24 फरवरी से शुरू हुए रूस और यूक्रेन के बीच का भयंकर युद्ध कब रुकेगा, यह अभी साफ नहीं है. एक तरफ रूस का लगातार यूक्रेन पर आक्रमण जारी है, दूसरी तरफ यूक्रेन रूस की ताकत के आगे डट कर खड़ा है, हार नहीं मान रहा. युद्ध के बीच हर क्षण कुछ न कुछ नई बातें सुनाई पड़ रही हैं, जो पहले से ज्यादा डरावनी शक्ल में ही सामने आ रही हैं.

गौरतलब है कि इस युद्ध से होने वाले नुकसान की गणना होनी अभी बाकी है. इस का एक अलग अध्याय इतिहास के पन्नों में दर्ज होना बाकी है, लेकिन यह तय है कि इस युद्ध ने रूस और यूक्रेन की जनता को तो क्षति पहुंचाई ही, साथ ही यह भारत के लिए भी कम क्षति वाला नहीं रहा.

कुछ दिनों पहले ही यूक्रेन में पढ़ाई कर रहे कर्नाटक के रहने वाले छात्र नवीन शेखरप्पा की रूसी गोलीबारी में मौत की खबर सामने आई थी. 4 मार्च को पंजाब के रहने वाले भारतीय छात्र चंदन जिंदल की हार्टअटैक से मौत की खबर भी यूक्रेन से आई.

हालांकि सरकारी आंकड़ों के अनुसार यूक्रेन में फंसे तकरीबन 20 हजार भारतीय छात्र थे जिन में से अधिकतर छात्रों को सुरक्षित निकाल लिया गया है, पर अब यूक्रेन के मैडिकल कालेजों में पढ़ाई कर रहे इन भारतीय छात्रों के सामने एक भयंकर समस्या आ गई है. ये छात्र जान बचा कर यूक्रेन से निकल तो चुके हैं पर अब घबराए हुए हैं कि उन के भविष्य का क्या होगा? सरिता पत्रिका ने इस पर यूक्रेन से भारत लौटे छात्रों से बात की.

महाराष्ट्र के पनवेल के नजदीक रहने वाली 19 साल की प्रतीची दीपक पवार यूक्रेन के पश्चिमी इलाके इवानो फ्रैंकिव्स्क स्थित नैशनल मैडिकल यूनिवर्सिटी में सैकंड ईयर की छात्रा है. प्रतीची को बचपन से डाक्टर बनना था. प्रतीची ने अपने क्षेत्र में डाक्टर की कमी को देखा था और उन के दादा की मृत्यु हार्टअटैक के चलते हुई थी, जिस कारण वह डाक्टर बनना चाहती थी.

प्रतीची की माताजी सरकारी कर्मचारी हैं. दिसंबर 2019 में परिवार ने बड़े जतन से प्रतीची को यूक्रेन में मैडिकल की पढ़ाई करने भेजा था. उस ने गैरमुल्क में अपना मन लगाना शुरू किया ही था कि युद्ध छिड़ गया. प्रतीची कहती है, ‘‘मु?ो वहां (यूक्रेन) एडजस्ट करने में 2 महीने का समय लगा था और अब मैं खुश थी, पर युद्ध ने सब बेकार कर दिया.’’

प्रतीची आगे बताती है, ‘‘यूक्रेन में पिछले एक महीने से बारबार युद्ध शुरू होने की बात चल रही थी, पर किसी को लगा नहीं था कि युद्ध वाकई शुरू हो जाएगा.’’ वह कहती है, ‘‘मेरा कालेज यूक्रेन के पश्चिमी भाग में है, इसलिए वहां युद्ध की संभावना कम थी. रोज की तरह ही हम सभी कालेज जा रहे थे. एक दिन एक आर्टिकल पढ़ा तो पता चला कि कीव और खारकीव में लड़ाई शुरू हो गई है. बम गिराए जा रहे हैं, फिर पता चला कि इवानो एअरपोर्ट को भी उड़ा दिया गया है.

‘‘अब हमें डर लगने लगा था और एंबेसी से भी कालेज बंद करने को कह दिया गया था. हमारी टीचर्स हमें यह कह कर सांत्वना देती रहीं कि ‘वार नहीं होगा’. लेकिन आज हालात सब के सामने हैं. सब को यह डर था कि जब उन लोगों ने एअरपोर्ट को उड़ा दिया है तो हम सभी अब सुरक्षित नहीं हैं.’’

इस के आगे प्रतीची कहती है, ‘‘भारतीय एंबेसी से एडवाइजरी आई थी कि हम सभी को

4 बौर्डरों से निकाला जाएगा. एंबेसी ने कौन्ट्रैक्टर भेजा, पर हम सभी 4 से 5 हजार छात्र थे, इसलिए सब को एकसाथ निकालना संभव न था. पहले सुविधा केवल होस्टल के छात्रों के लिए थी.

‘‘मैं अपार्टमैंट में 2 लड़कियों के साथ रहती थी और इंतजार नहीं कर सकती थी, हम सभी सीनियर्स और जूनियर्स 50 स्टूडैंट्स ने मिल कर पैसे इकट्ठे कर प्राइवेट बस की और रोमानिया बौर्डर की ओर चल दिए. यहां हमें 2 बौर्डर क्रौस करने थे, यूक्रेन और रोमानिया. यूक्रेन बौर्डर पार करने में हमें अधिक मुश्किल नहीं आई, क्योंकि हम सभी पहले निकल चुके थे. बाद में आने वालों को अधिक कठिनाई ?ोलनी पड़ी, क्योंकि यूक्रेन से यूक्रेनी, इंडियन और दूसरे देश के लोग भी निकलना चाह रहे थे.’’

प्रतीची बताती है, ‘‘जब वह बौर्डर पहुंची तो यूक्रेनी ह्यूमन चैन बना कर छात्रों को रोक रहे थे, क्योंकि वे पहले यूक्रेनियों को रोमानिया भेजना चाह रहे थे.’’

वह आगे कहती है, ‘‘एंबेसी से स्टूडैंट्स को यह निर्देश दिया गया था कि यूक्रेन से निकलते वक्त इंडिया का फ्लैग चिपका लेना. हम सभी ने ऐसा ही किया. इस से हमें किसी ने नहीं रोका. लेकिन यूक्रेन के बौर्डर पर थोड़ी मुश्किलें आईं. यूक्रेनी थोड़ा रेसिस्ट हुए, क्योंकि उन्हें भी निकलना था. उस में भी पहले लड़कियों को, फिर लड़कों को करीब 5 घंटे बाद छोड़ा गया.’’

प्रतीची बताती है कि रोमानिया पहुंचने के बाद उन्हें खानेपीने से ले कर सोने की सही जगह सबकुछ दिया गया.

प्रतीची ने बताया कि उन्हें खानेपीने की समस्या अधिक नहीं आई. जहां वह रह रही थी वहां का तापमान शून्य डिग्री था तो सभी ने मौसम के हिसाब से कपड़े पहन लिए थे. बाद में स्नोफौल शुरू हुआ और तापमान घटा.

प्रतीची 26 फरवरी को अपना ग्रुप बना कर इवानो से निकल पड़ी थी. यूक्रेन में तो खानेपीने की कोई व्यवस्था नहीं थी, पर रोमानिया पहुंचते ही उन्हें जरूरत की चीजें मिलीं. वह बताती है कि रोमानिया के लोगों ने उन सभी की अच्छी देखभाल की.

वह कहती है, ‘‘हम सभी यूक्रेन के बौर्डर तक पहुंचे थे तो आगे जाने नहीं दिया जा रहा था. फिर हम सभी ने एंबेसी को ट्वीट कर समस्या बताई थी. उन्होंने बच्चों की लिस्ट मांगी थी, लेकिन तब तक हमें रोमानिया जाने दिया गया. वहां इंडिया और रोमानिया की एंबेसी ने बहुत सहयोग दिया. फ्लाइट का खर्चा नहीं देना पड़ा. दिल्ली के बाद राज्य सरकार भी मुंबई फ्री में ला रही थी. लेकिन मैं ने पहले ही टिकट ले लिया था और 28 फरवरी को मुंबई आ गई.’’

प्रतीची बताती है, ‘‘यूक्रेन में मैडिकल का पूरा कोर्स 6 साल का होता है, जिस में से 4 साल पढ़ाई उन की बाकी है. यूक्रेन में रहने और खाने को ले कर पूरा मैडिकल का खर्चा 40 से 50 लाख तक औसतन हर छात्र का पहुंच जाता है. अधिकतर छात्र पढ़ाई पूरी कर दूसरी कंट्री के लिए कोशिश करते हैं. इंडिया की ‘फौरेन मैडिकल ग्रेजुएट्स एग्जामिनेशन’ यानी एफएमजीई बहुत कठिन है और कम बच्चे ही उसे क्लीयर कर पाते हैं. इसलिए छात्र यूक्रेन पढ़ाई के लिए जाते हैं.’’

हालांकि प्रतीची उस समय के इंतजार में है जब युद्ध जल्द से जल्द खत्म हो और वह वापस यूक्रेन जा कर अपनी पढ़ाई पूरी कर सके. वह कहती है, ‘‘युद्ध रुकने पर मैं वापस अपनी यूनिवर्सिटी में पढ़ना चाहती हूं. अब परिवार वाले भी बहुत खुश हैं लेकिन मेरी पढ़ाई खराब न हो, इस की चिंता सभी को है.’’

स्टडी इंटरनैशनल के मुताबिक, 2011 से ले कर 2020 के दौरान यूक्रेन में पढ़ने वाले विदेशी छात्रों की संख्या में

42 फीसदी का इजाफा हुआ. यूक्रेन में करीब 76 हजार विदेशी छात्र पढ़ रहे थे, जिन में से 24 फीसदी भारतीय हैं. रिपोर्ट में बताया गया है कि हर साल करीब

6 हजार भारतीय छात्र एमबीबीएस और बीडीएस की पढ़ाई के लिए यूक्रेन का रुख करते हैं.

द्य ऐसे ही मैडिकल की पढ़ाई के लिए 19 वर्षीय आर्यन पाटिल वर्ष 2019-20 में यूक्रेन गए थे. उन्होंने मुंबई के निकट अलीबाग से 12वीं की परीक्षा पास की, जिस के बाद वे यूक्रेन चले गए. आर्यन कहते हैं, ‘‘इंडिया में नीट के एग्जाम में अच्छे मार्क्स पाने पर ही एडमिशन मिलता है. मेरा स्कोर कम था, इसलिए मैं ने दूसरे देश में जा कर पढ़ने का मन बनाया. मेरे पेरैंट्स टीचर हैं और मैं बेहद साधारण परिवार से हूं.’’

आर्यन को बचपन से ही डाक्टर बनने का शौक था. वे डाक्टरों की देश में जरूरत को ले कर कहते हैं, ‘‘मैं ने देखा है कि डाक्टर के सही इलाज से ही मरीज ठीक होते हैं और मैं भी वैसे ही समर्पण के साथ इलाज करना चाहता हूं.’’

बता दें, यूक्रेन से मैडिकल डिग्री को वैश्विक स्तर पर स्वीकार्यता भी मिली हुई है. वर्ल्ड हैल्थ काउंसिल के साथ इंडियन मैडिकल काउंसिल और यूरोपीय मैडिकल काउंसिल भी इसे मान्यता देती हैं. जिस के चलते यहां से जिन छात्रों ने मैडिकल की पढ़ाई की होगी, वे अमेरिका, ब्रिटेन, यूरोप समेत बड़े देशों में जा कर प्रैक्टिस कर सकते हैं. यही कारण है कि बहुत से भारतीय यूक्रेन में डाक्टरी की पढ़ाई के लिए जाते हैं.

आर्यन का एडमिशन यूक्रेन के नैशनल पिरोगोव मैमोरियल मैडिकल यूनिवर्सिटी, विनयातस्य में हुआ था. यह जगह यूक्रेन की राजधानी कीव से 4 घंटे की दूरी पर है. उन का कोर्स भी 6 साल का है. इस समय आर्यन सैकंड ईयर

में है.’’

आर्यन ने बताया, ‘‘अमेरिका से लगातार इनफौर्मेशन आ रही थी कि वार होने वाला है. पहले 16 फरवरी, फिर

19 फरवरी को आया लेकिन वार नहीं हुआ. फिर एक रात 24 फरवरी की सुबह को कीव में बम गिरा और 13 मार्च तक कालेज बंद कर दिया गया. अभी तक पता चला है कि यूक्रेन के बाउंड्री के सभी शहर नष्ट हो गए हैं. यूक्रेन बहुत सुंदर व अच्छा देश है. वहां के लोग काफी अच्छे और मिलनसार हैं.’’

आर्यन बताते हैं, ‘‘एमबीबीएस पूरी करने के बाद अगर वे फौरन मैडिकल ग्रेजुएट एग्जामिनेशन क्वालीफाई कर लेते हैं तो उन्हें इंडिया में डाक्टरी का लाइसैंस मिल जाएगा और वे प्रैक्टिस करने के अलावा आगे भी पढ़ सकते हैं.’’

यूक्रेन से निकलने के प्रयास के बारे में पूछने पर आर्यन कहते हैं, ‘‘हम सभी कुछ सामान इकट्ठा कर बाहर निकलने की तैयारी कर रहे थे कि तभी साइरन की आवाज आने पर बंकर में चले जाना पड़ता था. फिर बाहर आते थे. फिर हम सभी फ्रैंड्स ने बौर्डर पर जाते हुए कुछ लोगों को देखा और हम सभी ने कोशिश की और निकल गए. बस में 80 से 100 छात्रों का समूह 10 से 12 घंटे बाद रोमानिया के बौर्डर के पास पहुंचे. मेरी यूनिवर्सिटी में लोग अधिक नहीं थे, सब अपनी जान बचाने के लिए व्यस्त थे.

‘‘भारत एंबेसी से फोन नंबर मिला रहे थे, उन लोगों ने थोड़ी सहायता की है. कौल करने की सुविधा मिल रही थी. यूक्रेन के बौर्डर पर सेना आगे जाने नहीं दे रही थी. धीरेधीरे कर भेज रहे थे. यूक्रेन बौर्डर को क्रौस करने के बाद सबकुछ थोड़ा स्मूथ हुआ. वहां भारत सरकार की तरफ से एंबेसी वालों ने अच्छे तरीके से फ्लाइट अरेंज करवाई और हम सभी के लिए सबकुछ ठीक हुआ.

‘‘मैं डायरैक्ट मुंबई आया. 190 छात्र मेरे साथ फ्लाइट में थे, जो अलगअलग राज्यों से थे. यूक्रेन से रोमानिया के बौर्डर तक 10 से 12 किलोमीटर चल कर जाना पड़ा. वहां यूक्रेन के लोग खाना दे रहे थे, पर खाना बहुत कम था. रोमेनिया पहुंचने पर सब आसान हो गया. बस से हमें बौर्डर से 12 किलोमीटर पहले छोड़ दिया गया. वहां से हमें पैदल जाना पड़ा. वहां जा कर देखा कि करीब 5 हजार छात्र वहां पहले से मौजूद थे. खानेपीने की बहुत समस्या थी.’’

आर्यन ने उदास स्वर में कहा, ‘‘मैं ने लोन लिया है, थोड़ा तनाव है, लेकिन यूरोपीय देश हमें वहां आ कर कोर्स पूरा करने के लिए बुला रहे हैं. इस बारे में अभी मैं ने सोचा नहीं है. इंडिया में अगर आगे पढ़ने को मिले तो अच्छी बात होगी. मेरे आने तक पेरैंट्स बहुत चिंतित थे, मां ने खाना छोड़ दिया था. अब सब ठीक है और आगे सब ठीक होने पर वापस अवश्य जाऊंगा.’’

देखा जा रहा है कि जिस समय से यूक्रेन में युद्ध शुरू हुआ, सत्तापक्ष से छात्रों को निकालने के प्रयासों की जगह उन्हें ही इस हालत का जिम्मेदार ठहराया गया. भाजपा के नेता यहां तक बयान देते पाए गए कि ये छात्र नीट में फेल हुए छात्र हैं, पर हकीकत यह है कि भारत में वजह मैडिकल सीटों की भारी कमी इस का कारण है कि छात्र विदेशों में पढ़ने को जाते हैं.

जितनी संख्या में उम्मीदवार हैं, उस की तुलना में सीटों की संख्या बहुत कम है. गौरतलब है कि भारत में एमबीबीएस की मात्र 88 हजार सीटें ही हैं. हर साल लाखों की संख्या में छात्र मैडिकल की पढ़ाई के लिए एग्जाम देते हैं. सरकारी कालेजों में 10 फीसदी उम्मीदवारों को भी दाखिला नहीं मिल पाता.

जाहिर तौर पर इन में से अधिकतर छात्र ऐसे हैं जो आगे जा कर भारत में डाक्टरी करेंगे. जाहिर है ऐसे समय जब देश में डाक्टरों की भारी जरूरत है तब इन छात्रों को हर तरह से मोरल सपोर्ट देने की जरूरत है. कई छात्र इन में ऐसे हैं जिन के मातापिता ने जीवनभर की कमाई अपने बच्चे की पढ़ाई पर खर्च कर उन्हें विदेश पढ़ने भेजा. मौजूदा वक्त में इन छात्रों का भविष्य अधर में है, इसलिए सत्तापक्ष के नेताओं को चाहिए कि ओछी टिप्पणी करने की जगह इन छात्रों के भविष्य को ध्यान रखते हुए हर संभव मदद करें.

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