तकनीकी में हो रहे बदलाव और जीवन यापन की लागत में हो रही वृद्धि के मद्देनजर हमें खुद से सवाल पूछना चाहिए कि क्या आज के बच्चों को हम वित्तीय उत्पादों व सेवाओं के बारे में पर्याप्त जानकारी दे रहे हैं? बच्चों को अब पैसे के लेनदेन व निवेश प्रबंधन की शिक्षा देना काफी अहम हो गया है.

कुछ वर्ष पहले उद्योग चैंबर एसोचैम ने एक सर्वेक्षण के आधार पर कहा था कि अब बच्चों को 2,000-15000 रुपये मासिक तक की राशि बतौर पॉकेट मनी मिलने लगी है. इस पैसे को वे मॉल में खरीददारी करने में या फोन रिचार्ज करने जैसे चीजों पर खर्च कर रहे हैं. एक दशक पहले बच्चों को 400 से 500 रुपये जेब खर्च के तौर पर मिलते थे. इस बदलाव से पता चलता है कि पैसे का हिसाब-किताब रखने की मानसिकता को विकसित करना कितना जरूरी है.

कैश से खरीदारी की आदत

वैसे तो अब क्रेडिट व डेबिट कार्ड सामान्य सी बात है. इसके जरिये खरीदारी करना कई मामले में आसान भी होता है, लेकिन शुरुआत में बेहतर होगा कि आप बच्चों को नकदी में ही खरीदारी करने की आदत डलवायें. मसलन चाय-काफी का भुगतान और किराना दुकानों पर छोटी खरीदारी करना वगैरह. इससे उन्हें पैसे का हिसाब-किताब रखने की व्यावहारिक जानकारी मिलेगी.

एटीएम यूज करना सिखायें

तीन-चार साल के बच्चों को पैसे के स्नोत की जानकारी देने के लिए एटीएम एक बेहतर जगह है. बच्चे दरअसल यह समझते हैं कि पैसे के स्नोत की कोई सीमा नहीं होती. एटीएम ले जाकर उन्हें बताया जा सकता है कि पैसा कहां से आता है और यह असीमित आपूर्ति का केंद्र नहीं है, बल्कि जितने रुपये निकालेंगे आपके बैंक खाते में उतनी ही कम राशि बचेगी.

सुपरमार्केट में भी पाठशाला

अक्सर हम बच्चों को सुपरमार्केट ले जाते हैं. वहां भी कई तरह की शिक्षा दी जा सकती है जैसे कि कैसे कम पैसों में ज्यादा सामान खरीदें, क्या महंगा है और क्या सस्ता इस पर फैसला करना आदि. इससे बच्चे ब्रांड व उत्पादों की गुणवत्ता को लेकर भी जागरूकता बढ़ेगी.

छोटी उम्र से बचत की आदत

अगर आप बच्चों को छोटी उम्र से ही इच्छा, चाह और जरूरत के बीच अंतर समझाने की कोशिश करें तो यह अच्छी शुरुआत होगी. अगर संबंधियों की तरफ से कोई मौद्रिक उपहार मिलता है तो उसका प्रबंध कैसे करें, कैसे उसे बचत में शामिल करें, कैसे उसे सोच समझ कर खर्च करें. इन छोटी-छोटी बातों की जानकारी देकर आप उनमें बचत की आदत डाल सकते हैं.

वित्तीय तौर पर आजादी दें 

बच्चों को जितनी जल्दी वित्तीय आजादी की समझ आ जाए, उतना ही बेहतर होगा. इससे उनमें आत्मविश्वास बढ़ेगा. वे यह समझेंगे कि हर चीज के लिए माता-पिता पर आश्रित नहीं रहा जा सकता. अगर आपका बच्चा दस वर्ष का हो गया है तो उसका अपना बैंक खाता खोल दीजिए. बैंक खाते के साथ उसका अपना डेबिट कार्ड आ जाएगा. उसे यह देखने दीजिए कि किस तरह से राशि ब्याज के साथ बढ़ती है?

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