Writer- रोहित

मौजूदा सरकार देशद्रोह, यूएपीए, 144, एपिडैमिक एक्ट जैसे कानूनों का इस्तेमाल अपने खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाने के लिए कर रही है, जबकि, प्रजातंत्र में जनता सरकार को चुनती है और उसे सरकार की आलोचना करने का हक भी होता है.

किसानों को दिल्ली बौर्डर खाली किए एक महीने से ऊपर बीत चुका है.

19 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कृषि कानून वापस लेते समय, बेमन ही सही, देश से माफी मांगी. दिल्ली बौर्डर पर एक साल से ऊपर चले इस आंदोलन में किसानों ने निर्णायक जीत हासिल की. एक तरफ जहां मीडिया, सरकार और आम शहरियों की नजर में किसान आंदोलन खत्म हुआ, वहीं, वासु कुकरेजा जैसे वकीलों, जो किसान आंदोलन को शुरू से अपनी सेवाएं देते रहे, के लिए आंदोलन का दूसरा पड़ाव शुरू हुआ.

सरिता पत्रिका से इस बात की चर्चा वकील वासु कुकरेजा तब कर रहे थे जब 3 जनवरी, 2022 को लखीमपुर खीरी कांड की जांच के लिए गठित की गई एसआईटी ने 5 हजार पन्नों की चार्जशीट लोकल कोर्ट में दाखिल की. एसआईटी की चार्जशीट में 14 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई, जिस में आशीष मिश्रा उर्फ मोनू, अंकित दास, नंदन सिंह बिष्ट, सत्यम त्रिपाठी उर्फ सत्यप्रकाश, लतीफ उर्फ काले, शेखर भारती, सुमित जायसवाल, आशीष पांडेय, लवकुश, शिशुपाल, उल्लास कुमार त्रिवेदी उर्फ मोहित, रिंकू राणा, धर्मेंद्र कुमार बंजारा और वीरेंद्र शुक्ला को लखीमपुर हिंसा का मुख्य आरोपी बनाया गया है.

वासु इस बात से खुश थे कि चार्जशीट में केंद्रीय राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी के बेटे आशीष मिश्रा टेनी को मुख्य आरोपी बनाया गया है, किंतु वे इस बात से आहत भी थे कि चार्जशीट में अजय मिश्रा का नाम नहीं रखा गया. उन का मानना था कि यूनियन मिनिस्टर का नाम न होने का कारण जांच टीम पर पड़ रहा केंद्रीय सरकार का दबाव हो सकता है. उन का कहना था कि जिस थार गाड़ी को किसानों को कुचलने के लिए इस्तेमाल किया गया वह अजय मिश्रा टेनी के नाम पर रजिस्टर्ड है. अजय मिश्रा शुरू से अपने बेटे को बचाने और गलत जानकारी देने की कोशिश करते रहे. उन का इस में पूरा रोल था. बावजूद इस के, उन का नाम चार्जशीट में नहीं रखा गया.

27 वर्षीय वकील वासु कुकरेजा दिल्ली स्थित तीस हजारी कोर्ट में प्रैक्टिस करते हैं और किसान आंदोलन में पहले दिन से अपनी भूमिका निभाते आए. वे बताते हैं कि वे उस टीम का हिस्सा रहे जिस ने लखीमपुर खीरी मामले में सब से पहले पीआईएल डाली थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने कोग्निजैंस लिया और आशीष मिश्रा उर्फ मोनू मिश्रा को विभिन्न धाराओं में नामजद किया. वासु बताते हैं कि वे व उन की टीम एसआईटी की जांच रिपोर्ट पूरी पढ़ कर, कि किस आधार पर उन का नाम हटाया गया, अजय मिश्रा टेनी को भी नामजद किए जाने को ले कर ऐक्शन लेगी.

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किसान आंदोलन में वैसे तो हर तबके ने अपनीअपनी हिस्सेदारी निभाई है, पर कानून से जुड़े मोरचे पर वकीलों का काम भी सराहनीय रहा है. वासु बताते हैं, ‘‘पिछले वर्ष 26 जनवरी को किसान परेड के समय जो घटना घटी, उस के बाद किसानों पर सरकार तरहतरह के मुकदमे दायर कर उत्पीडि़त करने लगी. इसे देखते हुए

30 जनवरी को रकाब गंज में तकरीबन 1,500 वकीलों की मीटिंग हुई, जिस का बैनर था ‘वकील फौर फार्मर्स’. उस जगह पर वकील किसानों को कानूनी समर्थन के लिए एकत्रित हुए थे.’’

वासु बताते हैं, उन्हें गाजीपुर से टीम लीड करने को कहा गया था, जिस कारण उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड से जुड़े मामले उन्हें देखने थे. वे कहते हैं, ‘‘मेरे साथ 15-20 वकीलों की टीम है जो रैगुलर बेसिस पर किसानों की मदद करती है.’’ वासु के पास इस समय किसान आंदोलन से जुड़े 1,500 मामले हैं, जिन में कुछ मामले प्राइमरी स्टेज पर वापस करवा लिए गए हैं.

जाहिर है, किसान आंदोलन के दौरान किसानों पर कई गंभीर मुकदमे दर्ज किए गए हैं. बौर्डर से प्रदर्शन वापस लेने से पहले किसानों की सब से बड़ी मांगों में से एक किसानों और किसान नेताओं पर सभी दर्ज मुकदमों को वापस लिए जाने को ले कर थी. सरकार के साथ आधीअधूरी बात में किसान उठ तो गए पर किसानों पर से यह मुकदमे अभी तक वापस नहीं लिए गए. इन में 302 के तहत दर्ज मुकदमे, 314 के तहत सरकारी संपत्ति को तोड़ने के, आर्कियोलौजी एक्ट के तहत और धारा 144 व एपिडैमिक एक्ट तोड़ने के ढेरों मुकदमे दर्ज हैं. वासु कहते हैं, ‘‘इन में से मेरे पास किसान आंदोलन से जुड़े एक हजार से ऊपर मामले तो सिर्फ 26 जनवरी से जुड़ी घटना को ले कर हैं. सरकार ने आंदोलन को कुचलने के लिए जानबू?ा कर कानूनों का बेजा इस्तेमाल किया है.’’

वासु प्रदर्शन के दौरान दर्ज किए गए मुकदमों को वापस लिए जाने की मांग को जरूरी मानते हैं. वे मानते हैं कि किसी जनआंदोलन में सरकार द्वारा आंदोलन को कुचलने के लिए दर्ज किए गए मुकदमों की मांग उठनी भी जरूरी है और इसे वापस लिया जाना लोकतांत्रिक दृष्टि से भी जरूरी है. अगर मुकदमे वापस नहीं लिए जाते तो सरकार लंबे समय तक अपने विरोधियों को उत्पीडि़त कर सकती है या भविष्य में मैनिपुलेट कर सकती है.

वासु कहते हैं, ‘‘जब आंदोलन वापस होता है तब या तो वह कौंप्रोमाइज्ड मोड में होता है या सैकंड स्टेज में होता है. नौर्मल भाषा में देखिए, अगर मेरा अपने पड़ोसी से ?ागड़ा है और अगर हमारे बीच कौंप्रोमाइज होता है तो स्वाभाविक है कि जो मुकदमे हैं वे वापस होंगे ही. इसलिए जब सम?ाता हो गया तो सरकार को मुकदमे वापस लेने चाहिए. हम नहीं चाह रहे कि गलत मुकदमे वापस ले, जैसे टिकरी वाला हो या सिंघु वाला हो, लेकिन जो किसानों पर फुजूल डरानेधमकाने के लिए दर्ज किए गए हैं उन्हें तो वापस लिया जाए.’’

यह सच भी है, 26 जनवरी की घटना को ओहदेदार भाजपा नेताओं और अधिकारियों ने किसी बड़े षड्यंत्र का हिस्सा बताया. दिल्ली पुलिस ने दावा किया कि गणतंत्र दिवस की घटना ‘प्री-प्लान’ और ‘अच्छी तरह से समन्वित योजना’ थी. यही कारण भी था कि किसानों और उन के नेताओं समेत पत्रकारों पर आपराधिक मामले दर्ज किए गए और गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम (यूएपीए) के प्रावधानों व देशद्रोह से निबटने वाली आईपीसी की धाराओं के तहत मामले दर्ज किए गए.

वासु कहते हैं, ‘‘मौजूदा सरकार देशद्रोह यूएपीए जैसे कानूनों का इस्तेमाल अपने खिलाफ उठ रही आवाजों को दबाने के लिए कर रही है. अगर मैं सरकार को चुनता हूं तो उस की आलोचना करना मेरा हक है. यह हक मु?ा से छीना नहीं जा सकता. वकील के तौर पर मु?ो लगता है यूएपीए जिस इरादे के लिए लाया गया था, उस का सही यूज न कर के सिर्फ डरानेधमकाने व आवाज बंद करने के लिए यूज किया जा रहा है.’’

वे आगे कहते हैं, ‘‘मेरे पिताजी बताते थे जब 84 दंगे हुए तब टाडा लगता था, जिसे बाद में हटा दिया गया. आज यही काम यूएपीए लगा कर किया जाता है. अगर आप सरकार के खिलाफ कहोगे, उस की आलोचना करोगे तो यूएपीए उस के पास है. यूपी, पंजाब में देखिए, कितने फैब्रिकेटेड केसेस हो रहे हैं. ताजा उदाहरण जगमीत सिंह का है. जगमीत सिंह फार्मर प्रोटैस्ट चेहरों में से एक थे. ये वही थे जिन्होंने वाटर कैनन अपने ऊपर ली थी. उन्हें अरैस्ट किया गया. फिर पुलिस रिमांड पर ले लिया गया.’’

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वर्ष 2010 से वर्ष 2020 तक कुल 816 राजद्रोह के मामलों में 10,938 भारतीयों को आरोपी बनाया गया है. इन में 65 फीसदी मामले मोदी के नेतृत्व वाली वर्तमान एनडीए सरकार के समय में दर्ज किए गए. नैशनल क्राइम रिकौर्ड्स ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, भारत में साल 2015 में 30, 2016 में 35, 2017 में 51 और 2018 में 70 राजद्रोह के मामले दर्ज हुए. साल 2019 में देश में सब से अधिक राजद्रोह के 93 मामले दर्ज हुए और इन में 96 लोगों को गिरफ्तार किया गया. इन 96 में से 76 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दायर की गई और 29 को बरी कर दिया गया. इन सभी आरोपियों में से केवल 2 को अदालत ने दोषी ठहराया. इसी तरह साल 2018 में जिन लोगों को राजद्रोह के आरोप में गिरफ्तार किया गया, उन में से 46 के खिलाफ चार्जशीट दायर हुई और उन में से भी केवल 2 लोगों को ही अदालत ने दोषी माना.

देखा जा सकता है कि प्रशासन अधिकतर समय गलत इरादतन इस तरह के मामले दर्ज करता है ताकि विरोध को दबाया जा सके. कन्हैया कुमार प्रकरण इस का बड़ा उदाहरण है जिस में दोष

5 वर्षों बाद भी साबित नहीं हो सका.

वासु कुकरेजा कहते हैं, ‘‘एमएसपी छोड़ो, अभी मुकदमे वापस नहीं हुए हैं. किसानों को फिर से क्राइम ब्रांच के पास नोटिस और समन आने लगे हैं. मुआवजा किसानों को नहीं मिला है. लखीमपुर के घायल किसानों को

10 लाख रुपए देने की बात थी जो अभी तक नहीं मिले हैं. सरकार देरी कर रही है. लखीमपुर के मुख्य विटनैस को सुरक्षा नहीं दी जा रही, सुप्रीम कोर्ट के और्डर को सरकार नहीं मान रही है. अब नोटिस फिर से भेजे जाने लगे हैं तो सम?िए लीगल लड़ाई लंबी चलने वाली है.’’

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वासु कुकरेजा अपने पेशे से मानवाधिकारों की आवाज उठाते रहते हैं. किसान आंदोलन से पहले वे हाथरस मामले में भी सक्रिय थे. उन्होंने हाथरस में भी सब से पहले पीडि़त परिवार की तरफ से पीआईएल दाखिल की थी. वे कहते हैं, ‘‘यह संविधान बचाने की लड़ाई है. संविधान बचेगा तो ही देश आगे चलेगा. संविधान नहीं तो देश नहीं. हमें मिल कर संविधान रूल को स्थापित करना है.’’

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