लड़के के घर वाले ऐसी लड़की की खोज ज्यादा करते हैं जो इकलौती हो. वजह, पैसों के लोभ के साथसाथ प्रौपर्टी भी मिल जाती है, पर शादी हो जाने के बाद जो दिक्कत भुगतनी पड़ती है, यह भला पति या उस के घर वाले से ज्यादा कौन जानता है. इसलिए सोचसम?ा कर ही कदम उठाएं.

सीमा और रोहन में अकसर तनाव व टकराव रहता है. यह तनाव सीमा की मां को ले कर है. जब तक सीमा के पिता थे, वे सपत्नी दिल्ली के महारानी बाग में रहे थे. सीमा बीचबीच में आ कर उन्हें संभाल जाती थी. वही उन की इकलौती संतान है. पिता की कोविड में मृत्यु के बाद मां भी बीमार रहने लगी. सीमा के उन के घर के चक्कर ज्यादा लगने लगे. जब पति व उन के घर वालों को अखरा तो सीमा उन्हें अपने पास रहने को ले आई. फिर भी शांति नहीं है. आएदिन लड़ाई?ागड़े और तनाव होता है.

सीमा बहुत पहले ही पति को महारानी बाग में रहने का प्रस्ताव दे चुकी है, जिसे वे नकार चुके हैं. सीमा के दोनों बच्चे नानी की मनोयोग से देखभाल करते हैं. बहुत सेवा कर के उन्होंने नानी को बचा लिया.

सीमा घर के एक पोर्शन में मां के साथ रहती है. पति उखड़ेउखड़े से रहते हैं. यह वह स्थिति है, जिस में व्यावहारिक स्थिति जानने के बावजूद तनाव है.

सीमा का कहना है कि इन्हें (पति) पता है सबकुछ मेरे नाम है. हमें ही मिलेगा तो अब सेवा से क्या सरोकार. वहां रहूं तो दिक्कत और यहां रहूं तो दिक्कत. इन्हें जो करना हो करें, मैं परवा नहीं करती. मेरे बच्चे मेरे साथ हैं.

वहीं, सीमा के पति का कहना है, ‘‘मु?ा से तो यह उम्मीद करती है, पर जरा इस से भी पूछो कि यह मेरी मांबहनों को जरा सा भी पूछती है? मेरी मां को तो इस ने एक बार मारा भी. जब यह मेरी मां का सम्मान न करे तो मैं किसलिए सेवा करूं. मैं ने किसी का ठेका थोड़े ही ले लिया है. मु?ो कोई लोभ नहीं है. उस की मां जिस को चाहे अपना पैसा दे. मेरे घर वालों के साथ संबंध सुधारती तो मैं भी सोचता. यह तो कई सालों से मेरे साथ उठतीबैठती तक नहीं है. ताली दोनों हाथों से बजती है. मैं इस से शादी कर के पछता रहा हूं. इस ने मेरे बच्चे भी मेरे न रहने दिए. हमारी बहनों के घर आने पर शोर मचाती है. कानून मदद के लिए बने हैं, तानाशाही के लिए नहीं.’’

शादी से पूर्व सोचने की जरूरत

चौहान साहब और उन की पत्नी के बड़े बेटे की शादी एक इकलौती लड़की से पक्की हो गई है. बेटा वहीं रह लेगा. सगाई के बाद मेलजोल में यह बात जब लड़की को सासससुर की इस सोच का पता चला तो वह बिफर गई. लड़के वालों ने ये सब सोच कैसे लिया? आखिर हम से पूछ भी तो लिया होता.

लड़की ने ये बातें घर में कहीं तो उन के पिता ने लड़के के घर वालों से खुल कर बात की. उस में यह बात सामने आई कि सबकुछ तो लड़की का ही है. आगेपीछे फिर क्या दिक्कत है. दोनों पक्षों ने अपना मत स्पष्ट कर दिया.

लड़के वालों ने कहा कि यदि यह सुविधा न हो तो हम इकलौती नकचढ़ी लड़की से शादी क्यों करें अपने लड़के की.

लड़की के पिता ने कहा कि पहले लड़का अपनी योग्यता तो साबित करे.

लड़की ने ऐसे लालची लड़के से शादी करने से मना कर दिया. मजे की बात यह है कि अगले रिश्ते में लड़की ने घरजमाई बनने के इच्छुक होने के कारण मेरे मांबाप का दायित्व मेरा है, ऐसे में दोदो घरों की जिम्मेदारी कठिन है.

मेरे पति ने पहले ही कहा कि इस शहर में मैं अकेला हूं. मांबाप दूसरे शहर में रहते हैं. मु?ो भी मांबाप और घर मिल जाएगा और तुम भी 2 घरों की दौड़भाग से बच जाओगी. मु?ो इस के भीतर के भाव जान कर अच्छा लगा. हम मेरे पिता के घर में रहते हैं. साप्ताहिक अवकाश में इन के घर रहने चले जाते हैं. मेरे मांबाप मु?ा से ज्यादा मेरे पति को मानते हैं. वे अपने दामाद से पूछ कर ही हर काम करते हैं. बेटे जैसा सुख पा कर निहाल हैं. इतने एहसानमंद अनुभव करते हैं कि धन्य हैं वे मांबाप, जिन्होंने अपना बेटा हमें सौंप दिया.

मैं जब कहती हूं कि ये सब आप लोगों के पैसों की माया है तो भी वे कहते हैं, ‘बुरा नहीं है. कौन छाती पर बांध कर ले जाता है. जो बाद में देना है उस की क्या फिक्र करनी.’

पति कहता है, ‘मैं हर काम मन से करता हूं. मु?ो पता है कि इन्हें ही नहीं, मु?ो भी कितना बड़ा सहारा मिला है. मु?ो बाहर के लोग घरजमाई कह कर चिढ़ाते हैं, पर मैं नहीं चिढ़ता. मैं ने फर्ज और जिम्मेदारी सम?ा कर यह शादी की है.’

इस लड़की के सासससुर कहते हैं, ‘हमें महानगर में बेटे की फिक्र थी. शादी हो जाने के बाद वह कम हो गई. दोनों महीने में 2-3 बार आ कर मिल जाते हैं. पहले हमारा बेटा एक बार भी नहीं आ पाता था. सप्ताहभर के कामों की तैयारी करता था. हमारे 3 बेटे हैं. एक चला गया तो क्या हमारा नहीं रहा. ऐसी बात नहीं. दोनों पक्षों को सुविधा है. हम भी सुखी, वे भी सुखी. जिस को जो चाहिए, मिल रहा है. बहू हमारे साथ खुला हाथ रखती है. उसे हमारी जरूरत का पता है तो हमें उस की जरूरत का.

कई बार इकलौती लड़की से शादी लोभलालच से जो करते हैं, वे सोने की मुरगी का पेट फाड़ कर अंडे निकालने जैसी हरकत करते हैं. इकलौती लड़की से शादी करना बहुत बड़ी जिम्मेदारी भी है. सिर्फ मखमली एहसास ही नहीं. इकलौती लड़की के मांबाप को उस का ही सहारा होता है. लड़की का ?ाकाव और वरीयता भी उस ओर होना स्वाभाविक है. ऐसे में शादी के पूर्व सोचविचार आवश्यक है. अगर कोई गफलत है तो पूरी तरह खुल कर बात भी की जा सकती है.

महेंदु यादव ने बेटी की शादी की. बात चली तभी कह दिया कि उन्हें ऐसा लड़का चाहिए, जो उन की भी देखभाल करे. वे कहते हैं, ‘‘कुछ लड़के खुली मांग रख देते, कुछ दबे मुंह.’’

कुल मिला कर वे एक तरफ जाति का प्रहार सहते हैं तो दूसरी ओर इकलौती बेटी के सुख का जरूरत से ज्यादा ध्यान रख रहे हैं. उन की सोच अभी पक्की नहीं हैं. वे कहे पर ज्यादा निर्भर रहते हैं. उन के लिए अब तक समाज का दबाव काफी होता था, पर अब पैसा आने व ऊपर से इकलौती बेटी के मांबाप होने पर दोहरा दबाव बन रहा है.’’

उन के घरजमाई या इकलौते दामाद अगर ऊंची जातियों के हों और या तो प्यार के कारण या पैसे के कारण इकलौती बेटी से शादी कर इन मांबापों का बो?ा सहने को तैयार हों तो कई सवाल खड़े होते हैं, जिन के उत्तर कम से कम ग्रामीण पृष्ठभूमि की पहली पीढ़ी के पढ़ेलिखे अमीरों के पास अनुभव न होने के कारण नहीं होते. वे इस जिम्मेदारी की कीमत चाहते थे. ऐसे लड़कों को हम ने न कर दी.

कुछ लड़के ये आश्वासन चाहते थे कि अल्टीमेटली हम अपनी लड़की को ही देंगे या किसी भतीजेभांजे को गोद तो नहीं ले लेंगे.

एक लड़के ने यह जानना चाहा कि क्या कुछ, किस के नाम है. जिस से बेटी की शादी की, वह लड़का हमें अपने साथ रखने को तैयार था. हम उस की इस बात से खुश थे. ठीक है, हमारे साथ न रहे तो क्या. हम मुंबई में रहते हैं. हमारे समधीसमधन भी वहां आते हैं. हम साथसाथ रहते हैं. हम खुश हैं. दामाद के नानुकुर करने के बावजूद हम ने अपनी संपत्ति का कुछ हिस्सा बेच कर उन्हें बड़ा घर दिलवाया. ‘बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले न भीख’ वाली बात भी है इस रिश्ते में.

अब बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की गिनती बढ़ रही है, जो हालफिलहाल ही एक पीढ़ी पहले गांवों से शहर आई और सफल हुई और शहरियों का रंगढंग अपनाया. उन के साथ नई समस्या पैदा हो रही है. दूध का छोटा व्यापार करने शहर आए एक परिवार के बेटे ने दूसरी पीढ़ी में रैस्तराओं की एक चेन खोल ली. उन की एक ही बेटी थी और काम बड़ा हो गया था.

उस व्यावसायिक दंपती ने मध्यम मार्ग अपनाया. बेटी और जमाई अपने घर खुश हैं. उन्होंने उस के बेटे को अपने पास रख लिया. बेटी कहती है, ‘मैं अकेली थी, इसलिए अकेलेपन का दर्द जानती थी. मु?ो भाईबहन का सुख न मिला, इसीलिए मैं ने बच्चे को अकेला न रहने दिया. बेटा मांबाप के पास रहता है. एक बेटाबेटी मेरे पास. हम एकदूसरे के जीवन में दखल नहीं करते. जिस में वे खुश उसी में हम खुश हैं. हां, हमारे रिश्तेदार जरूर हमारे बच्चों को भड़काते हैं कि यदि मां को प्रौपर्टी मिलती तो तुम सब बच्चों को मिलती. हमारे यहां इन बातों का कोई विचार नहीं करते. वे कहते हैं कि हमारे पापा का कमाया हुआ ही बहुत है. इकलौती लड़की अपने सासससुर को, अपनी ननदों को संपत्ति देने से रोकने का प्रयास भी कर रही है. कहती है कि वह अकेली है, इसलिए मजबूरी है मांबाप से प्रौपर्टी की. इस का मतलब यह नहीं कि जो लड़कियां इकलौती नहीं हैं, वे भी प्रौपर्टी लेने लगें. उस के सासससुर बहू के इस रवैए से दुखीपरेशान हैं. आएदिन इस से गृहकलह रहता है.

अलग होता है स्वभाव

कई इकलौती लड़कियों के पति या संबंधी कहते हैं कि इकलौती लड़कियां स्वभाव में साहचर्य भाव से अलग होती हैं. उन में अहम और आक्रामकता व मनमरजी बहुत ज्यादा होती है. कोई कहता है तो वे कुछ सुन तो सकतीं ही नहीं. एक, मातापिता कहते हैं कि हमारी बहू को हर चीज अपनी चाहिए, पति तक. उसे पति का सहज संपर्क भी किसी के साथ नहीं सुहाता. इकलौती लड़की के मांबाप कहते हैं कि उन्हें फिक्र है कि उन की बेटी की कहीं निभेगी कैसे? यह पलपल में उन के साथ ही हाथापाई करने लगती है. चीजें फेंक देती है, तोड़ देती है, कोई ढंग का सु?ाव भी इसे दखलंदाजी लगती है. सलाह में हस्तक्षेप महसूस करती है. इस ने जीना हराम कर रखा है. ससुराल वालों के साथ पता नहीं क्या करेगी. वे तो इस की शादी की बात चलाते हुए भी डरते हैं.

एक और मातापिता कहते हैं, यदि यह लड़का लालची न होता तो हमारी बेटी को और कोई मिलता भी नहीं. हम इस के लालच का सम्मान करते हैं. यह हमारा ध्यान रखता है. हमारी जिद्दी, अडि़यल लड़की के नखरे और कोई उठा भी नहीं सकता था. हम चीजों से प्यार जताते हैं. वह हमें सेवा से खुश रखता है. हमारी गाड़ी बढि़या चल रही है. हम 25 हजार रुपए की पैंशन राशि घरखर्च के लिए दे देते हैं. घर हमारे मरने के बाद इन्हें मिलेगा. पत्नी का 50 तोला सोना हम इन के बच्चों में 10-10 तोला बांट कर शेष अपने बहनोंभाइयों को देंगे. मरने के बाद क्या होगा, पता नहीं. पर इकलौती बेटी के मातापिता तनाव में भी हर समय रहते हैं.

बहुत सी इकलौती लड़कियों के मन में यह बात रहती है कि लड़का पैसे से प्यार करता है. इसलिए दांपत्य प्रेम में कहीं खटक या कसक भी रहती है. कई लड़के शादी कर तो लेते हैं, पर व्यावहारिक स्थिति का मुकाबला नहीं कर पाते. घुटन, आक्रोश आदि से भरी जिंदगी खींचते हैं. कभीकभी कुछ लोगों को यह भ्रम भी हो जाता है कि पैसे से प्यार है, जबकि ऐसा होता नहीं है.

कुमार आशु को उन की पत्नी अकसर ताना मारती है, जबकि वे कहते हैं, ‘‘उन्होंने सिर्फ तूलिका से प्यार होने के कारण शादी की है. वे उसे सब सुख मुहैया करा रहे हैं. फिर भी वह हावी रहती है. मैं इस के घर का एक तिनका तक न लूंगा. वे चाहे अपना सबकुछ दान कर दें, पर मेरे चेहरे पर शिकन तक नहीं आएगी.

मैं ने सोचा कि प्यार करने वाली लड़की प्यार को बेहतर जानती होगी, पर उसे सच्चे प्यार की सम?ा तक नहीं है.

नवनीत पंवार की सास उस के घर में रहती हैं. उस के घर वालों के साथ ही. नवनीत का पूरा घर उन की देखभाल करता है कि कमरा भी उस की सास का है. नवनीत व उस के पिता कहते हैं, ‘भाई माल खाने के लिए इतना तो सहना ही पड़ेगा. न करें तो इस की सास के पीहर वाले हड़पने को तैयार बैठे हैं. वे तो इस के पति के मरते ही पीहर ले जाने को तैयार थे. यों कौन रखता है वे अपने बच्चों के नाम प्रौपर्टी करवा लेते. हम दिल जीत कर हाथाजोड़ी कर के ले आए. ये दकियानूस थी. रीतिरिवाजों से बंधी थी. आने को तैयार न थी. बेटी के घर का पानी तक नहीं पीती थी. अब वहां रहूंखाऊं कैसे. बड़ी मुश्किल से मनाया. यहां तक कि इन के रिश्तेदारों ने पहले ही पति का श्राद्ध और अन्य दायित्वों से मना कर दिया. महंगी और क्रीम प्रौपर्टी इन्होंने बेच दी. हम अब यह न करते तो जो है वह भी चला जाता.

अब दोनों पार्टी खुश हैं

आजकल संतान कम होती है. अब तो एक संतान पर ज्यादा जोर है. इकलौती लड़की की शादी इकलौते लड़के से होने से जिम्मेदारियों व चुनौतियों में और भी इजाफा होता है. परंपरागत सोच में बदलाव ला कर इन्हें जीता जा सकता है. सदैव लोभलालच से ही ऐसी शादियां नहीं होतीं, पर उन का रोल भी रहता है. यदि लोभ पूरा दिया या अपनी प्रौपर्टी बेटी को दे दी, इस का मतलब यह नहीं कि जमाई को गुलाम सम?ा लें. बेटी की ससुराल वालों से उसे दूर ही कर दें. उसे रोज सिखाते रहें या निजी जीवन में दखल का अधिकार पा लें.

यदि दोनों परिवारों में इकलौते बच्चे हैं तो उन के मातापिता अपनी सेवा का कोई तीसरा विकल्प चुनना चाहें तो उस का खुलेमन से स्वागत करना चाहिए. अरमान से हुई इकलौती संतान उसे बो?ा या कलियुग की कपूती औलाद ही न लगने लगे.

जब भी इकलौती लड़की की शादी करनी हो या इकलौते लड़के की शादी करनी है, खुल कर बात कर लेना बेहतर है.

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