टेस्ट क्रिकेट में अगर कोई बल्लेबाज बिना कोई चौका-छक्का लगाए पूरे दिन बल्लेबाजी करता था तो उसे बेहतरीन खिलाड़ी माना जाता था, लेकिन टी20 क्रिकेट के आने से हालात पूरी तरह से बदल चुके हैं. अगर बल्लेबाज क्रीज पर आने के 5 मिनट के अंदर कोई बड़ा शॉट नहीं लगाता तो दर्शक अपनी कुर्सी छोड़कर जाने के लिए तैयार हो जाते हैं. मतबल ये है कि आजकल क्रिकेट का मतलब सिर्फ चौके-छक्कों से ही है.
इसका काफी श्रेय बल्लों की बनावट में आए बदलाव को भी जाता है. पिछले कुछ सालों में बल्लों को बनाने के तरीकों में कई तरह के बदलाव किए गए हैं जिससे गेंदबाजों पर बल्लेबाज हावी नजर आने लगे हैं.
वहीं क्रिकेट के कई दिग्गज गेंदबाजों के साथ हो रही इस नाइंसाफी की आलोचना कर चुके हैं. सभी का मानना है कि खेल में गेंदबाजों और बल्लेबाजों के लिए बराबरी का मौका होना चाहिए. इस दिशा में जल्द ही एक कदम उठाया जा रहा है.
ब्रिटेन के रहने वाले एक भारतीय सर्जन ने बल्लों की बनावट को बदल कर खेल में संतुलन लाने का काम शूरू किया है. उन्होंने क्रिकेट के बल्ले की डिजाइन पर शोध किया जिसका लक्ष्य गेंद और बल्ले के बीच संतुलन बनाना था और अब इस साल एक अक्तूबर से यह इस्तेमाल में लिया जायेगा.
इंपीरियल कॉलेज लंदन के डिपार्टमेंट ऑफ सर्जरी एंड कैंसर में सीनियर लेक्चर्र डॉ. चिन्मय गुप्ते ने लंदन के इम्पीरिल कालेज की टीम की अगुवाई की जो क्रिकेट के बल्लों पर शोध कर रही थी. एमसीसी यानि मेरिलबोन क्रिकेट क्लब इस शोध के नतीजे को लागू करने जा रहा है.
गुप्ते ने कहा, ‘‘ पिछले 30 साल में क्रिकेट में छक्कों की संख्या बढ गई है. बल्लों के डिजाइन ही इस तरह के हैं कि गेंद की बजाय बल्ले का दबदबा है. यह नया डिजाइन संतुलन लायेगा.’’
नये नियम के तहत बल्ले के किनारे की मोटाई 40 मिलीमीटर से कम होगी और उसकी कुल गहराई 67 मिमी से ज्यादा नहीं हो सकती.
पुणे में जन्में गुप्ते महाराष्ट्र के क्रिकेटर मधुकर शंकर के बेटे हैं और पेशेवर क्रिकेटर हैं जो मिडिलसेक्स और ग्लूसेस्टर के लिये खेल चुके हैं.