पंजाब कांग्रेस में जारी जबरदस्त घमासान के बाद वहाँ हालात अभी बिखरे बिखरे ही हैं. कैप्टन अमरिंदर सिंह को गद्दी से उतारने के लिए अपना पूरा जोर लगा देने वाले राज्य कांग्रेस के अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू के दिल को इस जबरदस्त जीत के बाद भी शांति नहीं मिल पायी. अब उन्होंने अध्यक्ष पद से इस्तीफा दे दिया है. पहले कैप्टन को लेकर वे आलाकमान को हलकान किये रहे अब उनकी शिकायत है कि पंजाब कैबिनेट में उनके लोगों को जगह नहीं मिली. वहीं कैप्टन अमरिंदर सिंह के भाजपा में जाने की सूचना से कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व परेशान है क्योंकि अगर ऐसा हुआ तो आगामी विधानसभा चुनाव में पंजाब में कांग्रेस को खासा नुकसान हो जाएगा. वहीं नए नए मुख्यमंत्री बने चरणजीत सिंह चन्नी अभी अपने मंत्रिमंडल को समेटने और स्थिर करने में ही चकराए हुए हैं. उन्हें कुछ समझ में नहीं आ रहा है.
कुल मिला के पंजाब की परेशानी ने कांग्रेस को हलकान कर रखा है, मगर इस सबके बीच कांग्रेस में दम फूंकने वाली खबर यह है कि जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यक्ष और सीपीआई नेता कन्हैया कुमार और गुजरात के वडगाम से निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी कांग्रेस में शामिल हो गए हैं.
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इन दोनों धुरंधर युवा नेताओं के कांग्रेस में शामिल होते ही कांग्रेस में जैसे नयी जान आ गयी है तो वहीं भाजपा को सांप सूंघ गया है. उल्लेखनीय है कि दोनों ही युवा नेता भाजपा की दक्षिणपंथी राजनीति के जबरदस्त विरोधी हैं और ये जिस तरह मोदी-शाह के साथ भाजपा और संघ को गरियाते हैं, उदाहरणों के साथ उन्हें लोकतंत्र का दुश्मन करार देते हैं, तर्क-ब-तर्क उनकी नीतियों का पोस्टमार्टम करते हैं, उन तर्कों को काट पाना भाजपा के किसी नेता के बूते की बात नहीं है. ख़ास बात यह है कि कन्हैया और जिग्नेश के आने से अब राहुल और प्रियंका को खुद को हिन्दू साबित करने की कोशिश नहीं करनी पड़ेगी, क्योंकि अब बात होगी सिर्फ जमीनी मुद्दों की. बात होगी जनता की. उसके लिए रोजगार की. भुखमरी, गरीबी, अशिक्षा, स्वास्थ, गिरती अर्थव्यवस्था पर केंद्र सरकार को चारों तरफ से घेरा जाएगा.
गौरतलब है कि जिग्नेश मेवानी और कन्हैया कुमार को कांग्रेस में एंट्री कराने में मुख्य भूमिका राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर ने निभाई है. कहा जा रहा है कि आने वाले समय में प्रशांत खुद भी कांग्रेस का हाथ थामने वाले हैं. वहीं वह कवि कुमार विश्वास को भी कांग्रेस में लाने की तैयारी में हैं. कुमार कभी केजरीवाल के जिगरी दोस्त थे मगर लम्बे समय से उनकी दोस्ती में फफूंद लगी हुई है. कुमार पहले भी राजनीति में आने के इच्छुक थे मगर उनको ठीक मंच नहीं मिल पाया. कांग्रेस में युवा चेहरों के जुड़ने के बाद उनको यह मंच लुभा रहा है.
कुमार विश्वास को यूं तो पूरा देश उनकी कविताओं, ग़ज़लों, राजनीति और राजनेताओं पर तीखी टिप्पणियों से जानता है, सराहता है, मगर उत्तर प्रदेश में जन्मे कुमार विश्वास का कांग्रेस ज्वाइन करना आगामी विधानसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम कर सकता है. कन्हैया और जिग्नेश का साथ पाकर जहां राहुल-प्रियंका उत्साहित हैं, वहीं कुमार विश्वास और खुद प्रशांत किशोर के कांग्रेस में आने की आहट ने समूची कांग्रेस में नयी जान फूंक दी है. गुजरात में युवा नेता हार्दिक पटेल तो पहले ही कांग्रेस का सहारा बन चुके हैं. राजस्थान में सचिन पायलट पार्टी का युवा चेहरा हैं.
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इन तमाम युवा चेहरों के एकसाथ आने से यह तय है कि ये यूपी, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में आगामी विधानसभ चुनावों में कांग्रेस पूरी मजबूती के साथ जनता के सामने होगी. जनता को अपनी बातों व तर्कों से प्रभावित करने का बूता रखने वाले ये तमाम नेता कांग्रेस के लिए जबरदस्त प्रचार करेंगे. इनकी भाषण क्षमता का प्रभाव वोटर्स पर पड़ना निश्चित है, इससे इन राज्यों में तो कांग्रेस को फायदा मिलेगा ही, राष्ट्रीय स्तर पर भी कांग्रेस मजबूत होकर उभरेगी.
कन्हैया कुमार आंदोलन से निकले हुए नेता हैं और कांग्रेस को अभी हर दिन आंदोलन की जरूरत है, ऐसे में वे निश्चित तौर पर सिर्फ बिहार कांग्रेस में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में कांग्रेसियों के बीच ऊर्जा का प्रवाह करेंगे.भारतीय जनता पार्टी और संघ जिस तरह पूरे देश को दक्षिणपंथी सोच में ढालने की कोशिश में लगे हैं, कांग्रेस में आने वाले ये तमाम युवा चेहरे उस सोच को तोड़ने का माद्दा रखते हैं. बाबा साहेब आंबेडकर के संविधान और लोकतंत्र के मूल्यों में गहरा विश्वास रखने वाले ये वो लोग हैं जो गरीबी के दलदल से निकले हैं और देश की अस्सी फीसदी जनता जिन तकलीफों और परेशानियों में जकड़ी है उसे बखूबी समझते हैं. वहीं ये भाजपा की साम्प्रदायिक कुटिलता और दक्षिणपंथी सोच के शिकार भी रह चुके हैं, उनके द्वारा देशद्रोह के झूठे आरोपों में जेल की हवा भी खा चुके हैं, तो भाजपा को उखाड़ फेंकने का कोई मौक़ा अब ये नहीं गवाएंगे.
कन्हैया कुमार ने तो पार्टी ज्वाइन करते ही अपनी मंशा साफ़ कर दी है. मीडिया से मुखातिब होते ही उन्होंने कहा – “मैं कांग्रेस पार्टी इसलिए ज्वाइन कर रहा हूं क्योंकि मुझे ये महसूस होता है कि इस देश में कुछ लोग, वो सिर्फ लोग नहीं है वो एक सोच हैं. वो इस देश की सत्ता पर न सिर्फ काबिज हुए हैं, इस देश की चिंतन, परंपरा, संस्कृति, इसका मूल्य, इसका इतिहास, इसका वर्तमान और इसका भविष्य खराब करने की कोशिश कर रहे हैं. हमने ये चुनाव किया है कि हम इस देश की सबसे पुरानी पार्टी, सबसे लोकतांत्रिक पार्टी में इसलिए शामिल होना चाहते हैं कि हमको लगता है और इस देश के लाखों लोगों को लगने लगा है कि अगर कांग्रेस नहीं बची तो ये देश नहीं बचेगा. कांग्रेस सिर्फ एक पार्टी नहीं है, यह एक विचार है. यह देश की सबसे पुरानी और सबसे लोकतांत्रिक पार्टी है, और मैं ‘लोकतंत्र’ पर जोर दे रहा हूं… सिर्फ मैं ही नहीं कई लोग सोचते हैं कि देश कांग्रेस के बिना नहीं रह सकता.”
कन्हैया ने कहा – ”देश 1947 से पहले वाली स्थिति में चला गया है. कांग्रेस पार्टी वो पार्टी है जो महात्मा गांधी की विरासत को लेकर आगे चलेगी. लोकसभा में 545 सीटें हैं, इसमें दो सौ सीटें लगभग ऐसी हैं जहां भाजपा के सामने कांग्रेस के अलावे कोई विकल्प नहीं है. कांग्रेस पार्टी एक बड़ा जहाज है, अगर ये पार्टी बचेगी तो इस देश के लाखों करोड़ों नौजवानों की अकाक्षाएं बचेंगी. भगत सिंह के सपनों का भारत बचेगा और बाबा साहेब की समानता के भारत का निर्माण संभव हो पाएगा.”
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि अगर कन्हैया को फ्री हैंड मिला तो आने वाले पांच-सात सालों में उत्तर प्रदेश और बिहार में कांग्रेस की स्थिति बहुत बेहतर हो जाएगी. कन्हैया कुमार इस देश में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की लड़ाई के प्रतीक हैं. उन्होंने एक छात्र नेता के रूप में कट्टरवाद के खिलाफ लड़ाई लड़ी. इस तरह के गतिशील व्यक्तित्व के शामिल होने से कांग्रेस का पूरा कैडर उत्साह से भर जाएगा. कन्हैया के कारण बिहार में कांग्रेस, आरजेडी की पिछलग्गू नहीं रह जाएगी.
कन्हैया के कांग्रेस में आने से बिहार में तेजस्वी यादव की राह में एक बड़ा रोड़ा पैदा होगा. कन्हैया ने जो लाइन खींची है वो तेजस्वी यादव से बहुत बड़ी है. यह बात खुद तेजस्वी यादव भी बहुत अच्छी तरह जानते हैं. क्योंकि लोकसभा चुनाव में कन्हैया को हराने के लिए तेजस्वी की पार्टी आरजेडी ने काफी अहम भूमिका निभाई थी. उस सीट से भाजपा के सबसे जहरीले नेताओं में से एक गिरिराज सिंह चुनाव जीते थे. अब विधानसभा चुनाव में सिर्फ यादव वोट ही तेजस्वी के खाते में जाएंगे क्योंकि पिछड़ा, दलित और मुस्लिम वोट के लिए कन्हैया के नेतृत्व में कांग्रेस राज्य में बड़ा विकल्प बन कर खड़ी होगी. बहुत दिनों बात कांग्रेस को हिंदी बेल्ट में इतना पोलराइजिंग फिगर और पोटेंशियल वाला नेता मिला है. अगर इसका ठीक से इस्तेमाल हो गया तो भाजपा को अपना बोरिया-बिस्तर समेटने में ज़्यादा वक़्त नहीं लगेगा.
वहीं जिग्नेश मेवानी ने भी लोकतांत्रिक मूल्यों में अपनी आस्था जाहिर करते हुए साफ़ कहा – ”लोकतंत्र और भारत के विचार को बचाने के लिए, मुझे उस पार्टी के साथ रहना होगा जिसने स्वतंत्रता संग्राम का नेतृत्व किया और अंग्रेजों को देश से बाहर निकाला. इसलिए मैं आज यहां कांग्रेस के साथ हूं. मैं कानूनी वजह से औपचारिक रूप से कांग्रेस में शामिल नहीं हो सका. मैं एक निर्दलीय विधायक हूं, अगर मैं किसी पार्टी में शामिल होता हूं, तो मैं विधायक के रूप में नहीं रह सकता. मगर मैं वैचारिक रूप से कांग्रेस का हिस्सा हूं, और आगामी गुजरात चुनाव कांग्रेस के चुनाव चिह्न से लड़ूंगा.”
गुजरात की वडगाम विधानसभा सीट से जनप्रतिनिधि जिग्नेश मेवानी अगले साल गुजरात में होने जा रहे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के गणित के लिहाज से काफी अहम साबित हो सकते हैं. दलित समुदाय से ताल्लुक रखने वाले, पेशे से वकील तथा पूर्व पत्रकार जिग्नेश मेवानी ऐसे वक्त में कांग्रेस का हाथ थाम रहे हैं, जब पार्टी अनुसूचित जाति समुदाय की ओर हाथ बढ़ा रही है, जो उनका परंपरागत समर्थक रहा है. पार्टी ने पंजाब में भी कैप्टन अमरिंदर सिंह को हटाकर दलित मुख्यमंत्री – चरणजीत सिंह चन्नी – को तैनात किया है.
जिग्नेश मेवानी ने ट्वीट कर इस कदम का समर्थन भी किया था. उन्होंने लिखा था – “चरणजीत सिंह जी को पंजाब का मुख्यमंत्री नियुक्त करने का फैसला एक संदेश है, जो राहुल गांधी और कांग्रेस ने दिया है. इसका ज़ोरदार असर न सिर्फ दलितों पर होगा, बल्कि समूचे निचले तबके पर होगा. दलितों के लिए यह कदम सिर्फ शानदार नहीं, सुकून देने वाला भी है.”
जिग्नेश मेवानी अभी उत्तरी गुजरात के बनासकांठा जिले की वडगाम सीट का प्रतिनिधित्व करते हैं. उन्होंने यह सीट कांग्रेस के समर्थन से 2017 के विधानसभा चुनावों में जीती थी. यह कांग्रेस के लिए एक मजबूत सीट विधानसभा सीट थी, लेकिन पार्टी ने मेवाणी को इस सीट पर समर्थन दिया, इसके बदले उन्होंने पूरे राज्य में कांग्रेस का समर्थन किया. 2016 में ऊना में दलितों के साथ हुई हिंसा के बाद राज्य में हुए प्रदर्शनों का उन्होंने नेतृत्व किया. वे गुजरात में दलितों के जमीन के हक के लिए भी लड़ते रहे हैं.
2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को गुजरात में 53 फीसदी दलितों के वोट मिले थे, सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के डेटा के अनुसार 2019 के लोकसभा चुनाव में गुजरात में 67 फीसदी दलितों ने कांग्रेस को वोट दिया. ऐसा उस वक्त हुआ जब ओबीसी, उच्च जातियों और आदिवासियों का मोह इस दौरान पार्टी से भंग हुआ.
मेवानी की वडगाम सीट 182 में से उन 9 विधानसभा सीटों में शामिल है, जहां लोकसभा चुनावों में कांग्रेस को लीड मिली थी. पार्टी को दलितों का इतना समर्थन मेवानी की वजह से ही मिला था.जिग्नेश मेवानी और कन्हैया कुमार दोनों हिंदुत्व की विचारधारा के खिलाफ मजबूती से बोलते हैं. इसलिए ऐसे वक्त में जब टीएमसी, एआईएमआईएम, और समाजवादी पार्टी जैसे दल कांग्रेस की दक्षिणपंथी ताकतों के साथ मुकाबले की क्षमता को लेकर सवाल उठा रहे हैं , ऐसे में ये दोनों नेता कांग्रेस का बड़ा सम्बल बनेगे और विपक्षी दलों के बीच कांग्रेस के औरा को मजबूत करेंगे. खासकर भाजपा विरोधी युवा वोटरों के बीच वह यह संदेश आसानी से पहुचायेंगे कि कांग्रेस ही देश में मुख्य भाजपा विरोधी ताकत है.
इसके साथ ही यह युवा नेता कांग्रेस में रूढ़िवादी विचारधारा वाले पुराने नेता, जो अब अपने अस्तबलों से बाहर निकल कर रेस में शामिल ही नहीं होना चाहते, के मुकाबले राहुल गांधी के नेतृत्व वाले सेंटर-लेफ्ट धड़े को मजबूती दे सकते हैं.बीते समय में और वर्तमान में कई लेफ्ट विचारधारा से जुड़े स्टूडेंट यूनियन लीडर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी राजनीति के लिए कांग्रेस को एक बेहतर विकल्प मानते हैं. ऐसा शायद इसलिए भी है क्योंकि सीपीआई और सीपीआई (एम) जैसी पार्टियों में आगे बढ़ने की संभावना काफी कम रह गई है. कन्हैया के कारण और भी छात्र नेताओं को कांग्रेस एक बढ़िया प्लेटफार्म नज़र आ रहा है. आने वाले समय में दक्षिणपंथी विचारधारा को भोथरा करने के इरादे से और भी धुरंधर लोग कांग्रेस से जुड़ेंगे.