3 नवंबर, 2016 की रात हरदोई के पुलिस अधीक्षक राजीव मेहरोत्रा सरकारी काम से लखनऊ के थाना हजरतगंज आए थे. वह अपनी सरकारी सूमो गाड़ी भीड़भाड़ वाले इलाके हजरतगंज में खड़ी कर के काम निपटाने चले गए. ड्राइवर महेश कुमार गाड़ी के पास था. महेश को चाय पीने की तलब लगी तो वह सूमो के चारों दरवाजे लौक कर के चाय पीने चला गया. थोड़ी देर बाद जब वह चाय पी कर वापस लौटा तो गाड़ी वहां नहीं थी. यह देख महेश के पैरों तले की जमीन खिसक गई और वह परेशान हो गया. उस ने इधरउधर देखा, लेकिन गाड़ी कहीं दिखाई नहीं दी. महेश समझ गया कि वाहन चोरों ने एसपी साहब की सरकारी गाड़ी पर हाथ साफ कर दिया है. उस ने तुरंत फोन कर के एसपी राजीव मेहरोत्रा को इस मामले की जानकारी दी. सूचना मिलते ही एसपी राजीव काम बीच में ही छोड़ कर वहां लौट आए. थोड़ी ही देर में एसपी साहब की गाड़ी गायब होने की खबर लखनऊ के पूरे पुलिस डिपार्टमेंट में फैल गई.
आननफानन में कोतवाली पुलिस घटनास्थल पर पहुंच गई. पुलिस कंट्रोल रूम ने यह सूचना जिले के सभी थानों को दे दी थी. फलस्वरूप पुलिस ने राजधानी से जुड़े सभी सीमाई इलाकों की नाकेबंदी कर के वाहनों की चैकिंग शुरू कर दी. लेकिन देर रात तक चली चैकिंग के बाद भी सूमो का कहीं पता नहीं चला. वाहन चोर संभवत: सूमो को पहले ही लखनऊ से बाहर ले गए थे. इस संबंध में कोतवाली थाने में अज्ञात के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया गया.
मुकदमा दर्ज होने के बाद इस मामले की जांच क्राइम ब्रांच को सौंप दी गई. घटना किसी मामूली व्यक्ति से जुड़ी हुई नहीं थी. बात एसपी साहब की गाड़ी की चोरी की थी. ऐसे में राजधानी पुलिस की नींद हराम हो जाना स्वाभाविक था. क्राइम ब्रांच ने अपने मुखबिरों को यह पता लगाने की जिम्मेदारी सौंप दी कि इस में किस गिरोह का हाथ हो सकता है.
करीब हफ्ते भर बाद मुखबिरों ने क्राइम ब्रांच को हैरत में डालने वाली सूचना दी. सूचना के अनुसार, वाहन चोरों ने एसपी राजीव की सूमो 50 हजार में नेपाल के रोतहट जिले के कबाड़ी सागर शाह के हाथों बेच दी थी.
यह खबर मिलते ही लखनऊ क्राइम ब्रांच की टीम सादे कपड़ों में नेपाल गई और वहां के जिला हेटौड़ा के डीआईजी पशुपति उपाध्याय से मिली. इस टीम ने उन्हें घटना की पूरी जानकारी दे कर उन से अपराधियों को गिरफ्तार करने के लिए मदद मांगी. डीआईजी पशुपति उपाध्याय ने इस टीम को रोतहट जिले के प्रभारी डीएसपी नवीन कृष्ण भंडारी जो एसपी का पद भी संभाल रहे थे, के पास भेज दिया. क्राइम ब्रांच की टीम नवीन कृष्ण भंडारी से मिली. नवीन कृष्ण भंडारी ने फौरी तौर पर एक पुलिस टीम गठित की और सागर शाह के वीरगंज स्थित कबाड़ के गोदाम पर छापेमारी की. सागर शाह चोरी के वाहन खरीदने और बेचने के लिए बदनाम था. यह बात नेपाल की पुलिस भी जानती थी.
उस के गोदाम से पुलिस टीम को एसपी साहब की सूमो की चेसिस मिल गई. उस ने सूमो को कई हिस्सों में काट कर उस के पार्ट अलगअलग कर दिए थे, जिस से उसे आसानी से न पहचाना जा सके. नेपाल पुलिस ने सागर शाह को हिरासत में ले लिया. उस से कड़ाई से पूछताछ की गई तो उस ने सूमो खरीदने की बात कबूल कर ली. उस ने पुलिस को बताया कि वह सूमो उसे तस्कर और वाहन चोर गिरोह के सरगना शमीम अख्तर के साथी असगर उर्फ मोजाबिल अंसारी और अफगान अहमद ने 50 हजार रुपए में बेची थी. सागर शाह ने यह भी बताया कि शमीम अख्तर वीरगंज में छिपा है.
नेपाल पुलिस के हाथों बड़ा बटेर लग चुका था. सागर शाह की निशानदेही पर नेपाल पुलिस ने शमीम अख्तर के ठिकाने पर दबिश दी. वहां से शमीम अख्तर को गिरफ्तार कर लिया गया. पुलिस ने उस के पास से 2 पिस्टल, 23 जिंदा कारतूस, 200 ग्राम हेरोइन, 5 मोबाइल फोन, 18 सिम, फरजी प्रैस कार्ड और तमाम जाली आईडी बरामद कीं. बरामद सामानों को नेपाल पुलिस ने अपने कब्जे में ले लिया. पुलिस शमीम अख्तर को गिरफ्तार कर के थाने ले आई. उस के खिलाफ थाना वीरगंज में मुकदमा दर्ज किया गया.
बिहार के मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) के पुलिस अधीक्षक जितेंद्र राणा को जब शमीम अख्तर की गिरफ्तारी की सूचना मिलीतो वह बहुत खुश हुए. शमीम अख्तर बिहार के कई जिलों का वांछित अपराधी था. सीतामढ़ी के एक ही परिवार के 3 सदस्यों के अपहरण और उन की नृशंस हत्या, मृतकों की बेटी आशा सिंह को पहले बेटी बनाना, फिर बेटी से पत्नी और बाद में उसे जिस्मफरोशी के धंधे में उतार देने जैसे उस के कई कृत्य काफी चर्चित रहे थे.
उस ने आशा सिंह को पाकिस्तान में बेचने की योजना बना ली थी ताकि वह वहां से वापस ही न लौट सके. लेकिन वह अपने घृणित मंसूबों में कामयाब होता, उस से पहले ही पुलिस ने उसे पकड़ लिया था. लेकिन वह पुलिस के चंगुल से फरार हो गया और नेपाल में जा कर छिप गया था. शमीम नेपाल में छिप कर रहते हुए वहीं से अपना आपराधिक धंधा चला रहा था.
बहरहाल, दोबारा गिरफ्तारी के बाद शमीम अख्तर अभी नेपाल की जेल में बंद है. यहां की पुलिस उस के प्रत्यर्पण की कोशिश में जुटी है. शमीम अख्तर से लखनऊ एटीएस, एसटीएफ, लखनऊ की स्पैशल ब्रांच, पटना की स्पैशल ब्रांच, एटीएस, पटना की एसटीएफ के साथ मोतिहारी पुलिस के कई अधिकारियों ने नेपाल जा कर उस से विस्तृत पूछताछ की है.
पूछताछ में शमीम ने कबूल किया है कि उस के कहने पर उस के साथियों ने हरदोई के एसपी की सरकारी गाड़ी चुराई थी. लेकिन पकड़े जाने के डर से उस ने यह गाड़ी सागर शाह के हाथों 50 हजार रुपए में बेच दी थी.
करीब 40 वर्षीय शमीम अख्तर बिहार के मोतिहारी (पूर्वी चंपारण) जिले के थाना ढाका क्षेत्र के आजाद चौक इलाके के सिकंदरापुर टोला का रहने वाला था. उस के पिता नईमुद्दीन अख्तर किसान थे. नईमुद्दीन के आधा दरजन बच्चों में शमीम अख्तर सब से बड़ा था. शमीम शुरू से ही शातिरदिमाग था. जिस चीज पर उस का दिल आ जाता था, उसे पा कर ही दम लेता था. भले ही इस के लिए उसे किसी भी तरह के हथकंडे क्यों न अपनाने पड़ें. शमीम की हरकतों से उस के घर वाले काफी परेशान रहते थे. अपनी हरकतों के चलते ही शमीम इंटर से आगे पढ़ाई नहीं कर सका था.
नईमुद्दीन का परिवार बड़ा था. वह अपने परिवार का भरणपोषण किसानी से करते थे. उन के परिवार की माली हालत ठीक नहीं थी. जबकि शमीम गरीबी के आलम में जीना नहीं चाहता था. पढ़ाई बीच में छोड़ कर शमीम ने कबाड़ का धंधा शुरू कर दिया. उस ने जीजान से मेहनत की. फलस्वरूप उस का धंधा चल निकला. लेकिन उस ने अमीर बनने के जो ख्वाब देखे थे, वह कबाड़ की कमाई से पूरे नहीं हुए. आखिरकार उस ने अमीर बनने के लिए एक शौर्टकट रास्ता निकाल लिया. यह अलग बात है कि वह रास्ता जुर्म की अंधेरी सुरंग से हो कर जाता था.
बात सन 2001 की है. शमीम अख्तर ने अपने 2 साथियों राजमिया और चंदनदीप के साथ मिल कर अरेराज, जिला मोतिहारी के संजय का अपहरण कर लिया. इन लोगों ने संजय के घर वालों से फिरौती की बड़ी रकम वसूल की. पैसे मिलने के बाद शमीम ने संजय को छोड़ दिया. एक बार शमीम अख्तर ने अपराध की दुनिया में कदम रखा तो फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
इस के बाद शमीम ने इसी जिले से दूसरा अपहरण कर के सनसनी फैला दी. इस बार उस ने एक ज्वैलर का अपहरण किया था. फिरौती में उस ने ज्वैलर के परिवार वालों से करीब 50 लाख वसूले. जुर्म की दुनिया से काला पैसे आते ही शमीम अख्तर ने अपना एक बड़ा गिरोह बना लिया. अपने गिरोह में उस ने कम उम्र के नएनए चेहरों को शामिल किया ताकि पुलिस उस तक आसानी से न पहुंच सके.
2-2 अपहरण कर के शमीम ने पुलिस की नाक में दम कर दिया था. पुलिस भी चुप नहीं बैठी थी. आखिर उस ने शमीम को गिरफ्तार कर ही लिया. गिरफ्तारी के बाद उसे मोतिहारी जेल भेज दिया गया. बाद में पुलिस ने उसे सीतामढ़ी जेल में ट्रांसफर कर दिया. सीतामढ़ी जेल में रहने के दौरान शमीम की मुलाकात सीतामढ़ी के शातिर अपराधी दीपनारायण महतो से हुई.
दीपनारायण महतो की सीतामढ़ी में तूती बोलती थी. उस ने शमीम को अपराध के कई गुर सिखाए. शमीम जेल से ही अपना सिंडीकेट चला रहा था. उस के गुर्गों ने मोतिहारी टाउन, बैरगनिया, फेनहारा और मेहसी में ताबड़तोड़ लूट की कई घटनाओं को अंजाम दिया. पकडे़ जाने के बाद शमीम ने जेल में रह कर 8 साल गुजारे.
इस बीच शमीम अख्तर की पत्नी अपने बच्चों के साथ हमेशाहमेशा के लिए मायके चली गई. शमीम के जेल जाने से पहले की बात है. नईमुद्दीन बेटे की करतूतों से आजिज आ चुके थे. उन्होंने उस की शादी करवा कर उसे सुधारने की सोची, लेकिन नईमुद्दीन की यह कवायद काम नहीं आई. जब वह रोजरोज के पुलिस के झमेले से परेशान हो गए तो उन्होंने शमीम से नाता तोड़ लिया. इसी से दुखी हो कर उस की पत्नी हमेशा के लिए मायके चली गई थी. खैर, उन दिनों शमीम अख्तर के सितारे बुलंदियों पर थे.
सन 2008 में शमीम सीतामढ़ी की जिस जेल में बंद था, उसी में सीतामढ़ी जिले के थाना डुमरा का रहने वाला मूकबधिर संजीव कुमार सिंह भी बंद था. उसे पट्टीदारों से संपत्ति के बंटवारे के विवाद में जेल जाना पड़ा था. उस की पत्नी खुशबू सिंह पति से मिलने जेल आया करती थी.
खुशबू बला की खूबसूरत महिला थी. जेल में आतेजाते जब उस पर शमीम अख्तर की नजर पड़ी तो वह उस का दीवाना हो गया. शमीम और खुशबू के बीच परिचय हुआ तो उस ने खुशबू को विश्वास दिलाया कि जेल से बाहर निकलते ही वह उस के पति को जेल से छुड़वा देगा.
पता नहीं शमीम ने ऐसा कौन सा जादू कर दिया था कि खुशबू उस की अंधभक्त बन गई. उसे शमीम पर पूरा भरोसा हो गया कि वह उस की मदद जरूर करेगा. जेल से बाहर आने के बाद शमीम ने जोड़जुगत कर के खुशबू के पति संजीव को जेल से बाहर निकलवा दिया.
खुशबू शमीम के इस एहसान तले दब गई. वजह यह थी कि जब उस के अपनों ने उस का साथ छोड़ दिया था, तब एक अंजान शख्स उस का सहारा बना. धीरेधीरे शमीम और खुशबू सिंह एकदूसरे की ओर खिंचते चले गए. दोनों के बीच का यह आकर्षण प्रेम में बदल गया. यहां से शमीम अख्तर की जिंदगी में दूसरे अध्याय की एक अनोखी कड़ी जुड़ गई.
खुशबू सिंह की शादी सन 1990 में जिला सीतामढ़ी के डुमरा के संजीव कुमार सिंह से हुई थी. संजीव कुमार सिंह जन्म से मूकबधिर था. शादी के बाद उस के वहां एक बेटे का जन्म हुआ. मांबाप ने उस का नाम अमनदीप सिंह रखा. उस के 3 साल बाद खुशबू आशा सिंह की मां बनी. मूकबधिर संजीव बहुत खुद्दार और जिंदादिल इंसान था. अपने कर्म और मेहनत पर भरोसा करने वाली खुशबू उस का हौसला बढ़ाती रहती थी. संजीव को अपने भाइयों से कभी कोई मदद नहीं मिली थी. सच तो यह है कि वे एक तरह से उस से घृणा करते थे.
न जाने वह कौन सा मनहूस दिन था, जब संजीव कुमार सिंह के परिवार में बुरे वक्त ने कुंडली मार ली. उस का हंसताखेलता परिवार बिखर गया. सन 2008 में पट्टीदारों से विवाद के चलते संजीव सिंह परिवार को ले कर शहर में आ गए. लेकिन विवाद फिर भी नहीं थमा. इसी विवाद के चलते संजीव को जेल जाना पड़ा था.
बहरहाल, 3 जनवरी 2009 को खुशबू की जिंदगी में एक और तूफान आया. उस के 13 वर्षीय बेटे अमनदीप सिंह का किसी ने अपहरण कर लिया. अपहर्त्ताओं ने फिरौती में 20 लाख वसूले. इस के बावजूद अपहर्त्ताओं ने पैसे ले कर भी संजीव और खुशबू सिंह के साथ धोखा किया. उन्होंने अमनदीप को छोड़ने के बजाय उस की हत्या कर दी. अमनदीप की क्षतविक्षत लाश रेलवे लाइन पर मिली. अमनदीप का अपहरण शमीम ने अपने गुर्गों से करवाया था. उस ने यह काम इतने शातिर ढंग से किया था कि खुशबू को इस की भनक तक नहीं लगी.
खुशबू की जिंदगी ने जैसे दुखों से नाता जोड़ लिया था. वह अभी बेटे की मौत के सदमे से पूरी तरह उबर भी नहीं पाई थी कि दरवाजे पर एक और मुसीबत बांहें फैलाए आ खड़ी हुई.
दिसंबर, 2010 की बात है. संजीव किसी काम से घर से बाहर गया तो फिर लौट कर घर नहीं पहुंचा. बदमाशों ने संजीव सिंह को भी उस के बेटे की तरह अगवा कर लिया. अपहरण करने के 2 दिनों बाद यानी 1 जनवरी, 2011 को शिवहर-पूर्वी चंपारण जिले की सीमा ललुआ सरेह में उस की लाश पड़ी मिली. सदर अस्पताल में खुशबू ने लाश की शिनाख्त अपने पति संजीव के रूप में की. यह काम भी शमीम अख्तर ने ही किया था. संजीव उस की और खुशबू की राह में रोड़ा बन रहा था. संजीव की मौत के बाद शमीम का रास्ता साफ हो गया. अब उसे कोई नहीं रोक सकता था.
खुशबू का हंसताखेलता परिवार उजड़ गया था. उस के जीने का एकमात्र सहारा उस की 13 वर्षीय बेटी आशा सिंह ही बची थी. उस की समझ में नहीं आ रहा था कि वह क्या करे. जीने के लिए अभी पूरी जिंदगी बाकी थी. संकट की इस घड़ी में शमीम अख्तर ने उस के सामने शादी का प्रस्ताव रख दिया. चूंकि दोनों एकदूसरे को अपना जीवनसाथी बनाना चाहते थे, इसलिए खुशबू सिंह इनकार नहीं कर पाई. इस तरह वह शमीम की शरीकेहयात बन गई. शमीम ने खुशबू की बेटी अंशुप्रिया को अपनी बेटी के रूप में अपना लिया.
खुशबू से निकाह करने के बाद शमीम अख्तर पत्नी और बेटी आशा को ले कर बंगाल चला गया. उस ने बंगाल के डागापार में जमीन खरीद कर मकान बनवाया और परिवार के साथ रहने लगा. बाद में उस ने पत्नी और बेटी का धर्म परिवर्तन करा दिया. इस के बाद खुशबू सिंह का नाम रुखसाना खातून और उस की बेटी का नाम नूर हो गया. उस के कुछ दिनों बाद पत्नी और बेटी को ले कर वह वहां से सिलीगुड़ी चला गया.
उस ने सिलीगुड़ी में एक और फ्लैट खरीदा. यह फ्लैट उस ने रुखसाना खातून की करोड़ों की संपत्ति में से कुछ हिस्से को बेच कर खरीदा था. दरअसल, अमनदीप और संजीव की मौत के बाद शमीम अख्तर की नजर खुशबू उर्फ रुखसाना की संपत्ति पर जम गई थी. उस ने धीरेधीरे पत्नी की संपत्ति का आधा हिस्सा अपने नाम करा लिया था. इस के बाद वह उस संपत्ति को बेचता रहा. शमीम के प्यार में अंधी खुशबू उर्फ रुखसाना ने उसे कभी रोकने की कोशिश नहीं की. नूर बच्ची थी, उस के विरोध करने का कोई मतलब नहीं था.
अचानक एक दिन खुशबू उर्फ रुखसाना रहस्यमय तरीके से गायब हो गई. शमीम ने उस की हत्या कर के लाश गायब कर दी. खुशबू की लाश आज तक बरामद नहीं हुई. शमीम ने आशा उर्फ नूर से झूठ बोला कि उस की मां धोखा दे कर एक आदमी के साथ भाग गई.
13 साल की मासूम आशा उर्फ नूर मां के गायब होने से काफी दुखी थी. मां की याद में रोरो कर उस का बुरा हाल था. अपना राज छिपाने के लिए शमीम नूर को ले कर सिलीगुड़ी से मोतिहारी सिकंदरापुर आ गया. उस ने नूर की देखभाल की जिम्मेदारी आयशा को सौंप दी. आयशा शमीम से मिल कर जिस्मफरोशी का धंधा करती थी. शमीम के काले धंधों में एक धंधा जिस्मफरोशी का भी था.
जिस्मफरोशी की दुकान चलाने वाली आयशा शमीम तक कैसे पहुंची, इस की भी एक रोमांचक कहानी है. आयशा शमीम अख्तर के चंगुल में धोखे से आ फंसी थी. दरअसल, दिल्ली एनसीआर की रहने वाली आयशा जौब के सिलसिले में सहारनपुर के दीपांशु से मिली थी. दीपांशु लड़कियों को जौब देने के लिए अखबारों में विज्ञापन छपवाता था. ऐसे विज्ञापन छपवा कर वह भोलीभाली लड़कियों को अपने जाल में फांसता था.
आयशा भी उस के इस धोखे का शिकार बन गई थी. दरअसल, दीपांशु सैक्स रैकेट का सरगना था. राह भटकी अथवा मजबूर लड़कियों को नौकरी दिलाने का झांसा दे कर वह उन्हें अपने यहां लाता था. उन्हें नौकरी तो नहीं मिलती थी, उन का दैहिक शोषण कर के वह उन्हें जिस्मफरोशी के धंधे में उतार देता था.
आयशा दीपांशु की चिकनीचुपड़ी बातों में फंस गई थी. पहले तो उस ने आयशा का खूब दैहिक शोषण किया, फिर उस की नग्न फिल्म तैयार की ताकि वह उस के चंगुल से आजाद न हो सके.
दीपांशु ने वीडियो फिल्म दिखा कर आयशा को इतना मजबूर किया कि वह उस की बात मानने को तैयार हो गई. उस ने आयशा को धमकी दी कि अगर कभी उस ने कुछ ऐसावैसा सोचा भी तो वह उस की ब्लू फिल्म की सीडी बना कर बाजार में उतार देगा. दीपांशु की धमकियों से डरी आयशा अपनी इज्जत बचाने के लिए वही करती रही, जैसा उस ने करने के लिए कहा.
दीपांशु और शमीम अख्तर एक ही नाव के सवार थे. शमीम अख्तर को एक नई लड़की की तलाश थी. उस ने दीपांशु से कह रखा था कि कोई अच्छी लड़की मिले तो उसे उस के यहां भेज दे. उस की मांग पर दीपांशु ने आयशा को मोतिहारी भेज दिया.
इंसान की खाल में छिपे शैतान शमीम अख्तर की भूखी नजरों से आयशा भी नहीं बची. उस ने आयशा को जिस्मफरोशी के धंधे में उतार दिया. आयशा एक पिंजरे से निकल कर दूसरे पिंजरे में कैद हो गई थी. थकहार कर वह शमीम की जिस्मफरोशी की दुकान चलाने लगी.
शमीम अख्तर ने नूर की निगरानी आयशा पर छोड़ दी थी. आयशा 24 घंटे उस पर कड़ी नजर रखती थी. ताकि वह वहां से भाग न सके. बेटी का दरजा देने वाले हैवान शमीम ने उस से जबरन निकाह कर लिया. बेबस और लाचार नूर कुछ नहीं कर पाई. आशा उर्फ नूर को उस ने अपने घर के नीचे बने तहखाने में कैद कर दिया था. उस की मासूमियत को उस ने पहले ही रौंद डाला था.
उस ने नूर को भी जिस्मफरोशी के बाजार में उतार दिया. जब नूर इस के लिए तैयार नहीं होती थी तो शमीम जबरन उस की बांह में नशीला इंजेक्शन लगा देता था. इंजेक्शन की वजह से बेहोशी के आलम में पहुंचते ही जिस्म के भूखे भेडि़ए उसे नोचना शुरू कर देते थे. आयशा गेट के बाहर खड़ी उस की पहरेदारी करती थी.
तहखाने में कैद नूर 3 साल तक सिसकती रही, लेकिन शमीम को उस पर दया नहीं आई. शमीम ने नारकीय जीवन जी रही नूर को उस की बची हुई संपत्ति हथियाने के लिए जिंदा रखा था. वह अभी बालिग नहीं हुई थी. जिस्मानी रिश्तों से नूर को गर्भ न ठहरे, इस के लिए वह हर 3 महीने में उस की कमर में इंजेक्शन लगवा देता था.
शमीम अख्तर ने नूर से निकाह करने के बाद पाकिस्तान के रहने वाले जैक लेबोरियन से 2 लाख में उस का सौदा कर दिया था. जैक लेबोरियन नूर पर लट्टू था और उस से निकाह करने के लिए पाकिस्तान से कपड़े भी खरीद कर लाया था. निकाह के बाद वह उसे पाकिस्तान ले जाना चाहता था. शमीम उस के साथ लंदन जाने की बात कह कर करीब डेढ़ महीने तक गायब रहा. नूर को धोखे में रखने के लिए शमीम ने उस से जैक लेबोरियन को लंदन का रहने वाला बताया था. लेकिन जब नूर ने कपड़े देखे तो उस का भांडा फूट गया. कपड़े पाकिस्तान से खरीदे गए थे.
शमीम अख्तर के पाप का घड़ा भर चुका था. बात 24 फरवरी, 2015 की है. मोतिहारी के ढाका थाने के इंसपेक्टर अशोक कुमार को मुखबिरों से सूचना मिली कि कबाड़ व्यवसाई शमीम अख्तर के घर ढाका लाइन में चोरी हुई कई गाडि़यां देखी गई हैं. इंसपेक्टर अशोक कुमार ने पुलिस टीम के साथ शमीम के सिकंदरापुर आवास पर दबिश दी. पुलिस ने उस के घर से चोरी की 6 गाडि़यां बरामद कीं.
पुलिस की दबिश की सूचना शमीम अख्तर को पहले ही मिल गई थी, इसलिए वह पुलिस के आने से पहले ही घर छोड़ कर फरार हो गया था. तलाशी लेते हुए पुलिस जब उस कमरे तक पहुंची, जहां कबाड़ रखा था तो वहां उसे बाहर की खिड़की से तहखाना दिखाई दिया. तहखाने से किसी के कराहने की मद्धिम सी आवाज आ रही थी. जब आवाज की दिशा की ओर कान लगा कर सुना गया और भीतर झांक कर देखा गया तो उन के होश उड़ गए. तहखाने में एक लड़की कैद थी.
पुलिस को मामला संदिग्ध लगा तो यह खबर अधिकारियों को दी गई. सूचना मिलते ही अधिकारी मौके पर पहुंच गए. पुलिस अधिकारियों ने घर की तलाशी ली. तलाशी के दौरान वहां से आयशा को गिरफ्तार किया गया. आयशा की निशानदेही पर तहखाने में कैद आशा उर्फ नूर को मुक्त कराया गया. नूर ने जब पुलिस को आपबीती सुनाई तो पुलिस अधिकारियों के भी रोंगटे खड़े हो गए. मासूम नूर कई सालों से शमीम की यातनाओं को झेल रही थी.
छानबीन के दौरान तहखाने से पुलिस को कई तरह की नशीली गोलियों के रैपर, इंजेक्शन, नशीली दवाओं की शीशियां, कई कंपनियों के सिम और मोबाइल मिले. इन चीजों को पुलिस ने साक्ष्य के तौर पर अपने कब्जे में ले लिया. इस के बाद पुलिस ने आशा उर्फ नूर को अदालत में पेश किया. अदालत के सामने उस ने अपने नाना के घर जाने की इच्छा जाहिर की. नाना, नानी और मामा के अलावा उस का दुनिया में कोई और बचा भी नहीं था.
आशा उर्फ नूर के बयान पर ढाका थाने में भादंवि की धारा 313, 376ए, 376डी, 376 (2एन), 372, 373, 34 एवं 3, 4, 5, 6, 8 आईटीपी और पोक्सो एक्ट के तहत आरोपी शमीम अख्तर, अजगर खां, मोहम्मद रामजान और आयशा के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. नूर की दुखभरी कहानी सुन कर शमीम अख्तर के प्रति लोगों का आक्रोश फूट पड़ा. उन लोगों ने शमीम अख्तर को गिरफ्तार करने के लिए सड़कों पर धरनेप्रदर्शन किए. आंदोलन कई दिनों तक चलता रहा. नागरिकों के भारी दबाव में पुलिस ने शमीम को गिरफ्तार करने के लिए उस के कई ठिकानों पर दबिश दी, लेकिन वह पुलिस के हाथ नहीं आया.
शमीम अख्तर बिहार छोड़ कर बंगाल भाग गया था. उस ने बंगाल और सिलीगुड़ी के मकान औनेपौने दामों में बेच दिए. ढाका आजाद चौक से सिमरन की बरामदगी के बाद फरार मुख्य आरोपी शमीम ने विभिन्न राज्यों में ठिकाना बनाने के बाद नेपाल के वीरगंज में पानी टंकी के पास नया ठिकाना बनाया था.
उस के बाद वह गाड़ी चोरी के रैकेट से जुड़ गया था. उस का अड्डा ढाका व बैरगनिया (सीतामढ़ी) से सटे गौर (नेपाल) में था. शातिर शमीम अख्तर चोरी की गाडि़यों के गौर पहुंचते ही नंबर प्लेट उतार कर नई नंबर प्लेट लगवा देता था, जिस के नाम से गाड़ी बेची जाती थी, उस के नाम वह फौरी तौर पर कागजात भी बनवा देता था. इस के साथ ही वह पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ से भी जुड़ा था.
जांच में पुलिस को शमीम के नेपाल के त्रिभुवन एयरपोर्ट से पाकिस्तान जाने की वीडियो भी मिल गई है. शमीम नेपाल से कई बार पाकिस्तान जा चुका था. पुलिस को उस के पाक जाने के पुख्ता सबूत मिले हैं. शमीम आइएसआइ तक कैसे पहुंचा, इस की भी जांच की जा रही है. आइएसआइ से जुड़ कर उस ने नकली नोटों की खेप, मादक पदार्थों की तस्करी, मानव तस्करी तेज कर दी थी.
आशा उर्फ नूर शमीम अख्तर के लिए खतरा बन चुकी थी. अपने मां, बाप और भाई की हत्या की वही एकमात्र गवाह थी, जो उसे सजा दिला सकती थी. नेपाल में रह कर शमीम अख्तर उस की हत्या की योजना बना रहा था.
बात 3 अक्तूबर, 2016 की है. नूर अपने नाना के घर बाजपट्टी के बाबू नरहा और सीतामढ़ी की महिला चौकीदार इंदू देवी के साथ छत पर सोई थी. नूर को शमीम के चंगुल से मुक्त कराए जाने के बाद ढाका थाने ने उस की सुरक्षा में एक महिला और पुरुष सिपाही लगा दिए थे. रात 11 बजे के करीब नूर को घुटन महसूस हुई तो वह छटपटा कर उठ बैठी.
उस ने देखा कि कोई उस का गला दबा कर हत्या करने की कोशिश कर रहा था. वह उसे पहचान गई और चीखने लगी. उस की चीख सुन कर इंदू देवी उठ गईं. तब तक हमलावर छत से नीचे कूद कर फरार हो गया. नूर हमलावर को पहचान गई थी. वह उसी गांव का रहने वाला परमानंद कुमार था. नूर की चीख सुन कर नीचे से सिपाही अरविंद कुमार यादव भी ऊपर आ गया था. नूर ने हमलावर का नाम बताया. पुलिस ने उसी रात परमानंद कुमार को अवैध धारदार चाकू के साथ गिरफ्तार कर लिया और थाना बाजपट्टी ले आई.
थाने में पुलिस पूछताछ में आरोपी परमानंद कुमार ने पुलिस को बताया कि उसे शमीम अख्तर की ओर से नूर को जान से मारने के लिए पैसे मिले थे. ये पैसे उस के आदमियों ने दिए थे. बाजपट्टी थाने की पुलिस ने नूर की तहरीर पर भादंवि की धारा 452, 323, 376, 504, 506 और 34 के तहत परमानंद कुमार के खिलाफ मुकदमा दर्ज कर लिया. बाद में उसे जेल भेज दिया गया. परमानंद की नाकामी से शमीम अख्तर बौखला कर रह गया था.
शमीम के ही इशारों पर बेतिया निवासी उस के आदमियों असगर उर्फ मोजाबिल अंसारी और अफगान अहमद ने हरदोई के एसपी राजीव मेहरोत्रा की सरकारी गाड़ी चुराई. इस वाहन की वजह से ही उस के गुनाहों का भंडाफोड़ हुआ और उसे जेल की सलाखों के पीछे जाना पड़ा.
शमीम अख्तर अभी नेपाल की जेल में बंद है. भारत की पुलिस उस के प्रत्यर्पण के लिए कोशिश कर रही है. नेपाल की जेल में बंद शमीम अख्तर से लखनऊ एटीएस, एसटीएफ, लखनऊ स्पैशल ब्रांच, पटना स्पैशल ब्रांच, एटीएस, एटीएफ पटना की एसटीएफ के साथ मोतिहारी पुलिस के कई अधिकारियों ने पूछताछ की है.
लेकिन कानूनी दांवपेच के चलते शमीम को भारत नहीं लाया जा सका. उस के कई साथी गिरफ्तार किए जा चुके हैं और कई फरार चल रहे हैं. नूर के बयान पर ढाका थाने में शमीम के खिलाफ खुशबू सिंह, अमनदीप सिंह और संजीव सिंह की हत्या का मामला दर्ज कर लिया गया था.
शमीम अख्तर ने जो गुनाह किए हैं, उस की फेहरिस्त काफी लंबी है. शायद कानून की किताबों की तमाम धाराएं उस के गुनाहों के सामने कम पड़ जाएं. मासूम नूर की तो दुनिया ही तबाह हो गई. उसे अपना कहने वाला कोई नहीं रहा.
उस के बचपन की हसरतों को शमीम ने छीन लिया था. उस के हिस्से में अंधेरों के सिवाय कुछ नहीं बचा. जैसे ही शमीम अख्तर के गिरफ्तार होने की सूचना 17 वर्षीय नूर को मिली, खुशी के मारे उस की आंखों से आंसू छलक पड़े. उस ने कानून से उस के लिए फांसी की सजा की गुहार की है.
– कथा पुलिस सूत्रों, जनचर्चाओं और सोशल मीडिया पर आधारित. कथा में आशा उर्फ नूर नाम बदला हुआ है.