अपनी मरजी की लड़की से बेटे की शादी न होता देख एक मां ने कैसी चाल चली कि पासा उलटा पड़ गया और अब न वह घर की रही न घाट की. सुबह का शांत समय था. कोमल खिड़की से बाहर देख रही थी. यह बरसात का महीना था. बाहर के लौन में घास हरीभरी और ताजी लग रही थी. हवा ठंडी और दिल खुश करने वाली गीली मिट्टी की महक लिए वातावरण को सुगंधित कर रही थी. कोमल को 30 साल पहले के ऐसे ही बारिश से भीगे हुए दिन की याद आई… ‘मुबारक हो मैडम, बेटा हुआ है,’ नर्स ने कोमल से कहा.

यह सुन कर कोमल ने चैन की सांस ली. उस को बेहद डर था कि कहीं बेटी पैदा हुई तो पति के परिवार की नजरों में उस का दर्जा गिर जाएगा. इस के 2 कारण थे. पहला था कि लाखों और लोगों की तरह उस के सासससुर के सिर पर अपने वंश को आगे बढ़ाने का भूत सवार था. दूसरा, कोमल से पहले घर में आने वाली बहू, उस के जेठ की पत्नी ने बेटा पैदा किया था. जल्द ही सारे खानदान में बेटा पैदा होने का शुभ समाचार फैल गया. सब से पहले कोमल के सासससुर अस्पताल पहुंचे. उसे बधाई देने के बाद उस के ससुर ने कहा ‘मुझे जैसे ही समाचार मिला, मैं ने यश को जरमनी फोन कर दिया.

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वह बेहद खुश था.’ यश उन का बेटा और कोमल का पति था. वह उस समय कारोबार के सिलसिले में यूरोप का दौरा कर रहा था. उस के सासससुर के आने के कुछ ही देर पश्चात एक के बाद एक दोस्त और रिश्तेदार अस्पताल पहुंचने लगे. साथ में फूलों के गुलदस्ते, मिठाई, बच्चे के लिए कपड़े और खिलौने लाए पर अस्पताल उच्च श्रेणी का था. उस के नियम बहुत कड़े थे. कोमल के सासससुर के अलावा एक समय पर केवल 2 लोग ही उस के कमरे में जा सकते थे और जितने तोहफे और फूल वगैरह आए थे, उन सब को अलग एक छोटे कमरे में रखवा दिया गया. कमरे में ताला लगा कर चाबी कोमल की सास को पकड़ा दी गई. 2 दिनों बाद कोमल अपने बेटे को ले कर घर आई. यश भी उसी शाम को जरमनी से लौटा. फिर कई दिनों तक बच्चे के पैदा होने का जश्न मनाया गया.

कोमल की ससुराल का बहुत बड़ा भव्य घर था, पर उस के ससुर को लगा कि एक ही दिन सारे रिश्तेदारों और सब के दोस्तों को बुलाना तो मेले की भीड़ की तरह होगा, किसी से खुल कर बातचीत भी न हो सकेगी. सो, हर दूसरे दिन पार्टी रखी गई. एक दिन उन के रिश्तेदारों को बुलाया गया. 2 दिनों बाद सुसर के व्यापारी मित्र आए थे. उस के बाद कोमल की सास की सहेलियां पार्टी में आईं. अब आया वह दिन, जब यश और कोमल के मित्रगण खुशी मनाने आए. कोमल के बेटे के नामकरण पर बच्चे के दादाजी ने उस का नाम महावीर रखा. धीरेधीरे महावीर बड़ा हुआ. पढ़ाई में काफी तेज था और हमेशा अपनी कक्षा में पहले या दूसरे स्थान पर आता था पर बचपन से ही वह काफी अडि़यल स्वभाव का था और अपनी मनमरजी के मुताबिक ही काम करता था. 10वीं कक्षा पास करने के बाद जब वह 11वीं में जा रहा था तो उस के पिता यश ने चाहा कि वह कौमर्स और इकोनौमिक्स पढ़े, ताकि आगे जा कर कालेज में वह ‘सीए’ या ‘एमबीए’ कर सके और डिगरी हासिल करने के बाद महावीर उन के कपड़ों के निर्यात के कारोबार में उन का साथ दे. महावीर के कुछ और ही इरादे थे.

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वह एक शानदार फाइवस्टार होटल खोलना चाहता था. इस कारण उस ने 11वीं कक्षा में होम साइंस लिया और 12वीं करने के बाद वह होटल मैनेजमैंट में चला गया. लगभग 3 साल हो गए, तब महावीर की पढ़ाई और ट्रेनिंग पूरी होने वाली थी. एक शाम जब वह घर आया तो बहुत प्रसन्न लग रहा था. ‘मम्मीजीपापाजी, मैं आप के लिए एक खुशखबरी लाया हूं.’ ‘क्या तुम अपने सालाना इम्तिहान में अव्वल नंबर पर आए हो?’ कोमल ने पूछा. ‘नहीं मम्मी, इस इम्तिहान में नंबर जैसी छोटी चीज की बात नहीं है,’ बेटे ने जवाब दिया, ‘यह मेरे जीवन और भविष्य के बारे में बात है.’ ‘अब हमें और लटका कर मत रखो,’ यश बोला, ‘बता ही दो क्या बात है.’ ‘तो सुनिए,’ महावीर ने कहा, ‘मैं ने शादी के लिए एक लड़की ढूंढ़ ली है. मैं ने उस से बात भी कर ली है और उस को यह रिश्ता मंजूर है.’

यश और कोमल को जोर का झटका लगा. थोड़ी देर तक दोनों कुछ बोल न सके. फिर बड़ी मुश्किल से यश ने अपनी आवाज पाई, ‘यह क्या कह रहे हो बेटा? तुम हमारे साथ मजाक तो नहीं कर रहे हो?’ ‘नहीं पापाजी. मैं आप लोगों के साथ भला ऐसा कैसे कर सकता हूं,’ महावीर ने जवाब दिया. ‘यह लड़की कौन है? उस का बाप क्या करता है? क्या वह हमारी तरह राजपूत खानदान की है?’ सवाल पर सवाल महावीर की तरफ फेंके गए. ‘लड़की का नाम पूनम है. वह मेरे साथ होटल मैंनेजमैंट सीख रही है. उस का पिता औटोरिकशा चलाता है. उस की जात और खानदान के बारे में मैं ने कभी पूछा नहीं. शायद वह दलित है, पर इस से क्या फर्क पड़ता है.’ महावीर का जवाब सुनते ही यश आगबबूला हो गया.

‘क्या यश राठौर जैसे करोड़पति का इकलौता बेटा एक रिकशा चलाने वाले की बेटी के साथ शादी करेगा?’ वे गुस्सीले स्वर में चिल्लाए, ‘क्या एक राठौर खानदान का सुपुत्र एक दलित लड़की से रिश्ता जोड़ेगा? यह मैं कभी होने नहीं दूंगा. सारे समाज में हमारी नाक कट जाएगी. लोग हम पर हंसेंगे. तुम यह शादी नहीं कर सकते.’ यह कह कर यश पैर पटकता हुआ उस कमरे से चला गया. ‘बेटा, तुम यह बहुत गलत काम कर रहे हो. उस दलित लड़की का खयाल छोड़ दो,’ कह कर कोमल भी कमरा छोड़ कर चली गई. महावीर की बचपन की पुरानी आदत अब भी थी कि वह अपने मन की मरजी करता था,

चाहे उस के मातापिता कुछ भी कहें. उसे और पूनम को एक फाइवस्टार होटल में नौकरी का बुलावा मिल चुका था, जिस के बारे में उस ने डर के मारे अपने मातापिता को नहीं बताया था. पूनम ने तो प्रस्ताव मिलते ही होटल को ‘हां’ कह दिया था. उस दिन मातापिता के विचारों को सुनने के बाद महावीर ने तय किया कि वह भी उसी होटल की नौकरी स्वीकार कर लेगा. फिर जल्दी ही वह एक छोटा सा मकान किराए पर ले लेगा. अगला कदम भी उस के विचारों में था कि वह तब पूनम से कोर्ट में शादी कर के अपनी गृहस्थी बसाएगा. पूनम को महावीर की योजना सही लगी पर वह पहले अपने पिता से अनुमति लेना चाहती थी.

जब पूनम के पिता को पता चला कि उस की बेटी किस से शादी करने जा रही है तो शुरूशुरू में तो वह डर गया. उसे पता था कि यश राठौर बड़ा आदमी था और उस की जानपहचान शहर के वरिष्ठ पुलिस आईपीएस अफसरों से थी. वे चाहते तो उस का लाइसैंस जब्त करवा सकते थे या उसे किसी बहाने जेल भिजवा सकते थे. महावीर ने उसे आश्वासन दिया कि उस का पिता गुस्सैल जरूर है और उसे जब गुस्सा आ जाता है तो वह कुछ भी कर सकता है लेकिन वह सब स्थिति संभाल लेगा. मुश्किल से पूनम के पिता शादी के लिए राजी हो गए. पहले दिन के झगड़े के बाद महावीर ने अपने पिता के सामने अपनी शादी की बात कभी न उठाई और न ही अपनी मां को कुछ बताया.

ट्रेनिंग खत्म होने के बाद पूनम और महावीर की नौकरी लग गई. अपनी योजना के अनुसार दोनों ने कोर्ट में नोटिस दे दिया कि वे शादी करना चाहते हैं. कानून के अनुसार पहला नोटिस देने के 3 महीने के बाद ही वे शादी कर सकते थे. कायदे के मुताबिक, उन की अर्जी कोर्ट के नोटिस बोर्ड पर लग गई. धीरेधीरे दिन गुजरने लगे. लगभग एक महीने बाद अदालत के ही एक मुलाजिम ने कुछ पैसे ऐंठने की नीयत से कोमल का पता कर उस को फोन किया और बता दिया कि उस का बेटा कोर्ट में शादी करने जा रहा है. महावीर की होने वाली शादी की खबर सुनते ही कोमल के होश उड़ गए.

वह जानती थी कि उस के पति यश बेटे महावीर से पहले ही नाराज थे, क्योंकि उस ने उन के साथ काम करने से इनकार कर दिया था और उस की जगह एक होटल में नौकरी कर रहा था. इस के ऊपर अगर वे यह सुनेंगे कि उन का बेटा एक ओटोरिकशा चलाने वाले की लड़की से शादी कर रहा है तो गुस्से में आ कर महावीर को अपनी जायदाद से वंचित कर सकते थे. कोमल किसी हालत में यह नहीं सह सकती थी. आखिर महावीर उस का एकलौता बेटा था. कोमल सोचने लगी कि वह क्या करे ताकि महावीर और पूनम अलग हो जाएं. वह चाहती थी कि उस का कारगर उपाय कुछ ऐसा हो कि वे दोनों इस शादी के बंधन में न उलझे रहें. धीरेधीरे कोमल के दिमाग में एक उपाय सब से ऊंचा बन कर पांव जमाने लगा. वह यश को इस उपाय में सांझी नहीं बनाना चाहती थी. वह नहीं चाहती थी कि यश का गुस्सा महावीर को सुधारने में और भी भड़क जाए. अकसर अपना कारोबार बढ़ाने के सिलसिले में यश विदेशों के लंबे टूर पर जाते थे. एक ऐसे ही अवसर पर कोमल ने महावीर को फोन किया और कहा, ‘बेटे, तुम्हें देखने को मेरी आखें तरस गई हैं. कल शाम को चाय पर घर आ कर मुझ से कुछ देर बातें कर लो.

तुम्हारे पिताजी इस समय हिंदुस्तान से बाहर हैं. इसलिए, जिस लड़की से तुम शादी करने की बात कर रहे थे, उस को भी साथ ले आओ. कम से कम मैं अपने बेटे की पसंद से मिल तो लूं.’ वह मान गया कि कल शाम को पूनम को साथ ले कर आएगा. अगले दिन सुबह अपनी योजना के अनुसार कोमल बाजार गई. ड्राइवर को कार पार्किंग में छोड़ वह खरीदारी करने पैदल निकल गई, ताकि किसी को कोई शक न हो कि वह असल में क्या लेने आई थी. उस ने एक जोड़ी चप्पल, कुछ रूमाल और एक पर्स खरीदा. फिर अपने मन में उठ रही योजना को पूरा करने के विचार से एक चीज खरीदी- चूहा मारने की दवा. शाम को, कहने के मुताबिक, महावीर और पूनम उस से मिलने आए. कोमल ने उन से काफी बातचीत की. उस ने पूनम की प्रशंसा की और उस से मिल कर बहुत खुश होने का नाटक भी रचा. फिर नौकर से चाय मंगाई. जब चाय आई तो कोमल ने उसे अलग टेबल पर रखने को कहा और खुद उठी चाय बनाने के लिए.

कोमल जानती थी कि उस की खरीदी हुई दवा, चूहों का खून पतला कर के उन को मारती थी. मनुष्यों को भी जब खून में थक्का आ जाने का डर होता तो इसी तरह की दवा बहुत कम मात्रा में दी जाती थी, ताकि खून पतला हो जाए. यदि किसी इंसान को चूहे मारने वाली दवा काफी मात्रा में दी जाए तो उस का खून इतना पतला हो जाता है कि उस की मौत निश्चित थी पर मौत आने में कुछ घंटे लगते हैं. कोमल ने एक प्याले में चाय डाली, अपनी लाई हुई दवा की चार चुटकियां डाल दीं, फिर दूध और चीनी मिला कर प्याला पूनम के सामने रख दिया. वह दूसरे प्याले में चाय डाल ही रही थी कि दूसरे कमरे में फोन बजा. ‘मैं अभी आती हूं’ कह कर वह दूसरे कमरे में फोन सुनने चली गई.

पूनम ने अपनी चाय का प्याला महावीर को पकड़ाया और उठ कर अपने लिए एक और प्याला बनाया. कोमल को आने में देर लग रही थी तो दोनों ने अपनीअपनी चाय पीनी शुरू कर दी. कोमल वापस आई तो देरी के लिए माफी मांगी और अपने लिए चाय बना कर पीने लगी. उस ने सोचा कि पूनम ने महावीर के लिए चाय बना दी होगी. चाय खत्म होने के बाद पूनम और महावीर ने अपनेअपने घर जाने की इजाजत मांगी और निकल पड़े. कोमल के मन में विचार उठा कि जल्दी ही उस का बेटा आजाद हो जाएगा. आकाश की तरफ उस ने निगाहें उठाईं तो देखा कि बादल घिर रहे थे पर लगता था कि अभी वर्षा शुरू होने में समय लगेगा. रात हो गई. कोमल खाना खाने बैठी ही थी कि फोन की घंटी बजी. फोन पर पूनम थी.

उस ने कहा कि वह अस्पताल से बोल रही है. उस की आवाज कांप रही थी और लगता था कि वह किसी क्षण रोने लगेगी. उस ने बताया कि जब वह और महावीर कोमल को छोड़ कर निकले तो वे दोनों काफी देर तक शहर के एक बड़े पार्क में घूम रहे थे, गप्पें हांक रहे थे और भविष्य के लिए योजनाएं भी बना रहे थे. अचानक महावीर की तबीयत खराब हो गई. पूनम उसे टैक्सी में अस्पताल ले गई. वहां डाक्टरों ने कहा कि लगता था कि महावीर ने किसी किस्म का जहर खाया था. उस का बचना मुश्किल था. यह सब सुन कर कोमल को जोर का झटका लगा. यह क्या अनर्थ हो गया था. उस ने सोचा कि जो जाल उस ने पूनम के लिए फैलाया था, उस जाल में उसी का बेटा फंस गया था. उस ने तुरंत ड्राइवर को बुलवाया और अपनी कार से अस्पताल के लिए रवाना हो गई. रास्ते में बारिश शुरू हो गई और जल्दी ही घनघोर वर्षा होने लगी. उस समय सड़कें वाहनों से खचाखच भरी हुई थीं. लंबा ट्रैफिक जाम था. कोमल का मोबाइल उस के पर्स में था. रास्ते में उस का फोन 2-3 बार बजा पर बाहर के शोर के कारण कोमल ने नहीं सुना. कोमल को अस्पताल पहुंचने में लगभग एक घंटा लग गया. वहां उसे पूनम मिली. वह रो रही थी.

‘‘मांजी, महावीर हमें हमेशा के लिए छोड़ कर चले गए,’’ सिसकियों के बीच में उस ने कहा. कोमल वहीं पास में एक बैंच पर बैठ गई. उसे लगा कि उस ने अपने सपनों को स्वयं ध्वस्त कर दिया, वह क्या करना चाह रही थी पर जाने क्यों मामला उलट गया. बड़ी हिम्मत कर के उस ने यश को फोन लगाया. कोमल की बात सुन कर उस का भी दिल बैठ गया. उस ने कहा कि वह अगली फ्लाइट से वापस आ रहा है. अस्पताल के डाक्टर महावीर के शव का पोस्टमार्टम करना चाहते थे पर कोमल ने मना कर दिया. वहां के बड़े डाक्टर उस के पति यश को जानते थे. कोमल के दबाव में आ कर मौत का कारण उन्होंने ‘दिल का दौरा’ लिख दिया. आखिर वह बड़े उद्योगपति की बीवी होने के अलावा मृतक की मां भी थी.

कोमल आज बरसात की सुबह खिड़की के पास बैठ कर सोच रही थी. महावीर को मरे हुए 7 साल हो गए थे. उस ने महावीर का पोस्टमार्टम रुकवा कर शायद अपनेआप को कई साल कानून के कारागार में कैद होने से बचा लिया था. उस ने यश को भी सचाई नहीं बताई थी. पर उसे अपने मन, खयालात और दिमाग की कैद से कौन बचा सकता था. उस के अपराधबोध ने उसे आजीवन कैद की सजा सुना दी थी. जब तक वह जिंदा रहेगी तब तक सलाखें उस के इर्दगिर्द रहेंगी. जाति, धर्म और पाखंड की.

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