‘लव्य को बताए बिना यहां आना भी एक बड़ी गलती है. उसे जब पता चलेगा, तो वह पता नहीं कैसा रिएक्ट करेगा. जैसा निर्णय तुम ने लिया है, वैसा ही निर्णय अगर लव्य ने ले लिया तो तुम बड़ी मुसीबत में पड़ सकती हो,’ पापा का स्वर अब कुछ ज्यादा ही गंभीर हो चला था.
अब तक लक्षिता की चाय समाप्त हो चुकी थी. चाय का कप मेज पर रखने के साथ ही वह उठ खड़ी हुई और वापस जाने के लिए अपनी अटैची उठा ली.’अरे लक्षिता कहां चल दी?’ मम्मी ने पूछा.
‘मैं अपने घर जा रही हूं मम्मी. इस से पहले कि बहुत देर हो जाए, मैं घर पर जा कर लव्य को मनाती हूं. मुझे घर पर ना पा कर वह परेशान होगा, शायद गुस्सा भी हो,’ लक्षिता बोली.
‘मगर बेटा, अब जब आ ही गई हो तो खाना खा कर चले जाना. हम लव्य को फोन कर देते हैं,’ जैनी बोली.’उसे मत रोको जैनी. सुबह का भूला अगर शाम को वापस घर आ जाए तो उसे भूला नहीं कहते,’ सजन बोले.’हां, मम्मीपापा ठीक कहते हैं. वैसे भी हमारा घर है ही कितनी दूर, सिर्फ 50 किलोमीटर ही तो है. एक्सप्रेस बस से अधिक से अधिक एक घंटे में तो पहुंच ही जाऊंगी.
‘और हां, खाना खाने के लिए अब मैं नहीं हम आएंगे,’ लक्षिता के स्वर में अब आत्मविश्वास झलक रहा था.’आएंगे नहीं हम आ चुके हैं,’ अचानक कमरे में प्रवेश करता हुआ लव्य बोला.’अरे लव्य तुम???’ तीनों एकसाथ आश्चर्य से बोले.
‘हां लक्षिता, तुम मुझ से बहुत ज्यादा गुस्सा थी, इसी कारण मैं ने तुम्हारी बातों का जवाब नहीं दिया, क्योंकि बात बढ़ाने से हमेशा बढ़ती ही है. वैसे भी तुम्हारे बिना मुझे नींद कहां आती है. आज भी सुबह जब तुम्हें लेने के लिए टैक्सी आई, तब मैं भी जाग चुका था. मैं अपने बेडरूम से निकल कर तुम्हें बुलाने के लिए बाहर भी आया, मगर तब तक तुम निकल चुकी थी.
‘मैं समझ गया कि तुम बसस्टैंड ही गई होगी. मैं फ्रेश हो कर कपड़े पहन कर अपनी गाड़ी से बसस्टैंड पहुंचा, मगर कुछ देर पहले ही तुम्हारी बस निकल चुकी थी.’मैं नहीं चाहता था कि तुम घर पहुंचो और तुम्हें देख कर मम्मीपापा परेशान हों. इसी कारण मैं अपनी गाड़ी से ही यहां तक आया, मगर मेरे यहां पहुंचने के कुछ क्षणों पहले ही तुम घर में प्रवेश कर चुकी थी.
‘मैं बाहर बरामदे में खड़ा हो कर ही तुम्हारी बातें सुनने लगा.’पापाजीमम्मीजी, आप लोगों का बहुतबहुत धन्यवाद मेरा पक्ष इतने अच्छे ढंग से रखने के लिए और मेरे मौन को सार्थक शब्द देने के लिए.’और लक्षिता, मैं तुम से खुद ही आज माफी मांगते हुए एक सरप्राइज देने वाला था. यह देखो, शहर के मशहूर वाटर रिसोर्ट में आज दिनभर के लिए बुकिंग करवा रखी थी,’ लव्य टिकट दिखाते हुए बोला.
‘लो लक्षिता, मैं कह रही थी ना, मौन की भाषा बहुत मुखर होती है. एक मौन कई शब्दों पर भारी पड़ता है,’ जैनी मुसकराते हुए बोली.’गलती समझ में आ गई ना लव्य. अब तो हमारी बिटिया की तारीफ करोगे ना ?’ सजन के चेहरे से भी अब तनाव हट चुका था.
‘पापाजी मेरा हाल तो आप के एक उज्जैनी मित्र अब्दुल अतीक खान के एक शेर जैसा है :दूर से देखा तो चांद बहुत हसीं था,पास से देखा तो सिवा दाग के कुछ नजर नहीं आया.शायद इतना पढ़ने के बाद भी मेरे पास शब्दों का अकाल है,’ लव्य गंभीर होते हुए बोला.’लव्य, मुझे कुछ भी नहीं चाहिए. तुम जैसे भी हो, मुझे बहुत अच्छे लगते हो. तुम ने आज का रिसोर्ट बुक करवा रखा है. चलो, हम सब वहीं चलते हैं,’ लक्षिता खुश हो कर बोली.
‘नहीं लक्षिता, आज तुम बिलकुल सही जगह आई हो. आज का सारा दिन मैं मम्मीजी और पापाजी के साथ ही गुजारना चाहता हूं. पता नहीं, ऐसा मौका फिर कब मिलेगा,’ लव्य आग्रहपूर्ण शब्दों में बोला.कुछ क्षण शांति छाई. फिर सभी ने एकदूसरे की ओर देखा तभी ‘यस’ कह कर अचानक सब खुश हो कर चीखे.