नोटबंदी आखिर में नसबंदी की तरह असफल हुई है, यह साफ सा है. जिन लोगों ने 8 नवंबर से 31 दिसंबर के बीच पुराने नोट भारी संख्या में बैंकों में जमा कराए हैं उन्हें नोटिस भेजे जा रहे हैं. नोटबंदी के समय कंप्यूटर सिस्टम चालू था, सो, यह देखना आसान था कि किसकिस ने तय सीमा से ज्यादा पैसा जमा कराया था. सरकारी विभागों ने ईमेल से 18 लाख लोगों को नोटिस भेजे हैं हालांकि बहुतों ने नोटिसों के जवाब नहीं दिए हैं. अब असली कवायद शुरू होगी. जिन्होंने ईमेल का सरकारी वैबसाइट पर जवाब नहीं दिया है उन के दरवाजों पर अफसर पहुंचेंगे. यह नए भ्रष्टाचार की शुरुआत होगी. साधारण व्यापारी, जिन्होंने 8 नवंबर के बाद बिके माल का भुगतान पुराने नोटों से लिया था, क्योंकि नए नोट तो थे ही नहीं, वे कैसे और क्या जवाब देंगे? देश में अरबों रुपयों का व्यापार कच्ची कौपियों पर होता है और सरकारी वैबसाइट पर जो सुबूत मांगे गए हैं, संभव नहीं कि वे भेजे जा सकें.

ऐसे में आयकर विभाग की बन आएगी. आयकर विभाग वाले किस की गरदन पर फंदा डालें, किस की नहीं, यह उन की मरजी पर निर्भर होगा. अगर दरवाजे पर पहुंच कर उन्होंने जांचपड़ताल की तो अब या तो संपत्ति दिखेगी या गहने, (नकदी तो भी लोगों के पास कम ही है क्योंकि पुराने नोटों के बदले दी गई नई नकदी जरूरत से अभी भी कम है). संपत्ति या स्टौक की कीमत क्या है, यह जांचनापरखना, फिर साबित करना कि यह कालाधन ही है, इन जैसे हक तो नोटबंदी के पहले भी आयकर विभाग के पास थे.

अगर 10-15 लाख लोगों को इस तरह कठघरे में खड़ा कर के कालाधन निकालना था तो पूरे देश की 120 करोड़ जनता को सजा देना कौन सा सुशासन है. आयकर अफसरों के हाथों में असीमित अधिकार देने का अर्थ होगा कि ब्लैकमनी का हस्तांतरण हुआ है, वह सरकारी खजाने में नहीं गई. पहले बैंक वालों, रसूखदार अफसरों और लाइन में खड़े होने की क्षमता रखने वालों ने पैसे बनाए और कालाधन काला ही रहा. अब आयकर अफसर कमाएंगे. इस चक्कर में आम आदमी और छोटा व्यापारी फंसेगा और सरकारी आय में मामूली सी बढ़ोतरी होगी जबकि पूरी अर्थव्यवस्था पर गहरा घाव बना रहेगा. कालाधन विलासिता को पैदा करता है, यह अकसर अनुपयोगी कामों में लगाया जाता है, यह कानून का उल्लंघन है. ये बातें सही हैं पर फिर भी जिस तरह बंदरों के उत्पात को रोकने के लिए जंगल को नहीं जलाया जाता, उसी तरह कुछ लोगों की ब्लैकिया करतूतों के लिए पूरे देश को परेशान करना मनमानी के अलावा कुछ नहीं है. अफसोस यह है कि अपने देश में ही नहीं, दूसरे देशों में भी क्रूर, गलत, सिरफिरे शासकों के ढेरों ऐसे समर्थक मिल जाते हैं जो बढ़चढ़ कर शासकों को गलत काम करने देते हैं और उन का गुणगान करते रहते हैं.

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