घर में नई बहू आती है तो शुरूशुरू में परिवार में एक असहजता दिखने लगती है. खासकर ससुर, जो पहले ठसक के रहता था, को संयमित रहना पड़ता है. इस नए बदलाव से उखड़ें नहीं, ऐसा होता ही है, बल्कि सामंजस्य बैठाने की कोशिश करें.

सामान्य हिंदी मीडियम स्कूलों में पढ़लिख कर बड़े हुए परिवार आज भी तमाम तरह के घरेलू हालात से रूबरू होते हैं. गांव छोड़ कर शहरों में रह रहे ऐसे परिवार अपने सीमित सदस्यों के साथ रहते हैं. गांव से शहर आने के बाद जो छोटा सा घर बनाते हैं उसी को बनाने व तैयार करने में उन की आर्थिक स्थिति बिखर जाती है. इस के बाद बच्चों की पढ़ाई और कैरियर को बनाने की जद्दोजहेद में बड़े घर का सपना पूरा नहीं हो पाता.

गांव में बड़ेबड़े संयुक्त परिवारों को छोड़ कर शहर आए ये परिवार अपने छोटे से परिवार में ही खुश रहते हैं. उन को कभी इस बात की परवा भी नहीं होती कि घर के हर सदस्य को रहने के लिए अलग कमरा क्यों नहीं है? जाड़ा, गरमी, बरसात कई बार सब एक ही कमरे में रह लेते हैं. वे इसे ही अपना प्यारा सा, छोटा सा संसार सम?ा लेते हैं.

इस में परेशानी तब आती है जब घर में नई बहू का आगमन होता है. आमतौर पर आज के समय में शहरों में होने वाली शादियां मैरिज हौल में होती हैं. लगभग सभी मेहमान वहीं आते हैं और वहीं से वापस अपने घर चले जाते हैं. घर केवल नई बहू ही आती है. नई बहू के लिए घर का सब से अच्छा कमरा तैयार कर दिया जाता है. उस का अपना सामान उस में रख दिया जाता है. शहरों के ज्यादातर घर छोटे होते हैं.

माहौल में अनुशासन आ जाता है

4-5 कमरे होने के बाद भी वे पासपास ही होते हैं. अधिकतर में कमरे से जुड़ा बाथरूम नहीं होता. जिस घर में परिवार 3-4 सदस्यों के साथ बेधड़क रहता था. उसे अब इस बात का खयाल रखना पड़ता है कि घर में नई बहू है. कई बार बातचीत करतेकरते इस बात का खयाल नहीं रहता है. फोन पर तेजतेज आवाज में बात करतेकरते याद आता है तो टोका जाता है कि धीरे बोलो, बहू सुन लेगी. घरों में रहने वाले आदमी, खासकर ससुर को यह सावधानी अधिक बरतनी पड़ जाती है. पहले बाथरूम से नहा कर निकलने का काई नियम नहीं होता था. बाद में यह देखना पड़ता है कि क्या और कैसे करें.

घर में नाराज होने पर भी किसी पर गुस्सा नहीं निकाल सकते. डर लगता है बहू क्या सोचेगी. खाने में नमक कम हो या तेज, उस के बारे में कहने से पहले सोचना पड़ता है. घर में आने के बाद सही तरह से कपड़े पहन कर बैठना पड़ता है. एक तरह से देखें तो आजादी एक बंधन में बंध जाती है. यह सही है कि धीरेधीरे बहू खुद सामंजस्य बैठा लेती है. बहू के घर में आने के बाद स्वभाव में एक बदलाव लाना ही पड़ता है. यह बात केवल बहू की ही नहीं होती. किसी औफिस में 4 लड़के एकसाथ काम कर रहे हों तो अलग माहौल होता है. वहीं अगर एक लड़की और 3 लड़के काम कर रहे हों तो माहौल में अनुशासन बन ही जाता है.

एहतियात बढ़ जाता है

हिंदी स्कूलों में पढ़े, गांव छोड़ कर शहरों में आए लोग भले ही बहू को पहले जैसा परदा करने को न कहते हों लेकिन अभी भी वे अंगरेजियत वाला व्यवहार अपना नहीं पाते हैं. गांव में पहले आदमियों को घर के अंदर जाने की जरूरत तभी पड़ती थी जब उन को खाना खाने जाना हो या रात को सोने जाना हो. ज्यादातर लोग रात को घर के बाहर ही सोते थे. जब आदमी घर के अंदर जाते थे तब नई बहुएं या छोटबड़े भाई की पत्नियां अंदर अपने कमरों में चली जाती थीं. आदमी को घर के अंदर अगर अचानक प्रवेश करना हो तो घर में घुसने से पहले उसे ऐसी आवाज करनी पड़ती थी जिस से घर के अंदर की महिलाओं को लगे कि आदमी घर में आ रहा है.

भले ही गांव से शहर आ कर बहुतकुछ बदल गया हो पर वह सोचने वाली मानसिकता कायम है. शहरों में छोटे घरों में आदमी को रहना पड़ता है. ऐसे में बहू और उसे खुद को सतर्क रहना पड़ता है, जिस की वजह से एहतियात बरतनी पड़ती है. ससुर को अपनी कई आदतें बदलनी पड़ती हैं. उस के जीवन में अनुशासन आ जाता है. गीला तौलिया बैड पर नहीं रख सकते. खाने के बरतन इधरउधर नहीं रख सकते. घर वालों से नाराज होने पर भी तेज आवाज में बात नहीं कर सकते. फोन पर बात करते समय बोलने में शब्दों का चयन सावधानी से करना पड़ता है. कई बार अपनी घरेलू परेशानियों के बारे में बोलने से पहले सोचना पड़ता है.

सामंजस्य बैठाएं

असल में नई बहू के आने के बाद घर के माहौल में बदलाव होता है. बहू भी परिवार का एक सदस्य होती है. ऐसे में उस के साथ सामंजस्य भी बैठाना चाहिए. ज्यादातर समस्याएं मानसिक होती हैं. समय के साथसाथ तालमेल बन जाता है. बेटी बचपन से साथ रहती है तो उस के साथ तालमेल पहले से बना होता है. बहू शादी के बाद घर का सदस्य बनती है, ऐसे में उस के साथ तालमेल बैठाने में समय लगता है. बात केवल ससुर की ही नहीं होती, बहू को भी परिवार के दूसरे कई सदस्यों के साथ तालमेल बैठाना पड़ता है.

महिलाओं में यह स्वाभाविक गुण होता है कि वह अपने व्यवहार से जल्द ही तालमेल करने में सफल हो जाती है. पहले के समय में केवल बहू से अपेक्षा की जाती थी कि वह अपने व्यवहार को बदल ले. लेकिन आज के बदलते दौर में बहू के साथ ही साथ पूरे परिवार को ही अपने व्यवहार में बदलाव लाना पड़ता है. एकदूसरे के साथ तालमेल बैठा कर ही परिवार खुशहाली से चल सकता है. रातोंरात आदतें नहीं बदलतीं, ऐसे में कई बातें नजरअंदाज करनी चाहिए.

ससुर और बहू दोनों को ही एकदूसरे की आजादी और स्वभाव को सम?ाते हुए बदलाव की उम्मीद करनी चाहिए. तभी परिवार में खुशी का माहौल बनता है. बहू को बहू ही सम?ाना चाहिए, कई बार लोग पहले अतिउत्साह में बहू को बेटी की तरह देखने व व्यवहार करने लगते हैं जो बाद में अखरने लगता है. ससुर और बहू का एक स्वाभाविक रिश्ता होता है, उस पर ही दोनों को चलते हुए एकदूसरे का सम्मान करना चाहिए.

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