मेरा छोटा भाई इंजीनियरिंग के बाद कोई परीक्षा देने हैदराबाद जा रहा था. स्टेशन पर उस की मुलाकात एक सज्जन से हुई, जो हैदराबाद जा रहे थे. ट्रेन में भाई उन से वहां के होटल और परीक्षा सैंटर की दूरी की जानकारी लेने लगा. थोड़ी देर बाद उन्होंने कहा कि तुम्हारे लिए नया शहर है. एतराज न हो तो मेरे घर चल सकते हो. भाई झिझक रहा था. वे सज्जन बोले, ‘‘मैं तुम्हारी स्थिति समझ सकता हूं. मैं भी परिवार वाला हूं. यह मेरा आईकार्ड है. मैं फलां औफिस में काम करता हूं.’’

वे भाई को स्टेशन से घर ले गए. अगले दिन अपने बेटे के साथ उन्होंने परीक्षा देने भेजा. उन का बेटा परीक्षा के खत्म होने तक वहीं रुका रहा. आज भी उन से भाई और हमारे परिवार का संपर्क बना हुआ है.  

बिब्बन शर्मा

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मैं परिवार सहित राजस्थान प्रवास पर था. मेरे बेटे प्रसन्न का मुंडन संस्कार करने हम लोग अपने मूल स्थान पर गए थे. वहीं से मेरी पत्नी को बीकानेर जाना था जड़ाऊ गहने खरीदने. हम ने अपने रिश्तेदारों से संपर्क कर बीकानेर के एक विश्वसनीय व्यक्ति का नाम, पता, फोन नंबर वगैरा प्राप्त कर लिया था. वह गहनों का ही कार्य करता था. हम राजस्थान पहली बार गए थे और साथ में मेरे पास रकम भी ज्यादा थी, सो मन में डर बैठा हुआ था. बीकानेर पहुंच कर उस व्यक्ति से संपर्क किया. अनजान शहर, अनजान व्यक्ति और गहनों से संबंधित कार्य. मन में डर लग रहा था. खैर, हम लोग बीकानेर के रेलवे रिटायरिंग रूम में रुके और हम रिकशा ले कर उस व्यक्ति के पते पर पहुंचे. बातचीत हुई, गहने देखे. इसी बीच, उन्होंने पूछा, ‘‘अरे, मैं तो पूछना ही भूल गया कि आप लोगों का सामान कहां है?’’ हम ने उन्हें बताया कि रिटायरिंग रूम में रुके हैं.

उन्होंने कहा, ‘‘नहीं, आप लोग वहां क्यों रुकेंगे? घर में पूरी व्यवस्था है. आप लोगों का भोजन भी तैयार हो रहा है. आप लोगों को यहीं रुकना है, यहीं खानापीना है.’’

वे खुद स्टेशन गए, सामान आदि लाए, घर में रुकाया, शाम को घुमाने ले गए. रात को वहां की प्रसिद्ध चीजें खिलाईं, होटल में भोजन कराया. दूसरे दिन विदा होते समय हमारे लिए घर जाने के लिए टैक्सी की व्यवस्था करा दी. इतना स्नेह, इतना सम्मान, इतनी आवभगत देख कर मैं सोचने को मजबूर हो गया कि क्या आज भी ऐसे लोग हैं.    

आशीष जयकिशन चितलांग्या

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