दंगों में बदल जाएं.
उत्तर प्रदेश के बागपत जिले में लोहार जाति ने एक घर में मां और 2 बेटियों व भाई के अंतिम सप्ताह में जहर खा कर आत्महत्या कर ली क्योंकि उन का बेटा एक दलित लडक़ी से प्रेम करता था और उस के साथ भाग गया. दलित पिता ने शिकायत की और पुलिस ने लडक़े के घर छापा मारा और परिवार पर दबाव डालना शुरू किया कि वे लडक़े-लडक़ी को पेश करें.
इस दबाव में लडक़े की मां और 2 बहनों ने आत्महत्या कर ली.
पिछले 8-10 सालों से जो लव जेहाद का नारा देश पर थोपा गया है उस का असर ङ्क्षहदू जातियों पर भी पडऩा स्वाभाविक ही है. देश और समाज ने 2 लाइनें हर गांव, कस्बे, स्कूल, दफ्तर में खींची जाएंगी तो ये लाइनें अपनेआप खिचती हुई अनेक लाइनों में परिवॢतत हो ही जाएंगी. विभाजन कोरोना वायरस की तरह है, या तो पूरा समाज एक साथ रहेगा, खाएगा, खुशियां बांटेंगा या पूरा समाज अलगथलग होगा. आप मनचाहा बंटवारा कर ही नहीं सकते. विषाणु तो हरेक को डसेंगे. यह असर घृणा को मान्यता देने का है.
आज ङ्क्षहदू औरतों को जता कर घृणा का पाठ पढ़ाया जा रहा है. हमारे मंदिर हर लिए गए की बातें केवल विद्यर्मी तक नहंं रह जाएंगी, यह विजातीय तक भी जाएंगी, ङ्क्षहदूओं की हर जाति को अपने मंदिर दिए जा रहे हैं, हरेक को दूसरे से घृणा करना सिखाया जा रहा है, जातियों पर आधारित पाॢटयां बनी हैं, जातियों पर आधारित नौकरियां है, कालेजों में प्रवेश है. पहले सिर्फ थोड़ा आक्रोश था अब आक्रोश बढ़ गया है, यह घृणा और दुश्मनी में बदल रहा है.
ङ्क्षहदू जातियों में जो थोड़ा बहुत लेनदेन साथ शिक्षा के कारण पैदा होने लगता था वह अब टूट रहा है क्योंकि अलगाव की शिक्षा कर स्कूलकालेज में जम कर दी जा रही है. यह भी कोर्स का एक हिस्सा बन चुका है. हर लडक़ी को वह दिया जाता है कि प्रेम कर लो पर जाति, धर्म, भाषा, क्षेत्र देख कर करना. लडक़े के प्यार करने वाले विजातीय लडक़ी को विद्यर्मी लडक़ी की तरह घर में नहीं घुसने देते. हर घर में देवीदेवताओं के ऐसे चिह्नï लगने लगे हैं कि जाति भी स्पष्ट हो जाए.
यह अफसोस की बात है पर इस का इलाज आज संभव नहीं दिखता.